बोले जमुई : आधुनिक मशीनों के लिए ऋण और युवाओं को मिले प्रशिक्षण
रजक समाज के लोग आर्थिक तंगी और समस्याओं का सामना कर रहे हैं। साफ पानी की कमी, बिजली की बढ़ती दरें और आधुनिक मशीनों की चुनौती ने उनकी आमदनी को प्रभावित किया है। पारंपरिक कपड़ा धोने का काम अब मुश्किल...
दूसरे के कपड़ों को चमकाने वाले रजक समाज के लोग बदहाली और समस्याओं से घिरे हुए हैं। इस समाज को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। साफ पानी की किल्लत, बिजली की बढ़ती दर व आधुनिक मशीनों से मिल रही चुनौती ने उनकी आमदनी को काफी प्रभावित किया है। पहले जहां पूरे बाजार और शहर के लोग अपने कपड़े धुलवाने के लिए इसी समाज के लोगों पर निर्भर थे। वहीं अब बड़े-बड़े लॉन्ड्री और वाशिंग मशीनों ने उनके काम को प्रभावित किया है। हिन्दुस्तान के साथ संवाद के दौरान रजक समाज के लोगों ने अपनी परेशानी बताई।
35 सौ की आबादी है रजक समाज की जमुई जिले में
03 सौ से 500 रुपये तक प्रतिदिन होती है कमाई
01 लाख रुपये की मिले सहायता तो बढ़ेगा रोजगार
जमुई में धोबी जाति समाज की आबादी लगभग 3500 है, जो मुख्य रूप से कपड़ा धोने का काम करते हैं। किसी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं मिलने के कारण इनका परंपरागत व्यवसाय अब आगे नहीं बढ़ पा रहा है। नदियों में पानी नहीं रहने के कारण अब यह पूरी तरह से बोरिंग पर निर्भर हैं। पैसे के अभाव में कई ऐसे परिवार हैं जो बोरिंग नहीं करवा पाते। जैसे-तैसे पानी की व्यवस्था कर कपड़े साफ करने में लगे हैं। लगभग हर गांव में इस जाति के लोग रहते हैं। कहीं-कहीं उनकी आबादी अधिक होती है। धोबी समाज के लोग अपने पारंपरिक पेशे में लगे हुए हैं, जिसमें वे कपड़े धोकर अपनी आजीविका चलाते हैं। यह समाज अपनी मेहनत और समर्पण के लिए जाना जाता है, जो वर्षों से इस पेशे को निभा रहा है। आर्थिक तंगी और पूंजी नहीं रहने के कराण आज धोबी समाज के लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। बेरोजगार युवक पारंपरिक पेशा छोड़कर रोजगार की तालाश में पलायन करने को मजबूर हैं। आज स्थिति ऐसी है कि मोहल्ले में रहने वाले कई युवक परिवार छोड़कर कमाने के लिए बाहर चले गए। पेशे को प्रोत्साहित करने के लिए अबतक न तो सरकार की ओर से पहल की गई है और न ही सरकारी सहायता मिल रही है। इस समाज के लोगों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति का कई जगह पर जायजा लिया गया।
अब नदी में भी नहीं रहता पानी :
झाझा के पैरगाहा गांव में धोबी जाति की अच्छी संख्या है। हालांकि वहां के लोग ज्यादातर अपना व्यवसाय कर रहे हैं या नौकरीपेशा हैं। अन्य जगहों की स्थिति ऐसी नहीं है। कुछ लोग अपने परंपरागत पेशे में लगे हुए हैं। धर्मदेव रजक, नीतीश रजक, संजय रजक, दिग्विजय रजक, नरेश रजक, वकील रजक, नीरज कुमार रजक आदि का कहना है कि जमुई में कहीं भी धोबी घाट की व्यवस्था नहीं है। इस कारण इन्हें कपड़ा धोने में खासी परेशानी होती है। पहले किऊल नदी के विभिन्न घाटों पर कपड़ा धोने में आसानी होती थी। नदी में दो माह छोड़ सालों भर पानी होता था। बड़ी मात्रा में कपड़े लेकर वे लोग नदी पहुंचते थे। वहां उनका गधे को भी घास मिल जाती थी। कपड़ा सुखाने में भी समस्या नहीं होती थी। अब समस्या बढ़ गई है। वहीं, कपड़ा धोने के लिए बाजार में आये आधुनिक उपकरणों के कारण भी धंधा मंदा हो गया है। ड्राई क्लीनिंग के दौर में अन्य जाति के पूंजीपति लोगों का दखल बढ़ गया है।
