सुपौल : धीरे-धीरे विलुप्त हो रही केले की प्रजाति
त्रिवेणीगंज में देसी केला की प्रजातियों की संख्या तेजी से घट रही है। पहले यहां मालभोग, बतीसा, चिनियां जैसी कई प्रजातियां थीं, लेकिन अब यह बिरले ही देखने को मिलती हैं। देसी केले के पौधे लगाना आसान है...

त्रिवेणीगंज । निज संवाददाता पूर्व में देसी केला के विभिन्न प्रजातियों के भरमार बाले इस क्षेत्र में चकाचौंध व आडम्बर युक्त इस दिखावटी युग में बहुत तेजी से घट रहा है। अब विरले ही कही-कहीं देसी प्रजाति के केला का पेड़ दिखाई देता है। यह बतादें कि इस क्षेत्र में मालभोग,बतीसा, चिनियां, मानकी, भोस, बागनर, सिंगापुरी सहित अन्य प्रजाति का केला पाया जाता था। इनमें से कई प्रजाति बिरले ही बचा है। यह बता दें कि देसी प्रजाति की केला की पेड़ लगाना बहुत ही आसान है। विशेष पोषक तत्व से भरे देसी केला बहुत ही स्वादिष्ट होता है।जानकारी के अनुसार देशी प्रजाति के केला के फल में आयरन,कैल्शियम,मैग्नेशियम, पोटासियम, विभिन्न प्रकार के विटामिन सहित अन्य कई पोषक तत्व अपेक्षाकृत ज्यादे मात्रा में पाया जाता है। कच्चा केला का सब्जी समय-समय पर खाने से गैस्ट्रिक सहित पेट के अन्य बिमारी से छुटकारा के लिए मददगार सिद्ध होता है।
वर्ष भर फलने बाला फल - इस केले में फल वर्ष में एक ही बार फलता है। जबकि अन्य केला वर्ष के सभी महीना एवं मौसम में फलता है। भगवान के पूजा में केला के पत्ता पर प्रसाद चढ़ाना शुभ माना जाता है। यह भी बतादें कि हरा छिलका बाला केला यदि 20 रुपए दर्जन तो मालभोग,मानकी, बतीसा सहित अन्य देशी प्रजाति के केला 40-50 रुपए दर्जन ग्रामीण क्षेत्र में भी आसानी से नहीं मिल पाता है। इस सम्बंध में सम्पर्क करने पर कृषि विभाग के तकनीकी पदाधिकारी पंकज कुमार ने बताया कि इलाके के किसान अब मुनाफे के दृष्टिकोण से केले के नए - नए प्रजातियों की खेती कर रहे हैं। लेकिन गांव में अभी भी खाने के लिए किसान देसी केले का रोपण सड़क किनारे, घरों के पीछे, दरवाजे आदि पर कर रहे हैं।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।