बोले कटिहार: थम चुकी मनिहारी को मिले गति, लौटे विरासत
मनिहारी, गंगा किनारे बसा एक ऐतिहासिक नगर, अपने अतीत की छायाओं में खोया हुआ है। यह क्षेत्र पांडवों के वनवास से जुड़ा हुआ है और ऐतिहासिक धरोहरों से भरा है, लेकिन सरकार की उपेक्षा के कारण विकास की राह...
गंगा की शांत लहरों से बातें करता मनिहारी आज भी अपने सुनहरे अतीत की परछाइयों में खोया हुआ है। कभी जहाजों की सीटी से गूंजता यह घाट, कभी पांडवों के वनवास की कहानियों से सजी पगडंडियां और आज भी दरगाह पर सिर झुकाने वाले श्रद्धालुओं की भीड़... सब कुछ यहां वैसा ही है, बस नहीं बदला तो विकास का सपना। मनिहारी की मिट्टी में इतिहास, संस्कृति और उम्मीदें आज भी सांसें ले रही हैं, बस ज़रूरत है तो सरकार और समाज के साझा संकल्प की। जिले का मनिहारी, गंगा किनारे बसा एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व वाला नगर है, जो आज भी सरकार और जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा का शिकार है। महाभारत काल से जुड़ी कथाओं, पांडवों के वनवास और अर्जुन वाण वृक्ष की ऐतिहासिक मान्यता के साथ यह क्षेत्र प्राकृतिक सौंदर्य का अनुपम उदाहरण है। मनिहारी में जीतन शाह की पीर मजार, गुनगुनिया मस्जिद, महर्षि मेंही आश्रम और गोगा झील पक्षी विहार जैसे कई दर्शनीय स्थल हैं। कभी यह नगर पूर्वोत्तर राज्यों के लिए जल परिवहन का अहम केंद्र था, जहाँ हजारों मजदूर काम करते थे। बलायचंद्र मुखर्जी जैसे साहित्यकार की जन्मस्थली होने के साथ मनिहारी ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत से भरपूर है। सही विकास और सरकार के सहयोग से यह एक उभरता पर्यटन स्थल बन सकता है।
प्रस्तुति- मदन सिंह और ओमप्रकाश अंबुज
कटिहार। गंगा किनारे बसा मनिहारी नगर अपने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व के बावजूद आज भी विकास की राह ताक रहा है। कभी पूर्वोत्तर भारत का जल परिवहन केंद्र और व्यापारिक गतिविधियों का गढ़ रहा यह इलाका सरकार और जनप्रतिनिधियों की सुस्ती के कारण अपनी संभावनाओं के अनुरूप पहचान नहीं बना सका है। आज कटाव और पलायन का दंश झेल रहा है। शहरी क्षेत्र में विकास की रफ्तार तो शुरू हुई है मगर वह गंगा तट तक ही सिमट कर रह गया है। जबकि विकास की रफ्तार इस इलाके को नयी पहचान दिला सकता है। इसको लेकर कई बार आवाज उठी। मगर वह दब गया। फिलहाल इस इलाके में बाढ़-कटाव ही बड़ी समस्या है। दियारा क्षेत्र आज भी किसानों के लिए सुरक्षित नही है। इसके अलावे जलमार्ग को बेहतर किया जाए या फिर वाटर स्पोर्ट्स को बढ़ावा मिले तो इलाके में विकास की रफ्तार तेज होगी। इसके साथ ही गोगाबिल झील को विकसित करने से पर्यटन की संभावनाएं और रोजगार के अवसर भी बढ़ जाएंगे।
साहित्यिक महत्व का केंद्र रहा है यह क्षेत्र
मनिहारी का साहित्यिक महत्व भी कम नहीं है। बंगाली साहित्य के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार बलायचंद्र मुखर्जी उर्फ बनफूल का जन्म इसी धरती पर हुआ था। उनके लिखे उपन्यास 'हाटे बाजारे' के नाम पर आज भी कोलकाता से सहरसा तक ट्रेन चलती है।
