बोले कटिहार : रेल लाइन के किनारे और बांध पर दिन गुजार रहे विस्थापित
कटिहार जिले में गंगा और कोसी नदी के कटाव के कारण पिछले 30 वर्षों में करीब 30 हजार परिवार विस्थापित हुए हैं। ये परिवार अस्थायी जीवन जी रहे हैं और पुनर्वास की मांग कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने 2025 में...
कटिहार जिले में गंगा और कोसी नदी के तीव्र कटाव के कारण पिछले तीन दशकों से करीब 30 हजार परिवार विस्थापन का दंश झेल रहे हैं। ये परिवार कुरसेला, बरारी, मनिहारी और अमदाबाद जैसे क्षेत्रों में सड़क, बांध और रेलवे लाइन के किनारे अस्थायी रूप से जीवन व्यतीत कर रहे हैं। पुनर्वास की मांग को लेकर समय-समय पर आंदोलन और धरना-प्रदर्शन होते रहे हैं, लेकिन ठोस समाधान नहीं हो सका। वर्ष 2025 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा पांच हजार विस्थापितों को भूमि का पर्चा दिया गया है, जबकि चार हजार परिवारों की प्रक्रिया जारी है। फिर भी बड़ी संख्या में परिवार अब भी सरकार से आस लगाए बैठे हैं। न्याय और स्थायी पुनर्वास की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
30 हजार के करीब हैं गंगा-कोसी कटाव से विस्थापित परिवार
03 दशक से हजारों परिवार झेल रहे हैं विस्थापन का दंश
04 प्रखंडों में सबसे अधिक हैं कटाव से विस्थापित परिवार
पिछले तीन दशकों में कटिहार जिले में गंगा और कोसी नदी के कटाव ने हजारों परिवारों की जिंदगी प्रभावित की है। अनुमानित तौर पर करीब 30 हजार परिवार आज भी इस प्राकृतिक आपदा के कारण विस्थापित जीवन जीने को मजबूर हैं। यह कटाव न केवल उनकी जमीन और मकान छीन ले गया, बल्कि उनके सपनों, भविष्य और स्थायित्व की उम्मीदों को भी बहा ले गया। कटिहार जिले के कुरसेला, बरारी, मनिहारी और अमदाबाद प्रखंड ऐसे इलाके हैं जहां सबसे अधिक विस्थापित परिवार बसते हैं। ये लोग वर्षों से सड़क किनारे, बांधों के पास और रेलवे लाइनों के आसपास झोपड़ियों में जीवन बसर कर रहे हैं। इनके पास न पक्की छत है, न मूलभूत सुविधाएं। कई बार बाढ़ और बारिश की मार से उनका अस्थायी बसेरा भी उजड़ जाता है।
पुनर्वास की मांग को लेकर बार-बार उठाई आवाज :
पुनर्वास की मांग को लेकर इन लोगों ने बार-बार आवाज उठाई है। आंदोलनों, धरना-प्रदर्शनों और जन प्रतिनिधियों को ज्ञापन सौंपने के बावजूद इनकी हालत में कोई खास बदलाव नहीं आया। सरकार की ओर देखने के अलावा इनके पास और कोई विकल्प नहीं बचा था।
पांच हजार लोगों को सीएम ने दिया पर्चा
हालांकि वर्ष 2025 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा पुनर्वास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया। सरकार ने पांच हजार विस्थापित परिवारों को भूमि का पर्चा सौंपा, जिससे उन्हें कानूनी रूप से अपने आशियाने के निर्माण की उम्मीद जगी है। इसके अतिरिक्त चार हजार अन्य परिवारों के पुनर्वास की प्रक्रिया भी सरकार द्वारा शुरू की गई है, जो फिलहाल प्रगति पर है।
पुनर्वास की प्रतीक्षा में है हजारों परिवार
