रोजगार सेवकों का मानदेय मजदूरों से भी कम, वेतन-भत्ते में वृद्धि की टूट रही आस
मुजफ्फरपुर में पंचायत रोजगार सेवक सरकार की योजनाओं को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन उनका मानदेय मजदूरों से भी कम है। रोजगार सेवकों का कहना है कि उन्हें स्थायी कर्मचारी का दर्जा...
मुजफ्फरपुर। जिलों में सरकार की महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा में मजदूरों को रोजगार देने से लेकर पशु गणना, जनगणना तक के काम पंचायत रोजगार सेवकों के जिम्मे है, लेकिन मानदेय मजदूरों से भी कम है। रोजगार सेवकों का कहना है कि पांच सौ रुपए रोज तो एक मजदूर कमा लेता है, जबकि 12 हजार प्रतिमाह मानदेय पर हमलोग काम कर रहे हैं। चार सौ रुपए रोज की इस कमाई से महंगाई के दौर में दाल-रोटी पर भी आफत है। बिहार कॉमन इंट्रेंस एग्जामिनेशन से नियुक्त होकर आए हैं, लेकिन नाते-रिश्तेदारों को वेतन बताने में शर्म आती है। जिले में अधिकतर रोजगार सेवकों को जिला ग्रामीण विकास अभिकरण के साथ काम करते हुए 18 साल हो चुके हैं, लेकिन उनको सेवा-शर्त के अनुसार न तो सालाना इंक्रीमेंट दिया गया और न राज्य सरकार का स्थायी कर्मचारी का दर्जा मिला। लगातार आवाज उठाने के बाद भी कोई पहल नहीं होती देख अब इनकी उम्मीद टूट रही है।
जिले की पंचायतों में सरकार की योजनाओं को धरातल पर उतारने में अहम जिम्मेवारी निभाने वाले पंचायत रोजगार सेवक उपेक्षा का शिकार हैं। इनका कहना है हमलोगों से काम तो स्थायी कर्मचारियों की तरह लिये जाते हैं, लेकिन वेतन और सुविधाएं सम्मानजनक नहीं मिलतीं। पंचायत रोजगार सेवक संघ के जिलाध्यक्ष अवधेश कुमार, कोषाध्यक्ष प्रकाश कुमार कहते हैं कि उन लोगों की बहाली वर्ष 2007 में बिहार कॉमन इंट्रेंस एग्जामिनेशन के माध्यम से की गई थी। बहाली के लिए 2006 में ही विज्ञापन प्रकाशित किया गया था, जिसके अनुसार सेवा शर्तों में हर साल 3.5 प्रतिशत से लेकर 6 प्रतिशत तक की वेतन वृद्धि का प्रावधान किया गया था, लेकिन आज तक इस प्रावधान के तहत सरकार सालाना इन्क्रीमेंट नहीं दे पाई है, जबकि इसके लिए खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पहल करते हुए अधिकारियों को निर्देशित किया था।
संघ के जिलाध्यक्ष ने बताया कि इसी राज्यस्तरीय परीक्षा के आधार पर विभाग में कनीय अभियंताओं की भी बहाली की गई थी। उनको विभाग ने समायोजित कर लिया, लेकिन हमारे समायोजन को लेकर विभागीय अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं। पंचायत सेवकों के पद पर समायोजन को लेकर विभागीय मंत्री के अलावा सचिव ने भी 2014 में ही अनुशंसा की थी। उन्होंने रोष जताते हुए कहा कि जिन शिक्षकों की बहाली उन्होंने पंचायत शिक्षकों के तौर पर की थी, वे अभी अब राज्य सरकार के स्थायी कर्मचारी बन चुके हैं। स्थायी नहीं किए जाने के कारण कम मिल रहे पैसों की वजह से हमें और हमारे परिवार को समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जिले के 200 से अधिक पंचायत रोजगार सेवकों के सामने भुखमरी की स्थिति बनी हुई है।
पंचायत से प्रखंड की भागदौड़, मगर भत्ता नहीं :
