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बोले मुजफ्फरनगर : महिला मजदूरों को सौ दिन काम की दरकार

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Newswrap हिन्दुस्तान, मुजफ्फर नगरMon, 5 May 2025 05:27 PM
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बोले मुजफ्फरनगर : महिला मजदूरों को सौ दिन काम की दरकार

जनपद में मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) के तहत 80 हजार मजदूरों के जॉब कार्ड बने हुए हैं, जिनमें करीब 26 हजार महिला मजदूर शामिल हैं। मनरेगा के तहत जॉब कार्ड धारक मजदूर को एक साल में न्यूनतम सौ दिन तक काम देना अनिवार्य है, लेकिन आंकड़ों के तहत जिले में महज 1,200 लोगों को ही एक साल में सौ दिन का रोजगार मिल पाता है। वहीं, महिला मजदूरों को तो एक साल में महज 20 से 25 दिन का ही रोजगार मिल पाता है। यही नहीं, जहां प्रदेश में न्यूनतम मजदूरी 783 रुपये प्रतिदिन निर्धारित है, वहीं मनरेगा के तहत मजदूरों को मात्र 235 रुपये प्रतिदिन ही मिल पाते हैं और यह भुगतान पाने के लिए भी कई-कई दिन का इंतजार करना पड़ता है।

----------- मनरेगा महिला मजदूर मुजफ्फरनगर। उत्तर प्रदेश में ग्रामीणों को एक वित्तीय वर्ष में कम से कम सौ दिन का रोजगार उपलब्ध कराने के लिए अप्रैल 2008 से मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) को लागू किया गया था। मनरेगा के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में जल संरक्षण एवं संचयन, सड़क-पुल आदि का निर्माण, पौधारोपण व वन संरक्षण, बाढ़ नियंत्रण व सुरक्षा के साथ ही खेतों व तालाबों की खुदाई, बांधों का निर्माण व सफाई कार्य कराए जाते हैं। जनपद में मनरेगा के तहत 80 हजार ग्रामीणों के जॉब कार्ड बने हुए हैं, जिनमें करीब 26 हजार महिलाएं हैं। जनपद में मनरेगा के बदतर हालात का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि 80 हजार पंजीकृत मजदूरों में से मात्र 1,200 मजदूरों को ही एक वित्तीय वर्ष में पूरे सौ दिन का रोजगार मिल पाता है। महिला मजदूरों की बात करें तो उन्हें एक वित्तीय वर्ष में महज 20 से 25 दिन का ही रोजगार मिल पाता है। मनरेगा महिला मजदूर राखी व संगीता ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा के तहत महिलाओं को रोजगार देने में कंजूसी की जाती है। ग्राम सचिव द्वारा ग्रामीण क्षेत्र में कोई भी काम कराने के दौरान समय बचाने के लिए जेसीबी समेत अन्य उपकरण मंगा लिए जाते हैं, जिनसे काम कराने के बाद उन्हें तो भुगतान हाथो-हाथ भुगतान कर दिया जाता है। इसके चलते महिला मजदूरों को एक वित्तीय वर्ष में बामुश्किल 20 से 25 दिन का ही रोजगार मिल पाता है। यही नहीं, महिला मजदूरों को जो रोजगार मिलता भी है, उसका भुगतान करने में भी कोताही बरती जाती है। महिला मजदूरों का वेतन 14 दिन काम करने के बाद बनाया जाता है, जिसके बाद उसे रिलीज कराने के लिए चक्कर काटने पड़ते हैं। जब ग्राम सचिव से वेतन दिलवाने की बाबत शिकायत की जाती है तो उनके द्वारा किसी तरह की कोई सुनवाई न कर उन्हें विकास भवन जाने के लिए कह दिया