बोले सहारनपुर : आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों के सामने चुनौतियां हजार
Saharanpur News - आंगनबाड़ी कार्यकत्री बच्चों, गर्भवती महिलाओं और माताओं के पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। सहारनपुर की कार्यकत्रियों को कम वेतन और सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ता है। उनकी प्रमुख मांगें...

आंगनबाड़ी कार्यकत्री, समाज की वह आधारशिला हैं, जो बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के पोषण उनके स्वास्थ्य की देखभाल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। सहारनपुर की सैकड़ों कार्यकत्री कठिन परिस्थितियों में निस्वार्थ सेवा कर रही हैं, लेकिन उनकी राह आसान नहीं है। आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों की प्रमुख समस्याएं कम वेतन, पेंशन, ग्रेच्युटी और रिटायरमेंट लाभ नहीं होना है। साथ ही रोजाना ही कई चुनौतियां उनके सामने आती रहती हैं। आगनबाड़ी कार्यकत्रियां समाज के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक हैं। बच्चों के पोषण, महिलाओं के स्वास्थ्य और ग्रामीण शिक्षा के क्षेत्र में योगदान देने वालीं आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों की सेवा 1975 से जारी है।
सहारनपुर समेत पूरे प्रदेश में लाखों आंगनबाड़ी कार्यकत्री अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही हैं। लेकिन उनके सामने कई चुनौतियां भी हैं, जिनका समाधान होना बहुत जरूरी है। आंगनबाड़ी छह रुपये के मानदेय पर सरकार की बहुचर्चित योजनाओं को ज़मीनी हकीकत में तब्दील करती हैं। इनमें से 4500 रुपये केंद्र सरकार देती है और 1500 राज्य सरकार। ऊपर से 1500 रुपये की प्रोत्साहन राशि मिलती है, जो अक्सर समय पर नहीं मिलते। फिर भी उन्हें उम्मीद है कि एक दिन उनका मेहनताना 18,000 रुपये होगा-एक ऐसा सपना जो दशकों से सिर्फ़ वादों में जिंदा है। --- आंगनबाड़ी बोली मानदेय के नाम पर मिलते है चंद रुपये आंगनबाड़ी कार्यकत्री सिर्फ बच्चों को पोषण और शिक्षा नहीं देती, वो उन्हें संस्कार देती हैं, जो जीवन की बुनियाद होते हैं। गर्भवती महिलाओं की सेहत से लेकर बच्चों के टीकाकरण और किशोरियों के पोषण तक, हर मोर्चे पर उनकी मौजूदगी अनिवार्य है। इनका कहना है कि हम चिलचिलाती धूप में भी मुस्कराकर सेवा करती हैं, तेज़ बारिश में भी डगमगाए बिना अपने केंद्र तक पहुँचती हैं। मगर बदले में उन्हें मिलता है तिरस्कार, उपेक्षा और अपमान। उन्हें राज्य कर्मचारी का दर्जा तक नहीं दिया गया, जबकि उनका कार्य पूर्णकालिक और निरंतर है। हर विभाग अपनी ज़िम्मेदारियां उनके कंधों पर डाल देता है, पर उन्हें “मानदेय” के नाम पर कुछ चंद रुपये थमा दिए जाते हैं। --- कार्यकत्रियों की आंखों में ख्वाब हैं, पर जेब खाली आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों की बातों में गम और गुस्सा दोनों झलकता दिखाई दिया। उन्होंने कहा कि हम बच्चों को मुस्कराना सिखाते हैं पर हमारी आंखों में आंसू हैं। हकीकत यह कि कई कार्यकत्रियों को महीनों तक मानदेय नहीं मिलता। न कोई रिटायरमेंट योजना, न पेंशन, न कोई ग्रेच्युटी। उनका आरोप है कि सालों की सेवा के बाद जब वो रिटायर होती हैं, तो उन्हें