मां काली का सौम्य रूप है देवी भद्रकाली
Goddess Bhadrakali: भद्रकाली, मां काली का सौम्य रूप है। भद्रकाली युद्ध की देवी हैं। केरल में इन्हें करियम काली देवी के नाम से जाना जाता है, जो किसी भी व्यक्ति के भाग्य को बदलने की शक्ति रखती हैं।

Goddess Bhadrakali: ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अपरा एकादशी को भद्रकाली जयंती मनाई जाती है। भद्रकाली, मां काली का सौम्य रूप है। महाभारत के शांति पर्व के अनुसार ये सती के कोप से उत्पन्न दक्ष के यज्ञ की विध्वंसक देवी हैं। भद्रकाली युद्ध की देवी हैं। केरल में इन्हें करियम काली देवी के नाम से जाना जाता है, जो किसी भी व्यक्ति के भाग्य को बदलने की शक्ति रखती हैं।
मां भद्रकाली के चार रूप हैं- दक्षजित, महिषाजित, रुरुजित और दारिकाजित। इनके हर स्वरूप की एक कहानी है।
दक्षजित : शिव-वायु पुराण तथा महाभारत की कथाओं के अनुसार शिव की पत्नी सती ने अपने पिता दक्ष की यज्ञ अग्नि में खुद को भस्म कर लिया। इससे क्रोधित शिव ने दक्ष को मारने के लिए वीरभद्र और भद्रकाली को अपनी जटाओं से प्रकट किया, इसलिए वीरभद्र को देवी भद्रकाली का भाई माना जाता है। लेकिन भगवान विष्णु ने दक्ष की रक्षा के लिए वीरभद्र को कैद कर लिया। भद्रकाली ने वीरभद्र को भगवान विष्णु से मुक्त करवाया और दक्ष को मारने में उनकी मदद की, जिससे उनका नाम ‘दक्षजित’ पड़ा।
महिषाजित : कालिका पुराण में वर्णन है कि त्रेता युग में भद्रकाली महिषासुर का वध करने के लिए प्रकट हुई थीं। महिषासुर भी तीन हुए हैं। भद्रकाली ने जिसका वध किया, वह दूसरा महिषासुर था। तीसरे महिषासुर ने जानना चाहा कि उसकी मृत्यु कैसे होगी, तो उसे गौर वर्ण भद्रकाली के दर्शन हुए, जो पूर्व जन्म में क्षीर सागर से प्रकट हुई थीं और देवी ने उसे वचन दिया कि वह अठारह भुजाओं वाली महिषासुर मर्दिनी के रूप में जन्म लेंगी और उसका वध करेंगी। देवी का यह रूप ‘महिषाजित’ है।
रुरुजित : वराह पुराण के अनुसार जब देवी रौद्री (पार्वती का एक रूप) नीली पर्वत की तलहटी में ध्यान कर रही थीं। उन्होंने राक्षस रुरु के अत्याचार से पीड़ित देवताओं की दयनीय दशा देखी, तो उनके क्रोध की चिंगारी से भद्रकाली का जन्म हुआ। रुरु का वध करने के कारण उन्हें ‘रुरुजित’ नाम मिला।
दारिकाजित: केरल में देवी की पूजा ज्यादातर ‘दारिकाजित’ के रूप में की जाती है, जिसका अर्थ है-‘दारिका का वध करने वाली।’ मार्कण्डेय पुराण के अनुसार दारिका असुर ने शक्ति के मद में चूर होकर तीनों लोकों के निवासियों को परेशान करना शुरू कर दिया। दारिका के बुरे कर्मों के बारे में सुनकर, शिव ने अपनी तीसरी आंख खोली और उससे भद्रकाली को प्रकट किया इसलिए देवी को शिव की पुत्री भी कहा जाता है। भद्रकाली ने दारिका को मारने के लिए एक बेताल को अपनी सवारी बनाया और उसका वध किया। हालांकि, दारिका का वध करने पर भी उनका गुस्सा शांत नहीं हुआ, इसलिए देवताओं ने शिव से उन्हें शांत करने के लिए कहा। भगवान शिव शिशु रूप में उनके रास्ते में लेट गए। इससे काली की मातृ प्रकृति जाग्रत हो गई और वह शांत हो कर उस स्थान पर बस गईं।
कुरुक्षेत्र में मां भद्रकाली का देवीकूप मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। महाभारत युद्ध से पहले और विजय के पश्चात भगवान कृष्ण पांडवों के साथ यहां पूजा करने आए थे। पांडवों ने विजय के पश्चात अपने घोड़े देवी को अर्पित किए थे। उस दिन से भक्त अपनी मनोकामना पूरी होने पर देवी को यहां टेराकोटा और धातु के घोड़े मंदिर में चढ़ाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में कृष्ण और बलराम का ‘मुंडन’ संस्कार भी हुआ था।
यही नहीं विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर हीरे से जुड़ी एक कहानी देवी भद्रकाली के मंदिर से जुड़ी है। दक्षिण भारत के हनमकोंडा और वारंगल की पहाड़ियों के बीच स्थित भद्रकाली मंदिर को 625 ई. में चालुक्य वंश के राजा पुलकेशी द्वितीय ने अपनी विजय के उपलक्ष्य में बनवाया था। बाद में काकतीय राजाओं ने इस मंदिर को अपनाया और भद्रकाली को अपनी कुलदेवी माना। ऐतिहासिक तथ्य के अनुसार काकतीय राजाओं ने ही कोहिनूर हीरे को देवी भद्रकाली की बायीं आंख में जड़वाया था, जिसे बाद में अलाउद्दीन खिलजी लूट कर ले गया था।
उड़ीसा में इस दिन को जलक्रीड़ा एकादशी के रूप में मनाते हैं। इस दिन यहां भगवान जगन्नाथ की प्रतीकात्मक छवियों को जल कुंड या पवित्र तालाब में स्नान करवाया जाता है।