बोले भागलपुर: लोक शिक्षकों की मांग, किसी भी विभाग में समायोजित करे सरकार
बिहार सरकार ने पिछले दो दशकों में शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए कई उपाय किए, लेकिन 2006 में बिना कारण बताये लोक शिक्षकों को सेवा से हटा दिया गया। इसके बाद से वे बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं। लोक...
बिहार सरकार द्वारा राज्य की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने के लिए पिछले दो दशकों में कई तरह की पहल की गई। इसके अंतर्गत लोक शिक्षण केंद्र के संचालन के लिए लोक शिक्षकों की बहाली की गई। जिनका मुख्य कार्य शिक्षा और विद्यालय से दूर बच्चों को विद्यालय एवं पठन-पाठन की गतिविधि से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाना था। सर्वशिक्षा अभियान के तहत वर्ष 2003 के सितम्बर माह में बिहार के सभी पंचायत की आमसभा में पास रोस्टर का पालन करते हुए ग्राम सेवक, मुखिया और पंचायत की कमेटी द्वारा सर्वसम्मति से आदेश पारित कर लोक शिक्षकों का नियोजन किया गया था। इसके बाद लोक शिक्षकों के प्रयास से 422 लोक शिक्षा केंद्र की शुरुआत की गई, जिसमें कुल 722 लोक शिक्षकों को नियुक्त किया गया।
बिहार प्रदेश लोक शिक्षक संघ भागलपुर इकाई के जिलाध्यक्ष घनश्याम भगत ने बताया कि सितम्बर 2006 में सरकार द्वारा लोक शिक्षकों को सेवा से हटा दिया गया। इस कारण उनके समक्ष बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हो गई। इसके बाद अपनी मांग को लेकर संघ की ओर से कई बार धरना-प्रदर्शन और न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाया गया। करीब दो दशक बीत जाने के बाद भी सरकार द्वारा लोक शिक्षकों का कहीं भी नियोजन या समायोजन नहीं किया गया। लोक शिक्षकों को आवासीय प्रशिक्षण दिया गया, जबकि शिक्षा मित्र को गैर आवासीय प्रशिक्षण मिला। बावजूद शिक्षा मित्र का नियोजन तो सरकार द्वारा कर दिया गया, लेकिन लोक शिक्षकों को सेवा से वंचित कर दिया गया।
लोक शिक्षकों द्वारा बनाए गये लोक शिक्षण केंद्र को सरकार ने नवसृजित प्राथमिक विद्यालय में बदल दिया। इस केंद्र को तैयार कर संचालन करने वाले लोक शिक्षक अपनी सेवा से वंचित होकर बेरोजगारी के कारण किसी तरह अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं। कलम और पेंसिल पकड़ने वाले शिक्षक हाथ में कूदाल थामने को विवश हो गये। बेहतर जिन्दगी का सपना लिए शिक्षण कार्य से जुड़े लोक शिक्षकों को बेरोजगारी के कारण खेतीबाड़ी, प्राइवेट नौकरी और मेहनत मजदूरी करनी पड़ रही है।
लोक शिक्षक संघ भागलपुर के सचिव रविकांत मंडल ने बताया कि उनलोगों को सरकार की ओर से कई बार आश्वासन तो मिला, लेकिन अब तक नौकरी नहीं मिल सकी है। हालांकि वर्ष 2014 में पत्र जारी कर राज्य सरकार ने बहाली करने से मना कर दिया। उन्होंने बताया कि लोक शिक्षक और शिक्षा मित्र की बहाली एक ही पत्रांक दिनांक और एक ही नियमावली के आधार पर हुई थी। लोक शिक्षकों की नियुक्ति बारह माह के लिए हुई थी और सरकारी शिक्षकों को मिलने वाली सभी तरह की सुविधा भी उन लोगों को मिलती थी। लोक शिक्षण केंद्र में मध्याह्न भोजन की व्यवस्था भी संचालित होती थी। उन्होंने बताया कि इसके साथ ही केंद्र से पास आउट होने या अन्य विद्यालयों में नामांकन कराने के लिए विद्यालय परित्याग प्रमाण पत्र भी जारी करने का अधिकार लोक शिक्षकों को था। विद्यालय संचालन के लिए प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी के साथ लोक शिक्षकों की संगोष्ठी भी आयोजित होती थी। बावजूद नई नियमावली को आधार बनाकर लोक शिक्षकों को शिक्षण कार्य और नौकरी से वंचित कर दिया गया।
