बोले सहरसा : परिवार बढ़ा पर रकबा नहीं, पुनर्वास के लिए मिले जमीन
सलखुआ प्रखंड के बहुअरवा पुनर्वास के लोग 39 वर्षों से जमीन और बुनियादी सुविधाओं का इंतजार कर रहे हैं। कोसी नदी की बाढ़ और कटाव से विस्थापित हुए 1025 परिवारों में से केवल 185 को पुनर्वास मिला है।...
सलखुआ प्रखंड के बहुअरवा पुनर्वास के लोग आज भी जमीन का रकबा बढ़ाने के इंतजार में हैं। 39 वर्ष पूर्व बसे पुनर्वास में तीन पीढ़ी के लिए रकबा कम पड़ रहा है। वंशवृक्ष बढ़ने लगा लेकिन जमीन कम रहने के कारण घर बनाने में भी परेशानी हो रही है। वर्षों से जमीन को लेकर फरियाद लगा रहे हैं पर कोई सुनने वाला नहीं है। कोसी नदी प्रभावित तीन गांव कोतवलिया, सितुआहा व बनगामा के लोग आज भी पुनर्वास के लिए जमीन का इंतजार कर रहे हैं। लोगों की मांग है कि उन्हें जमीन के साथ-साथ पुनर्वास में बुनियादी सुविधा भी मिले। पुनर्वास में रह रहे लोगों ने हिन्दुस्तान से दर्द बयां करते प्रशासन से पुनर्वास के लिए जमीन देने की मांग की।
19 सौ 86 ई. में बहुअरवा के कोसी प्रभावितों को किया गया था पुनर्वासित
01 सौ 85 परिवारों को बहुअरवा पुनर्वास में दी गई थी 34 एकड़ जमीन
03 गांवों सितुआहा, कोतवलिया और बनगामा की भी पुनर्वासित करने की है मांग
वर्ष 980 में कोसी नदी में आयी प्रलयकारी बाढ़ व नदी के तीव्र कटाव के कारण पूर्वी कोसी तटबंध के 120 से 122वें किलोमीटर तक हजारों परिवारों के घर, जमीन, जायदाद कोसी में विलीन हो गए थे। वे साढ़े चार दशकों के बाद आज भी विस्थापन का दर्द झेल रहे हैं। आज भी हजारों परिवार स्पर व रिटायर बांध पर जीवन गुजारने को विवश हैं। लेकिन 45 वर्ष बीतने के बाद भी सरकार द्वारा इन विस्थापितों का पुनर्वास नहीं कराया जा सका है।
जबकि पुनर्वास की मांग को लेकर समय-समय पर आंदोलन और धरना-प्रदर्शन होते रहे हैं। लेकिन किसी ने सुध नहीं ली। पूर्वी कोसी तटबन्ध के 120-122 किलोमीटर तक नदी ने अपना कहर बरपाया । जिसमें सबसे अधिक बहुअरवा, सितुआहा, कोतवलिया गांव के 1025 परिवारों का सबकुछ नदी में विलीन हो जाने से बेघर व अस्थायी हो गए हैं। तब कर्पूरी ठाकुर स्वयं स्थल निरीक्षण कर विस्थापित परिवार की स्थिति देख मर्माहत हुए व सदन में आवाज उठायी थी। उसके बाद साल 1987 में विस्थापित परिवारों को बसाने के लिए महज 34 एकड़ जमीन सुपौल पुनर्वास द्वारा आवंटित की गई। जिसमें उटेशरा पंचायत के बहुअरवा गांव के मात्र 185 परिवारों को पुनर्वासित किया गया था। उसके बाद भी बड़ी संख्या में विस्थापित परिवार पुनर्वास से वंचित रह गए, वे अब भी पुनर्वास कराने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
सबसे अधिक हैं कटाव से विस्थापित परिवार: साल 1980 में बाढ़ व कटाव से सलखुआ प्रखंड के हजारों परिवारों की जिंदगी प्रभावित हुई थी। करीब 20 से 25 हजार परिवार आज भी इस प्राकृतिक आपदा के कारण विस्थापित जीवन जीने को मजबूर हैं। यह कटाव न केवल उनका घर-बार या जमीन छीन ले गया, बल्कि उनके सपने, भविष्य की उम्मीदों को भी बहा ले गया था।
आज भी पुनर्वास की प्रतीक्षा में लगाए हैं आस
साढ़े चार दशक बीतने के बाद भी परिवार बढ़ता गया, लेकिन अभी भी हजारों परिवार ऐसे हैं जो पुनर्वास की प्रतीक्षा में हैं। उन्हें उम्मीद है कि सरकार व प्रशासन उनके साथ भी न्याय करेंगे और उन्हें भी सुरक्षित व स्थायी जीवन जीने का अधिकार मिलेगा। अब यह देखना होगा कि सरकार अपनी इस पहल को कितनी पारदर्शिता और गति से आगे बढ़ाती है, ताकि सलखुआ प्रखंड के ये विस्थापित अपने अधिकारों और सम्मान के साथ एक नई जिंदगी शुरू कर सकें। विस्थापित परिवार का कहना है जो ज़िन्दगी विस्थापन के बाद से पूर्वजों ने झेली वही ज़िन्दगी परिवार बढ़ने के बाद जीने को नई पीढ़ी भी विवश है। उन्होंने प्रशासन से आकलन व सर्वेक्षण कर स्थायी पुनर्वास की मांग की ताकि दुख दूर हो सकें।
शिकायत
1. प्रशासन द्वारा कोसी बांध पर बसे परिवार को हटाया जा रहा है
