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संभल में अब मिली एक हजार साल पुरानी सुरंग, पृथ्वीराज चौहान, आल्हा-ऊदल से जुड़ाव

मुरादाबाद-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर चन्दौसी-बहजोई के बीच हाइवे से करीब तीन किलोमीटर अंदर स्थित कोतवाली क्षेत्र के गांव खेतापुर में एक काफी पुरानी सुरंग मिली है। दावा किया जा रहा कि खेतापुर में किसी जमाने में राजा पृथ्वीराज चौहान के सेनापति चूड़िमाराज का किला था। यहां आल्हा-ऊदल का युद्ध भी हुआ था।

Yogesh Yadav हिन्दुस्तान, बहजोई (संभल), संवाददाताMon, 30 Dec 2024 08:19 PM
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संभल में अब मिली एक हजार साल पुरानी सुरंग, पृथ्वीराज चौहान, आल्हा-ऊदल से जुड़ाव

मुरादाबाद-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर चन्दौसी-बहजोई के बीच हाइवे से करीब तीन किलोमीटर अंदर स्थित कोतवाली क्षेत्र के गांव खेतापुर में एक काफी पुरानी सुरंग मिली है। दावा किया जा रहा कि खेतापुर में किसी जमाने में राजा पृथ्वीराज चौहान के सेनापति चूड़िमाराज का किला था। यहां आल्हा-ऊदल का युद्ध भी हुआ था। सेनापति चूड़िमाराज के नाम पर ही इस स्थान का नाम चूड़ामणि पड़ा है। आज भी आसपास यहां खुदाई में अष्टधातु के सिक्के मिलते रहते हैं। चूड़ामणि के पास ही सुरंग भी है, जो अब जर्जर हालत में हैं। आसपास झाड़िया उगी हुई हैं।

जानकारी मिलने पर तहसीलदार चन्दौसी ने गांव में स्थित चूड़ामणि स्थल का निरीक्षण किया। प्रशासन के मुताबिक चूड़ामणि स्थल के पास बनी सुरंग की साफ-सफाई कराते हुए खुदाई का काम शुरू होगा, जिससे इसके ऐतिहासिक होने का प्रमाण मिल सकेगा। उम्मीद जताई जा रही है कि सुरंग एक हजार साल पुरानी हो सकती है।

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खेतापुर के ग्रामीणों का दावा है कि यह चूड़ामणि इलाका ऐतिहासिक है। पूरा इलाका राजा पृथ्वीराज चौहान से जुड़ा है। चूड़ामणि के पास स्थित सुरंग को लेकर ग्रामीणों ने दावा किया कि इस सुरंग का संबंध संभल के हरिहर मंदिर से है। इसी दावे को लेकर प्रशासन की ओर से निरीक्षण करते हुए जल्द खुदाई कराए जाने की संभावना है। मणि इलाके में स्थित इस सुरंग को लेकर स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि यह स्थान इतिहास से संबंध रखता है।

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आल्हा और उदल इसी मणि स्थान पर रुके थे और उनकी मृत्यु भी यहीं हुई थी। मणि में कई संतों की समाधि स्थल समेत एक शिवालय व अन्य कमरे भी बने हुए हैं। ग्रामीण पूजा पाठ के लिए भी यहां आते हैं। जानकारी मिलने पर तहसीलदार चन्दौसी धीरेंद्र सिंह ने मौके पर निरीक्षण किया। उनका कहना है कि मामले की पूरी रिपोर्ट जिलाधिकारी को सौंपी जाएगी। जिला प्रशासन की मंजूरी के बाद सुरंग वाले रास्ते की खुदाई का काम शुरू कराया जाएगा।

मिट्टी से ढक चुकी है सुरंग

बहजोई। ग्रामीण राकेश चंद्र शर्मा बुजुर्गों से सुने किस्सों के आधार पर दावा करते हैं कि यह सुरंग संभल के हरिहर मंदिर तक जाती है। राजा पृथ्वीराज चौहान व उनके सेनापति समेत सैनिक इस सुरंग का इस्तेमाल किया करते थे। दस वर्ष पहले तक सुरंग बहुत ऊंची थी। वर्तमान में सुरंग का रास्ता मिट्टी व झाड़ियों से ढक चुका है। साफ-सफाई के बाद सुरंग के ऐतिहासिक रहस्य से पर्दा उठ सकेगा।

कई संतों की बनी हैं समाधि

बहजोई। वर्तमान में मणि पर रह रहे संत हरिओम गिरी महंत ने बताया कि पृथ्वीराज चौहान के सेना पति चूड़िमाराज के नाम पर बनी चूड़ामणि में सैकड़ों सालों से संत रहते आ रहे हैं। इस स्थल पर बनी धूनी में कभी की अग्नि शांत नहीं हुई। वर्षों से धुनी लगातार जल रही है। इसके अलावा परिसर में कई महंतों के समाधि स्थल भी बने हुए हैं।

पृथ्वीराज चौहान की बेटी का इसी स्थान से हुआ था गौना

बहजोई। ग्रामीण सुरेंद्र सिंह ने कवदंतियों के हवाले से बताया कि पृथ्वीराज चौहान की बेटी बेला की शादी चंदेल वंश के वनाफल राजा के यहां हुई थी। विवाह के बाद चूड़ामणि स्थल से ही उनकी बेटी का गौना हुआ था। यह स्थल इतिहास के कई रहस्यों को अपने अंदर समेटे हुए है। यदि प्रशासन इसकी जांच पड़ताल करेगा तो, यह ऐतिहासिक स्थल के होने का रहस्य लोगों के सामने आ पाएगा।

आल्हा-उदल से भी जुड़ी है चूड़ामणि

बहजोई। खेतापुर निवासी अरूण कुमार शर्मा ने बताया कि पृथ्वीराज चौहान का किला संभल में स्थित था। रानी संयोगिता की खोज में संभल आने से पहले आल्हा व ऊदल ने इसी स्थान पर अपना डेरा जमाया था। पृथ्वीराज चौहान की सेना से उनका युद्ध भी इसी स्थल पर हुआ था। इसका उल्लेख बेला सती आल्हा में भी मिलता है। आज भी अष्टधातु समेत कई कीमती धातुओं के सिक्के व अवशेष खुदाई में मिलते हैं। इसके अलावा आल्हा ऊदल के गुरु अमर गुरु की समाधि भी यहां बनी हुई है।