आरजेडी से गठबंधन के सवाल को टाल गए पवन खेड़ा, बिहार में कांग्रेस का क्या है प्लान?
क्या बिहार में लालू यादव की आरजेडी के साथ कांग्रेस है। ये सवाल इसलिए उठ रहा रहा क्योंकि जब कांग्रेस के मीडिया विभाग के चेयरमैन पवन खेड़ा से राजद से गठबंधन का सवाल पूछा गया, तो वो टाल गए। उन्होने कहा कि समय आने पर इसका निर्णय होगा। चुनाव में अभी 8 महीने का समय बाकी है।

अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के मीडिया विभाग के चैयरमैन पवन खेड़ा ने बिहार में राजद से गठबंधन के सवाल पर कहा कि समय आने पर इसका निर्णय होगा। चुनाव में अभी 8 महीने का समय बाकी है। रविवार को पटना में पत्रकारों से बातचीत में पवन खेड़ा ने बार- बार सवाल पूछे जाने पर भी गठबंधन को लेकर कुछ नहीं कहा। बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावारु और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश कुमार की मौजूदगी में पवन खेड़ा ने कहा कि हमें बिहार के स्वास्थ्य की चिंता है। सीएम के स्वास्थ्य की भी चिंता है। भाजपा साजिश कर पता नहीं कौन सी फाइल पर साइन करवा रही है। पार्टी ने विस चुनाव के लिए बिहार बदलो - सरकार बदलो का नारा दिया है।
पवन खेड़ा ने कहा कि कांग्रेस की विचारधारा को मजबूती से मीडिया में रखने की आवश्यकता है। हमारी वैचारिक लड़ाई के लिए हमें नैतिक रूप से सुदृढ़ और व्यवस्थित ढंग से भाजपा के झूठ का पर्दाफाश करना है। जनहित के मुद्दों को लेकर उन्होंने कहा कि जनता के सवालों को लेकर और पार्टी के विचारों, नीतियों और हमारे शीर्ष नेतृत्व की सोच को हमें रखने की आवश्यकता है। रविवार को प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय सदाकत आश्रम में पार्टी के प्रवक्ताओं, मीडिया पैनलिस्ट और संभावित प्रवक्ताओं के प्रशिक्षण के लिए बिहार संवाद प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया था।
आपको बता दें पहले सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस 70 से एक भी कम सीट पर राजी नहीं हैं। कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता कह चुके हैं कि बिहार में कांग्रेस A पार्टी के तौर पर चुनावी मैदान में कूदी है। यही नहीं बड़े भाई और छोटे भाई की थ्योरी को भी कांग्रेस ने नकार दिया है। पार्टी का मानना है कि महागठबंधन में कोई बड़ा और छोटा नहीं होता है। एक विचारधारा होती है, तभी सभी दल एकजुट होते हैं। हालांकि अब कांग्रेस ये साफ कर चुकी है कि महागठबंधन के घटक दलों के बीच सीट बंटवारे में पार्टी इस बार ज्यादा सीट पर चुनाव लड़ने की के बजाय जीत की अधिक संभावना वाली सीट हासिल करने की कोशिश करेगी। इससे पार्टी ज्यादा से ज्यादा सीट पर जीत हासिल कर सकेगी।
हालांकि अभी तक गठबंधन के घटक दलों के साथ सीट बंटवारे पर कोई चर्चा नहीं हुई है, पर इतना साफ है कि कांग्रेस इस बार सीट की संख्या बढ़ाने के बजाय जीत पर ज्यादा ध्यान देगी। पार्टी को गठबंधन में पसंदीदा सीट मिलती है, तो कम सीट पर चुनाव लड़ सकती है। वर्ष 2020 चुनाव में कांग्रेस 70 में सिर्फ 19 सीट पर जीत दर्ज कर पाई थी। इन चुनाव में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के बाद पार्टी को गठबंधन की हार के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था। जबकि पार्टी को मिली 70 में से 45 सीट एनडीए का मजबूत गढ़ थी। पिछले चार चुनाव से इन सीट पर पार्टी लगातार हार रही थी।
वहीं, कांग्रेस की परंपरागत कई सीट लेफ्ट के हिस्से में आई थी। जिसका लेफ्ट को फायदा मिला और उसका प्रदर्शन बेहतर रहा था। इससे पहले वर्ष 2015 के चुनाव में कांग्रेस ने सिर्फ 41 सीट पर किस्मत आजमाई थी और 27 पर जीत दर्ज की थी।