उज्जवल भविष्य की बाट जो हो रहा है मनिहारी
इतना सब होने के बावजूद, मनिहारी आज भी अपने उज्ज्वल भविष्य की बाट जोह रहा है। सरकार और जनप्रतिनिधियों की सक्रियता से यह इलाका बिहार के पर्यटन मानचित्र पर एक चमकता हुआ नाम बन सकता है। गंगा का किनारा, ऐतिहासिक धरोहरें और सांस्कृतिक विरासत, सब कुछ यहां मौजूद है, बस इंतजार है तो विकास की ईमानदार पहल का।
ऐतिहासिक व भौगोलिक दृष्टि से भी है खास
मनिहारी न केवल ऐतिहासिक बल्कि भौगोलिक दृष्टि से भी खास है। झारखंड और पश्चिम बंगाल की सीमाओं से सटा यह नगर गंगा और महानंदा नदी के जरिए स्टीमर और नावों से तीन राज्यों के लोगों को आपस में जोड़ता रहा है। यहां का गोगाझील पक्षी विहार, महर्षि मेंही आश्रम, गुनगुनिया मस्जिद और जीतन शाह की पीर मजार सैकड़ों श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इतिहासकार बताते हैं कि नवाब सिराजुद्दौला के मौसेरे भाई शौकत जंग का किला भी यहीं नबाबागंज में स्थित था, जहाँ आज लहरू स्मारक उच्च विद्यालय संचालित है। वहीं, जीतन शाह की मजार पर हर धर्म के लोग माथा टेकते हैं और हर साल उर्स के मौके पर मन्नतों की गूंज से दरगाह परिसर गुलजार रहता है।
पूर्वोत्तर भारत का जल परिवहन का मुख्य केंद्र रहा है मनिहारी
एक समय था जब मनिहारी का कुटी घाट पूर्वोत्तर भारत के लिए जल परिवहन का मुख्य केन्द्र था। यहां से असम, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश तक मालवाहक और यात्री जहाजों का परिचालन होता था। पांच हजार से ज्यादा मजदूर इस कार्य से जुड़े थे। रेलवे ने इन मजदूरों के लिए कुलीपाड़ा और गांधीटोला में बस्ती बसाई थी, जो आज भी जीवित उदाहरण हैं।
महाभारत काल से जुड़ी है कई मान्यताएं
महाभारत काल से जुड़ी कई मान्यताओं ने मनिहारी को विशेष पहचान दिलाई। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण की मणि की माला खो जाने के कारण ही इस स्थान का नाम ‘मनिहारी पड़ा। पांडवों के वनवास और अज्ञातवास से जुड़े किस्से आज भी स्थानीय जनजीवन में जीवित हैं। मुजवर टाल में अर्जुन द्वारा धनुष-बाण छुपाने की कहानी तो कभी स्कूलों की किताबों में भी बच्चों को पढ़ाई जाती थी।
1915 में महर्षि मेंहीं ने यहां की थी आश्रम की स्थापना
1915 में महर्षि मेंही दास ने मनिहारी के कुटी घाट पर आश्रम की स्थापना की थी, जब भागलपुर के कुप्पाघाट का नाम भी नहीं सुना गया था। वहीं, अंग्रेजी हुकूमत के दौरान जमींदार रामबहादुर और सुरेंद्र नारायण सिंह की कोठी नील की खेती के लिए विख्यात थी।
सुझाव:
1. मनिहारी की ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहरों को विकसित कर पर्यटन मानचित्र पर लाया जाए।
2. घाटों पर पक्की सीढ़ियों, बैठने की व्यवस्था और साफ-सफाई सुनिश्चित की जाए।
3. पूर्वोत्तर भारत के लिए जहाज और स्टीमर सेवा को फिर से शुरू किया जाए।
4. पर्यटन और परिवहन के साथ स्थानीय लोगों को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए योजनाएं लागू हों।