कपड़ों में पॉलिश की कला होती जा रही लुप्त :
कपड़ों में पॉलिश रंग चढ़ने की कला अब धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है। अब लोगों की रुचि रंग चढ़ाने या पॉलिश करने में नहीं होती। पहले धोबी जाति के लोग अगर कहीं कपड़ा फट जाता था तो उसकी रफू भी कर लिया करते थे। इससे भी उनकी अच्छी खासी आमदनी होती थी। अब जमाना बदल गया है। कपड़ा फटने के बाद लोग दूसरा लेना पसंद कर लेते हैं। रफू वाले कपड़े अब कोई पहनना नहीं चाहता। ऐसे में उनके व्यवसाय पर असर पड़ा है। राकेश रजक ने बताया कि सिल्क आदि कपड़ों पर पॉलिश का काम होता था। इससे कपड़े मे नई तरह की चमक आती थी। अब यह काम इक्का-दुक्का लोग ही करते है। अधिकांश युवाओं को इसकी कोई जानकारी तक नहीं है। न ही कोई इसे सीखने की चाह रखता है। वहीं, पुराने जमाने में कपड़ों पर काला और लाल रंग भी चढ़ाया जाता था।
ज्यादातर परिवार तंगहाली में जी रहे :
ठंड या गर्मी की परवाह किए बगैर खुले आसमान के नीचे सुबह से शाम तक कपड़े धोने और सुखाने के पुश्तैनी पेशे से जुड़े धोबी समुदाय के ज्यादातर परिवार तंगहाली में जी रहे हैं। दिन भर पूरे परिवार के साथ कड़ी मेहनत के बावजूद उनकी इतनी कमाई नहीं होती है कि वह परिवार का पेट भरने के बाद कुछ राशि बचा सकें। महंगाई के इस दौर में कम कमाई में परिवार का पेट भरना मुश्किल हो जाता है। बारिश के दिनों में घाटों पर कपड़े सुखाने में परेशानी होती है। सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। धोबीघाटों पर रोशनी की व्यवस्था होनी चाहिए। ताकि धोबी समाज के लोग रात में भी अपना काम कर सकें। इसलिए संबंधित अधिकारी को इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके साथ योजनाओं की जानकारी भी शिविर लगाकर दी जानी चाहिए।
नई पीढ़ी पुश्तैनी पेशे से हो रही दूर :
अब दूसरे समाज के लोग भी इस व्यवसाय में आ गए है, जिससे परेशानी हो रही है। पहले यह व्यवसाय रजक समाज के लोगों तक ही सीमित था। इससे प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। लान्ड्री में कपड़े धोने के लिए 150 से 200 रुपए तक लेते है, जबकि धोबी वही काम 25 से 30 रुपए में कर देते हैं। इसके बावजूद लोग मशीनों में कपड़े धुलवाने को ज्यादा प्राथमिकता देने लगे हैं। इससे इनके पेशे को नुकसान हुआ है। ऐसे में नई पीढ़ी के लोग अपना पुश्तैनी काम छोड़ रहे हैं। दूसरे व्यवसाय से जुड़ रहे हैं या नौकरी की तैयारी करते हैं।
शिकायतें
1. नदियों और तालाबों पर धोबी घाट का निर्माण नहीं होने से परेशानी है। जल शोधन संयंत्र भी नहीं है।
2. कम ब्याज दर पर लोन की सुविधा और तकनीकी प्रशिक्षण की व्यवस्था नहीं है।
3. पारंपरिक कपड़ा धुलाई, पॉलिश और रंगाई में अब लोग रुचि नहीं लेते। लॉन्ड्री जाते हैं।
4. आधुनिक उपकरण नहीं होने की वजह से अधिक कमाई नहीं हो पाती।
5. सरकारी स्कूलों में शिक्षा की व्यवस्था बेहतर नहीं है। इससे बच्चे अच्छी पढ़ाई से वंचित हैं।
सुझाव
1. धोबी घाट में कपड़ा सुखाने और रखने के लिए पर्याप्त शेड की व्यवस्था हो।
2. धुलाई की दर भी बढ़ानी चाहिए, इसके रेट में भी एकरुपता हो।
