Heatwave Hits Aurangabad Hospital Prepares for Rising Patient Numbers हीट वेव से निपटने को सदर अस्पताल में तैयारी जारी, पेज 4 लीड, पैकेज, Aurangabad Hindi News - Hindustan
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हीट वेव से निपटने को सदर अस्पताल में तैयारी जारी, पेज 4 लीड, पैकेज

अस्पताल में फिलहाल जारी है तैयारी, 28 बेड हैं तैयार, एसी को कराया ठीक, दवाएं उपलब्ध लेकिन डॉक्टरों का रोस्टर तैयार नहीं म म म

Newswrap हिन्दुस्तान, औरंगाबादTue, 8 April 2025 10:08 PM
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हीट वेव से निपटने को सदर अस्पताल में तैयारी जारी, पेज 4 लीड, पैकेज

मौसम का मिजाज बदल गया है और गर्म हवाएं चलने लगी हैं। औरंगाबाद के सदर अस्पताल में हीट वेव की चपेट में आकर भर्ती होने वाले मरीजों के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। फिलहाल यहां तैयारी अधूरी है। सदर अस्पताल में पूर्व से चिन्हित नशा मुक्ति वार्ड को ही हीट वेव वार्ड के रूप में विकसित कर दिया गया है। इसमें कुल 14 बेड लगाए गए हैं और चार एसी लगाई गई है। दो एसी पहले से थी। यहां पाइप लाइन से ही ऑक्सीजन की आपूर्ति की जानी है। एनआरसी के रूप में जो वार्ड इस्तेमाल होता था, उसमें भी 14 बेड लगा दिए गए हैं। कुल 28 बेड की व्यवस्था हो गई है जबकि 12 अन्य बेड लगाए जाने हैं। एनआरसी के सामने खाली पड़े एक भवन में बेड लगाने की व्यवस्था की जा रही है। हीट वेव की चपेट में आकर प्रत्येक दिन दर्जनों लोग बीमार होकर यहां पहुंचते हैं। पिछली बार भी मरीज को भर्ती करने के लिए बेड तक उपलब्ध नहीं हो पाया था जिसको ध्यान में रखते हुए लगभग 40 बेड तैयार किए जाने हैं। अस्पताल में पाइपलाइन से ऑक्सीजन की आपूर्ति होती है जिसके विकल्प के रूप में ऑक्सीजन कंसंट्रेटर और ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था की जा रही है। रविवार को अस्पताल में ऑक्सीजन की आपूर्ति प्रभावित हो गई थी। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए ही वैकल्पिक व्यवस्था की जा रही है। इस संबंध में सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डा. सुरेंद्र कुमार ने बताया कि प्रत्येक वार्ड में ऑक्सीजन कंसंट्रेटर और सिलेंडर की व्यवस्था की गई है। कुल 40 बेड लगाए जाने हैं। यह काम शीघ्र ही पूरा हो जाएगा। दो वार्ड बनकर तैयार है। सदर अस्पताल में प्रत्येक दिन औसतन साढ़े सात सौ मरीज इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। इसमें से कुछ मरीज सर्दी, खांसी, बुखार, सिर दर्द, बदन दर्द, चक्कर आना, पेट दर्द से पीड़ित हैं। लू की चपेट में आकर भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या शून्य है। फिलहाल लू से बीमार पड़ने वाले मरीज नहीं आ रहे हैं। -------------------------------------------------------------------------------------------------------- नहीं बन सका है रोस्टर -------------------------------------------------------------------------------------------------------- हीट वेव को लेकर डॉक्टरों का रोस्टर बनाया जाना है। फिलहाल यह काम नहीं हो पाया है। पिछले साल डॉक्टरों की यहां कमी हो गई थी और कई डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए थे। इसके कारण मरीजों के परिजन हंगामा कर रहे थे। उपाधीक्षक ने बताया कि अलग से डॉक्टर उपलब्ध नहीं है। सदर अस्पताल में जिन डॉक्टरों की ड्यूटी लगी है, उन्हीं में से डॉक्टर और नर्स का रोस्टर तैयार किया जाना है। -------------------------------------------------------------------------------------------------------- सदर अस्पताल में जरूरत की सभी दवाएं उपलब्ध हैं। हीट वेव से पीड़ित मरीजों के इलाज में मामूली दवाओं की जरूरत होती है। ओआरएस, पेरासिटामोल के अलावा अन्य दवाएं भी हैं। उपाधीक्षक ने कहा कि दवा की कोई कमी अस्पताल में नहीं है। -------------------------------------------------------------------------------------------------------- गर्मी