बोले काशी : थोड़ा समझिये, प्लास्टिक हमारी जिंदगी में घोल रहा है घातक जहर
Varanasi News - वाराणसी में युवा एक समूह प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ सक्रिय है। उनका मानना है कि सभी विभागों को इस समस्या का समाधान करने में जिम्मेदार होना चाहिए। हर दिन शहर में लगभग 200 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है,...
वाराणसी। प्लास्टिक सिर दर्द से भी आगे का मर्ज बन चुकी है। थैलियों तो कहीं कूड़ा-कचरा के रूप में। घर-आंगन, गली-चौराहों पर जमी, बिखरी हुई। मनुष्य और पशु-पक्षियों के लिए एक समान खतरनाक। इस अविनाशी वस्तु के दुष्परिणामों से अपना शहर भी चिंतित है। उस चिंता में कमी के लिए सरकारी प्रयासों के बीच युवाओं का एक ग्रुप भी सक्रिय है। उसका कहना है कि जड़ पर प्रहार हो, सभी विभाग जिम्मेदार बनें। साथ ही, परिवार और बाजार को समझदार बनाने के निरंतर प्रयास चलें तभी यह समस्या दूर हो पाएगी। बनारस शहर में हर रोज हजार से 1200 टन कूड़ा-कचरा निकलता है।
इनमें प्लास्टिक कचरा लगभग 200 टन होता है। यह मात्रा के लिहाज से कम भले कम दिखे मगर धरती से आकाश तक के वातावरण एवं पर्यावरण के लिए सर्वाधिक खतरनाक है। क्योंकि प्लास्टिक पूरी तरह नष्ट नहीं होती। वैज्ञानिक भाषा में कहें तो यह पूर्णत: बायोडिग्रेडेबल नहीं है। 100 माइक्रान से कम वजन वाली थैलियां ही नहीं, वे रैपर्स और थैलियां भी कचरा के रूप में जमा होती जा रही हैं जिनका निर्माण मानक के रूप होता है। उनमें विभिन्न उपभोक्ता सामग्रियां पैक की जाती हैं। इस अनश्वर प्लास्टिक से काशी को मुक्त बनाने के अभियान में सक्रिय युवाओं ने सेनपुरा (चेतगंज) के रामलीला मैदान में ‘हिन्दुस्तान से बातचीत के दौरान अपने अनुभव साझा किए। चुनौतियों के जिक्र के साथ उनका समाधान भी सुझाया। शिवम के मुताबिक सबसे बड़ा सवाल यह है कि सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक क्यों नहीं लग पा रही है और प्लास्टिक कचरे में कमी क्यों नहीं आ पा रही है? रवि जायसवाल ने जोड़ा कि प्रतिबंध के बाद भी प्लास्टिक बाजार में कैसे आ रही है? उन्होंने कहा, सभी जानते हैं कि प्लास्टिक मानव समाज में कैंसर की बड़ी वजह है। गाय आदि पशुओं को बीमार बना रही है। इसके बाद भी लोग सजग और जागरूक नहीं दिख रहे। प्लास्टिक मुक्त हों घर-परिवार प्रीति ने कहा कि प्लास्टिक मुक्त अभियान का असर जमीनी स्तर पर नहीं दिख रहा है। उन्होंने कहा कि नगर निगम अपने स्तर से घर-घर कूड़ा संग्रहण के तहत लोगों से गीला और सूखा कचरा अलग-अलग करके देने पर जोर देता है। अब उसे प्लास्टिक कचरा को अलग करवाने पर जोर देना चाहिए ताकि इससे पता चले कि घर-परिवार में प्लास्टिक के प्रयोग-उपयोग में कमी आई है या नहीं। रवि जायसवाल, शिवम आदि युवाओं ने बताया कि हम सभी का जनसंपर्क के दौरान प्लास्टिक मुक्त घर-परिवार पर फोकस रहता है। घरों में इसका उपयोग न्यूनतम होगा तो गली-सड़क और पार्क भी प्लास्टिक कचरा से मुक्त होंगे। बताया कि इस आग्रह का कई कॉलोनियों में सकारात्मक असर पड़ा है। इससे हम उत्साहित हैं। ईपीआर पर हो फोकस स्वाति जायसवाल ने कहा कि प्रतिबंध के बाद भी बाजारों में सिंगल यूज प्लास्टिक के धड़ल्ले से प्रयोग के लिए सिर्फ दुकानदारों को