रविशंकर सिंह, मुकेश कुमार, सुबोध कुमार ने बताया कि बहुत से तकनीकी कार्यों के लिए इंटरनेट का उपयोग करना पड़ता है। इन सबका भी किसी प्रकार का कोई भत्ता नहीं दिया जाता। हमें ऑन स्पॉट ही सारे डाटा मोबाइल के माध्यम से अपलोड करने होते हैं, लेकिन सुदूर देहातों में कमजोर इंटरनेट हमारे काम में बड़ी बाधा है। मजबूरन हर दिन डाटा अपलोड कराने के लिए प्रखंड मुख्यालय आना पड़ता है, लेकिन इसके लिए भी कोई भत्ता नहीं मिलता है। यह खर्च भी हमें अपनी जेब से करना पड़ता है।
निधन पर आश्रितों को नहीं मिली मुआवजा राशि :
पंचायत रोजगार सेवक श्याम कुमार, खुशी, मनीष कुमार राय कहते हैं कि दो साल पहले एक निजी बैंक में हमारा सैलरी अकाउंट खुलवाया गया। बैंक और विभाग के बीच हुए अनुबंध के अनुसार काम के दौरान मौत होने पर संबंधित पीआरएस के आश्रित को 35 लाख का मुआवजा मिलना था। इस दौरान हमारे दो साथियों की असामयिक मृत्यु हो गई, लेकिन उनको बैंक ने किसी भी तरह का भुगतान आज तक नहीं किया है। अब हमपर किसी दूसरे बैंक में सैलरी खाता खोलने का दबाव बनाया जा रहा है। जब सरकार के अधिकारी ही एक निजी बैंक से एमओयू के अनुसार मुआवजा नहीं दिला पाए, ऐसे में कैसे विश्वास किया जाए कि दूसरे बैंक में खाता खोलवाने पर वह नियमों का पालन करेगा या अधिकारी नियमत: कार्रवाई कर पाएंगे।
कार्यस्थल पर बना रहता है असुरक्षा का डर :
विक्रम कुमार, श्याम प्रियदर्शी और प्रतिमा कुमारी ने कहा कि कार्यस्थल पर किसी भी तरह की सुविधा नहीं दी गई है। खासकर ग्रामसभा के आयोजन के समय कहने को सुरक्षाकर्मियों की प्रतिनियुक्ति के आदेश जारी हो जाते हैं, लेकिन समय पर वे तैनात नहीं किए जाते हैं। कई बार मामला गाली-गलौज से होते हुए मारपीट तक पहुंच जाता है। सात महीनों से मजदूरों का भुगतान नहीं हो पा रहा है। इसको लेकर मजदूर प्रतिदिन गाली- गलौज कर रहे हैं। कभी-कभी तो मारपीट तक की नौबत आ जाती है। सूचना देने के बाद भी अधिकारी कुछ नहीं करते हैं।
रोजगार सेवकों को स्थायी कर्मचारी का दर्जा दे सरकार
सरकार हमारी सेवा शर्तों में संशोधन करते हुए नये सिरे से हमें समायोजित किए जाने की राह आसान करे। इसके अलावा हमें स्थायी कर्मचारी का दर्जा देते हुए उसी के अनुरूप वेतन एवं भत्तों का निर्धारण हो। जब पंचायत शिक्षकों के साथ सरकार ऐसा कर सकती है, तो हमारी नौकरी को भी उसी तरह से स्थायी करने के उपाय करने के लिए नियम बनाए।
-अवधेश कुमार, जिलाध्यक्ष, बिहार राज्य पंचायत रोजगार सेवक संघ, मुजफ्फरपुर इकाई
नई सेवा शर्तों के आधार पर किया जाए समायोजन
केंद्र सरकार ने जिला ग्रामीण विकास अभिकरण को भंग कर दिया है। उसकी जगह पर राज्य सरकार बिहार ग्राम्य विकास समिति के नाम से योजनाओं का संचालन कर रही है। ऐसे में अब सरकार को चाहिए कि नई सेवा शर्तों के आधार पर हमारा समायोजन करे। इससे सरकार को वेतन वृद्धि देने में समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा।
-प्रकाश कुमार, कोषाध्यक्ष, बिहार राज्य पंचायत रोजगार सेवक संघ, मुजफ्फरपुर इकाई
सरकार के पास रखेंगे रोजगार सेवकों की बात :
राज्य सरकार की सहानुभूति पंचायत रोजगार सेवकों के साथ है। सरकार का हिस्सा होने के नाते हम उनको भरोसा दिलाते हैं कि उनकी समस्याओं को लेकर ग्रामीण विकास विभाग के मंत्री से बात करेंगे। मुख्यमंत्री से भी इसपर चर्चा की जाएगी। रोजगार सेवकों की मांगें जायज हैं। खासकर नई महंगाई दर के अनुसार रोजगार सेवकों की वेतन वृद्धि को लेकर पहल करेंगे।
-प्रेम कुमार, सहकारिता मंत्री, बिहार
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