चांदन डैम से गाद हटाने का किसानों को है इंतजार
बोले बांकाबोले बांका प्रस्तुति- हरिनारायण सिंह चांदन जलाशय परियोजना मृतप्राय: किसानों में हताशा, गाद बनी सबसे बड़ी समस्या बौंसी(

बौंसी(बांका), निज संवाददाता। बांका जिले के प्रमुख जल स्रोतों में शुमार चांदन जलाशय परियोजना इन दिनों अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। एक समय था जब यह जलाशय जिले के किसानों के लिए जीवनदायिनी थी, लेकिन आज यह लगभग मृतप्राय हो गया है। लगातार उपेक्षा, रखरखाव की कमी और वर्षों से गाद की सफाई नहीं होने के कारण इसकी जल भंडारण क्षमता लगभग समाप्त हो गई है। मार्च के महीने में ही डैम पूरी तरह से सूख चुका है, जिससे किसानों की पीड़ा और बढ़ गई है। चांदन जलाशय बांका जिले के लिए महज एक डैम नहीं, बल्कि यह यहां के लाखों लोगों की जिंदगी से जुड़ा विषय है। खेती, सिंचाई, रोजगार और पर्यटन - इन सभी पहलुओं पर इसका सीधा असर पड़ता है। ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि सरकार, प्रशासन और समाज के सभी वर्ग मिलकर चांदन डैम को फिर से उसकी पुरानी गरिमा दिलाने की दिशा में ठोस कदम उठाएं। यदि अब सही कदम नहीं उठाए गए, तो एक ऐतिहासिक जलाशय का भविष्य अंधकार में चला जाएगा और इसके साथ ही हजारों किसानों की उम्मीदें भी दम तोड़ देंगी। चांदन जलाशय की स्थापना वर्ष 1962 में हुई थी। इसका उद्देश्य मुख्य रूप से कृषि सिंचाई और पेयजल आपूर्ति था। इस जलाशय के निर्माण से बांका और भागलपुर जिलों के हजारों किसान लाभान्वित होते थे। इसके जल से लगभग 68 हजार हेक्टेयर भूमि पर पटवन होता था। लेकिन बीते डेढ़ दशक में इस डैम की स्थिति लगातार बिगड़ती चली गई। गाद भराव की समस्या इस डैम की सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी है। वर्तमान में अनुमान है कि डैम का लगभग 65 प्रतिशत हिस्सा गाद से भर चुका है, जिससे इसकी जल संचयन क्षमता में भारी गिरावट आई है। इसका सीधा असर किसानों की खेती-बाड़ी पर पड़ा है। जो खेत पहले पानी से लहलहाते थे, अब सूख रहे हैं। चांदन जलाशय में गाद की समस्या कोई नई बात नहीं है। यह समस्या वर्षों से चली आ रही है, लेकिन इसके समाधान को लेकर गंभीर प्रयास नहीं किए गए। हालांकि मुख्यमंत्री दो बार इस डैम का निरीक्षण कर चुके हैं। उन्होंने गाद की गंभीरता को समझते हुए शीघ्र समाधान का आश्वासन भी दिया था। इसके बाद जल संसाधन विभाग द्वारा डैम का डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) तैयार कर केंद्र सरकार को करीब 400 करोड़ रुपये की परियोजना भेजी गई थी। इस प्रस्ताव से क्षेत्र के किसानों में आशा की किरण जगी थी। लोग उम्मीद करने लगे थे कि 2021 में ही गाद हटाने का काम शुरू हो जाएगा। लेकिन यह उम्मीदें भी धूमिल हो गईं। आज तक डैम से गाद निकालने का कोई काम शुरू नहीं हुआ है। इससे किसानों में भारी निराशा का माहौल है। बांका जिले की अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। चांदन डैम के पानी से जिले के कई प्रखंडों - जैसे बौंसी, बाराहाट, धोरैया और अमरपुर - की सिंचाई होती थी। अब जब