शहर में पान भंडारण की हो सुविधा नगर निगम कम रेट पर दे दुकान
बेतिया के 1500 से अधिक पान दुकानदारों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई है। गुटखे के बढ़ते प्रचलन से पान की मांग कम हो गई है, जिससे दुकानदारों को रोजगार का संकट सामना करना पड़ रहा है। पान के पत्तों के...
बेतिया शहर के 1500 से अधिक पान दुकानदारों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। पहले के मुकाबले आमदनी कम होने से उनके परिवार का जीविकोपार्जन संकट में है। कई दुकानदारों ने रोजगार का दूसरा विकल्प तलाश लिया है तो कई उस रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं। दुकानदारों की पीड़ा है कि गुटखा के प्रचलन ने पान की मांग कम कर दी है। हालांकि, कई तरह के गुटखे प्रतिबंधित हैं, इसके बावजूद ये मार्केट में धड़ल्ले से बिक रहे हैं। पुलिस या प्रशासन इसपर कार्रवाई नहीं करता है। दुकानदारों ने बताया कि सबसे बड़ी समस्या पान के पत्तों को सुरक्षित बचाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। पान के हरे पत्तों के रखरखाव में सावधानी बरतनी पड़ती है। पानी अधिक या फिर कम होने पर पत्ते गलने लगते हैं। इससे कई बार पान के पत्ते पूरी तरह खराब हो जाते हैं। इससे आर्थिक रूप से नुकसान उठाना पड़ता है।
मो. कलाम अंसारी, अरुण कुमार, मनीष कुमार आदि ने बताया कि जिले में पान की खेती नहीं होती है। हमें रक्सौल की मंडी या उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और बनारस से बोरियों में पान के पत्ते मंगवाने पड़ते हैं। इसमें कई बार अधिक खर्च लगने से नुकसान झेलना पड़ता है। मांग के अनुरुप सही समय पर पान की खेप के नहीं पहुंचने पर रास्ते में ही पान के हरे गलने लगते हैं। इससे दुकानदारों को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है। हालांकि बेतिया की स्थानीय मंडी से भी इनको सप्ताह में दो बार पान उपलब्ध हो जाता है, लेकिन बनारस से मंगाए गए पान की क्वालिटी सर्वोत्तम होने के कारण ग्राहकों की मांग अधिक रहती है। पान दुकानदारों को सबसे अधिक परेशानी गर्मी के दिनों में होती है जब थोड़ा भी विलंब होने पर पत्तों में सड़न की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। पत्ते काले पड़ने लगते हैं। इससे पान की खेप बर्बाद हो जाती है। कई बार माल पहुंचने के बाद पान की बोरियों को फेंक देना पड़ता है। ऐसा बार-बार होने पर पान दुकानदारों के रोजगार पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।
बारिश के दिनों में भी पान विक्रेताओं को कठिन समय का सामना करना पड़ता है। वातावरण में आद्रर्ता बढ़ने के कारण बारिश के समय में फंगस लगने के कारण पान के पत्ते सड़ने लगते हैं। इससे उनके कारोबार पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। कई पान दुकानदारों ने बताया कि पान मसाले को दिल्ली व कानपुर से मंगवाना पड़ता है। स्थानीय स्तर पर भी पान मसाले मसलन गुलकंद, जाफरानी जर्दा, कथ्था तथा चूना व सुगंधित मसाले की खरीदारी भी महंगे दाम पर करनी पड़ती है। कई ग्राहक ऐसे होते हैं जो पान के लिए विशेष मसाले की डिमांड करते हैं। उनकी पूर्ति करने के लिए अधिक पैसा लगाना पड़ता है लेकिन उसे अनुरूप आमदनी नहीं होने के कारण आर्थिक तंगी झेलना मजबूरी बनी हुई है। पान दुकानदार ओम प्रकाश चौरसिया व मोहन कुमार ने बताया कि बनारस से जब भी मगही पान मंगायी जाती है तब उसकी पूरी सुरक्षा करनी पड़ती है। उसके भंडारण के लिए घर में ही विशेष कमरा तैयार करना पड़ता है। पान के पत्तों के रख रखाव के लिए बर्फ के पानी का भी प्रयोग करना पड़ता है। इसे रखने के लिए जिले में किसी तरह की व्यवस्था नहीं है। इसकी व्यवस्था हो तो दुकानदारों को फायदा होगा।
-बोले जिम्मेदार-
असंगठित कामगार व शल्पिकारों के हितों की रक्षा करने व उनको सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए बिहार शताब्दी असंगठित कार्यक्षेत्र कामगार एवं शल्पिकार सामाजिक सुरक्षा योजना शुरु की गयी है। इस योजना के तहत अहर्ता वाले 18 से 65 आयु वर्ग क लोग इस योजना का लाभ ले सकते हैं। इसकी जानकारी के लिए विभाग से संपर्क किया जा सकता है।
- किशुदेव साह, श्रम प्रवर्तन पदाधिकारी
वैसे पान वक्रिेता जो अपनी पढ़ाई के बाद प्रतियोगिता परीक्षा में शामिल होना चाहते हैं उनको प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के लिए विभाग के द्वारा नि:शुल्क पुस्तकें उपलब्ध करायी जाऐगी। इसके अलावे जिले के सभी 18 प्रखंडों में नर्धिारित तिथि के अनुसार रोजगार मेले का आयोजन किया जाता है। इन शिविर में रोजगार के लिए संपर्क कर सकते हैं।
- मुकुंद माधव, जिला नियोजन पदाधिकारी
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