बोले रायबरेली: अस्पताल का हाल
Raebareli News - पर्चा काउंटर व ओपीडी में घंटों इंतजार, डॉक्टर भी कम रायबरेली, संवाददाता। जनपद
पर्चा काउंटर व ओपीडी में घंटों इंतजार, डॉक्टर भी कम रायबरेली, संवाददाता। जनपद भर के मरीजों के लिए जिला अस्पताल उम्मीदों भरा रहता है। बावजूद इसके लोगों को जरूरी सुविधाओं के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है। इमरजेंसी में मरीजों को 108 के माध्यम से एंबुलेंस सेवा मिल जाती है, घर जाने की कोई व्यवस्था नहीं होती है। यहां व्हीलचेयर व स्ट्रेचर की उपलब्धता है, लेकिन कभी-कभी इमरजेंसी में आए लोगों को गोद में ले जाना पड़ता है। अस्पताल की फार्मेसी में 230 प्रकार की दवाएं तो उपलब्ध हैं। बावजूद इसके कभी-कभी डॉक्टर बाहर की दवा लिख देते हैं। हालांकि कुछ मामलों में तो मरीज के तीमारदार बाहर से दवा लिखने का दबाव बनाते हैं।
अस्पताल में ठंडा पानी मरीजों और उनके तीमारदारों को नहीं मिल पाता है। अस्पताल में रजिस्ट्रेशन से लेकर इलाज तक की प्रक्रिया में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कर्मचारियों का दुर्व्यवहार और सुविधाओं की कमी सभी को खल रही है। इसके लिए प्रयास तो किए जा रहे हैं, लेकिन वह नाकाफी साबित हो रहे हैं। ्रजिला अस्पताल देहात से लेकर शहर तक के लोगों का सहारा है। फिर भी अस्पताल की सुविधाएं इतनी कमजोर हैं कि मरीजों को बुनियादी इलाज मिलने में दिक्कत हो रही है। डॉक्टर भी मानक के अनुरूप नहीं हैं। तीमारदारों को भी खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। ऊपर से कर्मचारियों के व्यवहार से भी लोग आहत हैं। अस्पताल की समस्याओं को लेकर आपके अपने हिन्दुस्तान अखबार ने इन मरीजों और उनके तीमारदारों से बात की तो उन लोगों ने अपनी समस्याएं साझा की। मरीजों के परिजनों ने बताया कि जिला अस्पताल में पर्चा बनवाना और ओपीडी में चिकित्सीय परामर्श लेना किसी चुनौती से कम नहीं है। पर्चा काउंटर पर बैठे कर्मियों और सिक्योरिटी गार्डों का व्यवहार परेशान करने वाला रहता है। महिलाओं के साथ ही पुरुष और बच्चे भी इलाज से ज्यादा यहां की अव्यवस्था से जूझने को मजबूर हो रहे हैं। कदम-कदम पर दुश्वारियां हैं। जिला अस्पताल में रोजाना 1700 से 1800 तक मरीज इलाज कराने आते हैं। जिला अस्पताल में आने वाले मरीजों को रजिस्ट्रेशन काउंटर से लेकर चिकित्सकों की ओपीडी तक पहुंचने में तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सबसे बड़ी समस्या तो रजिस्ट्रेशन काउंटर पर होती है, जहां मरीजों को घंटों इंतजार करना पड़ता है। यहां कर्मचारियों की कमी और लापरवाही के कारण मरीजों का खासा वक्त बर्बाद होता है। कई बार मरीजों और तीमारदारों से काउंटर पर तैनात कर्मी दुर्व्यवहार करते हैं। इससे तनाव और बढ़ जाता है। इसी चक्कर में लोग अपने मरीज को निजी अस्पताल में जाकर इलाज कराने के लिए मजबूर होते हैं। मरीजों और तीमारदारों का कहना है कि अस्पताल में कई बार इसकी शिकायत की गई, लेकिन इन पर कोई कार्रवाई होती है न ही अस्पताल प्रशासन ध्यान देता है। यह स्थिति अस्पताल प्रबंधन और स्वास्थ्य