जवाबदेह ठहराना उचित नहीं है। ग्राहकों, उपभोक्ताओं की मांग पर वे कहीं न कहीं मजबूर होते हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि अधोमानक प्लास्टिक उत्पादन पर रोक नहीं है। उत्पादन इकाइयों पर प्रतिबंध लगाए बिना प्लास्टिक मुक्त काशी या प्रदेश का उद्देश्य पूरा नहीं होगा। दीपमाला ने जोड़ा कि जिस प्लास्टिक पर प्रतिबंध नहीं है, उनके लिए विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर) का नियम बना है। इसके तहत जो कंपनियां बाजार में प्लास्टिक बेचती हैं, उन्हें उतना ही प्लास्टिक ग्राहकों से एकत्रित करके नगर निगम या संबंधित विभाग को देना पड़ता है। हकीकत में इस नियम का अनुपालन किसी कंपनी की ओर से नहीं होता। उन्होंने कहा कि सामाजिक उत्तरदायित्वों के तहत यदि कंपनियां प्लास्टिक कचरे को लेकर भी सक्रिय हों तो बदतर हालात में काफी बदलाव आ सकता है। विभाग खुद करें शुरुआत संगीता, दीपमाला आदि ने कहा कि सभी सरकारी विभागों और निजी कंपनियों के कार्यालयों में प्रतिबंधित प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद होना चाहिए। पहले वे खुद से शुरुआत करेंगी तो इसका असर आमजन पर पड़ेगा। इससे जनजागरूकता में आसानी होने के साथ उसमें तेजी आएगी। बोतल बंद पानी या किसी भी बोतलबंद शीतल पेय के उपयोग पर कड़ाई से रोक लगाने की जरूरत है। शिखा वर्मा ने कहा कि दरअसल यह सेल्फ डिसिप्लीन या आत्मानुशासन का भी विषय है। इससे परहेज के संकल्प के अनेक विकल्प हैं जो हमें प्लास्टिक से दूर रख सकते हैं। छात्राएं-महिलाएं करें पहल किसी भी अभियान को पूरा की सफलता में आम जन की भूमिका अहम होती है। प्लास्टिक के प्रयोग पर रोक की हमें अपने घर से शुरुआत करनी होगी। इसमें छात्राओं और गृहिणियों की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। निधि अग्रवाल ने कहा कि महिलाओं के ऊपर घर की जिम्मेदारी होती है। वे जब भी सामान लेने बाजार में निकलें तो घर से कपड़े का झोला लेकर जाएं। पुरुषों को भी कपड़े का झोला दें। इसके साथ ही कामकाजी महिलाएं हों या पुरुष, दोनों के पास कपड़े का एक झोला जरूर होना चाहिए ताकि घर लौटते वक्त कोई सामान प्लास्टिक की थैलियों में लेने की मजबूरी न रहे। दुकानदार अगर प्लास्टिक की थैली दें भी तो न लें। दीपशिखा ने कहा कि स्कूल-कॉलेजों की छात्राएं अपने घर-परिवार में प्लास्टिक से परहेज का आग्रह करना शुरू कर दें तब भी बहुत बदलाव संभव है। घाटों पर पूर्णतया रोक लगे शिवम ने ध्यान दिलाया कि नमामि गंगे और उसकी जैसी संस्थाएं पिछले तीन-चार वर्षों से गंगा के घाटों पर प्लास्टिक के सामानों का उपयोग न करने का आग्रह कर रही हैं। उनके सदस्य समय-समय पर घाटों से कचरा साफ भी करते हैं। बताया कि गंगा से निकलने वाले कचरा में सबसे अधिक मात्रा कपड़ों और उसके बाद प्लास्टिक की होती है। बताया कि पूजन सामग्रियां प्लास्टिक थैलों में गंगा में फेंकने में कमी नहीं है। इससे जलीय जीवों को बहुत हानि हो रही है। घाटों पर तफरी के दौरान खाद्य पदार्थ का सेवन करने के बाद लोगबाग रैपर घाट की सीढ़ियों पर फेंक निकल लेते हैं। डस्टबिन में भी नहीं रखते। कहा, यह मानसिकता गंभीर चुनौती है। डॉ. पिंकी श्रीवास्तव ने जोर दिया कि घाटों पर