धन्यवाद तक नहीं मिलता। --- आंगनबाड़ियों का काम बढ़ा, लेकिन इज़्ज़त घटी आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को अब ऑनलाइन पोर्टल, डिजिटल रिपोर्टिंग, राशन वितरण, सर्वेक्षण जैसे अतिरिक्त कार्य भी सौंप दिए गए हैं। पर उन्हें इस कार्य के लिए किसी प्रकार की प्रशिक्षण नहीं दी जाती। उन्होंने बताया कि, हमें ऐप का वर्जन बदलने की जानकारी तक नहीं दी जाती, लेकिन रिपोर्टिंग गलत हो जाए तो फटकार मिलती है। उनका कक्ष, जहां वे बच्चों को शिक्षा देती हैं, अक्सर बदहाल होता है। राशन रखने की जगह नहीं, फर्नीचर टूटा हुआ और गर्मी में पंखा तक नहीं। महिला और मजदूरी : दोहरी नाइंसाफी इन कार्यकत्रियों के संघर्ष में एक और तल्ख हकीकत छिपी है-लैंगिक भेदभाव। उनका कहना है कि ग्राम सभा में प्रधान और पंचायत सचिव भी उन्हें नजरअंदाज करते हैं। उन्हें एक दूसरे दर्जे की कर्मचारी की तरह देखा जाता है। ना सम्मान, ना सुरक्षा। आए दिन उनके साथ अभद्र व्यवहार की घटनाएं सामने आती हैं, लेकिन इन पर कोई गंभीरता नहीं दिखाई जाती। कई बार तो बिना मानदेय के स्वास्थ्य विभाग और चुनाव जैसे कार्यों में भी उनकी ड्यूटी लगाई जाती है। बिना टीए-डीए, बिना यात्रा भत्ता और बिना कोई सुविधा के। सवाल उठता है कि जब इनकी भूमिका इतनी अहम है, तो इनके हक़ क्यों नहीं? आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों की कुछ प्रमुख मांगें आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों की मांग है कि उनका मानदेय 18,000 रुपये किया जाए, ताकि वह अपने परिवार का गुज़ारा सम्मानपूर्वक कर सकें। उन्हें राज्य कर्मचारी का दर्जा दिया जाए, जिससे उन्हें वो सभी लाभ मिल सकें जो अन्य सरकारी कर्मचारियों को मिलते हैं। कैशलेस चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जाए, ताकि बीमारी की स्थिति में इलाज के लिए हाथ न फैलाना पड़े। रिटायरमेंट पर पेंशन और ग्रैच्युटी मिले, ताकि जीवन के अंतिम वर्षों में उन्हें दर-दर भटकना न पड़े। टीए-डीए और यात्रा भत्ता बहाल किया जाए, क्योंकि उनका कार्यक्षेत्र सीमित नहीं होता। फुल ड्रेस कोड और पर्याप्त स्टेशनरी उपलब्ध कराई जाए, ताकि उनका कार्य और अधिक प्रभावशाली हो सके। सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित की जाए, ताकि वे कार्यस्थल पर सुरक्षित महसूस कर सकें। जिला मुख्यालय पर ठहरने की व्यवस्था और मीटिंग हॉल बनाया जाए, ताकि दूर-दराज़ से आने वाली कार्यकत्रियों को सुविधा मिल सके। --- हम फर्ज निभा चुके, अब हक की बारी है आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों ने बीते दो दशकों में न सिर्फ सरकार की योजनाओं को गांव-गांव तक पहुंचाया, बल्कि समाज की सबसे कमजोर कड़ी-बच्चों और महिलाओं को सहारा भी दिया। फिर भी उन्हें स्थायित्व नहीं मिला, सम्मान नहीं मिला। उनका कहना है कि क्या एक शिक्षिका जो संस्कार दे रही है, वो सरकारी कर्मचारी बनने के लायक़ नहीं? क्या बच्चों की मुस्कान की कीमत सिर्फ़ 6000 रुपये है? क्या इन महिलाओं की ईमानदारी का सिला सिर्फ तिरस्कार है? इंसाफ की सहर कब आएगी? सरकारें आती हैं, घोषणाएं होती हैं, वादे किए जाते हैं। लेकिन आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों के जीवन में अब तक कोई रोशनी नहीं आई। संगठन अब आवाज उठा रहे हैं, आंदोलन की भूमिका बन रही है। लेकिन इन सबके बीच, हर दिन वो कार्यकत्री फिर से सुबह उठती है, वही कमरा खोलती है और अपने बच्चों को गले लगाती है। क्योंकि उसे यकीन है कि बदलाव ज़रूर आएगा। 