बिहार DGP ने कसा शिकंजा, ट्रांसफर के बाद केस का प्रभार नहीं सौंपा तो होगी यह कार्रवाई, NOC भी जरूरी
- केस का चार्ज जबतक उनके पास रहता है उसे किसी अन्य पुलिस पदाधिकारी को सौंपा नहीं जा सकता। स्थानांतरण वाली जगह पर जाने के बाद पुलिस अफसर अपनी सहुलियत से केस का प्रभार सौंपने आते हैं। कई बार तो महीनों का समय लग जाता है।

आपराधिक मामलों की जांच में तेजी लाने के लिए बिहार पुलिस ने बड़ी पहल की है। लंबित मामलों की बढ़ती संख्या और अनुसंधान की धीमी गति के मद्देनजर डीजीपी विनय कुमार ने अनुसंधनकर्ताओं का शिकंजा कसा है। जिले के अधीन या बाहर तबादले के बाद पुलिस पदाधिकारी को कांड के अनुसंधान का प्रभार थानेदार को सौंपना होगा। साथ ही अनापत्ति प्रमाण पत्र भी लेना होगा। अमूमन देखा जाता है कि तबादले के बाद दारोगा या जमादार कांड का अनुसंधान सौंपे बगैर चले जाते हैं।
केस का चार्ज जबतक उनके पास रहता है उसे किसी अन्य पुलिस पदाधिकारी को सौंपा नहीं जा सकता। स्थानांतरण वाली जगह पर जाने के बाद पुलिस अफसर अपनी सहुलियत से केस का प्रभार सौंपने आते हैं। कई बार तो महीनों का समय लग जाता है। तबतक ना तो मामले की जांच आगे बढ़ती है ना ही चार्जशीट की जा सकती है। ऐसे में जांच बेवजह लंबित रहता है। डीजीपी ने अपने आदेश में कहा है कि ऐसी सूरत पीड़ित पक्ष के साथ आमलोगों में पुलिस के प्रति असंतोष पनपता है।
जिले से बाहर तबादले पर एसपी से लेंगे एनओसी
यदि किसी पुलिस अफसर का तबादला जिले से बाहर इकाई या अन्य जिले में होता है तो उन्हें केस का प्रभार सौंपने से संबंधित एनओसी वहां के एसपी से लेना होगा। ऐसा नहीं करने पर वेतन नहीं मिलेगा। एनओसी के आधार पर ही उन्हें आगे का वेतन दिया जाएगा।
जांच लंबित न रहे, इसके लिए की गई नई व्यवस्था
बेवजह कांड की जांच लंबित न रहे इसके लिए डीजीपी ने नई व्यवस्था बनाई है। अब अनुसंधानकर्ता पुलिस पदाधिकारी चाहे दारोगा हो या फिर जमादार, उन्हें स्थानांतरण के बाद केस का चार्ज थानेदार को सौंपना होगा। सभी कांडों का प्रभार सौंपने का अनापत्ति प्रमाण पत्र थानेदार से मिलने के बाद ही वह दूसरी जगह पर योगदान करेंगे। जिले के अंदर हुए तबादले में यह व्यवस्था लागू होगी। इसके बाद ही संबंधित पुलिस अधिकारी के वेतन निकासी की कार्रवाई होगी।