छुट्टी तय न काम का समय, वेतन संग भविष्य भी अंधकारमय
Santkabir-nagar News - संतकबीरनगर, हिन्दुस्तान टीम। संतकबीरनगर जिले में सीएमओ कार्यालय, जिला अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और

संतकबीरनगर, हिन्दुस्तान टीम। संतकबीरनगर जिले में सीएमओ कार्यालय, जिला अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सहित जिले के सरकारी अस्पतालों में आउट सोर्सिंग के माध्यम से चयनित संविदा कर्मी एक्स-रे टेक्नीशियन, वार्ड ब्वॉय, वार्ड आया, कम्प्यूटर ऑपरेटर, चौकीदार आदि पदों पर भर्ती की गई है। इन्हें उनके पद के अनुसार अलग-अलग मानदेय दिया जाता है। लेकिन कर्मचारियों का कहना है कि मानदेय नियमित नहीं मिलता। मानदेय के लिए बार-बार उन्हें धरना से लेकर भूख हड़ताल तक करना पड़ रहा है। मानदेय के लिए जिससे भी गुहार लगाते हैं वही बजट का रोना रोने लगता है। आश्वासन के सिवा कुछ हाथ नहीं आता है। जबकि ड्यूटी लगातार ली जा रही है। फिर भी उनकी समस्या की अनदेखी की जा रही है। इससे उन्हें आर्थिक परेशानी के साथ मानसिक पीड़ा भी हो रही है। किन्तु उनकी तकलीफ कोई गंभीरता से नहीं ले रहा है। आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान ने जब संविदा स्वास्थ्य कर्मचारियों से बात की तो उन्होंने अपनी पीड़ा साझा करते हुए इंसाफ की गुहार लगाई है।
जनपद में स्वास्थ्य सेवाएं ज्यादातर संविदा कर्मियों के भरोसे ही है। लैब से लेकर हर जगह ये ही तैनात हैं। पूरी मुस्तैदी से कभी नियमित कार्य करते हैं। गांवों में अभियान हो, मेडिकल कैंप हो हर आयोजन इनकी बिना मौजूदगी में सफल नहीं हो पाता है। उसके बावजूद विभाग के जिम्मेदारों से लेकर सेवा प्रदाता कंपनी तक इनका उत्पीड़न करती है। न समय से वेतन मिलता है और न ही भविष्य की कोई गारंटी है। हर साल नवीनीकरण इनके लिए बड़ी मुसीबत है। जनपद में सबसे अधिक आउट सोर्सिंग कंपनी अवनी परिधि कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड की ओर से कर्मचारी भर्ती किए गए हैं। कर्मचारियों की माने तो उनकी कोई सुनवाई नहीं होती है। लगातार हक के लिए आन्दोलन किया जा रहा है। कर्मचारियों की माने तो छुट्टी मिलने में भी परेशानी होती है। रविवार को भी काम पर लगा देते हैं। कैंप लगने पर अस्पताल और शहर के बाहर भी जाकर ड्यूटी करनी पड़ती है। फिर भी जब मानदेय की बारी आती है तो सब एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। आउटसोर्सिंग कंपनी वाले कहते हैं कि उन्हें सरकार से मानदेय के रुपये नहीं मिले हैं। जबकि सीएमओ कार्यालय जाने पर कहा जाता है कि मानदेय के लिए शासन से बजट अभी नहीं आया है। इस हीलाहवाली में कर्मचारियों का मानदेय अटक जाता है। इससे उनके परिवार की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है।
2023 से हर साल कर रहे धरना-प्रदर्शन
आउटसोर्सिंग पर भर्ती हुए स्वास्थ्यकर्मियों का कहना है कि जहां भी ड्यूटी लगाई जाती है वहां जाकर ड्यूटी कर रहे हैं। किन्तु मानदेय के लिए 2023 से हर साल सीएमओ कार्यालय के बाहर जाकर धरना प्रदर्शन करना पड़ रहा है। फिर भी उनकी समस्या का समाधान नहीं किया जा रहा है। हर बार आश्वासन देकर धरना समाप्त करा दिया जाता है। संविदा स्वास्थ्य कर्मी अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए अपने हक के लिए आन्दोलन भी करते रहते हैं। इन सभी की मांग है कि इनके मानदेय में वृद्धि के साथ ही इन्हें नियमित किया जाए। प्रत्येक वर्ष नवीनीकरण की बाध्यता को समाप्त कराया जाए।
कर्मचारियों को जॉब में नहीं है कोई सुरक्षा