5. नवाब कालीन किला, आश्रम, मस्जिद और पक्षी विहार जैसे स्थलों का रखरखाव और प्रचार-प्रसार किया जाए।
शिकायतें:
1. वर्षों से मनिहारी उपेक्षा का शिकार है, न सड़कों का विकास हुआ, न आधारभूत सुविधाएं सुधरीं।
2. हर साल गंगा की कटाव से सैकड़ों परिवार बेघर हो जाते हैं, लेकिन पुख्ता रोकथाम नहीं हो पाई।
3. दर्शनीय स्थलों पर शौचालय, रौशनी, सड़क और पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं।
4. जल परिवहन बंद होने के बाद हजारों परिवार बेरोजगार हो गए, अब तक वैकल्पिक रोजगार नहीं मिला।
5. जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की लापरवाही से मनिहारी की संभावनाएं आज भी अधूरी हैं।
हमारी भी सुनें
मनिहारी की पहचान इसके ऐतिहासिक महत्व और गंगा किनारे की खूबसूरती से है। लेकिन आज तक सरकार ने इसे संवारने की ओर गंभीर कदम नहीं उठाए। अगर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए तो यहां के युवाओं को रोजगार के अच्छे अवसर मिल सकते हैं।
मो. बेलाल
मनिहारी की ऐतिहासिक धरोहरें उपेक्षा का शिकार हैं। गंगा के किनारे बसे इस नगर में संभावनाएं बहुत हैं, मगर सुविधाएं न के बराबर। सरकार और प्रशासन को चाहिए कि इस क्षेत्र के विकास के लिए ठोस योजना बनाकर उसे जमीन पर उतारे।
कन्हैया सिंह
मनिहारी में धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों की भरमार है लेकिन सुविधाओं के अभाव में पर्यटक यहां रुकना नहीं चाहते। स्थानीय लोगों को रोज़गार भी नहीं मिल पा रहा। सरकार अगर ध्यान दे तो मनिहारी पर्यटन मानचित्र पर चमक सकता है।
पप्पू अंसारी
मनिहारी में गंगा घाट, पीर मजार और गोगाझील जैसे स्थल हैं, जो इसकी पहचान हैं। लेकिन सरकारी उपेक्षा से यह इलाका आज भी बदहाल है। यदि सरकार और स्थानीय जनप्रतिनिधि ईमानदारी से काम करें तो मनिहारी को नई पहचान मिल सकती है।
संतोष कुमार ओझा
मनिहारी सिर्फ इतिहास नहीं, भविष्य भी बन सकता है। यहां की सुंदरता, सांस्कृतिक विरासत और धार्मिक स्थलों को अगर सही तरीके से संवारा जाए तो पर्यटन उद्योग से हजारों लोगों को रोजगार मिल सकता है। लेकिन इसके लिए इच्छाशक्ति की जरूरत है।
अमरदीप पासवान
गंगा और महानंदा के किनारे बसे मनिहारी की छवि आज भी पुरानी यादों में सजी है। स्टीमर सेवा और जहाजों की हलचल गायब हो गई है। उम्मीद है कि सरकार यहां के व्यापार और पर्यटन पर ध्यान देगी और इसे विकसित करेगी।
राजीव चौधरी
मनिहारी में धार्मिक सौहार्द का अनूठा संगम है। यहां जीतन शाह का मजार हर धर्म के लोगों की आस्था का केंद्र है। प्रशासन अगर मूलभूत सुविधाएं दुरुस्त कर दे तो यह स्थान देशभर में अपनी पहचान बना सकता है।
मो. असिमुद्दीन उर्फ पुतुल
मनिहारी ऐतिहासिक धरोहरों से भरा पड़ा है लेकिन योजनाओं के अभाव में यहां पर्यटन का विकास ठप पड़ा है। यदि सरकार सड़कों, घाटों और सुरक्षा की व्यवस्था करे तो पर्यटक यहां बार-बार आना पसंद करेंगे और स्थानीय लोगों का जीवन बदलेगा।
रौनक अग्रवाल