लोक शिक्षकों ने पटना उच्च न्यायालय में शिक्षा मित्र की तरह उनलोगों को भी योगयता के आधार पर ग्रुप सी और डी में उम्र सीमा की छूट के साथ समायोजन करने की मांग की है। उन्होंने बताया कि उच्च न्यायालय द्वारा 27 मार्च 2025 को पारित आदेश की प्रति के साथ आवेदन देकर उनकी मांग पर मुख्यमंत्री से सहानुभूतिपूर्वक विचार करने की मांग की है।
बिना कारण बताए ही सेवा से हटा दिए गए लोक शिक्षक
बिहार प्रदेश लोक शिक्षक संघ भागलपुर इकाई के जिलाध्यक्ष घनश्याम भगत ने बताया कि बिना कारण बताए ही सरकार द्वारा लोक शिक्षकों को हटा दिया गया। जो उन सभी के भविष्य के साथ अन्याय है। उन लोगों द्वारा तैयार किए गए लोक शिक्षण केंद्र को नवसृजित प्राथमिक विद्यालय में बदलकर वहां दूसरे शिक्षकों की बहाली कर दी गई। सरकार ने उन लोगों के साथ सौतेला व्यवहार करते हुए उन्हें सेवा से बाहर किर दिया, जबकि शिक्षा मित्र का नियोजन कर दिया गया। उन्होंने बताया कि इसको लेकर जब उनलोगों आवाज उठाई तो उन्हें भी शिक्षा मित्र के समान नियुक्ति करने का आश्वासन दिया गया, जो कभी पूरा नहीं हुआ। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तत्कालीन शिक्षा मंत्री वृषिण पटेल ने भी कई बार लोक शिक्षकों को पंचायत शिक्षक बनाए जाने की बात कही, जबकि मुख्यमंत्री ने तो इसके लिए ब्लूप्रिंट तैयार होने और बहाली के लिए धैर्य रखने की बात कही थी। बावजूद उन लोगों को समायोजित नहीं किया गया।
किसी भी विभाग में लोक शिक्षकों को रखा जाए
बिहार प्रदेश लोक शिक्षक संघ भागलपुर इकाई के जिला संयोजक कुंज बिहारी सिंह ने बताया कि सभी लोक शिक्षक सरकार से कोर्ट के आदेश का सम्मान करते हुए किसी भी विभाग में समायोजित करने की मांग करते हैं, ताकि सभी लोक शिक्षकों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके और वे भी बेहतर जीवन जी सकें। पंचायत द्वारा नियुक्ति हुई लेकिन महज 36 माह में ही सरकार द्वारा सेवा से हटा दिया गया। तब से बेरोजगारी के बीच जैसे-तैसे कुछ भी काम करके परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं। बांस-बल्ली लगाकर, पेड़ के नीचे और सामुदायिक भवन में बैठाकर बच्चों को पढ़ाया, लेकिन प्रशिक्षण प्राप्त करने के बावजूद उन लोगों का समायोजन करने की बजाय सरकार ने उन्हें दर-दर भटकने के लिए मजबूर कर दिया। पूर्व में सरकार से आश्वासन मिला, लेकिन वर्षों से आंदोलन करने के बाद भी उन सभी का सरकारी सेवा में समायोजन नहीं किया गया।
डायट भवन और बीआरसी में मिला लोक शिक्षकों को प्रशिक्षण
बिहार प्रदेश लोक शिक्षक संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष ब्रज बिहारी तिवारी ने बताया कि क्षमता और योग्यता रहते हुए आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण लोक शिक्षक अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा नहीं दिला पा रहे हैं। सरकार की नीतियों के कारण वे सभी शिक्षक से मजदूर बन गए हैं। बिटिया सयानी हो रही है, तो अब उसके विवाह की भी चिंता उन्हें सताने लगी है। सर्वशिक्षा अभियान शिक्षा गारंटी योजना अंतर्गत लोक शिक्षक एवं शिक्षा मित्र की बहाली सरकार द्वारा वर्ष 2003 में की गई थी। लेकिन महज तीन वर्षों के बाद सरकार ने लोक शिक्षकों को सेवा से हटा दिया, जबकि शिक्षा मित्र को नियोजन कर दिया गया। सरकार की दोहरी नीति के कारण पिछले 18 वर्षों से लोक शिक्षक अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए जूझ रहे हैं। लोक शिक्षकों का आवासीय प्रशिक्षण डायट भवन एवं बीआरसी में सरकारी प्रशिक्षकों के बीच संपन्न हुआ। इसके लिए उनलोगों को प्रशिक्षण के दौरान केंद्र पर आने-जाने के लिए यात्रा-भत्ता के साथ हर तरह की सुविधा भी दी गई।