प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध लगे ही नहीं, उसका कड़ाई से अनुपालन भी होना चाहिए। ईको ब्रिक के लिए अभियान प्लास्टिक खतरों से आगाह करने वाले युवाओं का मानना है कि ईको ब्रिक से काफी हद तक प्लास्टिक कचरे को रोका जा सकता है। इसके लिए लोगों में जागरूकता फैलाने की जरूरत है। प्रीति जायसवाल ने कहा कि ईको ब्रिक प्लास्टिक की खाली बोतलों में साफ, सूखे प्लास्टिक कचरे भर कर बनाई जाती है। यह ऐसी विधि है जिसके जरिए प्लास्टिक के कचरे ( जैसे बैग, रैपर, आदि) का दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है और उसे टिकाऊ निर्माण सामग्री में बदला जा सकता है। ईको ब्रिक्स का इस्तेमाल दीवार, बगीचे की क्यारियां, कुर्सी-टेबल समेत बहुत कुछ बनाने के लिए किया जाता है। बताया कि शिवशक्ति सेवा फाउंडेशन महिलाओं को ईको ब्रिक बनाना सिखा रहा है। फाउंडेशन के सदस्य कॉलोनियों में लोगों को मसाला, नमक आदि घरेलू सामान की प्लास्टिक थैलियों से ईको ब्रिक बनाने का प्रशिक्षण देते हैं। प्रोत्साहन के लिए दें उपहार नगर निगम को कूड़े में प्लास्टिक देने वालों को यूजर चार्ज, पानी और गृहकर में कुछ छूट देनी चाहिए। इससे लोग प्रोत्साहित होंगे और सड़कों पर प्लास्टिक नहीं फेंकेंगे। डॉ. पिंकी श्रीवास्तव ने कहा कि लोग कहीं भी प्लास्टिक न फेंकें, इसके लिए प्रोत्साहन बेहतर विकल्प बन सकता है। शिवम ने ध्यान दिलाया कि प्लास्टिक को जला देने से वायु प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है। लोगों को सांस लेने में दिक्कत होती है। इससे भी बचने की जरूरत है। सजावटी सामान बना रहीं महिलाएं प्रीति रवि जायसवाल ने बताया कि प्लास्टिक के दोबारा इस्तेमाल से अनेक महिलाएं घरों के सजावटी सामान आदि तैयार कर रही है। इनमें गमले और पेन स्टैंड भी शामिल हैं। कॉलोनी की महिलाओं को भी इसके लिए जागरूक किया जा रहा है। ............... प्लास्टिक के प्रयोग का असर 1-प्लास्टिक आसानी से नष्ट नहीं होती है। यह जमीन, नदियों और समुद्रों में लंबे समय तक बनी रहती है। इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है। 2- समुद्रों और नदियों में प्लास्टिक कचरा मछलियों, कछुओं आदि जलीय जीवों के लिए खतरा है। कई बार उनकी मृत्यु हो जाती है। 3- प्लास्टिक कचरे से मिट्टी की गुणवत्ता और उसकी जल सोखने की क्षमता प्रभावित होती है। इससे कृषि पर बुरा असर पड़ता है। 4- प्लास्टिक में मौजूद रसायन का भोजन और पानी में मिलने का खतरा रहता है। इससे कैंसर, हार्मोन असंतुलन और अन्य बीमारियां हो सकती हैं। 5- कई बार गायें और अन्य जानवर प्लास्टिक कचरा खा लेते हैं। इससे उनका पाचन तंत्र खराब हो जाता है, उनकी मृत्यु भी हो सकती है। विकल्प के रूप में ये करें इस्तेमाल प्लास्टिक के विकल्प के रूप में कांच, बांस, कागज और प्राकृतिक फाइबर कपड़े आदि का प्रयोग किया जा सकता है। इनसे बैग, बॉटल, स्ट्रॉ आदि सामान बनाए जा सकते हैं। हमारी भी सुनें प्लास्टिक मुक्त काशी के लिए उसके निर्माण, भंडारण, विक्रय के खिलाफ अभियान चलाने की जरूरत है। तभी इसका असर होगा। - शिवम अग्रहरि सिंगल यूज प्लास्टिक के प्रयोग को रोकने के लिए विभागों को सख्ती से कार्रवाई करनी होगी। प्रतिदिन अभियान चलाना होगा। - डॉ. पिंकी श्रीवास्तव पर्यावरण