कर्मियों की कार्यशैली पर सवाल है। अस्पताल के दवा काउंटर पर भी एक बड़ी समस्या है। मरीज बताते हैं कि यहां पर्चे पर लिखी दवा कभी-कभी बदल जाती है। कहने को स्टॉक भले ही उपलब्ध बताया जाता है, लेकिन यहां अक्सर दवाओं की कमी बनी रहती है। कई बार मरीजों को दवा के लिए बाहर जाना पड़ता है। यही नहीं जरूरत पर न तो स्ट्रेचर मिलता है न ही वार्ड ब्वॉय दिखते हैं। मरीजों और तीमारदारों का यह भी कहना है कि कई बार स्वास्थ्य कर्मी उनसे दुर्व्यवहार करते हैं, जिससे वे मानसिक तनाव में आ जाते हैं। वार्डों में कूलर काम कम कर रहे हैं। पेयजल के लिए लोग परेशान हैं, गर्मी में शासन ने सख्त निर्देश दिया है कि सुविधा बेहतर रखें। अस्पताल परिसर में सड़क इतनी खराब है कि मरीज स्ट्रेचर से गिरकर घायल हो सकते हैं। बाहर सफाई का भी अभाव है, कई वार्ड में तो डस्टबिन नहीं है। भर्ती मरीजों को ड्रिप बदलवाने, वीगो लगवाने और यूरिन थैली बदलवाने तक के लिए जूझना पड़ रहा है। कई बार चादर तक नहीं बदलते हैं। रात में मरीज को परेशानी होने पर ऑनकाल पर चिकित्सकों के पहुंचने में समय लग रहा है। बाहर प्रतीक्षालय के पास बेंच कम हैं। फर्श पर ही लोग समय बिताते हैं। शौचालय इतने गंदे हैं कि जाने को मन नहीं करता है। ओपीडी के बाहर मरीज जैसे-तैसे फर्श पर समय बिता रहे हैं। ब्लड जांच, एक्स-रे और अल्ट्रासाउंड में तमाम दुश्वारियां झेलकर लोग रिपोर्ट हासिल कर रहे हैं। ----------- शिकायतें -जिला अस्पताल में एक भी हेल्थ एटीएम नहीं लगवाया गया है। जबकि यहां सबसे अधिक मरीज आते हैं। -अक्सर डाक्टर मरीजों को बाहर से दवाएं लिख देते हैं। इससे मरीज के परिजन परेशान होते रहते हैं। -सैनिक कल्याण निगम के जवानों का तीमारदारों और उनके परिजनों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं है। -जिला अस्पताल में पेयजल की समुचित व्यवस्था नहीं है। लोगों को ठंडा पानी नहीं मिल रहा है। -अस्पताल में इलाज के दौरान महिला-पुरुषों की लाइन अलग-अलग नहीं होती है। --- सुझाव -जिला अस्पताल में एक हेल्थ एटीएम लगवाया जाना चाहिए। क्योंकि यहां सबसे अधिक मरीज आते हैं। -जो डाक्टर मरीजों को बाहर से दवाएं लिख देते हैं। इसकी जांच कर इन पर रोक लगनी चाहिए। -सैनिक कल्याण निगम के जवानों का तीमारदारों और उनके परिजनों के साथ व्यवहार अच्छा होना चाहिए। -जिला अस्पताल में पेयजल के समुचित इंतजाम होने चाहिए। लोगों को ठंडा पानी मिलना चाहिए। -अस्पताल में इलाज के दौरान महिला-पुरुषों की लाइन अलग-अलग होनी चाहिए। --------- नंबर गेम 1700 के करीब रोजाना मरीजों का रजिस्ट्रेशन होता है। 230 प्रकार की दवाएं जिला अस्पताल में उपलब्ध हैं। 