किसानों का मक्के की खेती की ओर बढ़ा रुझान, पाट की खेती को बॉय-बॉय
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ठाकुरगंज, एक संवाददाता। सीमांचल में किसानों का रुझान मक्के की खेती की ओर काफी बढ़ रहा है। वहीं कभी पटवा की खेती में अपनी पहचान बनाने वाला सीमांचल के किसान अब पटवा की खेती किनारा करने को मजबूर हो रहे हैं। इसका मुख्य कारण पटवा की खेती में समय, पैसा, मेहनत ज्यादा लगने के बावजूद उचित मूल्य नही मिल पाना है। वहीं मक्के की खेती में लागत ,समय, मेहनत कम होने के बावजूद पैसे की आमदनी ज्यादा होती है। इस संबंध में सरकारी आंकड़े की बात करें तो प्रखंड कृषि समन्वयक पदाधिकारी धर्मवीर कुमार बताते हैं कि सीमावर्ती क्षेत्र में विगत चार पांच वर्षों से किसानों का रुझान मक्के की खेती की ओर काफी बढ़ गया है ।वही धीरे-धीरे क्षेत्र से पाठ की खेती विलुप्त होती जा रही है। प्रखंड कृषि पदाधिकारी श्री कुमार ने बताया कि तीन वर्ष पूर्व सीमावर्ती क्षेत्र में 25 सौ एकड़ पाट की खेती की जाती थी। दूसरे वर्षीय घटकर 2000 एकड़ में सिमट गई। वित्तीय वर्ष पाठ की खेती इस क्षेत्र में एक हजार एकड़ से भी कम हुई, इस वर्ष तो 300 से 400 एकड़ में पाठ की खेती सिमट कर रह गई है। ठीक इसके विपरीत आज से पांच वर्ष पूर्व सीमावर्ती क्षेत्र में किसानों द्वारा 250 से 300 एकड़ मक्के की खेती की गई यह बढ़ते बढ़ते वर्तमान समय में मक्के की खेती सीमावर्ती क्षेत्र में बढ़कर लगभग 6000 एकड़ में फैल गई है। कृषि समन्वयक ने बताया कि सिर्फ पाट ही नहीं गेहूं की खेती के बदले भी क्षेत्र के किसान मक्के की खेती की ओर अपना रुख कर रहे है। पाट की खेती में किसानों को ज्यादा खर्च और ज्यादा मेहनत के साथ उचित मूल्य भी नहीं मिल पाता था। वही मक्के की खेती में कम मेहनत और कम लागत के बावजूद अच्छे मुनाफे होने के कारण किसान पाठ और गेहूं की खेती छोड़ मक्के की खेती की ओर अपनी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। पोठिया प्रखंड के मिर्जापुर के कृषक जुल्फीकार अली बताते है कि पाट की खेती घाटे की खेती है। पाट में लागत अधिक आय बहुत कम है। सबसे बड़ी समस्या मजदूरो का है। एक एकड़ पाट तैयार करने तक 40 मजदूरों की आवश्यकता होती है।जबकि एक एकड़ में 15 से 20 मजदूर ही काफी है। ठाकुरगंज प्रखंड के चेंगमारी निवासी उदनलाल गणेश के साथ डांगी बाड़ी के कृषक चमक लाल सिंह ,संजीव कुमार सिंह,परमेश्वर किस्कू बताते हैं कि जुट की खेती किसानो के लिए,पिछले 15 वर्षों से घाटे का सौदा साबित हो रही है। एक एकड़ में जुट बड़ी मुश्किल से 16 से 20 मन का उपज हो सकता है ।जिसका बाजार मूल्य फिलहाल लगभग 40 से पचास हजार रुपये होता है। जबकि एक एकड़ मकई की खेती में कम से कम 40 क्विंटल मकई की उपज होगा जिसके बर्तमान बाजार मूल्य 70 हजार रुपये है। सबसे बड़ी बात है मकई तीन से चार महीने में जबकि पाट 6 माह का खेती है।
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