0-शिकायतें 1.6000 का मासिक मानदेय आज की महंगाई में पर्याप्त नहीं, ऊपर से कई महीने तक भुगतान नहीं होता। 2.वर्षों की सेवा के बावजूद उन्हें संविदा पर रखा गया है और कोई स्थायित्व नहीं है। 3.पेंशन, ग्रेच्युटी और रिटायरमेंट लाभ नहीं-सेवा पूरी होने के बाद कोई भविष्य सुरक्षा नहीं मिलती। 4.स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित-न कोई कैशलेस चिकित्सा सुविधा है, न आयुष्मान योजना का लाभ। 5.आंगनबाड़ी केंद्रों में ना फर्नीचर है, ना पर्याप्त जगह, ना बिजली-पंखे की सुविधा। 6.पोषाहार वितरण की जवाबदेही-राशन एजेंसी की गड़बड़ी की सज़ा कार्यकत्रियों को भुगतनी पड़ती है। 7.ऐप, पोर्टल या नई योजनाओं पर कोई प्रशिक्षण नहीं दिया जाता, फिर भी जवाबदेही तय की जाती है। 8.कई बार अभद्र व्यवहार या उत्पीड़न की घटनाएं होती हैं, लेकिन कोई प्रभावी व्यवस्था नहीं। 9.स्वास्थ्य, शिक्षा, बीएलओ आदि कार्य सौंप दिए जाते हैं, लेकिन पारिश्रमिक नहीं। 10.ग्राम प्रधान और पंचायत सचिव तक इनकी बात नहीं सुनते, उपेक्षा का माहौल है। 0-सुझाव 1.मानदेय कम से कम 18,000 किया जाए, जिससे कार्यकत्रियां सम्मानजनक जीवन यापन कर सकें। 2.राज्य कर्मचारी का दर्जा दिया जाए, ताकि उन्हें सभी सरकारी सेवाओं और अधिकारों का लाभ मिल सके। 3.पेंशन और रिटायरमेंट लाभ की व्यवस्था हो-सेवा के अंत में आर्थिक सुरक्षा मिले। 4.कैशलेस स्वास्थ्य सुविधा और आयुष्मान योजना में शामिल किया जाए। 5.सुविधायुक्त आंगनबाड़ी भवन हो, बच्चों और कार्यकत्रियों के लिए सुरक्षित और बेहतर वातावरण हो। 6.राशन वितरण की जिम्मेदारी संबंधित एजेंसी की हो-कार्यकत्रियों को बेवजह दोषी न ठहराया जाए। 7.कार्य से पहले उचित प्रशिक्षण दिया जाए-ताकि वे तकनीकी रूप से सक्षम बन सकें। 8.कार्यस्थल पर सुरक्षा सुनिश्चित की जाए-महिला सुरक्षा कानूनों के अंतर्गत मजबूत व्यवस्था बने। 9.टीए-डीए और अन्य भत्ते दिए जाएं-सभी अतिरिक्त कार्यों का आर्थिक मुआवज़ा मिले। 10.सम्मानजनक सामाजिक दर्जा सुनिश्चित किया जाए-पंचायतों और सरकारी बैठकों में उनकी भूमिका को प्राथमिकता दी जाए। हमारी भी सुनों 1.कार्यकत्रियां दिन-रात मेहनत करती हैं, लेकिन बदले में उन्हें तिरस्कार और अपमान झेलना पड़ता है। सरकार को चाहिए कि जल्द से जल्द इन्हें राज्य कर्मचारी का दर्जा दे और सम्मानपूर्वक जीवन जीने की गारंटी दे। -नरेंद्र दत्त शर्मा, जिला संरक्षक, अखिल भारतीय महिला आंगनबाड़ी कर्मचारी महासभा 2.हम वर्षों से मांग कर रहे हैं कि मानदेय बढ़ाया जाए, पेंशन की व्यवस्था हो, लेकिन सुनवाई नहीं हो रही। यह महिला सशक्तिकरण के दावे पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह है। हमारी लड़ाई जारी रहेगी। -पूनम शर्मा, जिलाध्यक्ष, अखिल भारतीय महिला आंगनबाड़ी कर्मचारी महासभा 3.हमारे पास केंद्र तो हैं, लेकिन बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। बच्चों के पोषण और शिक्षा का भार हमारी बहनों पर है, लेकिन सरकार सहयोग नहीं कर रही। यह व्यवस्था बदलनी होगी। -रीता चौधरी, जिला उपाध्यक्ष 4.