Farmers Turn River Sand into Profitable Fields Amidst Rising Prices श्रावस्ती-तरबूज की खेती से संवर रहा किसानों का जीवन, Shravasti Hindi News - Hindustan
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श्रावस्ती-तरबूज की खेती से संवर रहा किसानों का जीवन

Shravasti News - महंगाई के कारण किसान खेती से मुंह मोड़ रहे हैं, लेकिन श्रावस्ती के तटवर्ती किसान रेत को खेत बनाकर लाखों रुपये कमा रहे हैं। राप्ती नदी की रेत में तरबूज, खरबूजा और हरी सब्जियों का उत्पादन कर रहे किसान,...

Newswrap हिन्दुस्तान, श्रावस्तीMon, 5 May 2025 09:36 PM
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श्रावस्ती-तरबूज की खेती से संवर रहा किसानों का जीवन

श्रावस्ती, संवाददाता। महंगाई के चलते जहां आज किसान खेती किसानों से मुंह मोड़ रहे हैं। वहीं नदी के तटवर्ती इलाकों के किसान रेत को खेत बनाकर लाखों रुपये कमा रहे हैं। इससे न केवल उनका जीवन स्तर सुधर रहा है बल्कि वह आर्थिक रूप से सुदृढ़ हो रहे हैं। राप्ती नदी को वैसे तो श्रावस्ती का शोक कहा जाता है। यहां बाढ़ के समय हजारों ग्रामीण बेघर हो जाते हैं। खेतों में लगी फसल तबाह हो जाती है। रेत पट जाने से कृषि भूमि बंजर हो जाती है। ऐसे में तटवर्ती गांवों के किसानों ने रेत को ही खेत बनाकर अपनी कमाई का जरिया बना लिया है।

रेत में किसान बेहद कम लागत पर तीन महीने के अंदर लाखों कमा लेते हैं। किसान राप्ती की रेत में तरबूज, खरबूजा, ककड़ी के साथ ही हरी सब्जी जैसे खीरा, लौकी, कद्दू, करैले का भी उत्पादन करते हैं। इस फसल में किसी खाद की जरूरत नहीं होती। नाममात्र कीटनाशक का छिड़काव करते हैं। वहीं पानी नदी से मुफ्त में मिल जाता है। खाद की जरूरत इसलिए नहीं होती कि बाढ़ के बाद पूरी रेत में गाद जमा हो जाती है जिसका लाभ किसान उठाते हैं। कहने को तो यह रेत है लेकिन बाढ़ के समय आई गाद इसकी उर्वरा शक्ति बढ़ा देती है। इसलिए केवल किसानों को इस रेत में बीज डालने की जरूरत होती है। किसानों की मानें तो एक पौधे से 30 से 70 फल तक मिल जाते हैं। पानी घटते ही खेत बनाने लगते हैं किसान राप्ती के किनारे खेती कर रहे ज्वाला प्रसाद वर्मा बताते हैं कि हर साल नवंबर महीने में जब राप्ती का पानी घटने लगता है तो हम लोग रेत को खेती के योग्य तैयार करने में लग जाते हैं। हाकिम प्रसाद गुप्ता का कहना है कि पहले रेत को बराबर कर जमीन को समतल बनाया जाता है। इसके बाद दो से ढाई फिट गहरी लम्बी नालियां बनाई जाती हैं। इन नालियों में एक तरफ बीज डाल दिए जाते हैं। भलभल गुप्ता कहते हैं कि तरबूज की अप्रैल में तैयार हो जाती है। इसी तरह अन्य फसलें भी तैयार होती हैं। पहले तरबूज व खरबूजे की ही खेती करते थे। लेकिन अब हरी सब्जियों की भी खेती करते हैं जिससे अच्छा मुनाफा हो जाता है। उत्पादित फसल को कहीं बेचने जाने की जरूरत नहीं पड़ती। व्यापारी खुद आकर ले जाते हैं।

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