बोले मुंगेर : 200 यूनिट मुफ्त बिजली दें तो रोशन होगा घर, बच्चे भी पढ़ेंगे
सरकार के प्रयासों के बावजूद मुंगेर जिले के आदिवासी समुदाय की स्थिति में सुधार नहीं हुआ है। उम्भीवनवर्षा गांव में 2000 परिवार गरीबी और बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं। भूमिहीनता, शिक्षा की कमी और...

सरकार के प्रयास के बावजूद मुंगेर जिले के बरियारपुर प्रखंड अंतर्गत रतनपुर पंचायत के उम्भीवनवर्षा गांव सहित जिले के अन्य आदिवासी बस्तियों की स्थिति बदतर है। उम्भीवनवर्षा सहित अधिकांश बस्तियों के आदिवासी समुदाय आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। जिले के विभिन्न प्रखंडों में हम आदिवासियों की जनसंख्या लगभग 50000 है। लगभग 2000 परिवार हैं। आदिवासी समुदाय गरीबी, अशिक्षा से जूझ रहे हैं। भूमि, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार की कमी गंभीर समस्या है। रोजगार की कमी के कारण इनकी आर्थिक स्थिति खराब है। संवाद के दौरान आदिवासी समाज के लोगों ने अपनी समस्या बताई।
02 हजार से अधिक आदिवासी परिवार रहते हैं जिले के विभिन्न प्रखंडों में
02 सौ घर हैं उम्भीवनवर्षा गांव में, यहां की जनसंख्या लगभग 1000 है
01 सौ आदिवासी परिवार भूमिहीन हैं उम्भीवनवर्षा गांव में
जिले के उभ्भीवनवर्षा गांव में ही आदिवासी समाज के लगभग 200 घर हैं, जिनमें लगभग 1000 लोग निवास करते हैं। इनमें से करीब 100 परिवार भूमिहीन हैं, जिन्हें आज तक जमीन का पर्चा नहीं मिला है। इनका जीवन अब भी जंगलों और पहाड़ों के आसपास, पारंपरिक जीवनशैली के साथ बीत रहा है। उन्होंने बताया कि बिहार में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद आदिवासियों की आर्थिक स्थिति और भी खराब हो गई है। पहले वे जंगल से पत्ते, लकड़ी, जंगली फल एवं लकड़ियां बेचकर जीवनयापन करते थे, लेकिन अब ये साधन भी सीमित हो गए हैं। गांव में बिजली तो पहुंची है, लेकिन केवल कुछ घरों में ही बिजली कनेक्शन है। वहां भी स्मार्ट मीटर लगाए गए हैं, जिनका भुगतान करना आदिवासी परिवारों के लिए मुश्किल हो रहा है। शाम ढलते ही रोशनी की कमी के चलते लोग जल्दी खाना बनाकर सो जाते हैं। ग्रामीण श्याम खैरा ने बताया कि, हम लोग 300 रुपये प्रतिदिन की मजदूरी करते हैं। इतनी कमाई में भोजन कपड़ा एवं दवाई की व्यवस्था करें कि, बिजली का बिल भरें? बिजली बिल नहीं भरने के कारण गांव के कई घरों में तो बिजली विभाग ने कनेक्शन ही काट दिया है। अगर सरकार 200 यूनिट बिजली मुफ्त दे दे, तो हमें रात के अंधेरे से छुटकारा मिलेगा और हमारे बच्चों भी रात में पढ़ सकेंगे।
हमारे लिए हो रोजगार की व्यवस्था:
ग्रामीण इंदु देवी ने बताया कि, हम आदिवासी मेहनती होते हैं और भीख मांगना पसंद नहीं करते। कई लोग दूसरों के खेतों में मजदूरी करके अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं। गांव में पहले जीविका समूह के माध्यम से 25-30 महिलाएं भोजपत्र निर्माण से जुड़ी थीं, लेकिन वन विभाग द्वारा जंगल से सागवान के पत्ते तोड़ने पर रोक लगाने के कारण यह समूह बंद हो गया और स्वरोजगार भी समाप्त हो गया। अब महिलाएं मजदूरी कर जीवन यापन कर रही हैं। ऐसे में प्रशासन एवं सरकार हमारे लिए रोजगार की व्यवस्था करे। उन्होंने कहा कि ऋषिकुंड का पानी हर जगह बिकता है। अगर सरकार यहां बोतल बंद पानी की पैकेजिंग यूनिट लगाए और हम लोगों को उसमें रोजगार दे, तो हमारे परिवार की स्थिति बेहतर हो सकती है।
आवास योजना का मिले लाभ :