बारिश हो या धूप, हमारी कार्यकत्रियां अपनी सेवाओं में कभी पीछे नहीं हटतीं। फिर भी उन्हें सुरक्षा, सुविधा और सम्मान से वंचित रखा गया है। सरकार को गंभीरता से सोचना चाहिए। -कमला शर्मा, जिला उपाध्यक्ष 5.हर पोर्टल, हर ऐप पर रिपोर्ट भरनी होती है, लेकिन हमें डिजिटल प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है। बिना संसाधन के कार्यकत्रियों से उम्मीद करना सरासर शोषण है। -संगीता चौहान, सह सचिव 6.पोषाहार वितरण में गड़बड़ी की ज़िम्मेदारी एजेंसियों की है, लेकिन जवाबदेह कार्यकत्रियों को ठहराया जाता है। जब जवाबदेही तय हो, तो अधिकार भी मिलने चाहिए। -पुष्पा देवी, ब्लॉक कोषाध्यक्ष, नानौता 7.मानदेय इतना कम है कि कार्यकत्रियां मानसिक तनाव में जी रही हैं। हम बच्चों का पोषण सुधारने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं, लेकिन खुद पोषण की कमी झेल रहे हैं। -पारूल राय, सचिव 8.रिटायरमेंट के बाद कार्यकत्रियों को हाथ खाली नहीं होना चाहिए। पेंशन, ग्रेच्युटी और बीमा जैसी सुविधाएं मिलनी ही चाहिएं। यह हमारी पुरानी और न्यायोचित मांग है। -मालती देवी, सह सचिव 9.गांवों में पंचायतें हमें 'काम वाली बाई' समझती हैं, जबकि हम सरकारी योजनाओं की रीढ़ हैं। अगर सम्मान नहीं मिला तो आने वाली पीढ़ी इस सेवा में नहीं आएगी। -पिंकी शर्मा, ब्लॉक अध्यक्ष, गंगोह 10.गर्मी, सर्दी और बरसात-हर मौसम में हम कार्य पर डटी रहती हैं। हमें सिर्फ़ सरकारी काम नहीं, कई विभागों के काम भी सौंपे जाते हैं, लेकिन भत्ते नहीं दिए जाते। -गीता शर्मा, ब्लॉक अध्यक्ष, रामपुर मानिहारन 11.केंद्रों की हालत ऐसी है कि बच्चों को बैठाने तक की जगह नहीं है। हमें अपने पैसे से साफ-सफाई करवानी पड़ती है। यह सरासर अन्याय है। -शहनाज, ब्लॉक अध्यक्ष, सरसावा 12.हमारे पास कोई मेडिकल सुविधा नहीं है। ना आयुष्मान योजना में नाम है, ना स्थानीय अस्पताल में प्राथमिकता। हम लोगों की सेवा करें, लेकिन खुद इलाज के लिए भटकें यह हाल हमारा है। -मीना आर्या, ब्लॉक अध्यक्ष, नकुड़ 13.हर योजना का सर्वे हमारे जिम्मे होता है-गणना, मतदाता सूची, टीकाकरण। फिर भी सरकार हमें कोई अलग सुविधा नहीं देती। यह दोहरा मापदंड नहीं तो और क्या है। इससे छुटकारा चाहिए। -सुदेश सैनी, ब्लॉक महासचिव, नानौता 14.जब तक आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को राज्य कर्मचारी का दर्जा और 18,000 रुपये मानदेय नहीं मिलेगा, तब तक हमारा आंदोलन रुकेगा नहीं। यह हमारी गरिमा की लड़ाई है। -कमलेश चौधरी, ब्लॉक अध्यक्ष, बलियाखेड़ी 15.हमें शिकायत करने का हक है, लेकिन सुनवाई नहीं होती। आंगनबाड़ी कार्यकत्री अपने परिवार से दूर रहकर पूरा कामकाज करती है, लेकिन हमें वह सम्मान नहीं मिल पाता जिसके हम हकदार है। यह लोकतंत्र में महिला कर्मचारियों के लिए शर्मनाक स्थिति है। -गुलशन खान 16.हमारा संघर्ष इसलिए नहीं कि हम बस वेतन बढ़वाना चाहते हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि हम इज्जत के साथ जीना चाहते हैं। अब हम चुप नहीं रहेंगे, यह बदलाव का समय है, एकजुटकता के साथ लड़ाई जारी रहेगी। -गुलशन अंसारी
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