29 डाक्टर जिला अस्पताल में तैनात हैं। ----------- गार्ड पर खर्च हो रहे लाखों, ड्यूटी में मनमानी रायबरेली। जिला अस्पताल में मरीजों, कर्मियों और चिकित्सकों की सुरक्षा की दृष्टिगत तैनात किए गए सिक्योरिटी गार्डों पर अस्पताल प्रबंधन लाखों खर्च कर रहा है, लेकिन ड्यूटी मनमानी तरीके से की जा रही है। रोस्टर का पता नहीं, जहां चाहे वहीं पर डंडा भांजने लगते हैं। इनकी बदसलूकी से मरीज-तीमारदार डरे-सहमे रहते हैं। जबकि इनका काम सहयोग करना है। मरीज बताते हैं कि रात में सिक्योरिटी गार्ड कम ही दिखते हैं। वार्डों में लगाए गार्डों से आए दिन विवाद होता रहता है। कई बार तो गार्डों ने नशे की हालत में बहुत हंगामा किया कई घंटों के बाद मामला शांत हुआ। अक्सर दिन में भी इधर-उधर घूमकर, मोबाइल चलाकर वक्त बिताते हैं। सिक्योरिटी गार्ड रोस्टरवार ड्यूटी छोड़कर अफसरों की जी-हजूरी में रहते हैं। यह सिक्योरिटी ऐसी है कि कोई मरीज, तीमारदार कक्ष में जाकर आसानी से शिकायत तक नहीं कर सकता है। वह उसे झट से बाहर का रास्ता दिखा देते हैं। -------- जिला अस्पताल में हेल्थ एटीएम की सुविधा नहीं रायबरेली। यहां पर इलाज की सुविधाएं भी अत्यधिक सीमित हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि जिला अस्पताल में हेल्थ एटीएम की सुविधा भी नहीं है, जबकि यहां रोजाना हजारों मरीज आते हैं। जिनको सामान्य जांचों के लिए भी लाइन में लगना पड़ता है। हेल्थ एटीएम से मरीज दो मिनट के भीतर 25 से ज्यादा जांचें करवा सकते हैं। जिससे इलाज में समय की बचत होती है। लेकिन इस सुविधा के अभाव में यहां के मरीजों को बार-बार जांच के लिए अलग-अलग स्थानों पर दौड़ लगानी पड़ती है। इससे लोगों को बहुत दिक्कत होती है। इमरजेंसी में नहीं मिलता स्ट्रेचर रायबरेली। जिला अस्पताल में कहने को तो करीब 50 से 60 स्ट्रेचर है। फिर भी कई बार मरीजों और उनके तीमारदारों को ओपीडी तक ले जाने के लिए कंधे पर मरीजों को उठाना पड़ता है। यह स्थिति बेहद असंवेदनशील और अस्वीकार्य है, क्योंकि एक मरीज को अगर गंभीर स्थिति में अस्पताल लाया गया है, तो उसे इस प्रकार की अतिरिक्त परेशानी नहीं होनी चाहिए। मरीजों ने बताया कि अस्पताल प्रशासन से कई बार इस समस्या को लेकर शिकायत की गई है, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला है। डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा अस्पताल रायबरेली। जिला अस्पताल की यह स्थिति है कि मानक के अनुसार डॉक्टर नहीं है। 39 डॉक्टरों में 29 चिकित्सक ही हैं। स्टाफ नर्स भी कम हैं जबकि वार्ड ब्वाय तो पर्याप्त हैं लेकिन दिखाई कम ही पड़ते हैं। इससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि यदि मानक के अनुरूप डाक्टर नहीं हैं तो भी चिकित्सीय सेवाएं अवश्य प्रभावित हो रही होंगी। इससे लोगों को दिक्कत जरूर होती है। अस्पताल प्रशासन भले ही यह कहकर पल्ला झाड़ लेता है कि सभी अस्पतालों का यही हाल है। जितने भी डाक्टर उपलब्ध हैं उनसे काम लिया जा रहा है। किसी मरीज को असुविधा नहीं होने दी जाती है। हमारी भी सुनें मरीजों द्वारा कई बार अभद्र व्यवहार की शिकायत की जा चुकी है, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। यहां पर काम करने वाले कर्मचारी इस ओर ध्यान नहीं देते हैं। समस्याओं के समाधान के लिए संघर्ष करना पड़ता है। इस ओर स्थानीय प्रशासन को ध्यान देना चाहिए। शकील अहमद ---------- रजिस्ट्रेशन काउंटर पर काफी देर इंतजार करना पड़ता है। कर्मचारियों से बातचीत भी बहुत कठिन होती है। कई बार यह लोग मरीज