पांच साल में दोगुनी हुई संरक्षित वनस्पतियों की संख्या
उत्तराखंड वन विभाग की अनुसंधान शाखा ने पिछले पांच वर्षों में 2228 पौधों की प्रजातियों को संरक्षित किया है। इनमें 120 लुप्तप्राय प्रजातियां शामिल हैं। संरक्षण की दो तकनीकें इन-सीटू और एक्स-सीटू का...

हल्द्वानी। उत्तराखंड वन विभाग की अनुसंधान शाखा जैव विविधता संरक्षण के क्षेत्र में शानदार काम कर रही है। बीते पांच वर्षों में विभाग ने 2228 पौधों की प्रजातियों को संरक्षित किया है, जो वर्ष 2020 में संरक्षित 1145 प्रजातियों से दोगुना है। वनस्पतियों को दो तरीके से संरक्षित किया जा रहा है। पहली संरक्षित करने की तकनीक इन-सीटू यानि वनस्पतियों को उनके प्राकृतिक वास स्थल पर उनको संरक्षित करना है और दूसरी एक्स-सीटू यानि प्राकृतिक वास स्थल से बाहर लाकर वनस्पति को संरक्षित करना है। अनुसंधान शाखा द्वारा जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि संरक्षित प्रजातियों में 120 लुप्तप्राय और संकटाग्रस्त प्रजातियां शामिल हैं, जिनमें से 75 प्रजातियां अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट में दर्ज हैं।
इनमें व्हाइट हिमालयन लिली, त्रायमाण, अतीस, सीता अशोक, डोलू, पटवा, हिमालयन गोल्डन स्पाइक और ट्री फर्न जैसी महत्वपूर्ण प्रजातियां शामिल हैं। उत्तराखंड वन विभाग देश का एकमात्र वन विभाग है, जो इस तरह के व्यापक संरक्षण कार्य में अग्रणी है और संभवतः देश में पौधों की प्रजातियों का सबसे बड़ा संग्रह रखता है। संरक्षण के इस काम में एसीएफ मुकुल कुमार, रेंजर नैन सिंह नेगी, ज्योति प्रकाश, तनुजा पांडे, केएन पांडे, हरेन्द्र सिंह, सीएस पलड़िया, प्रियंका बिष्ट महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। 29 कीट भक्षी पौधे और 187 औषधीय जड़ी-बूटियां इस संग्रह में 528 वृक्ष, 187 औषधीय जड़ी-बूटियां, 175 झाड़ियां, 46 बांस, 88 वन लताएं, 107 घास, 192 फर्न, 115 ऑर्किड, 88 पाम, 31 साइकैड, 290 कैक्टस और सकुलेंट्स, 50 जलीय पौधे, 29 कीटभक्षी पौधे, 86 लाइकेन, 118 ब्रायोफाइट, 14 शैवाल और 15 एयर प्लांट्स शामिल हैं। इनमें 60 स्थानिक प्रजातियां भी हैं, जो केवल उत्तराखंड और भारतीय हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाती हैं। प्लांट ब्लाइंडनेस की अवधारणा को चुनौती वनस्पतियों को संरक्षित करने की इस पहल का उद्देश्य 'प्लांट ब्लाइंडनेस' की अवधारणा को चुनौती देना है। जिसे 1998 में अमेरिकी वनस्पतिशास्त्रियों ने गढ़ा था। यह शब्द पौधों के प्रति उपेक्षा और संरक्षण में रुचि की कमी को दर्शाता है। विभाग का यह प्रयास न केवल पर्यावरणीय स्वास्थ्य के लिए, बल्कि दीर्घकालिक मानव स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण है। वन अनुसंधान केन्द्र पौधों की प्रजातियों को उनके प्राकृतिक वास स्थल व उनके वास स्थल से बाहर दोनों जगह संरक्षित कर रहा है। इसके पीछे का उद्देश्य लोगों को वनस्पतियों के उनके जीवन में महत्व के साथ ही लोगों उनके प्रति जागरूकता लाना है। संरक्षित करने से पौधों में शोध करने में आसानी के साथ ही जलवायु परिवर्तन में उनके प्रभाव को समझने में भी मदद मिलेगी। संजीव चतुर्वेदी, मुख्य वन संरक्षक, वन अनुसंधान केन्द्र
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।