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बोले सीवान : रोजगार के लिए ग्रामीण इलाकों की महिलाओं को चाहिए प्रशिक्षण

सीवान जिले की ग्रामीण महिलाएं अब आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही हैं। वे छोटे उद्योग जैसे सिलाई, मसाला और मुर्गी पालन में रुचि रखती हैं। लेकिन प्रशिक्षण और पूंजी की कमी उनके रास्ते में बाधा बन रही है।...

Newswrap हिन्दुस्तान, सीवानSun, 4 May 2025 11:35 PM
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बोले सीवान : रोजगार के लिए ग्रामीण इलाकों की महिलाओं को चाहिए प्रशिक्षण

गांवों का माहौल शहर से बिल्कुल अलग है। शहर में रहने वाली महिलाएं स्कूल, कॉलेज, कोचिंग, ब्यूटी पार्लर जैसे संस्थानों में जाकर पैसे कमा रही हैं। वे आर्थिक तौर से आत्मनिर्भर बन रही हैं। अब शहरों की तरह गांवों की महिलाएं भी खुद का कारोबार करना चाहती हैं। इसके लिए वे कदम बढ़ा तो चुकी हैं। लेकिन, उन्हें प्रशिक्षण, आर्थिक मदद व सामाजिक सहयोग दरकार है, जो उन्हें नहीं मिल पा रही है। प्रशिक्षण के साधन भी सीमित हैं। सीवान जिले के ग्रामीण इलाकों में आपके अपने दैनिक अखबार हिन्दुस्तान के बोले सीवान, संवाद कार्यक्रम में ग्रामीण क्षेत्र की इन महिलाओं ने अपनी समस्याओं न सिर्फ इसपर खुलकर चर्चा बल्कि, अपनी इच्छाएं, चुनौतियां और सुझाव एक दूसरे के साथ साझा किया।

महिलाएं अपने हुनर को तराशकर स्वरोजगार की राह तलाश रही हैं। ये महिलाएं सिलाई-कटाई, कढ़ाई के अलावा मसाला उद्योग, पापड़-आचार बनाने, मुर्गी पालन जैसे छोटे-छोटे उद्योग शुरू करना चाहती हैं। लेकिन, प्रशिक्षण व पूंजी की कमी उनके रास्ते में रोड़ा बने हुए हैं। जो इनके सपनों का दम तोड़ रहे हैं। हालांकि, उनके हौसले पूरी तरह से बुलंद हैं। इन दुश्वारियों के बीच कई ग्रामीण महिलाएं आगे बढ़ रही हैं। उन्हीं की देखा-देखी दूसरी महिलाएं भी आगे बढ़ने को तत्पर दिख रही हैं। ये ग्रामीण महिलाएं अपने पारंपरिक कौशल को आधुनिक रूप देना चाहती हैं। लेकिन, सीवान में प्रशिक्षण की सुविधाएं सीमित हैं। मनीषा कुमारी जो सिलाई में माहिर हैं, बताती हैं कि उन्हें सिलाई मशीन से डिजाइनर कपड़े सिलने की ट्रेनिंग चाहिए। लेकिन, वह जिस स्तर की प्रशिक्षण चाहती हैं, उस तरह के प्रशिक्षण की व्यवस्था यहां पर उपलब्ध नहीं है। संवाद में शामिल कई महिलाएं मसाला उद्योग को शुरू करना चाहती हैं। लेकिन, पैकेजिंग एवं मार्केटिंग की जानकारी उन्हें नहीं है। ऐसे में इस कारोबार को शुरू करने में एक हिचक सी बनी हुई है। महिलाओं का कहना है कि गांवों में कौन कहे प्रखंड में भी कोई ट्रेनिंग सेंटर मौजूद नहीं है। शहरों में कहां पर ऐसी व्यवस्था है, इसकी उन्हें जानकारी नहीं है। शहर में इन महिलाओं को जाकर ट्रेनिंग कर लेना भी इनके लिए संभव नहीं है। प्रशिक्षण मिले तो निखर सकेगा हुनर प्रशिक्षण की कमी इस तरह की महत्वाकांक्षी महिलाओं के लिए सबसे बड़ी बाधा है। प्रशिक्षण नहीं मिलने से इनका हुनर निखर नहीं पा रहा है। इस वजह से इनके सपने धुंधले रहे हैं। संवाद में शामिल महिलाओं ने सुझाव दिया कि जीविका परियोजना या सरकार की कोई भी दूसरी एजेंसी गांवों में मोबाइल ट्रेनिंग यूनिट शुरू करे। जो सिलाई, कढ़ाई, खाद्य प्रसंस्करण और पशुपालन जैसे कोर्स कराए। अगर ऑनलाइन ट्रेनिंग की भी सुविधा हो, तो घर बैठे भी वे हुनर