के तीमारदारों से दुर्व्यवहार भी कर देते है। इससे लोग परेशान होते हैं। इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। विसनू -------- जिला अस्पताल में हेल्थ एटीएम की सुविधा नहीं है, जिससे कई जांचों के लिए बाहर पैथालाजी में रुपए खर्च कर करवाना पड़ता है। इससे समय और पैसे दोनों की बर्बादी होती है। यहां सुधार की सख्त जरूरत है। जिससे लोगों को आसानी से सुविधाएं मिल सकें इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। प्रेमकुमार -------- डॉक्टर के पास जाने में बहुत समय लगता है। ओपीडी में भीड़ इतनी होती है कि इलाज करवाने में काफी समय लगता है। मरीजों को डाक्टर कम समय दे पाते हैं। मरीजों में रोग के स्तर के हिसाब से समय मिलना चाहिए। यहां सुविधाओं का विस्तार होना आवश्यक है। नसीर अहमद -------- अस्पताल में कभी-कभी दवाइयों की कमी भी हो जाती है। कई बार हमें बाहर से दवाइयां लानी पड़ती हैं। यहां के कर्मियों से संवाद करने में भी परेशानी होती है। ठीक से हम अपनी बात नहीं रख पाते हैं। इससे भी दिक्कत होती है। इस पर ध्यान दिया जाए। अशोक कुमार -------- अस्पताल में कई बार स्ट्रेचर नहीं मिलता और कंधों पर ओपीडी तक मरीज को लेकर जाना पड़ता। जिससे काफी परेशानी उठानी पड़ती है। अस्पताल प्रशासन को इस पर ध्यान देना चाहिए। जैसे ही कोई मरीज एमरजेंसी में आए तो उसे तुरंत स्ट्रेचर की सुविधा मिलनी चाहिए। श्याम त्रिपाठी --------- कर्मचारियों का व्यवहार बहुत खराब है। कई बार इसकी शिकायत लोगों ने की, लेकिन कोई ध्यान नहीं देता। स्वास्थ्य कर्मियों को थोड़ा और संवेदनशील होना चाहिए। इस पर स्थानीय प्रशासन को ध्यान देना होगा। इससे सभी को राहत मिलेगी। राधेश्याम --------- कई बार यहां इलाज के बाद भी तबीयत में कोई फर्क नहीं आता। बताने पर भी उचित व्यवस्था नहीं मिल पाती है। डॉक्टर्स की कमी महसूस होती है सुविधाएं तो हैं, लेकिन उसका प्रभावी तरीके से प्रयोग नहीं हो रहा है। इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। जिससे लोगों को दिक्कत न हो। अनिल ------ यह जिले का प्रमुख अस्पताल है, लेकिन बड़े अफसोस की बात है कि यहां पर हेल्थ एटीएम की सुविधा नहीं है। यहां पर मैनपावर भी कुछ कम है। इसीलिए टेस्ट आदि करवाने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है। इस पर प्रशासन को ध्यान देना चाहिए। रंजीत ------- कुछ कर्मियों का व्यवहार ठीक नहीं होता है वह मरीजों के साथ ठीक से बात नहीं करते। अस्पताल में सही तरीके से इलाज कराने के लिए व्यवस्थाएं बहुत महत्वपूर्ण हैं, जिनका अभाव यहां दिख जाता है। लोगों और मरीजों के लिए व्यवहार में नरमी बरतनी चाहिए। प्रीती चौरसिया ------- अक्सर मरीजों को अधिक दिक्कत होती है जब उनके तीमारदारों के पास समय कम होता है रजिस्ट्रेशन काउंटर पर कर्मचारी इतना वक्त ले लेते हैं कि लोग परेशान हो जाते हैं। प्रशासन को इसे प्राथमिकता पर सुधारना चाहिए। जिससे लोगों को राहत मिलेगी। विभा सिंह ------ दवाइयां कभी-कभी खत्म हो जाती हैं और बाहर से लेनी पड़ती हैं। बाहर इन दवाइयों की कीमत काफी ज्यादा