जाता है। वहीं, काम करने के जो दिन 14 दिन से शेष रह जाते हैं, उनका भुगतान अगले 14 दिन पूरे होने तक रोक दिया जाता है। महिला मजदूरों ने बताया कि सरकार द्वारा उन्हें मजदूरी देने में भी भेदभाव बरता जाता है। एक ओर जहां प्रदेश में अकुशल मजदूर की न्यूनतम मजदूरी 783 रुपये प्रतिदिन है, वहीं मनरेगा के तहत मजदूरों को महज 235 रुपये प्रतिदिन ही दिए जाते हैं, जो पूरी तरह अव्यवहारिक है। इसके साथ ही महिला मजदूरों को सरकार द्वारा प्रदत्त अन्य सुविधाएं भी नहीं मिलती हैं। न तो उन्हें मेडिकल बीमा का लाभ मिलता है और न ही कार्यस्थल पर छोटे बच्चों को रखने के लिए चाइल्ड केयर सुविधा। एक बार जब महिला मजदूरों के जॉब कार्ड मनरेगा के तहत बन जाते हैं तो फिर उनके श्रम विभाग में भी रजिस्ट्रेशन नहीं किए जाते हैं। सरकार को मनरेगा के तहत मजदूरों की धनराशि बढ़ाए जाने के साथ ही काम का भुगतान तत्काल किए जाने और एक वित्तीय वर्ष में पूरे सौ दिन रोजगार उपलब्ध कराना चाहिए। वहीं, महिला मजदूरों के लिए कार्यस्थल पर चाइल्ड केयर समेत अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध करानी चाहिए। ----------- --- शिकायतें और सुझाव --- शिकायतें --- - मनरेगा के तहत महिला मजदूरों को एक वित्तीय वर्ष में सौ दिन की मजदूरी निर्धारित है, लेकिन हकीकत में उन्हें महज 20 से 25 दिन का ही रोजगार उपलब्ध कराया जाता है। - न्यूनतम मजदूरी 783 रुपये प्रतिदिन निर्धारित है, जबकि मनरेगा के तहत मजदूरी मात्र 235 रुपये प्रतिदिन ही दी जाती है और उसका भी भुगतान कई कई दिन में किया जाता है। - कार्यस्थल पर महिला मजदूरों को चाइल्ड केयर व शौचालय समेत अन्य किसी तरह की सुविधा उपलब्ध नहीं कराई जाती, जिससे उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। - मजदूरों का वेतन 14 दिन पूरे होने के बाद बनाया जाता है, जिससे अलग जितने भी दिन की मजदूरी बनती है, उसका भुगतान कराने के लिए ग्राम सचिव व विकास भवन के चक्कर कटने पड़ते हैं। ---- सुझाव --- - ग्रामीण क्षेत्र में मनरेगा महिला मजदूरों को निर्धारित की गई पूरे सौ दिन की मजदूरी उपलब्ध करानी चाहिए, प्रत्येक जॉब कार्ड धारक के सौ दिन पूरे होने पर काम में मशीनों का इस्तेमाल करना चाहिए। - न्यूनतम मजदूरी 782 रुपये प्रतिदिन के सापेक्ष मनरेगा की मजदूरी 235 रुपये प्रतिदिन है, जो उसके एक तिहाई से भी अधिक कम है। शासन को जॉब कॉर्ड की मजदूरी का यह अंतर कम करना चाहिए। - मनरेगा के तहत कार्यस्थल पर महिला मजदूरों के लिए शौचालय, विश्राम स्थल व चाइल्ड केयर की सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए, ताकि काम के दौरान उन्हें परेशानी का सामना न करना पड़े। - मनरेगा के तहत मजदूरों का वेतन 14 दिन के स्थान पर जितने भी दिन काम किया गया, उन सभी दिन का एक साथ बनाकर उसका भुगतान समय से महिला मजदूरों के खाते में भेज देना चाहिए। ------------ इन्होंने कहा --- - जनपद में मनरेगा के तहत 80 हजार जॉब कार्ड धारक हैं, लेकिन काम की डिमांड महज 19 हजार मजदूरों द्वारा ही की जाती है। उत्तर प्रदेश में मनरेगा की मजदूरी 235 