सीख सकती हैं। महिलाओं ने कहा कि अगर प्रशिक्षण के साथ मुफ्त टूलकिट- जैसे सिलाई मशीन या मसाला ग्राइंडर मिले तो उन्हें तुरंत काम शुरू करने में सहूलियत होगी। महिलाएं अपने हुनर को निखारकर न सिर्फ आत्मनिर्भर बनना चाहती हैं, बल्कि गांव की दूसरी महिलाओं को भी प्रेरित करना चाहती हैं। पूंजी के अभाव में खुद का रोजगार मुश्किल अचार, पापड़, बिंदी, मसाला और अगरबत्ती तैयार करने जैसा लघु उद्योग व अन्य स्वरोजगार शुरू करने के लिए पूंजी सबसे बड़ी जरूरत है। पैसों की कमी के कारण ग्रामीण महिलाएं इस तरह के काम शुरू करने की हिम्मत नहीं कर पाती हैं। ग्रामीण महिलाओं के लिए सस्ता लोन मिल पाना भी काफी मुश्किल है। कई महिलाएं पापड़-अचार का व्यवसाय शुरू करना चाहती हैं। लेकिन, लोन की जटिल कागजी प्रक्रिया के कारण वे हिम्मत तक नहीं जुटा पा रही हैं। परिवारवाले भी इसमें सहयोग नहीं कर पा रहे हैं। महिलाओं की शिकायत है कि माइक्रोफाइनेंस कंपनियां और बैंकें ऊंची ब्याज दरें और जटिल कागजी प्रक्रिया थोपती हैं। इस कारण से हमारा हौसला टूटता है। महिलाओं ने कहा कि लोन के लिए गारंटर ढूंढना उनके लिए संभव नहीं है। वैसे गांव की ज्यादातर महिलाएं सिलाई-कटाई का कार्य करना चाहती है। महिलाओं का कहना है कि उन्हें सरकारी अपने स्तर से सिलाई-कटाई के प्रशिक्षण तो मिले ही, इसका प्रमाण-पत्र भी मिले। बच्चों के स्कूल ड्रेस सिलने का मिले मौका गांव-देहात और आर्थिक व सामाजिक रूप से पिछड़े समाज की अधिकतर लड़कियां उच्च शिक्षण संस्थान के अभाव में इंटर तक ही पढ़ पाती हैं। इसके बाद उनकी विवाह होने तक वे घर पर ही बेकार बैठी रहती हैं। ऐसे में वे गांव में ही या आसपास के बाजार में जाकर सिलाई-कटाई और कढ़ाई का काम सीखतीं है। इनका मानना है कि कम से कम वे अपना कपड़ा तो खुद से सिलने का काम कर तो सकती हैं। हालांकि, सिलाई-कटाई सीख चुकी इन लड़कियों का कहना है कि स्कूली बच्चों का ड्रेस, सरकारी व गैर सरकारी सस्थानों में कार्यरत कर्मियों की वर्दी सिलने का मौका मिले तो वे बढ़िया से कर सकती हैं। इससे उनकी आमदनी तो बढ़ेगी ही, उनका अनुभव भी बढ़ेगा। मार्केटिंग और बिक्री की एक बड़ी चुनौती उद्योग शुरू करने के बाद उत्पाद बेचना भी एक बड़ी चुनौती है। जो महिलाएं कढ़ाई के कपड़े बनाना चाहती हैं, वे बताती हैं कि उन्हें नहीं पता कि अपने उत्पाद को शहर के बाजारों तक कैसे पहुंचाएं या इसे ऑनलाइन कैसे बेचें। शहनाज की शिकायत है कि स्थानीय बाजार में मोलभाव और कम दाम मिलने से मुनाफा नहीं होता। निशा कुमारी ने कहा कि उनके गांव में कोई मेला या प्रदर्शनियां नहीं लगती हैं, जहां वे अपने उत्पादों को प्रदर्शित कर उसे बेच सकें। इसके लिए स्थानीय स्तर पर मेला, हाट या बाजार जैसी व्यवस्था होनी चाहिए। साथ ही इन सामानों को बाजार की बड़ी दुकानों तक पहुंचाने का भी प्रयास होना चाहिए। गांव में सोलर पैनल लगाने की हो व्यवस्था संवाद कार्यक्रम में शामिल महिलाओं ने सुझाव दिया कि गांवों में सोलर पैनल की सुविधा हो, ताकि बिजली की समस्या हल हो। इससे लागत और कम होगी। महिलाओं ने मुफ्त वाई-फाई जोन बनाने पर भी जोर दिया, ताकि ऑनलाइन कोर्स और मार्केटिंग आसान हो। संवाद में शामिल फूलमाला देवी ने कहा कि गांवों में छोटे ही सही प्रशिक्षण सेंटर की व्यवस्था हो तो, इससे उन्हें आने-जाने का खर्च बच सकेगा। छोटे-छोटे बदलाव इन