एक ही नियमावली से लोक शिक्षकों और शिक्षा मित्र की हुई नियुक्ति
बिहार प्रदेश लोक शिक्षक संघ भागलपुर इकाई के जिला सचिव रविकांत मंडल ने बताया कि लोक शिक्षकों की नियुक्ति और शिक्षा मित्र की नियुक्ति सरकार की एक ही नियमावली द्वारा की गई थी। लोक शिक्षकों की नियुक्ति वैसे स्थान पर की गई, जहां वंचित वर्ग के बच्चों की अधिक संख्या थी। सरकारी विद्यालयों से करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर लोक शिक्षण केन्द्र का संचालन किया जाता था। वर्ष 2003 में प्रत्येक केंद्र पर दो लोक शिक्षकों की नियुक्ति की गई थी, जिन्हें सरकारी विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों की तरह कई सुविधा का लाभ मिलता था। पहले लोक शिक्षकों का कार्यकाल 2 वर्ष निर्धारित था, लेकिन आंदोलन के बाद इसे बढ़ाकर तीन वर्ष तक कर दिया गया। लेकिन अचानक सरकार द्वारा बिना कोई नोटिस दिए सितंबर 2006 में सेवा से हटा दिया गया। जिससे उन सभी के पास रोजगार और भरण-पोषण की समस्या खड़ी हो गयी।
इनकी भी सुनिए
बिहार की साक्षरता दर को बेहतर करने में लोक शिक्षकों ने अहम भूमिका निभाई, लेकिन सरकार ने उनकी मेहनत के बदले बेरोजगारी का इनाम दिया। लोक शिक्षकों ने विद्यालय विहीन गांव और टोलों में वृक्ष के नीचे, चौपाल पर और विद्यालय से बाहर के बच्चों को शिक्षित करने का काम किया।
-विनय कुमार पासवान
लोक शिक्षकों ने अपने जीवन का बहुमूल्य दो से तीन वर्षों का समय बिहार की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने और बच्चों को विद्यालय से जोड़ने के लिए दिया। लेकिन सरकार ने काम लेने के बाद अचानक ही बिना किसी प्रकार के नोटिस या सूचना के सभी लोक शिक्षकों को हटा दिया।
-संतोष कुमार प्रशांत
वर्ष 2003 में नियोजित किए गये सभी लोक शिक्षकों का सरकार द्वारा अविलंब समायोजन करना चाहिए। इससे उन लोगों को नौकरी के साथ बेहतर जीवन निर्वाह करने में सहूलियत होगी। फिलहाल बेरोजगारी के कारण लोक शिक्षक भुखमरी के कगार पर आ गए हैं।
-अनुज कुमार
सर्व शिक्षा अभियान शिक्षा गारंटी योजना अंतर्गत लोक शिक्षक एवं शिक्षा मित्र की बहाली सरकार द्वारा वर्ष 2003 में की गई थी। सरकार की नीतियों के कारण लोक शिक्षक कलम छोड़कर मजदूर बन गए हैं। परिवार के भरण-पोषण के साथ अब बिटिया के सयानी होने पर उसके विवाह की भी चिंता सताने लगी है।
-अनूप कुमार लाल
लोक शिक्षकों ने कहीं पेड़ के नीचे तो कहीं बांस-बल्ली लगाकर और सामुदायिक भवन में बैठाकर बच्चों को पढ़ाया। प्रशिक्षण प्राप्त करने के बावजूद उन लोगों का समायोजन करने की बजाय सरकार ने उन्हें सेवा से हटाकर दर-दर भटकने के लिए मजबूर कर दिया। कई बार सरकार से आश्वासन तो मिला लेकिन नौकरी नहीं मिली।
-बाबूलाल मंडल
वर्षों से आंदोलन करने के बाद भी लोक शिक्षकों का सरकारी सेवा में समायोजन नहीं किया गया। जिसके कारण आर्थिक तंगी से कई लोक शिक्षक पलायन कर गए। परिवार के भरण-पोषण के लिए कई लोक शिक्षकों ने मजदूरी या प्राइवेट नौकरी का सहारा लिया। सरकार उनलोगों का अविलंब समायोजन करे।
-मो. बदरूद्दीन अंसारी
वर्ष 2003 में बिहार के तमाम पंचायत में आमसभा में पास कर तैयार रोस्टर का पालन करते हुए पंचायत के ग्राम सेवक पंचायत, मुखिया और पंचायत की कमेटी द्वारा सर्वसम्मति से लोक शिक्षकों का नियोजन किया गया था। लेकिन तीन साल बाद ही सरकार ने उन्हें हटा दिया।