और मानव जीवन के लिए खतरनाक होने के बाद भी प्लास्टिक का प्रयोग रूक नहीं रहा है। बाजार में आसानी से मिल रही है। - प्रीति जायसवाल समुद्र-नदियों में प्लास्टिक कचरे का जमा होना जल प्रदूषण का मुख्य कारण है। इसके बाद भी लोग इसका प्रयोग बंद नहीं कर रहे हैं। - प्रीति मालवीय सिंगल यूज प्लास्टिक बंद है तो बाजार में कहां से आ रही है। इसका मतबल है कि निर्माण पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा रहा है। - निधि अग्रवाल प्लास्टिक कचरे पर रोक के लिए विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर) का नियम बना है, लेकिन उसका पालन नहीं होता। -शिवांगी जायसवाल प्लास्टिक पर रोक की हमें अपने घर से शुरुआत करनी होगी। जब भी सामान लेने जाएं तो साथ में कपड़े का झोला जरूर रहे। -अंकिता मालवीय घाट पर प्लास्टिक पूर्णतया प्रतिबंधित होना चाहिए। किसी भी दुकान पर प्लास्टिक न रखने का आदेश होना चाहिए। -शिखा वर्मा लोगों को ईको ब्रिक के लिए भी जागरूक करना चाहिए। इससे काफी हद तक प्लास्टिक कचरा रोका जा सकेगा। -दीपमाला प्लास्टिक की रीसाइक्लिंग प्रक्रिया का लोगों को प्रशिक्षण दिया जाए। ताकि वे प्लास्टिक फेंकने के बजाय दोबारा प्रयोग करें। -संगीता प्लास्टिक का विकल्प खोजने की जरूरत है। विकल्प मिल जाए तो लोग थर्माकोल के ग्लास की तरह इसका भी उपयोग छोड़ देंगे। - माधुरी देवी बाजार में प्लास्टिक कैसे आ रही है, इसके बारे में सोचना होगा। आखिर दुकानदार भी तो कहीं से ला के ही बेच रहे हैं। -स्वाति जायसवाल सुझाव 1- प्लास्टिक मुक्त अभियान के लिए सबसे जरूरी है कि उसके निर्माण पर रोक लगे। जब तक निर्माण होगा, लोग उपयोग करेंगे। 2- विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर) नियम का सख्ती से पालन कराया जाए। इससे प्लास्टिक कचरे में कमी आएगी। 3- ईको ब्रिक के प्रति लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। लोग जागरूक होंगे तो प्लास्टिक फेंकने के बजाय इसका दोबारा उपयोग करेंगे। 4- गंगा में प्लास्टिक न जाए, इसके लिए घाटों पर प्लास्टिक पूरी तरह प्रतिबंधित हो। घाट की दुकानों पर सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल पर कड़ाई से रोक लगे। 5- सरकारी कार्यालयों में प्लास्टिक की बोतलों पर रोक लगे। पानी आदि किसी भी सामान के लिए प्लास्टिक का प्रयोग न किया जाए ताकि आम लोग भी जागरूक हों। शिकायतें 1- सिंगल यूज प्लास्टिक बाजार में कैसे आ रही है, इसका पता नहीं चल रहा है। हर छोटी-बड़ी दुकान पर प्रतिबंधित प्लास्टिक थैलियों का उपयोग हो रहा है। 2- विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर) नियम का सही ढंग से अनुपालन नहीं हो रहा। इससे प्लास्टिक के कचरे ज्यादा निकल रहे हैं। 3-ईको ब्रिक के प्रति लोगों में जागरूकता नहीं है। इस वजह से प्लास्टिक का एक बार प्रयोग करके फेंक दिया जाता है। 4- गंगा से निकलने वाले कूड़े में सबसे ज्यादा कपड़ा होता है। इसके बाद प्लास्टिक की मात्रा होती है। यह गंगा जल एवं जलीय जंतुओं के लिए बहुत घातक है। 5- सरकारी कार्यालयों में भी प्लास्टिक का प्रयोग हो रहा है। मीटिंग में प्लास्टिक की बोतलों में पानी दिया जाता है।
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