डैम में पानी नहीं है, तो खेती की स्थिति भी खराब हो गई है। किसान महंगे डीजल पंप सेट या बोरिंग पर निर्भर हो गए हैं। इससे उत्पादन लागत बढ़ गई है और लाभ घट गया है। कई किसान अब रबी की फसल छोड़ने लगे हैं क्योंकि उन्हें सिंचाई के लिए पानी ही नहीं मिल पाता। धान की खेती पर भी असर पड़ा है। बांका जैसे पिछड़े जिले में जहां आजीविका के सीमित साधन हैं, वहां खेती का चौपट होना आर्थिक और सामाजिक संकट को और बढ़ा रहा है। चांदन डैम केवल सिंचाई का साधन ही नहीं, बल्कि प्राकृतिक सुंदरता का केंद्र भी है। यह डैम पहाड़ियों और हरियाली से घिरा हुआ है, जिससे यह पर्यटन की दृष्टि से अत्यंत संभावनाशील स्थल है। सरकार ने भी इसकी संभावनाओं को देखते हुए कुछ घोषणाएं की थीं - जैसे कि वाटर स्पोर्ट्स की शुरुआत, रिसॉर्ट का निर्माण और पर्यटन के अन्य विकास कार्य। पर्यटन विभाग द्वारा एक रिसॉर्ट निर्माण के लिए भूमि भी चिन्हित कर ली गई थी। मुख्यमंत्री ने यहां एडवेंचर टूरिज्म को बढ़ावा देने की भी बात कही थी। लेकिन यह योजनाएं भी अधर में लटक गई हैं। जब डैम में ही पानी नहीं है, तो पर्यटन की कल्पना भी अधूरी रह जाती है। क्षेत्र के लोग लगातार सरकार और प्रशासन से मांग कर रहे हैं कि डैम से गाद हटाने का कार्य प्राथमिकता के आधार पर शुरू किया जाए। स्थानीय जनप्रतिनिधि भी इस मुद्दे को विधानसभा और विभिन्न मंचों पर उठा चुके हैं। ग्रामीणों की मांग है कि यदि चांदन जलाशय की सफाई हो जाए और इसका पुर्ननिर्माण हो, तो यह न केवल किसानों की दशा सुधारेगा, बल्कि क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत बनाएगा। डैम का कुल कैचमेंट एरिया लगभग 1 लाख 10 हजार क्यूसेक एकड़ है। इसके जल का उपयोग न केवल बांका और भागलपुर बल्कि झारखंड के गोड्डा जिले तक किया जाता था। गाद की वजह से इसका कैचमेंट एरिया भी प्रभावित हुआ है और जल प्रवाह बाधित हो गया है। यदि गाद हटाने का कार्य गंभीरता से किया जाए, तो इसकी जल भंडारण क्षमता दोगुनी हो सकती है और इसका लाभ व्यापक क्षेत्र को मिल सकता है। चांदन जलाशय की वर्तमान स्थिति सरकार की उदासीनता की पोल खोलती है। एक ऐसा जलाशय जो कभी जिले की पहचान था, आज उपेक्षा का शिकार होकर किसानों की आंखों में आंसू ला रहा है। समय की मांग है कि सरकार त्वरित निर्णय ले और गाद हटाने के लिए पर्याप्त संसाधनों के साथ काम शुरू करे। यदि अब भी ध्यान नहीं दिया गया, तो यह जलाशय पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा, जिससे भविष्य में इसकी पुनर्स्थापना और भी कठिन हो जाएगी। साथ ही, हजारों किसानों की आजीविका खतरे में पड़ जाएगी। सरकार को चाहिए कि वह इस समस्या को प्राथमिकता दे और इसे राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं बल्कि जनजीवन से जुड़ी ज़रूरत के तौर पर देखे। बीडीओ अमित कुमार ने कहा कि चांदन डैम के समस्या का समाधान जल्द होने वाला है। इसके लिए विभाग भी प्रयासरत है। गाद हटने के बाद इसक जल क्षमता में वृद्धि होगी तथा इससे किसानों को काफी लाभ मिलेगा।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।