mother day special कानपुर के अनुज ने 'गोद' ले ली मां, आठ साल का हो गया यह रिश्ता
बंगलों-फ्लैटों की तन्हा मांओं से वृद्धाश्रम वासी मांओं तक, ज्यादातर की दास्तान इस शेर से जुड़ती है। ऐसे निर्मम वक्त में कानपुर के अनुज और उनकी 'दूसरी मां' की कहानी आप शायद कभी न भूल पाएंगे।

शहर में आकर पढ़ने वाले भूल गए।
किसकी मां ने कितना जेवर बेचा था।।
बंगलों-फ्लैटों की तन्हा मांओं से वृद्धाश्रम वासी मांओं तक, ज्यादातर की दास्तान इस शेर से जुड़ती है। ऐसे निर्मम वक्त में कानपुर के अनुज और उनकी 'दूसरी मां' की कहानी आप शायद कभी न भूल पाएंगे। लोग नि:संतान हों तो बच्चे गोद लेते हैं, अनुज ने अपनी मां होते हुए भी दूसरी मां 'गोद' ली है। जिस अंधेरे दौर में तमाम बेटों को अपनी मां बोझ लगती है, यह खुशबूदार रिश्ता नया रोशनदान खोल रहा है।
ऐसे अनुज को मिली थीं अम्मां
मोती मोहाल के अनुज शर्मा 15 साल से रोज तपेश्वरी मंदिर में देवी मां का दर्शन करते हैं। वह याद करते हैं, '2012 के शारदीय नवरात्र थे। मुझे मंदिर में वह दिखाई दीं। उदास एक कोने में बैठी हुई। फिर वह रोज दिखने लगीं। कभी सूनी आंखों से आसमान ताकती हुई, कभी पल्लू से आंखों की कोर पोंछती। कोई प्रसाद देता तो ले लेतीं। उन्हें कभी बात करते नहीं देखा। दो साल तक रोज उन्हें मंदिर में देखता था। 2014 के नवरात्र की अष्टमी थी। सुबह वह भीड़ से अलग कोने में बैठी दिखीं। बीमार लग रही थीं। उस दिन खुद को रोक नहीं पाया। उनके पास जाकर बैठ गया। पूछा-अम्मां कहां रहती हैं आप? उनके चेहरे पर ऐसा तैर गया मानो कुछ अचरज घट गया है। बहुत कुरेदा तो कई हिस्सों में दर्द का दरिया बह निकला। कहानी पूरी हुई तो वह मेरी 'दूसरी मां' बन चुकी थीं।
पांच मौतों के बाद दुनिया में अकेली बचीं
फूलकुमारी श्रीवास्तव, उम्र 75 साल। गांव बिलिंदा, फतेहपुर की निवासिनी लेकिन अब वहां से रिश्ता नहीं रहा। पति विनोद के साथ 1982 में कानपुर आईं। विनोद प्राइवेट नौकरी करते थे। हरबंश मोहाल में किराए के कमरे में गृहस्थी बनाई। कई साल बाद बेटा राकेशदीप जन्मा। खुशी कुछ दिनों में ही काफूर हो गई। बेटा विकलांग हो गया। फिर तीन बेटियां हुईं। गीता, संगीता और वंदना। प्यारी, सुंदर और पढ़ने में होशियार निकलीं। लेकिन इस खुशहाल गृहस्थी पर दुखों को बसेरा करना था। वह बताती हैं, '2010 के फागुन से 2012 के पूस के बीच पति, बेटा और तीनों बेटियों की मौत हो गई। मैं पति की मौत से सुन्न थी, कि अचानक चार महीने बाद बेटा गया। फिर एक-एक कर बेटियां। जाने कैसा बुखार था। एक रात चढ़ता, बदन पीला पड़ता और अगली रात से पहले सांसें टूट जातीं। घर में पांच मौतें हो गई.... मुझ अभागन को जुकाम तक न हुआ। बेटा 19-20 साल का था। बेटियां 12 से 16 के बीच की। सब चले गए और तड़पने को मैं रह गई। कुछ दिन जेवर बेच कर खाया। कुछ दिन रिश्तेदारों ने चूल्हा जलवाया। फिर उनका आना कम हो गया। मकान मालिक ने घर बिल्डर को दे दिया। वह रोज खाली करने को कहने लगा। एक दिन मंदिर में जा बैठी। फिर रोज जाने लगी। वहीं अनुज मिले थे।
घर नहीं लाए लेकिन 'घर' बना दिया
अनुज मंदिर से घर लौटे और पत्नी नीलम से बात की। 'मैंने उन्हें मां मान लिया है। उन्हें घर लाना चाहता हूं।' नीलम ने कहा, ज्वाइंट फेमिली है। आपके चार भाई हैं। मम्मी भी हैं। आगे दिक्कतें होंगी। आप उन्हें बाहर भी मां की तरह रख सकते हैं। बस राह मिल गई। किदवई नगर में किराए का घर लिया। अम्मां को वहीं शिफ्ट कर दिया। आठ साल हो गए। अम्मां की गृहस्थी का सारा सामान अनुज वहीं पहुंचाते हैं। कभी अकेले तो कभी बिटिया गौरी के साथ। बीमार हों तो दवाएं, डॉक्टर सब। लॉकडाउन में भी यह सिलसिला नहीं टूटा। गौरी फूलकुमारी को दादी कह कर माथा चूमती है। वह बलैयां लेती हैं। आपकी मां क्या सोचती हैं? अनुज बोले, 'वह हंसती हैं। कहती हैं-यह तो मां के रहते मां गोद ले आया।' यह मां-बेटे का रिश्ता इतना गहरा हो चुका है कि फूलकुमारी अक्सर अनुज की ससुराल काकादेव चली जाती हैं। गौरी की दादी और नीलम की सास होने की ठसक के साथ। इस रिश्ते पर तमाम मदर्स-डे कुर्बान किए जा सकते हैं।