3. धोबी घाट के आस-पास साफ-सफाई और कूड़ेदान की उचित व्यवस्था हो।
4. अत्याधुनिक लान्ड्री के कारण हो रहे नुकसान की भरपाई के लिए सरकारी सहायता दे।
5. नई पीढ़ी को इस व्यवसाय में बनाए रखने के लिए सरकारी योजनाएं चलाई जाएं।
सुनिए हमारी बात
सुबह पढ़ाई करने जाते हैं और उसके बाद घर जाकर कपड़े धोने, सुखाने और प्रेस करने के काम में परिवार की मदद करते हैं। यह ऐसा काम है जिसे पूरा परिवार मिलकर करते हैं।
-अजय कुमार रजक
हमने पूरा जीवन कपड़े धोने में बिता दिया। अब हालत इतनी खराब हो गई है कि परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है। मशीनों के चलते ग्राहक कम हो गए हैं। हमें काफी परेशानी होती है।
-बबीता देवी
पूरा परिवार मिलकर काम करते हैं तब भी रोजाना 400 से 500 रुपए तक की आमदनी हो पाती है। किसी तरह से गुजारा कर रहे हैं। मशीनें आने से हमें काफी परेशानी होने लगी है।
-बबली देवी
रजक, धोबी समाज के लोगों की गणना कर नि:शुल्क 10 लाख रुपए बीमा का लाभ दिया जाए, ताकि किसी तरह का घटना होने पर उनके परिवार के लोगों को आर्थिक मदद मिले।
-धर्मदेव कुमार
युवाओं को आगे बढ़ाने के लिए सरकार को शिक्षा व रोजगार के अवसर देने चाहिए। छोटे स्तर पर लॉन्ड्री खोलने के लिए सरकार की ओर से ऋण और सब्सिडी मिलनी चाहिए।
-दिनेश रजक
जहां कपड़ा साफ करने जाते है, वहां साफ-सफाई की गंभीर समस्या है। स्थानीय स्तर पर प्रशासन को धोबी घाट बनाना चाहिए। ताकि हमें कपड़े धोने से लेकर सुखाने तक की व्यवस्था मिल सके।
-कैलाश कुमार रजक
कपड़े धोने का काम स्वच्छता से जुड़ा है लेकिन बरसात के मौसम में मुश्किल हो जाता है। कपड़ा धोने के लिए धोबी घाट का अभाव है। धोबी घाट बनाने से हमें काफी सहूलियत मिलेगी।
-दिग्विजय रजक
पहले हमारा पूरा परिवार इसी काम से जुड़ा था लेकिन अब बच्चे दूसरे काम की ओर जा रहे हैं। मेहनत ज्यादा और कमाई कम होने से नई पीढ़ी इस पेशे में नहीं आना चाहती।
-नरेश रजक
कपड़ा धोना हमारा पेशा है। इस काम से बचपन से जुड़े हैं। भविष्य की चिंता सताती है लेकिन क्या कर सकते हैं। यही काम आता है तो अब इसे छोड़कर कहां जाएंगे। सरकार को हमारे समाज को लेकर योजना बनानी चाहिए।
-नीरज कुमार रजक
हमने इस पेशे को बचाने के लिए कई बार मांग की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। जल्द सुधार नहीं हुआ तो यह व्यवसाय खत्म हो जाएगा। हमारे समाज के लोगों को काफी परेशानी होगी।
-नीतीश रजक
हमारे पास धोने के लिए पर्याप्त कपड़े नहीं आ रहे है। लोग मशीनों में ही कपड़े घुलवाना पसंद करते हैं। अगर यही हाल रहा तो हमें कोई दूसरा रोजगार तलाशना पड़ेगा।
-प्रकाश रजक
कई वर्षों से केवल यही सुन रहे हैं कि इस समाज के लोगों का कायाकल्प होगा, लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ। सरकार को इस समाज के लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने चाहिए।
-राकेश रजक
हमारे समाज के लोग दशकों से इस काम में लगे हैं लेकिन अब यह व्यवसाय खत्म होने को है। सरकार को इन्हें आर्थिक सहायता व आधुनिक उपकरण देना चाहिए।
-रोहित कुमार
सुबह से उठकर कपड़ा धोने के काम में जुट जाते हैं, फिर सुखाकर उसे प्रेस कर ग्राहकों तक पहुंचाने में पूरा दिन निकल जाता है। इतनी कमाई नहीं होती कि ठीक से गुजारा हो सके।
-संजय कुमार