आउटसोर्सिंग कर्मचारियों का कहना है कि उनके जॉब की कोई सुरक्षा नहीं। इससे वे मानसिक तौर पर स्थिर नहीं महसूस कर पा रहे हैं। मानदेय बकाया होने के बाद भी छुट्टी के दिन भी उनकी ड्यूटी लगा दी जाती है। उसके बाद भी संविदा कर्मी नियमित कार्य करते रहते हैं। आरोप है कि अपने मानदेय और सुविधाओं की बात करने पर आउटसोर्सिंग कर्मचारी को नौकरी से बाहर करने तक की धमकी दी जाती है। उन्हें हमेशा नौकरी पर खतरे की तलवार लटकती हुई महसूस होती रहती है। ऐसे में कर्मचारियों ने जॉब सुरक्षा की मांग की है।
काम अधिक और मानदेय कम
आउटसोर्स पर काम कर रहे कर्मचारियों का कहना है कि काम उनसे बराबर लिया जाता है फिर भी कई जगह उन्हें सम्मान की नजर से नहीं देखा जाता। सरकारी कर्मचारी जो काम चार गुना अधिक वेतन लेकर करते हैं, वहीं काम संविदा कर्मियों से कम मानदेय में कराया जाता है। सबसे बड़ी बात है कि सम्मान भी नहीं मिलता है। संविदा कर्मी सबसे अधिक कार्य करते हैं। जनपद की स्थिति यह है कि यदि अस्पतालों से संविदा कर्मी हट जाएं तो स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा जाएगी।
कोविड के समय भी सबसे अधिक संभाली थी जिम्मेदारी
आउटसोर्सिंग कर्मचारियों ने कोविड महामारी के समय अपने जान की परवाह किए बिना पूरे ईमानदारी से स्वास्थ्य सेवाओं को संभाला था। कोविड वार्ड में वे नियमित ड्यूटी करते थे। सरकारी कर्मचारी उन्हें ही सबसे आगे कर देते थे। लेकिन उसके बाद भी उन्हें अलग से कोई सुविधा मुहैया नहीं कराई गई। तमाम वार्ड ब्वाय ऐसे हैं जो कोविड के समय महीनों घर नहीं गए। कई संविदा चिकित्सक भी लोगों की जिन्दगी बचाने में खुद की परवाह किए बगैर ही जुटे रहे।
मानदेय का भरोसा नहीं, कैसे चले परिवार की गाड़ी :
संविदा स्वास्थ्य कर्मियों ने स्वास्थ्य विभाग में नौकरी शुरू की थी कि उन्हें सम्मानजनक जीवन जीने का मौका मिलेगा। पर माह भर काम करने के बाद यह भरोसा नहीं रहता कि मानदेय मिलेगा या नहीं। इससे परिवार का खर्च चलाने में भी परेशानी हो रही है। कई-कई महीने मानदेय न मिल पाने के कारण आउट सोर्सिंग पर काम कर रहे कर्मचारी परेशान रहते हैं। फिर भी उनकी समस्याओं के समाधान की दिशा में प्रभावी कार्रवाई नहीं की जा रही है। आउट सोर्सिंग कर्मचारी अपने हक की लड़ाई भी काफी दिनों से लड़ रहे हैं। सरकार को इसके लिए गम्भीर होना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जिलाध्यक्ष राजेश पांडेय ने कहा कि अधिकारियों को सिर्फ काम से मतलब होता है कर्मचारियों के मानदेय से नहीं। हम लोग जहां भी ड्यूटी लगती है वहां बिना कोई सवाल किए पहुंचकर ड्यूटी करने लगते हैं। जब मानदेय में देरी होने लगती तो अधिकारियों से शिकायत करते हैं। लेकिन ड्यूटी लेने वाले वही अधिकारी मानदेय की बात सुनकर बिदक जाते हैं। हमारी जॉब की भी गारंटी नहीं देते। सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।
विधायक खलीलाबाद अंकुर राज तिवारी ने कहा कि आउटसोर्सिंग पर नियुक्त स्वास्थ्य कर्मियों की समस्याओं से स्वास्थ्य मंत्री को अवगत कराया जाएगा। जिले में यदि किसी अधिकारी अथवा फर्म द्वारा उत्पीड़न किया जा रहा है तो संविदा कर्मी इसकी लिखित शिकायत करें दोषी के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई होगी। इसके अलावा स्वास्थ्य कर्मियों की जो भी समस्या और मांग है वह जल्द से जल्द पूरा हो इसके लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा।
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