केंचुआ खाद: वर्मी पिट बनाने में पिछड़ा नालंदा, 20.40 लाख करना पड़ा सरेंडर
केंचुआ खाद: वर्मी पिट बनाने में पिछड़ा नालंदा, 20.40 लाख करना पड़ा सरेंडरकेंचुआ खाद: वर्मी पिट बनाने में पिछड़ा नालंदा, 20.40 लाख करना पड़ा सरेंडरकेंचुआ खाद: वर्मी पिट बनाने में पिछड़ा नालंदा, 20.40 लाख...

केंचुआ खाद: वर्मी पिट बनाने में पिछड़ा नालंदा, 20.40 लाख करना पड़ा सरेंडर मार्च के अंत तक लगनी थी 565 इकाइयां, महज 157 ही धरातल पर उतरीं चयन के बाद भी वर्मी पिट बनाने में किसानों ने नहीं ली रुचि एक यूनिट की स्थापना पर किसान को 5 हजार सरकार दे रही थी प्रोत्साहन राशि फोटो वर्मी पीट : गिरियक में बनायी गयी वर्मी पिट के पास खड़ा किसान। बिहारशरीफ,कार्यालय प्रतिनिधि। केंचुआ खाद (वर्मी कम्पोस्ट) उत्पादन में नालदा को आत्मनिर्भर बनाने की योजना धरातल पर नहीं उतर सकी। जैविक खेती प्रोत्साहन योजना से मार्च तक जिले में 565 वर्मी कम्पोस्ट इकाइयां स्थापित होनी थीं। विडंबना यह कि महज 157 इकाइयां ही स्थापित हो सकीं। हद तो यह कि तय लक्ष्य से पिछड़ने के कारण योजना के लिए आवंटित कुल 28 लाख 25 हजार रुपए में से 20 लाख 40 हजार रुपए विभाग को सरेंडर करना पड़ा। जबकि, स्थापित इकाइयों के विरुद्ध सिर्फ सात लाख 85 रुपए ही खर्च हो पाया। योजना के तहत एक किसान को अधिकतम तीन इकाइयों की स्थापना पर अनुदान देने का प्रावधान किया गया था। प्रति इकाई आठ से 10 हजार लागत आनी थी। 50 फीसद (पांच हजार) यानी अधिकतम 15 हजार की प्रोत्साहन राशि सरकार देती। ईंट, बालू और सीमेंट से बनी वर्मी कम्पोस्ट पीट की 10 फीट लम्बाई, तीन फीट चौड़ाई तो ढाई फीट ऊंचाई रखनी थी। पक्का वर्मी कम्पोस्ट यूनिट को पूरी तरह से वर्षारोधी छप्पर (फूस, करकट अथवा अन्य) से ढंकना था। जिले में समान्य वर्ग के 444, अनुसूचित जाति के 113 तो अनुसूचित जनजाति के आठ किसानों को योजना का लाभ मिलना था। स्वीकृति पत्र मिला पर नहीं किया निर्माण: शुरुआत में विभाग द्वारा इसका खूब प्रसार-प्रसार किया गया तो किसानों ने आगे बढ़कर आवेदन दिया। तय लक्ष्य के विरुद्ध चयनित किसानों को स्वीकृति पत्र जारी कर दिया गया। बाद में कुछ किसान मानकों के अनुसार वर्मी पीट का निर्माण पूरा कर अनुदान के भुगतान के लिए दावा पेश किया। जबकि, अधिकतर किसान तरह-तरह के बहाने बनाने लगे। ऐसे किसानों को जागरूक करने में विभाग फेल हुआ तो लक्ष्य का महज 28 फीसद वर्मी इकाइयां ही स्थापित हो सकीं। जबकि, 72 फीसद किसानों ने वर्मी पीट का निर्माण ही नहीं कराया। एक यूनिट से सालाना 25 सौ किलो खाद तैयार : अच्छी तरह से देखभाल करने पर एक वर्मी पिट से सालाना करीब 25 सौ किलो वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया जा सकता है। उस हिसाब से अगर 565 पीट में केंचुआ खाद तैयार होने लगते है तो सालाना 14 लाख किलो से अधिक वर्मी खाद का उत्पादन होता। बाजार में प्रति बैग (50 किलो) साढ़े चार से पांच सौ किलो वर्मी खाद की कीमत है। 45 से 60 दिनों में खाद तैयार होती। कम्पोस्ट को बेचकर किसान अच्छी कमाई कर सकते। लेकिन, योजना धरातल पर ही नहीं उतरी। गोबर गैस प्लांट भी महज एक बने: योजना में गोबर गैस प्लांट को भी शामिल किया गया था। जिले में तीन गैस प्लांट स्थापित होने थे। इसके लिए इच्छुक किसानों का चयन कर वर्क ऑर्डर जारी किया गया था। लेकिन, महज एक किसान ही गोबर गैस प्लांट स्थापित किया। जबकि, दो प्लांट का निर्माण नहीं पूरा हुआ। नतीजा, इस योजना की राशि को भी वापस करनी पड़ी। प्रति गोबर गैस प्लांट 22,500 रुपए का अुनदान देने का प्रावधान था। कहते हैं अधिकारी: तय लक्ष्य के विरुद्ध चयनित किसानों को वर्मी पिट बनाने के लिए स्वीकृति पत्र दिया गया था। लेकिन, तय तिथि तक मात्र 157 किसानों ने ही इकाइयां स्थापित की। वैसे किसानों को अनुदान का भुगतान कर दिया गया। जबकि, शेष राशि को लाचारी में वापस करना पड़ा। दुर्गा रंजन, नोडल पदाधिकारी, जैविक खेती प्रोत्साहन योजना
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