जहां कपड़ा धोने जाते हैं, वहां पर कोई सुविधा नहीं है। बरसात के समय तो स्थिति नारकीय हो जाती है। कपड़े सुखाने से लेकर उसको सुरक्षित रखने तक की व्यवस्था नहीं है।
-वकील रजक
धोबी घाट के आस-पास साफ-सफाई और कूड़ेदान की उचित व्यवस्था हो, ताकि हमलोगों को कपड़ा सुखाने में किसी प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करना पड़े।
-चंदन रजक
बोले जिम्मेदार
सरकार की योजनाओं का लाभ सभी वर्ग के लोगों को मिल रहा है। सरकारी योजना का लाभ लेने के लिए ऑनलाइन आवेदन करना पड़ता है। मुख्यमंत्री उद्यमी योजना महिला उद्यमी योजना समेत कई प्रकार के योजनाएं केंद्र व राज्य सरकार द्वारा संचालित है। इस योजना का लाभ जिले के काफी लोग ले रहे हैं। धोबी समाज के युवा इनका लाभ उठा सकते हैं। उद्योग विभाग हर समय लोगों की मदद के लिए व सलाह देने के लिए तत्पर है।
-मितेश कुमार शांडिल्य, उद्योग विभाग पदाधिकारी, जमुई
बोले जमुई फॉलोअप
अब तक चालू नहीं हुआ ट्रायज रूम, लटका है ताला
जमुई। सदर अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में इलाज के लिए आने वाले मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने के उद्देश्य से राज्य स्वास्थ्य विभाग द्वारा काफी तामझाम के साथ बीते 11 अप्रैल 2022 को सदर अस्पताल परिसर में एक्सीडेंट व इमरजेंसी वार्ड का लोकार्पण बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से किया गया था। इसके उपरांत तत्कालीन डीडीसी आरिफ अहसन द्वारा ट्रायज रूम का उदघाटन फीता काट कर किया गया था। लेकिन उदघाटन के बाद से लेकर अबतक ट्रायज रूम में ताला लटका हुआ है। एक्सीडेंट एवं इमरजेंसी विभाग का जीर्णोद्धार एवं सतत प्रशिक्षण एवं कौशल विकास कार्य राज्य स्वास्थ्य समिति केयर इंडिया एवं हार्वर्ड ह्यूमैनिटेरियन इनीशिएटिव के सहयोग से किया गया था। वहीं एक्सीडेंट व इमरजेंसी कक्ष को हाईटेक बनाने में लाखों रुपए खर्च भी किए गए ताकि मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हो सके। लेकिन स्वास्थ्य कर्मियों की कमी के कारण लोकार्पण के बाद से लेकर अब तक उक्त रूम में ताला लटका हुआ है। एक्सीडेंट व इमरजेंसी वार्ड को हाईटेक करने के बाद सदर अस्पताल में इलाज कराने आये मरीजों को सबसे पहले ट्रायज रूम में भर्ती कराया जाना है। इस रूम में सामान्य रूप से बीमार लोगों का इलाज चिकित्सक द्वारा करने के उपरांत, जिस तरह की स्थिति मरीज की रहेगी उसके अनुसार उसके लिए तीन जोन हरा, पीला व लाल बनाये गये थे। जिस तरह के मरीज रहेंगे उस तरह का इलाज चिकित्सक द्वारा उपलब्ध कराया जायेगा। इमरजेंसी वार्ड में आने वाले मरीजों को सबसे पहले इस रूम में ऑक्सीजन पाइप लाइन, मल्टी पारा कार्डियर मशीन, डीफिब्रिलेटर, लुबिलाईजर के साथ इमरजेंसी किट उपलब्ध करवाया गया था। इस कक्ष में भी ऑक्सीजन पाइप लाइन के साथ मल्टी पारा मॉनिटर सिस्टम की सुविधा दी गयी थी। इसके चालू नहीं होने से जिले के लोगों को काफी नुकसान हो रहा है। उन्हें प्राइवेट हॉस्पिटल जाना पड़ता है अथवा दूसरी जगह का रुख करना पड़ता है। यहां की समस्या को लेकर हिन्दुस्तान के बोले जमुई मुहिम के तहत 26 फरवरी 2025 को खबर का प्रकाशन किया गया था। अस्पताल प्रशासन और विभाग को इस दिशा में पहल करने की जरूरत है।
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