मनिहारी की मिट्टी में इतिहास और संस्कृति की खुशबू रची-बसी है। पर आज के युवा रोजगार के लिए बाहर जाने को मजबूर हैं। अगर गंगा घाट का सौंदर्यीकरण और नाव-स्टैंड को व्यवस्थित किया जाए तो रोजगार और पर्यटन दोनों को बढ़ावा मिलेगा।
धनंजय यादव
मनिहारी के धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल वर्षों से उपेक्षित हैं। उर्स के दौरान हजारों श्रद्धालु आते हैं, मगर सफाई, लाइटिंग और सुविधाओं का घोर अभाव रहता है। अगर प्रशासन ध्यान दे तो यह जगह पर्यटन हब बन सकती है।
अब्दुल रसीद
मनिहारी का इतिहास गौरवशाली है लेकिन विकास की गाड़ी थमी हुई है। कटाव और बाढ़ जैसी समस्याएं हर साल लोगों की ज़िंदगी अस्त-व्यस्त कर देती हैं। सरकार को जल्द ही स्थायी समाधान निकालना चाहिए ताकि लोग सुरक्षित जीवन जी सकें।
अशोक साह
मनिहारी में गंगा, पीर मजार, गोगाझील जैसे स्थल हैं जो इसे पर्यटन के लिए उपयुक्त बनाते हैं। लेकिन सरकारी उदासीनता के कारण विकास की गति धीमी है। यदि सरकारी योजनाएं धरातल पर उतरें तो मनिहारी को नई पहचान मिलेगी।
दीपक शर्मा
मनिहारी के ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों को देखकर गर्व तो होता है लेकिन विकास की कमी दुख देती है। सरकार और स्थानीय प्रशासन को चाहिए कि इस नगर को पर्यटन के मानचित्र पर लाने के लिए गंभीर प्रयास करे और स्थानीयों को रोजगार दे।
मंटू साह
मनिहारी की पहचान गंगा और इतिहास से जुड़ी है। यहाँ के घाट, मस्जिदें, मजार और आश्रम धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर हैं। लेकिन सुविधाओं का घोर अभाव है। यदि इसे ठीक से संवारा जाए तो मनिहारी में पर्यटन से विकास संभव है।
हरेन्द्र सिंह
मनिहारी में गंगा किनारे बसे ऐतिहासिक स्थल आज भी अपनी असली पहचान की राह देख रहे हैं। हर साल उर्स मेले में हजारों लोग आते हैं, मगर सुविधा की कमी से परेशानी होती है। सरकार को इस क्षेत्र पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
महबूब
1955 मे मनिहारी आज से अधिक विकसित था । मनिहारी कुटी घाट से पांच राज्य असम,मेघालय, नागालैंड, मणीपुर तथा अरूणाचल प्रदेश के लिए मालवाहक तथा यात्री जहाजो का परिचालन रेलवे के द्वारा होता था। मालवाहक जहाज के लोडिंग अनलोडिंग मे पांच हजार से अधिक मजदूर काम करते थे।
प्रमोद झा
बोले जिम्मेवार
मनिहारी ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से एक अनमोल धरोहर है। गंगा किनारे बसा यह नगर पर्यटन की असीम संभावनाएं रखता है। बीते वर्षों में विकास की रफ्तार जरूर धीमी रही है, लेकिन अब हम पूरी प्रतिबद्धता के साथ मनिहारी को उसकी पुरानी पहचान दिलाने की दिशा में काम कर रहे हैं। हमारी कोशिश है कि यहां की ऐतिहासिक धरोहरों, धार्मिक स्थलों और प्राकृतिक सौंदर्य को संरक्षित कर पर्यटन को बढ़ावा दिया जाए ताकि स्थानीय लोगों को रोजगार के नए अवसर मिलें और मनिहारी का नाम देश-दुनिया में गर्व से लिया जाए।
राजेश कुमार उर्फ लाखो यादव
मुख्य पार्षद, नगर पंचायत, मनिहारी
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