रुपये है, जबकि पड़ोसी प्रदेश हरियाणा में यह 400 रुपये प्रतिदिन है। वहीं, मार्केट में मजदूर को प्रतिदिन पांच सौ से छह सौ रुपये प्रतिदिन की मजदूरी मिल जाती है। इसके चलते मजदूर जॉब कार्ड बनवाने के बावजूद मनरेगा में काम करने से हिचकते हैं। महिला मजदूरों को कार्यस्थल पर सभी सुविधाएं दी जाती हैं, अन्य के भी प्रयास किए जाएंगे। प्रमोद यादव, डीसी मनरेगा --------- - मनरेगा के तहत मजदूरी केवल 235 रुपये प्रतिदिन ही मिल पाती है, जबकि न्यूनतम मजदूरी भी 783 रुपये प्रतिदिन निर्धारित है। ललिता -------- - मनरेगा के तहत साल में केवल 20 से 25 दिन ही काम मिल पाता है, जिस रोजमर्रा के खर्चे चलाने में भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। राखी ---------- - मनरेगा के तहत 14 दिन काम करने के बाद ही खाते में पैसे आते है, मानकों के अनुसार पर्याप्त काम नहीं मिल पाता है। शिवानी ---------- - मनरेगा के तहत मजदूरी करने पर पूरे दिनों का वेतन नही मिल पाता, जिसके लिए सचिव व विकास भवन के चक्कर काटने पड़ते है। अनु ---------- - मनरेगा मजदूरों से तालाब की सफाई सहित अन्य काम कराए जाने चाहिए, लेकिन नियमों की अवेहलना करते हुए ये काम जेसीबी मशीन से करा दिए जाते हैं। संगीता ---------- - श्रम विभाग में रजिस्ट्रेशन नहीं होने के कारण काफी समस्याएं सामने आती है, जिस कारण सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रहना पड़ता है। बबीता ---------- - मनरेगा मजदूरों को अक्सर वेतन में देरी का सामना करना पड़ता है, जिससे उन्हें आर्थिक रूप से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। मोनिका ---------- - महिला मजदूरों को मनरेगा के तहत काम नियमित रूप से नही मिल पाता, जिससे उन्हें नियमित आय नहीं मिल पाती और आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ता है। रीना ---------- - मनरेगा के तहत तालाब, नालियां और सड़क किनारे साफ-सफाई का काम दिया जाता है, बावजूद इसके मजदूरों को समय से भुगतान नहीं किया जाता है। मीनाक्षी ---------- - काम के दौरान चोट लगने या दुर्घटना होने पर भी स्वास्थ्य बीमा का लाभ नहीं दिया जाता है, मजदूरों को प्राथमिकता के साथ स्वास्थ्य बीमा का लाभ देना चाहिए। मौसीना ---------- - तालाबों की सफाई जेसीबी मशीन से करा दी जाती है, जिस कारण मनरेगा के तहत मिलने वाले काम से मजदूरों को वंचित रहना पड़ता है। नसीमा ---------- - मनरेगा मजदूरों को सरकारी योजनाओं का लाभ देने के लिए श्रम विभाग में प्राथमिकता के साथ रजिस्ट्रेशन होने चाहिए, जिससे उन्हें समस्याओं का सामना न करना पड़े। रीता ---------- - मनरेगा के तहत मजदूरों को पूरे 100 दिन काम नहीं दिया जाता है, जिस कारण मनरेगा मजदूरों को काम के लिए विकास भवन के चक्कर काटने पड़ते है। ममतेश ---------- - मनरेगा के तहत मजदूरों को भुगतान प्रक्रिया में लंबा इंतजार करना पड़ता है, भुगतान के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते है। देवेंद्री ----------------------------

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