ग्रामीण अनुज मरांडी ने बताया कि, गांव के अधिकांश आदिवासी परिवार झोपड़ियों में रहते हैं। केवल कुछ लोगों को ही आवास योजना का लाभ मिला है। जबकि, ग्रामीण मीरा देवी का कहना था कि चुनाव के समय नेता लोग हमारे पैर पकड़कर प्रणाम करते हैं और कहते हैं कि आवास दिला देंगे, लेकिन जीतने के बाद कभी झांकने तक नहीं आते। इसी तरह से अन्य ग्रामीणों ने कहा कि, हमारी अन्य कई समस्याएं हैं, इसके समाधान की आवश्यकता है। प्रशासन एवं सरकार को हमारे समाज के सर्वांगीण विकास की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।
प्रशासन एवं सरकार दिखाए संवेदनशीलता:
उम्भीवनवर्षा के हालात यह बताते हैं कि आज आदिवासी समुदाय जिले में आज भी पिछड़े हुए हैं। इनके सर्वांगीण विकास के लिए विशेष योजनाएं एवं अभियान चलाने की आवश्यकता है। ऐसे में यदि प्रशासन एवं सरकार संवेदनशीलता दिखाए और योजनाओं का सही क्रियान्वयन सुनिश्चित करे, तो इन आदिवासी परिवारों की हालत में सुधार आ सकता है। भूमिहीनों को पर्चा, मुफ्त बिजली, रोजगार और आवास जैसी बुनियादी सुविधाएं देना ही उनके जीवन को बेहतर बना सकता है।
शिकायत
1. उभ्भीवनवर्षा सहित अन्य आदिवासी बस्तियों में अनेक परिवारों के पास अपनी जमीन नहीं है और वे सड़क किनारे झोपड़ियों में रहने को मजबूर हैं।
2. आदिवासी समाज का शिक्षित न होना उनकी सामाजिक और आर्थिक प्रगति में सबसे बड़ी बाधा है।
3. कुछ घरों में बिजली तो है, लेकिन स्मार्ट मीटर और बिल भुगतान की असमर्थता के कारण कई घरों की बिजली कट चुकी है।
4. जंगल आधारित परंपरागत रोजगार, जैसे पत्ते तोड़ना, लकड़ी बेचना आदि पर रोक लगने से लोगों का स्वरोजगार एवं आजीविका का परंपरागत साधन छिन गया है।
5. अधिकांश आदिवासी परिवारों को आवास, बिजली, स्वास्थ्य और रोजगार योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
सुझाव
1. सरकार को भूमि सर्वेक्षण कर भूमिहीन परिवारों को जमीन आवंटित करनी चाहिए।
2. आदिवासी बस्तियों में निःशुल्क शिक्षा, छात्रवृत्ति और डिजिटल साक्षरता अभियान चलाकर शिक्षा स्तर सुधारा जाए।
3. आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को एक निश्चित सीमा तक मुफ्त बिजली देने की व्यवस्था की जाए, ताकि वे बुनियादी सुविधाओं से वंचित न हों।
4. ऋषिकुंड के पानी की बोतल पैकेजिंग यूनिट, हस्तशिल्प, वन उत्पाद आधारित उद्योग आदि स्थापित किए जाएं और स्थानीय लोगों को इसमें रोजगार दिया जाए।
5. लाभार्थियों की सही पहचान कर योजनाओं का लाभ सीधे जरूरतमंदों तक पहुंचाने के लिए पंचायतों की जवाबदेही तय की जाए।
सुनें हमारी पीड़ा
आदिवासी समाज के लोग योजनाओं से वंचित हैं। आदिवासी के प्रति लोगों की दोहरी मानसिकता है।
- अजय टुडू
ग्रामीण इलाकों में आदिवासियों को निम्न वर्ग में माना जाता है। विस्थापितों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है। यहां सिर्फ वोट की राजनीति होती है।
- राजू खैरा
उभ्भीवनवर्षा में 'अनमोल जीविका समूह' द्वारा भोजपत्र के निर्माण में 25 से 30 महिलाएं काम करती थीं, लेकिन वन विभाग ने सागवान के पत्ते तोड़ने पर रोक लगा दी। जिससे यह उद्योग बंद हो गया।
- जगदीश
आदिवासी क्षेत्रों में कुपोषण, बीमारियों और खराब सेवाओं की समस्याएं आम बात हैं। यहां अस्पताल भी नहीं है।
- सीमा
शराबबंदी कानून बिहार में लागू होने के बाद हमारी स्थिति दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है। हम लोग भूमिहीन हैं। डीएम साहब से आग्रह है कि हमें जमीन का पर्चा दिया जाए।
- सुनीता देवी
ऋषिकुंड का पानी बाहर सप्लाई होता है। अगर यहां पानी की फैक्ट्री खोली जाए, तो हम लोग उसमें बोतल पैकिंग का कार्य करेंगे और बाहर सप्लाई होगी। इससे बेरोजगारी दूर होगी।
