Celebrating the Legacy of Saint Ramanujacharya A Spiritual Revolution in Bhakti सनातन धर्म संस्कृति के अद्वितीय संरक्षक थे श्री रामानुजाचार्य स्वामी, Ara Hindi News - Hindustan
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सनातन धर्म संस्कृति के अद्वितीय संरक्षक थे श्री रामानुजाचार्य स्वामी

आरा में साहित्य और अध्यात्म परिषद द्वारा श्री रामानुजाचार्य स्वामी की जयंती पर विद्वत संगोष्ठी और काव्य पाठ का आयोजन किया गया। इस अवसर पर वक्ताओं ने उनके आध्यात्मिक योगदान और भक्ति मार्ग में उनके...

Newswrap हिन्दुस्तान, आराSun, 4 May 2025 08:35 PM
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सनातन धर्म संस्कृति के अद्वितीय संरक्षक थे श्री रामानुजाचार्य स्वामी

आरा। साहित्य और अध्यात्म परिषद के तत्वावधान में श्री रामानुजाचार्य स्वामी की जयंती पर विद्वत संगोष्ठी सह काव्य पाठ का डॉ नथुनी पांडेय की अध्यक्षता में हुआ। मौके पर रमेश सिंह रामप्रपन्न ने कहा कि आध्यात्मिक क्रांति, समाज सुधारक, महापुरुष श्रीरामानुज स्वामी सबके लिए भक्ति मार्ग का दरवाजा खोल दिए। भक्ति और शरणागत की सुरसरि प्रवाहित कर प्रभु को सबके लिए सुलभ कर दिए। डॉ नथुनी पांडे ने कहा कि श्री रामानुज स्वामी वैदिक सनातन धर्म संस्कृति के अद्वितीय संरक्षक थे। राजेंद्र शर्मा पुष्कर ने कहा की श्री रामानुज स्वामी ने श्री वैष्णव भक्ति प्रवाह को ऐसी सार्थक दिशा प्रदान की, जिसका संबल पाकार मानव अपना परिष्करण एवं उन्नयन सहज ही कर सकता है।

विष्णु देव सिंह ने कहा कि रामानुज स्वामी 11वीं सदी के संत थे। गिरीश सिंह , डॉ किरण कुमारी, मनोज कुमार मनमौजी, शिवदास सिंह, अजय गुप्ता अज्ञानी, सुरेंद्र सिंह अंशु, रमेश सिंह, रमेश चंद्र भूषण थे। मंच का संचालन रमेश सिंह राम प्रपन्न एवं धन्यवाद ज्ञापन जय नारायण सिंह ने किया। ----------- जीव कल्याण के लिए महापुरुष या संत करते हैं कार्य आरा। निज प्रतिनिधि ब्रज गोपिका सेवा मिशन की ओर से आयोजित 20 दिवसीय प्रवचन शृंखला के आठवें दिन पूज्य स्वामी डॉ युगल शरण जी महाराज की मेडिटेशन क्लास में लोगों की भीड़ उमड़ रही है। वहीं शाम में प्रवचन कार्यक्रम में भी बड़ी संख्या में लोग जुट रहे है। यह कार्यक्रम 16 मई तक चलेगा। शाम के प्रवचन में अपने चिरपरिचित शैली में उन्होंने कहा कि महापुरुष या संत जो भी कार्य करते हैं, वह केवल जीव कल्याण के लिए होता है। उनका और कोई उद्देश्य नहीं होता है। भले ही उनके कार्य देखने में टेढ़े-मेढ़े लगें, लेकिन वे केवल जीव कल्याण के लिए ही होते हैं। भगवान और संत दोनों धर्म, अधर्म, पाप और पुण्य से परे होते हैं। ये सभी नियम केवल उनके लिए हैं, जिन्होंने भगवान को प्राप्त नहीं किया है। संतों के लिए कोई विधि-निषेध नहीं होता, क्योंकि वे जो पाना था, उसे पहले ही प्राप्त कर चुके हैं। जो करना था, वह कर चुके हैं। अब उनके लिए कोई नियम नहीं है, बल्कि अब तो नियम उनके पीछे-पीछे चलते हैं। जगत के कल्याण के लिए एक संत दूसरे संत से अज्ञानता का प्रश्न करता है। संत कभी-कभी अज्ञानी की भूमिका निभाकर प्रश्न करते हैं और फिर ज्ञानी बनकर उत्तर देते हैं। इस प्रकार, प्रश्नोत्तरी से एक ग्रंथ का निर्माण होता है, जिसे पढ़कर हमें ज्ञान होता है कि वे सभी धर्म अधर्म से परे हैं और उनके सभी कार्य भगवान के कार्य ही हैं। कहा कि योगमाया भगवान की अनंत शक्तियों में से एक शक्ति है।

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