मंदार पर बिखरे पड़े हैं पुरातात्विक धरोहर , संरक्षण की आवश्यकता
बोले बांकाबोले बांका प्रस्तुति- हरिनारायण सिंह कई दुर्लभ मूर्तियां शिलाखंड एवं लिपियां मंदार पर्वत पर मिलते रहे हैं पुरातत्व अनुसंधान केंद्र

बौंसी(बांका), निज संवाददाता। पूर्व बिहार के सबसे बडे़ पर्यटन स्थली मंदार अपने गर्भ में पुरातत्व का भंडार समेटे हुए है। समय समय पर यहां से पुरातात्विक अवशेष मिलते रहते हैं इनमें से कई दुर्लभ प्रतिमाएं है तो कई अन्य अवशेस। इतने महत्वपूर्ण स्थली होने के बाद भी मंदार पुरातात्विक दृष्टिकोन से पूरी तरह से उपेक्षित है। सबसे खास बात तो यह है कि मंदार पर अवस्थित पुरातात्विक धरोहर संरक्षण के अभाव में लगातार क्षतिग्रस्त हो रहे हैं। विडंबना तो यह है कि आज तक मंदार के पुरातात्विक धरोहरों को पुरातत्व विभाग के द्वारा सूचीबद्ध भी नहीं किया जा सका है। 2 दशक से मंदार क्षेत्र की जनता लगातार मंदार को पुरातत्व विभाग के नक्से में शामिल करने की मांग अंग क्षेत्र की जनता लगातार कर रही है। लेकिन आज तक मंदार को पुरातत्व विभाग के सूची में उपस्थिति तक दर्ज नहीं करा पाया है। पौराणिक महत्व को समेटे ये अनमोल खजाने साल दर साल बिखरते जा रहे हैं। सदियों से मंदराचल के पुरातात्विक धरोहर शोध कर्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करते हुए अपने उद्धार की बाट जोह रहा है। इस पर्वत पर पुरातात्विक शिलालेख, भग्नावशेष, प्रस्तर प्रतिमाओं के यत्र-तत्र बिखरे खंड, मंदिरों के खंभे, गुम्बदों के कमलचक्र, पुरातन ईंटें, बहुतायत में बिखरे पड़े हैं जो समय के साथ विनष्ट हो रहे हैं । मंदार पर्वत के शिलाखंडों को स्थानीय लोगों द्वारा उठा उठा कर ले जाने से भी इसके धरोहरों पर संकट छाने लगे हैं । पर्वत मध्य में दत्तात्रेय भगवान की त्रिशिरा भग्नावशेष, भंडारी बाबा शिवमंदिर के पास गोल चक्के, लखदीपा के भग्नावशेष, कामधेनु की प्रतिमा , प्रस्तर के नाद जिसमें गो माता भोजन करती थी आदि पुरातात्विक धरोहरों को संरक्षित करने हेतु सरकार को त्वरित योजनाबद्ध तरीके से पहल करनी चाहिए। 2012 में पुरातत्व विभाग की टीम मंदार पर्वत के ऐतिहासिक स्थल का पुरातात्विक निरीक्षण किया था। तत्कालीन पटना सर्किल के निदेशक डाॅ एस के मंजुल ने सरकार को एक प्रतिवेदन सौंपा था। जिसमें बताया गया था कि यह पर्वत पौराणिक आस्था से जुड़ा हुआ है। साथ ही इसके उपरी सतह से लेकर नीचे के भाग में कई अवशेष बिखरे पड़े है। शांति निकेतन के पुरातात्विक विशेषज्ञ व इतिहासकार डॉ अनिल कुमार सिंह के नेतृत्व में पुरातत्व के शोधार्थियों की एक टीम को मंदार पर्वत भेजा इस टीम ने मंदार पर्वत के तराई में अवस्थित कामधेनु मंदिर नगाड़ा पोखर लखदीपा मंदिर चैतन्य महाप्रभु चरण चिह्न स्थल, अवंतिका नाथ सहित तमाम जगहों से नमूने संग्रह किया और टीम ने अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपी। रिपोर्ट में यह कहा गया था कि मंदार पर्वत एवं इसके आसपास का विशाल भूभाग पुरातत्व दृष्टिकोण से अति महत्वपूर्ण है। पिछले दिनों मंदार पहुंचे डॉ अनिल कुमार सिंह ने मंदार का भ्रमण कया। उन्होंने बताया कि मंदार की प्रतिमाओं को रंग जा रहा है इससे उनकी वास्तविकता अभी धूमिल हो रही है साथ ही उसका पुरातात्विक क्षति भी हो रही है इस पर अभिलंब रोक लगना चाहिए। जितने भी मंदार पर्वत पर पुरातात्विक अवशेष है वहां पर हर जगह साइनेज लगे और हिंदी एवं अंग्रेजी भाषाओं में उस का विस्तृत जानकारी लिखा हुआ होना चाहिए ताकि लोग जान सके। साथ यहां पर प्रवेश द्वार पर म्यूजियम बनाया जा सकता है। मंदार पर्वत पर बहुत सारे भग्नावशेष मौजूद हैं। पर्वत पर एक प्राचीन भवन के अवशेष हैं इन अवशेषों को एक जगह एकत्रित करके एक स्ट्रक्चर को बनाया जा सकता है। आसपास बिखरे हुए जो संरक्षित नहीं किए गए हैं । अभिलेख क्षतिग्रस्त हो रहे हैं। इन अवशेषों को सैलानियों के मंदार भ्रमण व अन्य असामाजिक तत्वों के द्वारा लगातार उन्हें नष्ट किया जा रहा है। पुरातत्व विभाग के नक्से में सूचीबद्ध करनवाने का प्रयास नहीं किया। पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार मंदार पर्वत के अधिकांश मूर्तियां उत्तर गुप्त काल की है मंदिर के सर्वोच्च शिखर पर एक शिव मंदिर है मंदिर के ठीक सामने एक कुंड है जिस कुंड में भगवान वराह की प्रतिमा अंकित है। बराह को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। वराह की प्रतिमा के ठीक ऊपर 4 पंक्तियां उकेरी हुई है शांतिनिकेतन के इतिहासकार डॉ अनिल कुमार सिंह के अनुसार 2 पंक्तियों में लिखा है स्थापित बलभद्र जिससे भगवान विष्णु की कहा गया है। पर्वत पर जाने के रास्ते में कई मूर्तियां के खंडित रुप देखे जा सकते हैं। रास्ते में दायीं ओर ब्राम्ही लिपी में एक अभिलेख मिला था। पर्वत पर समतल सतह पर कई प्राचीण मंदिर की संरचनाएं जो प्रस्तर तथा ईंटों से बनी थी। उपरी हिस्से में कई गुफाएं तथा मूर्तियां बनी हुई है। जिसके रहस्य का पता आज तक दुनिया को नहीं चल पाया है। पर्वत पर पड़े प्रतिमा शिलाखंड एवं अन्य पुरातत्व अवशेष ऊपर घी, धूप, रंगरोगन का प्रयोग बंद न किया गया और इन प्रतिमाओं के अवशेषों को संरक्षित नहीं किया गया तो इसका ऐतिहासिक स्वरुप नष्ट हो सकता है। बीडीओ अमित कुमार ने कहा कि मंदार में म्युजियम बनाने के लिए प्रस्ताव भेजा गया है। यहां के धरोहरों को संरक्षित रखने के लिए प्रशासनिक प्रयास जारी है। म्यूजियम बनने का निर्देश प्राप्त होते ही इसपर जल्द से जल्द कार्य किया जाएगा।
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