- इंदु देवी
भूमि से वंचित होना, जबरन विस्थापन और भूमि पर अधिकार न होना आदिवासियों के लिए बड़ी समस्या है। भूमिहीन परिवारों को पर्चा भी दिया जाए और इंदिरा आवास का लाभ भी।
- उमा देवी
जाति और आवासीय प्रमाण पत्र बनाने में बहुत परेशानी होती है। राज्य सरकार इसके लिए कोई सुगम उपाय निकाले।
- जोगिंदर
हम लोगों के पास रोजगार का कोई साधन नहीं है। पहले सखुआ के पत्ते जंगल से तोड़ कर लाते थे और भोजपत्र बनाकर बेचते थे, लेकिन अब वन विभाग ने इस पर रोक लगा दी है।
- श्याम खैरा
जिंदगी जीने के लिए अब हम लोगों के पास कोई साधन नहीं बचा है। शराबबंदी कानून लागू होने के बाद हमारी आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई है। ना तो हमें राशन कार्ड मिला और ना ही वृद्धा पेंशन।
- सुधीर कुमार
आदिवासी समाज के लोग योजनाओं के लाभ से वंचित हैं। आदिवासियों के प्रति लोगों की दोहरी मानसिकता है। जिले में लोग आदिवासियों को हीन दृष्टि से देखते हैं।
- मीरा देवी
बिजली का बकाया होने पर विभाग द्वारा बिजली का तार काट दिया गया है। चार घर अंधेरे में हैं। 300 रुपये की मजदूरी में घर चलाएं, बच्चों को पढ़ाएं या बिजली बिल भरें? हमें 200 यूनिट बिजली मुफ्त मिलनी चाहिए।
- मीला देवी
विधवा हुए 10 साल बीत चुके हैं, लेकिन सरकार की सुस्त व्यवस्था के कारण अभी तक विधवा पेंशन का लाभ नहीं मिला है।
- चंपा देवी
वन विभाग की ओर से रोक लगाए जाने के बाद लकड़ी और पत्तल का व्यवसाय ठप हो चुका है। शराबबंदी लागू हो जाने के बाद यहां के अधिकतर लोग भुखमरी के कगार पर पहुंच चुके हैं, जिससे लोग बाहर पलायन कर रहे हैं।
- मकिया देवी
हम लोग सड़क किनारे लगभग 40 साल से रह रहे हैं, लेकिन अभी तक हमें जमीन का पर्चा नहीं दिया गया। शौचालय की सुविधा भी नहीं मिली है। बिजली बिल तक भर पाना मुश्किल हो गया है। सरकार से आग्रह है कि बिजली बिल माफ किया जाए।
- मुकेश कुमार
आदिवासी दशकों से जंगल की जमीन पर खेती-बाड़ी कर जीवन यापन कर रहे हैं, लेकिन आज तक उन्हें पर्चा नहीं मिला है।
- अनुज मरांडी
बोले प्रतिनिधि
छोटी उभ्भीवनवर्षा में आवास की समस्या गंभीर है। यहां के लोग भूमिहीन हैं। सरकार को चाहिए कि ऐसे भूमिहीन परिवारों को जमीन का पर्चा प्रदान करें। इनके उत्थान के लिए सहकारिता विभाग की ओर से सहयोग मिलना चाहिए। इन लोगों को पत्तल और दातुन जैसे पारंपरिक उद्योगों को बढ़ावा देकर आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। शिक्षा की भी यहां अत्यधिक कमी है। पूर्व में इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर शराब का कारोबार चलता था, लेकिन स्थानीय जनप्रतिनिधियों और प्रशासन के सहयोग से इसे बंद कर दिया गया। अब सरकार इन लोगों को रोजगार से जोड़कर मुख्यधारा में लाने का कार्य करे, जिससे उनका जीवन बेहतर बन सके।
-मनोज कुमार सिंह, संयोजक, ऋषिकुंड विकास मंच
बोले जिम्मेदार
उम्भीवनवर्षा के सभी आदिवासियों को सरकारी योजनाओं के तहत सभी प्रकार का लाभ दिया जायेगा। जिनको जमीन नहीं मिली है उन्हें जमीन दी जायेगी। वहां सर्वे का काम हो चुका है। थोड़ी-बहुत कागजी प्रक्रिया के बाद उन्हें बासगीत पर्चा दिया जायेगा। रोजगार सृजन के लिये वहां की महिलाओं को जीविका से जोड़ने की प्रक्रिया की जायेगी। यदि वहां पेयजल की समस्या है तो उसे फौरन दूर किया जायेगा। आदिवासी बहुल इलाके के लोगों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिये हर संभव कार्य जल्द शुरू किये जाएंगे।
-अवनीश कुमार सिंह, जिलाधिकारी, मुंगेर
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