यह पहल निश्चित रूप से सराहनीय है, लेकिन यह भी सत्य है कि अभी भी हजारों परिवार ऐसे हैं जो पुनर्वास की प्रतीक्षा में हैं। उन्हें उम्मीद है कि सरकार उनके साथ भी न्याय करेगी और उन्हें भी सुरक्षित व स्थायी जीवन जीने का अधिकार मिलेगा। अब यह देखना होगा कि सरकार अपनी इस पहल को कितनी पारदर्शिता और गति से आगे बढ़ाती है, ताकि कटिहार के ये विस्थापित अपने अधिकारों और सम्मान के साथ एक नई जिंदगी शुरू कर सकें।
शिकायतें
अधिकांश विस्थापित वर्षों से इंतजार कर रहे हैं, लेकिन प्रक्रिया बहुत धीमी है, जिससे लोगों में निराशा है।
पर्चा वितरण में पारदर्शिता की कमी और कुछ स्थानों पर पक्षपात की शिकायतें भी सामने आई हैं।
जहां पुनर्वास किया गया है वहां अभी तक न तो बिजली है, न साफ पानी, न ही शौचालय जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं।
कई बार सर्वेक्षण किया गया, लेकिन उसका कोई ठोस परिणाम नहीं निकला, जिससे लोगों का भरोसा टूट रहा है।
चुनावों के समय वादे किए जाते हैं, लेकिन चुनाव के बाद विस्थापितों की समस्याओं को भुला दिया जाता है।
सुझाव
एक पारदर्शी और व्यापक सर्वेक्षण कर यह सुनिश्चित किया जाए कि कोई भी पात्र परिवार पुनर्वास योजना से वंचित न रह जाए।
सरकार को चाहिए कि वह पुनर्वास स्थलों पर पक्के घर, पेयजल, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था करे।
-विस्थापितों को पुनर्वास के साथ-साथ रोजगार के अवसर भी उपलब्ध कराए जाएं, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें।
गंगा और कोसी नदी के किनारे कटाव रोधी योजनाओं को प्रभावी रूप से लागू किया जाए, जिससे आगे और विस्थापन न हो।
पुनर्वास कार्यों पर निगरानी रखने के लिए स्थानीय लोगों और जनप्रतिनिधियों की समिति बनाई जाए।
समझें हमारी पीड़ा
तीन बार कटाव में घर बह गया। अब सड़क किनारे झोपड़ी में गुजर-बसर कर रहे हैं। न बिजली है, न पानी। बच्चों की पढ़ाई छूट गई। हर बार सिर्फ आश्वासन मिलता है, पर राहत आज तक नहीं मिली।
शीला देवी
खेत और घर कटाव में समा चुके हैं। अब झोपड़ी में रहते हैं। बीमारी में इलाज नहीं मिलता। सरकारी मदद का इंतजार करते-करते थक गई हैं। दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो गया है।
गुंजिया देवी
अपने बच्चों के साथ रेलवे लाइन किनारे रहती हूं। बरसात में झोपड़ी में पानी घुस जाता है। कोई स्थायी आशियाना नहीं है। पुनर्वास के नाम पर केवल सर्वे हुआ, पर आज तक कोई जमीन नहीं मिली।
कामिनी
कटाव ने सब कुछ छीन लिया। अब दूसरों के खेत में मजदूरी कर पेट पाल रही हैं। उनका नाम लिस्ट में नहीं आया, जबकि वह हर आंदोलन में शामिल रहीं। उनका दर्द सरकार तक नहीं पहुंच पाया।
मुन्नी देवी
हर साल ठंड और बारिश का सामना करना पड़ता है। उनके पास न राशन कार्ड है, न पहचान पत्र। पुनर्वास का नाम सुनते-सुनते उम्र बीत गई, लेकिन छत आज भी नसीब नहीं हुई।
भवानी देवी
मेरा परिवार दो बार विस्थापित हुआ। अब छोटे बच्चों के साथ टूटी फूटी झोपड़ी में गुजर-बसर कर रही हैं। रोज कमाने-खाने वाले इस परिवार को सरकार की कोई मदद नहीं मिल पाई है।
पार्वती देवी
पीड़ितों की जमीन कटाव में चली गई। कई बार आवेदन देने के बाद भी न कोई पर्चा मिला, न पुनर्वास हुआ। मजबूरी में दूसरे गांव में किराये पर रह रही हैं, लेकिन वहां भी अपमान झेलना पड़ता है।
शिरोमणि देवी
नदी ने उनका सब कुछ छीन लिया। परिजनों के मौत के बाद अब अकेले बच्चों को पाल रही हैं। सरकारी योजनाओं का कोई लाभ नहीं मिल पाया। सिर्फ वादे, नतीजा कुछ नहीं। बच्चों का भविष्य अंधेरे में है।