-मो. आशिक हुसैन
बिहार सरकार ने बच्चों की शिक्षा के लिए लोक शिक्षकों की मदद से घर से बुलाकर बेटे-बेटियों को विद्यालय और शिक्षा से जोड़ने का कार्य किया। पहले बेटियों को पढ़ने भेजने में अभिभावक कतराते थे, लेकिन लोक शिक्षकों ने अपने भरोसे पर बच्चियों को भी लोक शिक्षण केंद्र से जोड़ने का काम किया, लेकिन सरकार ने उन्हें सेवा से हटा दिया।
-रीता देवी
लोक शिक्षकों ने अपनी मेहनत से ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों और बच्चों के बीच शिक्षा का माहौल बनाया। लेकिन आज हालत यह हो गयी कि उन्हें अपने बच्चों के भविष्य बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा हैं। आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण परिवार का भरण-पोषण, शिक्षा और बेटियों के विवाह के लिए सोचना पड़ता है।
-रीना राय
लोक शिक्षण केंद्र का नाम बदलकर सरकार ने नवसृजित प्राथमिक विद्यालय कर दिया और वहां दूसरे शिक्षकों की नियुक्ति कर दी गई, लेकिन 30 सितंबर 2006 को अचानक पंचायत ग्राम सेवक के माध्यम से सूचना मिली कि लोक शिक्षकों की सेवा समाप्त कर दी गई।
-ललन महतो
सरकार सबको समान अधिकार और अवसर मिलने की बात करती है। लेकिन लोक शिक्षकों को प्रशिक्षण देने के बाद भी सेवा से हटा दिया गया, जबकि उनकी जगह दूसरे शिक्षकों की नियुक्ति कर अब नियमावली बदल जाने का हवाला देकर समायोजन नहीं करने की बात कही जा रही है।
-राजीव कुमार रंजन
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तत्कालीन शिक्षा मंत्री वृषिण पटेल ने भी कई बार लोक शिक्षकों को पंचायत शिक्षक बनाए जाने की बात कही थी। तब मुख्यमंत्री ने इसके लिए ब्लूप्रिंट तैयार होने और जल्द बहाली होने की बात कही थी। बावजूद अब तक उन लोगों को समायोजित नहीं किया गया।
-रामलाल
शिकायतें
1. लोक शिक्षकों के समक्ष सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी की है। जिसके कारण परिवार का भरण- पोषण मुश्किल होता है।
2. सरकार के फैसले के कारण न सिर्फ लोक शिक्षक बल्कि उनके परिवार पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। कई पूर्व लोक शिक्षक भुखमरी की हालत में पहुंच गये हैं।
3. कई लोक शिक्षकों के बच्चे बड़े हो चुके हैं। उन्हें बेटियों की शादी के लिए भी आर्थिक समस्या की चिंता सता रही है।
4. सरकारी नौकरी के इंतजार में वर्षों बीत गए, जिससे समाजिक स्तर पर भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
5. महंगाई बढ़ती जा रही है और आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण हर छोटी बड़ी जरूरतों के लिए लोक शिक्षकों को एक बार सोचना पड़ता है।
सुझाव
1. पूर्व लोक शिक्षकों को बिहार सरकार द्वारा योग्यता के अनुसार किसी भी विभाग के ग्रुप सी या डी में समायोजन किया जाय।
2. शिक्षक के खाली पदों को भरने के लिए लोक शिक्षकों के समायोजन की प्रक्रिया जल्द पूरी हो।
3. बेरोजगारी की मार झेल रहे लोक शिक्षकों की आर्थिक स्थिति बदतर होती जा रही है, इसके लिए रोजगार के साधन मुहैया कराने की जरूरत है।
4. सभी लोक शिक्षक प्रशिक्षित हैं। इसलिए उन्हें शिक्षा विभाग द्वारा प्राथमिकता देकर समायोजित करने की जरूरत है।
5. सरकार द्वारा बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने वाले लोक शिक्षकों को भी सम्मान के साथ उनका समायोजन करना चाहिए।
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