पहाड़ी इलाके में पांच से दस फुट नीचे खिसक गया जलस्तर
गर्मी के शुरुआती दौर में कैमूर में भूगर्भ जल स्तर नीचे जा रहा है। पहाड़ी क्षेत्रों में 5 से 10 फुट और मैदानी भाग में 1 से 2 फुट जल स्तर खिसका है। पानी की कमी से लोग चापाकलों और कुओं से पानी लाने को...

गर्मी के शुरुआती दौर में मैदानी भाग में भी धीरे-धीरे खिसक रहा भू-गर्भ जलस्तर जल स्तर निचे चले जाने से अभी समरसेबुल व चापाकलों से कम निकल रहा है पानी (पटना का टास्क) भभुआ, हिन्दुस्तान संवाददाता। कैमूर में 8 अप्रैल तक पहाड़ी क्षेत्र में पांच से दस फुट तथा मैदानी भाग में एक से दो फुट भूगर्भ जलस्तर नीचे चला गया है। पिछले वर्ष भी 10 अप्रैल तक इतना ही नीचे जलस्तर खिसका था। इसकी पुष्टि पीएचईडी द्वारा की गई है। जलस्तर खिसकने से अधौरा, चैनपुर व भगवानपुर के पहाड़ी क्षेत्र में चापाकलों से कम पानी मिल रहा है। घरों में लगे समरसेबुल धीरे-धीरे बंद होने लगे हैं। पशुपालक अपने मवेशियों के साथ मैदान भाग की नदी व नहर के तट किनारे रहने पहुंच गए हैं। अधौरा में चुआं व कुआं से पानी लाकर लोग प्यास बुझा रहे हैं। गर्मी के शुरुआती दौर में ही कैमूर जिले के पहाड़ी से लेकर मैदानी इलाकों में भूगर्भ जलस्तर नीचे की ओर खिसकना शुरू हो गया था। मार्च माह में छह इंच जलस्तर खिसकने की बात पीएचईडी द्वारा बताई गई थी। लेकिन, अप्रैल माह में जलस्तर ज्यादा खिसकने की बात कही जा रही है। यह देख लोगों को यह कहते सुना जा रहा है कि अभी जब यह हाल है तो मई-जून में स्थिति और भयावह हो जाएगी। पीएचईडी के कार्यपालक अभियंता ने बताया कि पहाड़ी क्षेत्रों में भूगर्भ जलस्तर करीब पांच से दस फुट और मैदानी भाग अभी एक से दो फुट नीचे जलस्तर खिसका है। उन्होंने बताया कि इससे पहाड़ी क्षेत्रों में चापाकलों से पहले की अपेक्षा कुछ कम पानी निकल रहा है। अधौरा के कान्हानार की लालती कुमार, रितु कुमारी व पूजा कुमारी ने बताया कि पानी का इंतजाम करना मुश्किल हो जा रहा है। इसके चक्कर में उनकी पढ़ाई प्रभावित हो रही है। अनिशा कुमारी व रीमा कुमारी ने बताया कि कुआं का पानी भी खिसक गया है। बड़गांव खुर्द की कौशल्या देवी ने बताया कि बच्ची दो किमी. दूर कुआं से पानी भरकर ला रही हैं। चुआं व कुआं के पानी से बुझा रहे प्यास अधौरा की चंदा देवी, भड़िमन प्रजापति, वकील साह ने बताया कि एक माह से जवरा बाबा टोला में नल-जल का पानी दर्जनों घरों में नहीं पहुंच रहा है। दूसरे के घर से पानी लाकर काम चलाना पड़ रहा है। बिना स्नान किए बच्चे स्कूल जा रहे हैं। बड़गांव कला के रामायण सिंह, दिनेश सिंह, मुड़ी देवी, कुसुम कुमारी ने बताया कि उनके घरों में पानी के लिए कनेक्शन नहीं दिया गया है। लगभग एक दर्जन घरों के लोग दो किमी. दूर कुआं का पानी लाकर प्यास बुझाते हैं। कुछ गांवों के वनवासी चुआं के पानी से प्यास बुझा रहे हैं। बंद चापाकलों की करा रहे मरम्मत भभुआ। पीएचईडी के कार्यापालक अभियंता ने बताया कि गर्मी के मौसम को देखते हुए जिले में पयेजल व्यवस्था को सुदृद्ध रखने के उद्देश्य से विभाग द्वारा 15 मार्च से अभियान प्रारंभ किया गया है। अभियान के तहत बंद पड़े चापाकलों की मरम्मत कराई जा रही है। उन्होंने बताया कि चापाकलों की मरम्मत के लिए प्रखंड स्तर पर टीम का गठन किया गया है। पेयजल से संबंधित लोगों की समस्या के सामाधान के लिए जिला एवं अनुमंडल स्तर पर विभाग द्वारा नियंत्रण कक्ष स्थापित किया गया है। नियंत्रण कक्ष में शिकायत दर्ज कराने पर संबंधित स्थानों पर टीम को भेजकर चापाकलों व नल-जल से पानी आपूर्ति की व्यवस्था की जा रही है। चारा-पानी की तलाश में घर छोड़े पशुपालक अधौरा प्रखंड के पशुपालक नरेंद्र यादव व उमेश उरांव ने बताया कि गर्मी के दिनों में पहाड़ी क्षेत्र में मवेशियों को खाने के लिए चारा व पीने के लिए पानी नहीं मिल पाता है। इसलिए उनके परिवार के सदस्य मवेशियों को लेकर कुदरा इलाके में चले गए हैं। जब बारिश शुरू होगी तब वह लौटेंगे। तब तक वह वहीं दूध-दही बेचने और मवेशियों का जीवन बचाने का काम करेंगे। जब कुछ पैसा इकट्ठा हो जाता है, तब वह खबर भिजवाते है। वहां से पैसा लाकर घर का खर्च चलाते हैं। कोट कैमूर के पहाड़ी क्षेत्रों में पांच से दस फुट भूगर्भ जल स्तर नीचे खिसक गया है। मैदानी भाग में अभी एक से दो फुट ही जलस्तर नीचे गया है। जिले में बंद पड़े चापाकलों को अभियान के तहत मरम्मत कराया जा रहा है। कुमार रवि, कार्यपालक अभियंता, पीएचईडी फोटो-08 अप्रैल भभुआ- 5 कैप्शन- अधौरा के बड़गांव गांव से दो किमी. दूर स्थित कुआं से पानी लेकर मंगलवार को अपने घर लौटतीं युवतियां। अधिक तापमान से मुरझा रहे आम के टिकोले भभुआ। अधिक तापमान के कारण पेड़ों में लगे आम के टिकोले मुरझा कर पेड़ से नीचे गिर रहे हैं। अधिक तापमान का आम के फल पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है। किसानों का कहना है कि अधिक तापमान के कारण पेड़ों में लगे आम के टिकोले मुरझा रहे हैं। फल का विकास भी तेजी से नहीं हो रहा है। इधर, जिला उद्यान पदाधिकारी डॉ. अभय कुमार गौरव ने बताया कि अधिक तापमान का असर खासकर लीची व अन्य पौधों पर अधिक पड़ता है। लेकिन, लीची की खेती यहां नहीं होती है। उन्होंने बताया कि तापमान का असर आम की फसल पर कम होता है।
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