सोनी देवी
विस्थापन ने शिक्षा का सपना तोड़ दिया। अब अपनी मां के साथ एक तिरपाल के नीचे रह रही है। सरकारी मदद की उम्मीद छोड़ चुकी हूं, अब बस जीने की कोशिश है।
सपना देवी
झोपड़ी हर साल बाढ़ में बह जाती है। फिर भी सरकार से कोई स्थायी समाधान नहीं मिला। चार बच्चों के साथ खुले आसमान के नीचे रह रही हूं। सिर्फ “प्रक्रिया में है” जवाब मिलता है।
मंगली देवी
दो बार आवेदन कर चुकी हूं, लेकिन हर बार उन्हें लिस्ट से बाहर कर दिया गया। न कोई अधिकारी सुनता है, न नेता। बेटी की शादी भी नहीं हो पा रही, क्योंकि घर ही नहीं है।
मीरा देवी
हर बार आंदोलन में आगे रहीं हूं, लेकिन जब पर्चा बांटा गया तो उनका नाम नहीं था। अब वह खुद को ठगा महसूस करती हैं। सड़क किनारे रहने वालों की कोई सुनवाई नहीं होती है।
रेखा देवी
जिंदगी कटाव और विस्थापन के बीच बीत रही है। चाहती हूं कि उनके बच्चों को पढ़ने का मौका मिले, लेकिन ठिकाना नहीं होने के कारण बच्चे भी शिक्षा से वंचित हैं।
मीना देवी
मुझे बार-बार फॉर्म भरने को कहा गया। लेकिन हर बार सिर्फ कागजी कार्यवाही हुई। सरकार ने हमें सिर्फ वोट बैंक समझा, इंसान नहीं। उम्मीद खो चुकी हूं।
पूनम देवी
मेरे पति बीमार हैं, लेकिन सरकारी अस्पताल दूर है। पुनर्वास के लिए कई बार गुहार लगाई, पर कोई मदद नहीं मिली। टिन की छत के नीचे पूरी जिंदगी सिमट कर रह गई है।
पथरी देवी
मुझे 2025 में पर्चा तो मिला, लेकिन जमीन अब तक चिह्नित नहीं हुई। हर हफ्ते प्रखंड कार्यालय जाती हूं, लेकिन जवाब “प्रक्रिया में है” ही मिलता है। अब थक चुकी हूं।
नीलम देवी
गांव के मुखिया ने भरोसा दिलाया था कि जल्द पक्का घर मिलेगा, लेकिन आज तक सिर्फ आश्वासन मिला। बेटा मजदूरी करता है, महीने में कई दिन भूखे रह जाते हैं।
मीरा देवी
मेरा परिवार तीन पीढ़ियों से कटाव का शिकार है। कभी पक्का घर नहीं देखा। हर चुनाव में नेता आते हैं, वादा करते हैं, पर जीतने के बाद कोई मुड़कर नहीं देखता।
तारा देवी
युवा हैं, लेकिन विस्थापन ने बेरोजगार और बेघर बना दिया। खेती की जमीन बह चुकी है। अब दिहाड़ी मजदूरी करते हैं और परिवार चलाते हैं।
योगेश मंडल
कभी सोचा नहीं था कि जिंदगी झोपड़ी में कटेगी। पहले खेत थे, घर था। अब परिवार समेत सड़क किनारे हैं। हर बार चुनाव में वादा मिलता है, पर घर नहीं मिलता।
बाबूलाल मंडल
बोले जिम्मेवार
बरारी विधानसभा में वर्षों से गंगा और कोसी नदी के कटाव से प्रभावित हजारों परिवारों की पीड़ा को हम भली भांति समझते हैं। बरारी विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक विस्थापन हुआ है, और हमारी प्राथमिकता इन परिवारों का स्थायी पुनर्वास सुनिश्चित करना है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में अब तक 5 हजार परिवारों को पर्चा दिया गया है और 4 हजार की प्रक्रिया चल रही है। मैं व्यक्तिगत रूप से प्रशासन पर निगरानी रख रहा हूं ताकि कोई भी पात्र परिवार वंचित न रहे। जल्द ही सभी विस्थापितों को आवास और मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी।
-विजय सिंह, विधायक, बरारी विधानसभा
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