2. पुनर्वास स्थलों पर बुनियादी सुविधाओं की घोर कमी
3. रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं रहने से बनी हैपरेशानी
4. कोसी नदी के किनारे कटावरोधी योजनाओं प्रभावी रूप से लागू नहीं जिससे होते हैं विस्थापन
सुझाव
1. सरकार व प्रशासन विस्थापित परिवारों का सर्वेक्षण कराए
2. यह सुनिश्चित किया जाए कि कोई भी पात्र परिवार पुनर्वास योजना से वंचित न रह जाए
3. समुचित व्यवस्था कर बसाने की दिशा में पहल हो
4. पुनर्वास के लिए जमीन व मकान के लिए आवास लाभ दिया जाए
हमारी भी सुनें
1980 में आई बाढ़ से विस्थापित 1025 परिवारों में से मात्र 185 को पुनर्वास मिला। विस्थापित परिवार अबतक वंचित हैं।
उदय कुमार सिंह
कटाव ने सब कुछ छीन लिया। अब खेत में मजदूरी कर पेट पाल रहे हैं। मेरा दुःख दर्द सरकार तक नहीं पहुंच पाया है।
रामपुकार सिंह
नदी ने सब कुछ छीन लिया। योजनाओं का कोई लाभ नहीं मिल पाया। सिर्फ आश्वासन मिला। बच्चों का भविष्य अंधेरे में है।
रमेश सिंह
न कोई अधिकारी सुनता है, न नेता। स्थायी घर-बार नहीं रहने से काफी दिक्कत आ रही है। बच्चे के भविष्य की चिंता रहती है।
राजेश सिंह
हर वर्ष बाढ़ की विभीषिका झेलते हैं। टायर बांध पर झोपड़ी में रह रहे हैं, पुनर्वास नाम पर आश्वासन मिलता है।
गोविंद पोद्दार
छोटे बच्चों के साथ टूटी झोपड़ी में गुजर-बसर कर रहे हैं। रोज कमाने वाले परिवार को सरकार की कोई मदद नहीं मिली।
रामउदगार सिंह
विस्थापन ने शिक्षा का सपना तोड़ दिया। अब अपनी मां के साथ एक झोपड़ीनुमा फूस के नीचे रह रहै हैं। पुनर्वास की उम्मीद है।
प्रीतम रजक
बेटे पोते हो गए हैं, परिवार की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, तीन पीढ़ी बीतने को है, पुनर्वास से आज भी हम वंचित हैं, अब खुद को ठगा महसूस करते हैं।
दिनेश सिंह
खेत और घर कटाव में समा चुके हैं। अब कोसी बांध पर सड़क किनारे झोपड़ी में रहते हैं। सरकारी मदद के इंतजार में थक गये हैं।
रामप्रवेश चौधरी
पुनर्वास में सुदृढ़ सड़क नहीं है, बरसात में पानी जमा होता है। शुद्ध पेयजल भी नहीं मिल रहा है, सुविधा की घोर कमी है।
वीरेन्द्र सिंह
झोपड़ी हर साल बाढ़ में बह जाती है। फिर भी सरकार से कोई स्थायी समाधान नहीं मिला। बच्चों के साथ आसमान के नीचे रह रहे हैं।
रविन्द्र सिंह
मजदूरी कर जीवन गुजारते हैं, पुनर्वास के लिए कई बार गुहार लगा चुके हैं, पर कोई मदद नहीं मिली। फूस के घर में पूरी जिंदगी सिमट कर रह गई है।
कृष्ण रजक
अपने बच्चों के साथ झोपड़ी में गुजर-बसर कर रहे हैं। बरसात के समय घर में पानी घुस जाता है। स्थायी घर नहीं है।
राजकुमार ठाकुर
जमीन कटाव में चली गई। कई बार आवेदन देने के बाद भी न कोई पर्चा मिला, न पुनर्वास हुआ। रिटायर बांध पर रह रहे हैं।
बिट्टू बढ़ई
किसी तरह मजदूरी कर परिवार चला रहे हैं। पुनर्वास के लिए सिर्फ भरोसा मिला है परंतु अबतक पुनर्वास नहीं मिला है।
सुजीत
मजदूरी कर परिवार का जीवन यापन करते है, परिवार बढ़ने से काफी दिक्कत हो रही है। हर बार चुनाव में वादा मिलता है, पर पुनर्वास व आवास नहीं मिलता।
अनिल पोद्दार
बोले जिम्मेदार
कोसी नदी के प्रभावित लोगों को बसाने की सरकार की योजना पर कार्य हाेता है। पुनर्वास में रह रहे लोगों का समुचित ध्यान रखा जाता है। बसेरा के तहत अगर योग्य परिवार होंगे तो इन्हें अभियान बसेरा के तहत बसाया जाएगा और पुनर्वास आवंटित किया जाएगा। जिससे उन्हें परेशानी नहीं हो।
-वैभव चौधरी, जिलाधिकारी, सहरसा
जो भी परिवार बाढ़ या कटाव से विस्थापित होते हैं उन वंचित परिवारों की सूची बनाकर अंचल से भेजते हैं, फिर पुनर्वास के लिए सुपौल से भूमि आवंटित होती है। इसके लिए डाटा देख कर आगे कुछ हो सकता है। इस संबंध में जिन्हें भी परेशानी है उनके मिले आवेदन पर कार्रवाई की जाएगी।
-पुष्पांजलि कुमारी, अंचलाधिकारी, सलखुआ
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