होती है। वार्डो में सफाई हो, डस्टबिन हो, मच्छरों के प्रकोप से बचाया जाए। इस ओर स्थानीय प्रशासन को ध्यान देना चाहिए। जिससे यह अव्यवस्थाएं दूर हों। आर्या ------- जिला अस्पताल में उपचार के नाम पर शोषण बंद होना चाहिए। इसके लिए जिम्मेदारों को बढ़ कर आगे आना चाहिए। जो सुविधा नि:शुल्क है उसका शुल्क कैसे लिया जाता है। इस पर रोक लगनी चाहिए। जिससे कि यहां आने वाले मरीजों को मूलभूत सुविधाएं मिल सके। अनिल शर्मा ------- चोट लगने पर कई बार अस्पताल में उपचार के लिए आना पड़ता है। पैसा खर्च होने के बाद भी जल्द आराम नहीं मिलता। अस्पताल में व्याप्त दुश्वारियां दूर हों। इस ओर स्थानीय प्रशासन को ध्यान देना चाहिए। जिससे यहां की अव्यवस्थाएं दूर हो। वीरेन्द्र कुमार -------- बोले अधिकारी --- जिला अस्पताल में जो भी कमियां होंगी, उनको दूर किया जाएगा। अस्पताल में मरीजों और तीमारदारों के साथ व्यवहार को लेकर पहले भी कर्मचारियों को ट्रेनिंग दी जा चुकी है। यदि मरीजों व तीमारदारों के साथ गलत व्यवहार करते हैं तो तत्काल शिकायत करें। फौरन कार्रवाई की जाएगी। बाहर की दवाएं लिखने वाले चिकित्सक चिह्नित किए जाएंगे, शिकायत पर सख्त कार्रवाई होगी। चिकित्सकों की कमी दूर करने के लिए शासन स्तर से डॉक्टर की मांग की जाएगी। डा प्रदीप अग्रवाल, सीएमएस जिला अस्पताल इमरजेंसी जाने वाले रास्ते पर लगता है जाम रायबरेली,संवाददाता। जिला अस्पताल में इमरजेंसी जाने वाले रास्ते में ट्रैफिक जाम की समस्या से लोग और मरीज परेशान होते रहते हैं। अभी फिलहाल इससे निजात की कोई उम्मीद नहीं नजर आ रही है। हर दिन लोग जाम की समस्या से जूझ रहे हैं। मुख्य कारण यह है कि इस रास्ते के दोनो ओर बेतरतीब वाहनों का जमाव रहता है, इससे दिक्कतें बढ़ रहीं हैं। इसके कारण सामान्य दिनों में भी जाम लगने लगा है। इसके अलावा अस्पताल के पास कोई समुचित वाहन पार्किंग की व्यवस्था नहीं की गई है और न ही ट्रैफिक कंट्रोल के लिए पर्याप्त व्यवस्थाएं हैं। स्थिति यह है कि हर दिन लोगों को जाम की समस्या जूझना पड़ रहा है। जिला अस्पताल और महिला अस्पताल में मुख्य रूप से पार्किंग व्यवस्था न होने के परिणाम स्वरूप लोग सड़क किनारे जैसे तैसे वाहन खड़ा कर देते है। इससे अक्सर यहां जाम की स्थित बनी रहती है। इस सड़क पर सैकड़ों दुकान व प्रतिष्ठान हैं। जहां लोग सड़क पर वाहन लगाकर खरीदारी करते हैं। अक्सर सड़क किनारे दर्जनों बाइक और बेतरतीब ढंग से कार आदि खड़ी कर दिए जाने से बार-बार जाम लग जाता है। जिससे लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। जब तक इस पर कोई बड़ी कार्रवाई नही होगी तब तक इस तरह लगने वाले जाम से कोई अंतर नहीं पड़ेगा। लोगों का कहना है कि इस अव्यवस्था को दूर कराया जाना चाहिए। सबसे अधिक दिक्कत मरीजों को होती है इस जाम के चक्कर में अधिकांश एंबुलेंस फंस जाती है इससे बहुत दिक्कत होती है। मरीज और तीमारदार बहुत अधिक परेशान हो जाते हैं। इसके बाद भी इस अव्यवस्था पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
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