जिले के किसान भूल गए साठी धान की फसल की खेती
सीतामढ़ी के किसान गरमा सीजन में साठी धान की खेती करना लगभग भूल चुके हैं। मौसम की अनिश्चितता और सिंचाई के साधनों के अभाव के कारण कई किसान अब कम या मध्यम अवधि वाले धान की प्रजाति को प्राथमिकता दे रहे...

सीतामढ़ी। जिले के किसान गरमा सीजन में धान की खेती करना लगभग भूल ही चुके हैं। गरमा सीजन में साठी धान की खेती की जाती है। साठी धान के चावल का उपयोग लोग कई तरह से करते हैं। साठी के चावल का मार - भात अब लोगों को सपना हो गया है। बुजुर्ग बताते हैं कि साठी के चावल का मार-भात इतना मीठा होता था कि मन तृप्त हो जाता था। मात्र 60 से 65 दिनों में साठी धान की फसल उपज जाता था। इसके बाद खाली खेत में धान की बुवाई भी कर ली जाती थी। मौसम की अनिश्चितता तथा पर्याप्त सिंचाई साधनों के अभाव के कारण किसानों ने कई फसलों को लगाना छोड़ दिया है। हालांकि गेहूं के आच्छादन दर में वृद्धि हुई है। वर्षा नहीं होने से अब कई किसान रबी के सीजन के मसूर, चना आदि फसलों की खेती नहीं कर रहे हैं। किसान दशरथ महतो, राम निरंजन सिंह, शत्रुघ्न सिंह, रविंद्र शर्मा बताते हैं कि गरमा धान पहले दो बीघा में लगते थे। पोखर- तालाब से उसकी सिंचाई कर लेते थे। बलुआही मिट्टी वाले खेत में मड़ुआ की बुआई करते थे। सावन माह में यह तैयार हो जाता था। अरहर की भी अच्छी उपज हो जाती थी। वर्षा के अनिश्चितता के कारण अब कम या मध्यम अवधि वाले धान के प्रभेदों की बुआई किसान पसंद नहीं करते हैं।
क्या कहते है वैज्ञानिक :
कृषि विज्ञान केंद्र के वरीय सह प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राम ईश्वर प्रसाद ने बताया कि मध्य जून तक मानसून के झमाझम नहीं बरसाने के कारण लंबी अवधि वाले धान के प्रभेदों की बुवाई में अच्छी उपज नहीं हो पाती है। 145 से 150 दिनों में उपजने वाले नाटा मंसूरी जैसे धान को काफी पानी चाहिए। किसान अब 120 से 130 दिनों में उपजने वाले धान की प्रजाति को प्राथमिकता दे रहे हैं। कहते हैं की मौसम चक्र में परिवर्तन का फसलों की बुवाई पर अब गहरा असर पड़ा है। इसकी सबसे अधिक मार भदई फसलों पर दिख रही है।
किसान उमेश सिंह, रामपुकार सिंह, विश्वनाथ महतो, विमल साह बताते हैं कि अब आद्रा नक्षत्र में धान का बिचड़ा डालने का प्रचलन बढ़ा है। रोहिणी नक्षत्र के दौरान खेतों में नमी नहीं रहने की वजह से पंपिंग सेट से भी बिचड़ा डालना मुश्किल होता जा रहा है। बिछड़ा डालने के 15 से 20 दिनों के बाद उसकी बुआई कर ली जाती है। किसान राजेश्वर सिंह बताते हैं कि पहले मूंग, ढैचा, सनई उपजता था। इससे किसानों को आमदनी भी हो जाती थी और खेत के लिए हरी खाद भी उपलब्ध हो जाता था। मौसम के प्रतिकूल रहने की वजह से खेती का पुराना सिस्टम समाप्त होता जा रहा है।
धार्मिक कार्य में साठी चावल का उपयोग :
बुजुर्ग सुरेंद्र झा, सुकेश सिंह, बिंदा भगत, राजेश ठाकुर ने बताया कि साठी के चावल का धार्मिक महत्व भी है। इसका उपयोग धार्मिक कार्यो में किया जाता है। चार दिवसीय कार्तिक व चैती छठ में साठी के चावल का प्रसाद बनता है। साठी के चावल का खीर खरना पूजा के दिन छठी मईया को चढ़ता है। साथ साठी के चावल के आटा का ठेकुआ व कसार बनता है।
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