में खिसक जाता है जिले का जलस्तर -------------------------------------------------------------------------------------------------------- औरंगाबाद जिले में पिछले पांच सालों में जलस्तर तेजी से खिसका है। इस बार भी जलस्तर को लेकर परेशानी शुरू हो गई है। वर्ष 2021 से लेकर इस साल तक जलस्तर में काफी अंतर आया है। विभिन्न पंचायतों में जो जलस्तर नापा गया तो उसमें कई फुट पानी नीचे चला गया है। बताया गया कि वर्ष 2021 में पूरे जिले में जलस्तर 24.01 था जो इस साल 21.7 है। वर्ष 2023 में जलस्तर उपर आया था लेकिन फिर से यह तेजी से नीचे गया है। इधर जिला मुख्यालय से लेकर ग्रामीण इलाकों तक में जलस्तर नीचे गया है। जिला मुख्यालय में ही लगभग सौ फुट के बाद ही पानी मिल पा रहा है। कई जगहों पर ढाई सौ से चार सौ फुट बोरिंग हो रही है तो कहीं एक हजार फुट तक भी बोरिंग की जा रही है। ऐसे कुछ ही मुहल्ले हैं जहां जलस्तर ज्यादा नीचे है। ग्रामीण इलाकों में 80 से 100 फीट तक बोरिंग कराई जा रही है -------------------------------------------------------------------------------------------------------- बढ़ते तापमान से सब्जी के उत्पादन में आई कमी, किसान चिंतित मंगलवार को अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस रिकार्ड किया गया वातावरण का अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस को पहुंच गया है। इसका बुरा असर सब्जी की खेती पर पड़ रहा है। फल का आकार छोटा हो रहा है और उत्पादन में कमी आ रही है। इस बात को लेकर सब्जी उत्पादक किसान चिंतित हैं। कृषि मौसम वैज्ञानिक डॉ अनूप चौबे ने बताया कि गरमा सब्जी की खेती के लिए सामान्य 25 से 35 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान होना चाहिए। 32 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान होने पर उत्पादन प्रभावित होने लगता है। इधर स्थिति यह है कि तापमान 40 डिग्री सेल्सियस को पार कर रहा है। इसका प्रतिकूल प्रभाव सब्जियों पर पड़ रहा है। गर्मी के कारण फूल गिर रहे हैं। परागण में बाधा आने से उत्पादन कम हो रहा है। फल का आकार भी छोटा हो गया है जिससे उत्पादन में कमी आई है। तापमान बढ़ने से कीट और फफूंद जनित रोगों का प्रकोप बढ़ रहा है। कीटनाशक दवाओं का अधिक छिड़काव करना पड़ रहा है, जो किसान के लिए घाटे का सौदा है। फसल में सिंचाई भी अधिक देनी पड़ रही है। सब्जी उत्पादक किसान तेलहारा बिगहा के जितेंद्र मेहता व चिल्हकी बिगहा के वीरेंद्र मेहता आदि बताते हैं कि सब्जी की खेती में काफी परेशानी हो रही है। गर्मी के चलते एक-दो दिन में ही मिट्टी की नमी खत्म हो जा रही है। पटवन अधिक देना पड़ रहा है। पटवन के आभाव में फसल सूख रही है। उन्होंने बताया कि भूजल स्तर भी नीचे चला गया है। इससे भी पटवन में दिक्कत हो रही है। फल का आकार छोटा हो गया है। जिसके चलते बाजार में भाव कम मिल रहा है। उन्होंने बताया कि कीट-व्याधि का प्रकोप बढ़ गया है। कीटनाशक का छिड़काव करते-करते परेशान हैं। फल खराब भी अधिक हो रहा है। बताया कि टमाटर के फल खेत में सड़ रहे हैं। बाजार में इसका भाव इतना कम है कि मजदूरी और ट्रांसपोर्टिंग निकाल पाना भी मुश्किल है। दो-तीन रुपए प्रति किलो टमाटर थोक बाजार में बिक रहा है। इसके बाद भी इसका कोई खरीददार नहीं मिल रहा है। मंडी में भी टमाटर सड़ रहा है। स्ट्रॉबेरी की खेती को भी हो रहा नुकसान कुटुंबा प्रखंड के चिल्हकी बिगहा समेत कई अन्य गांव में स्ट्रॉबेरी की खेती बड़े पैमाने पर होती है। इस खेती पर तापमान का बहुत ही ज्यादा असर पड़ता है। वातावरण का तापमान इतना चढ़ा हुआ है कि स्ट्रॉबेरी के पौधे उसे बर्दाश्त कर पाने की स्थिति में नहीं है। गर्मी से पौधे सूख रहे हैं। उसमें जो फल भी लग रहा है वे भी सड़ रहे हैं। फल का आकार भी काफी छोटा हो गया है। ऐसी स्थिति में स्ट्रॉबेरी उत्पादक किसानों को भी तापमान की मार झेलनी पड़ रही है।

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