5जी के जमाने में ढो रहे 2जी मशीन,दूसरों को अनाज बांटते मगर खुद आधे पेट गुजारा
मुजफ्फरपुर के राशन डीलरों की स्थिति अत्यंत खराब है। उन्हें महज 300 रुपये रोज कमीशन मिलता है, जबकि मजदूर 500 रुपये कमा रहे हैं। ई-पॉश मशीनें बार-बार खराब होती हैं और सड़ा-गला अनाज भेजा जाता है। कोरोना...

मुजफ्फरपुर। जिले के 11 लाख से अधिक लाभुक भूखे पेट न सोए, इसके लिए खुद आधे पेट गुजारा कर समय पर राशन बांटते हैं। बदले में मजदूर से भी कम महज 300 रुपया रोज कमीशन पाते हैं। यह दर्द है जिले के राशन डीलरों का। उनका कहना है कि राशन वितरण के लिए 5जी के जमाने में 2जी ई-पॉश मशीन ढो रहे हैं। इसमें बार-बार खराबी आती है। गोदाम से बिना वजन किए सड़ा-गला अनाज भेजा जाता है, जिसके कारण लाभुकों का कोपभाजन हम ही बनते हैं। कमीशन की जगह 30 हजार मानदेय और राशन वितरण में हो रहीं समस्याएं दूर हो जाएं तो हम भी खुशहाल जिंदगी जी सकें। भारत सरकार ने जनवितरण प्रणाली दुकानों को ई-पॉश मशीन से जोड़ कर बेहतर पहल की। वन नेशन वन कार्ड की परिकल्पना के तहत लाभुक पूरे देश में कहीं से भी राशन ले सकते हैं, मगर इसको व्यावहारिक रूप देने में जनवितरण वितरण प्रणाली के राशन विक्रेताओं को कितनी परेशानियों से जूझना पड़ता है, इसकी सुध कोई नहीं लेता। जिले के राशन डीलरों का आरोप है कि आवाज उठाने पर अधिकारियों के भयादोहन का सामना करना पड़ता है।
नागेंद्र पासवान, नीतीश कुमार व अन्य राशन विक्रेताओं ने कहा कि पहले 70 रुपये क्विंटल कमीशन मिलता था। काफी आवाज उठाने के बाद इसे 90 रुपये किया गया, मगर राशन बांटने के बाद औसतन जितनी आमदनी होती है, वह दिहाड़ी मजदूर से भी कम है। आज एक मजदूर भी पांच सौ रुपये प्रति दिन कमा रहा है, उसकी तुलना में सौ क्विंटल राशन वितरण करने वाले को 300 रुपये रोज मिल रहा है। इसमें सभी तरह के मेंटेनेंस भी करने हैं। ऐसे में हमलोगों के सामने आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है। राशन वितरण के अलावा सरकार केवाईसी, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना समेत कई अन्य कार्य करवाती है, मगर उनका पारिश्रमिक नहीं मिलता।
कोरोना काल में मृतकों के आश्रित को मुआवजा नहीं :
फेयर प्राइस डिलर्स एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष अरुण कुमार चौधरी का कहना है कि जिले में 11 लाख से अधिक राशन कार्डधारियों के 38 लाख से अधिक पारिवारिक सदस्य हैं। इन्हें प्रत्येक माह जिले के 23 सौ विक्रेता राशन उपलब्ध कराते हैं, मगर खुद बदहाल हैं। सरकार ने हमलोगों को आश्वासन देकर कोरोना काल में काम कराया। तब जिले के कई विक्रेता कोरोना पॉजिटिव हुए, जिनमें दर्जनों ने दम तोड़ दिया। आश्रितों को मुआवजा तो दूर, कोई सुध लेने तक नहीं पहुंचा।
मशीन में खराबी का हम ही भुगतते खामियाजा :
चंदन कुमार, विजय रजक आदि राशन विक्रेताओं का कहना है वर्ष 2018 में सरकार ने ई-पॉश मशीन लागू कर मैनुअल वितरण पर रोक लगा दी। उस समय 2जी का जमाना था। आज 5जी का समय है, मगर मशीन को अपग्रेड नहीं किया गया। यह बार-बार खराब होती है, जिसका खामियाजा हमलोगों को ही भुगतना पड़ता है। इसका मेंटेनेंस खर्च विभाग नहीं देता है। मशीन की मरम्मत में दो हफ्ते लगते हैं, तब तक राशन लैप्स कर जाता है।
मशीन में शो कर ही रहा बंट चुका राशन :
एसोसिएशन के महामंत्री नागेन्द्र पासवान ने बताया कि कोराना के समय राशन दुकानों पर दंडाधिकारी प्रतिनियुक्त कर मैनुअल राशन वितरण कराया गया। कहा गया कि बंट चुके राशन को बाद में मशीन से शून्य कर दिया जाएगा, मगर यह राशन अब भी शो करता है। जिलाध्यक्ष अरुण कुमार चौधरी ने आरोप लगाया कि गोदाम से राशन बगैर वजन किए भेजा जाता है। बोरे में सड़ा-गला चावल उपलब्ध कराया जाता है। जनवितरण प्रणाली से जुड़ी ये समस्याएं जल्द दूर हों।
बोले जिम्मेदार :
जिले के जनवितरण प्रणाली विक्रेताओं की समस्याओं को विभाग के सचिव और विभागीय मंत्री तक पहुंचाऊंगा। साथ ही मुख्यमंत्री को भी अवगत कराऊंगा। विक्रेताओं को सम्मानजनक मानदेय मिले, इसकी मांग रखूंगा। जिले के गोदाम प्रबंधक हर हाल में 15 तारीख तक विक्रेताओं तक राशन उपलब्ध कराए, इसके लिए विभागीय सचिव से बात की जाएगी। राशन विक्रेताओं को सही वजन और गुणवत्तापूर्ण राशन मिले, इसके लिए विभाग के मंत्री से बात की जाएगी। कोरोना काल का राशन ई-पॉश मशीन पर दिखने की जो समस्या है, उसमें विक्रेता के साक्ष्य को देखते हुए शून्य करने की पहल की जाएगी। वहीं, जिलाधिकारी से प्रत्येक माह राशन विक्रेताओं के साथ एक बैठक करने को कहा जाएगा, ताकि विक्रेता अपनी समस्या रख सकें।
-केदार प्रसाद गुप्ता, पंचायती राज मंत्री
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