महिलाओं के उद्योग को मजबूत कर सकते हैं। सीवान जिले के ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं अपनी मेहनत और जुनून से आत्मनिर्भरता की नई कहानी लिखना चाहती हैं। हर महिला का सपना है कि उनका हुनर गांव से बाजार तक पहुंचे। लेकिन, उनके लिए प्रशिक्षण व पूंजी के अलावा कई सुविधाओं की कमी उनके रास्ते में बाधा है। अगर स्थानीय प्रशासन और सरकार उनकी मांगों को पूरा करे-चाहे वह मोबाइल ट्रेनिंग यूनिट हों, सस्ते लोन हों या फिर मेले और मार्केटिंग की सुविधाएं हों, तो ये महिलाएं न सिर्फ वे अपने परिवार को संवारेंगी, बल्कि सीवान जिले की अर्थव्यवस्था को भी चमकाएंगी। क्योंकि, अब ग्रामीण महिलाएं भी अपने सपनों को सच करने के लिए उड़ान भरने को तैयार हैं। बस उन्हें सिर्फ आर्थिक मदद, सहयोग और समर्थन की दरकार है। प्रस्तुति- शशिभूषण, रितेश कुमार सुझाव :- 1. पूंजी की व्यवस्था हो, ताकि ग्रामीण महिलाएं भी आसानी से स्वरोजगार कर सकें। 2. गांवों में बड़े पैमाने पर मोबाइल ट्रेनिंग यूनिट भी बनायी जाय। 3. स्वरोजगार की इच्छुक को ऑनलाइन ट्रेनिंग की हो व्यवस्था। 4. कम ब्याज व अनुदानित दर पर महिलाओं को लोन भी मिले। 5. गांवों के उत्पाद भी बड़े बाजारों तक पहुंचाने की व्यवस्था हो। 6. गांवों में शिविर लगाकर सरकारी योजनाओं की भी दी जाय। 7. गांवों में भी बनाया जाय महिलाओं के लिए प्रशिक्षण केन्द्र। 8. गांवों में मुफ्त वाई-फाई जोन और सस्ती बस की सुविधा हो। 9. महिला उद्यमियों को सम्मानित कर उनका हौसला भी बढ़ाया जाय। 10. ग्रामीण महिलाओं को स्वास्थ्य बीमा योजना से जोड़ा जाय। शिकायतें:- 1. पूंजी की कमी के कारण ही स्वरोजगार नहीं कर पा रही हैं। 2. मोबाइल ट्रेनिंग यूनिट जैसी कोई व्यवस्था गांवों में नहीं है। 3. ऑनलाइन ट्रेनिंग भी सरकारी स्तर नहीं दी जाती है कभी। 4. अधिक ब्याज पर लोन मिलता है, जटिल कागजी प्रक्रिया है। 5. गांव के उत्पाद को बड़े बाजार तक पहुंचाने की सुविधा नहीं। 6. ग्रामीण महिलाओं को सरकारी योजनाओं की जानकारी नहीं। 7. गांवों में सिलाई, कढ़ाई व लघु उद्योग प्रशिक्षण केन्द्र ही नहीं। 8. बिजली कटौती, कमजोर इंटरनेट व सस्ते परिवहन की कमी। 9. परिवार-समाज को महिलाओं के स्वरोजगार की अहमियत नहीं। 10. सभी महिलाओं को स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ नहीं। हमारी भी सुनिए 1. मैं सिलाई-कटाई का प्रशिक्षण लेना चाहती हूं। लेकिन, कोर्स की सुविधा नहीं। ऑनलाइन कोर्स और फ्री में टूलकिट मिले तो काम शुरू करने में आसानी होगी। अगर लोन उपलब्ध होता है तो यह काम महिलाओं के लिए बेहतर है। सोनिका कुमारी 2. कढ़ाई का काम शुरू करना चाहती हूं, लेकिन, स्थानीय स्तर पर ट्रेनिंग नहीं मिलती। गांव में अगर इसके लिए प्रशिक्षण सेंटर हो तो महिलाओं को स्वयं का रोजगार शुरू करने का एक अच्छा माध्यम है। महिलाओं पर सरकार ध्यान दे। निशा कुमारी 3. पशुपालन में भी अपार संभावना है। लेकिन, इतनी पूंजी और व्यवस्था नहीं कि इसकी शुरुआत की जाय। सरकार महिलाओं की उन्नति का प्रयास करे और अनुदान दे तो पशुपालन बढ़िया है। इसके लिए जागरूक अभियान भी चले। कुमुद देवी 4. मसाला बिजनेस शुरू करना चाहती हूं। लेकिन, मेरे पास न तो पूंजी है और न स्किल ही। इसे शुरू करने में रुपये-पैसे की सख्त जरूरत है। सरकार को महिलाओं को स्वालंबी बनाने की दिशा में एक कारगर कदम उठाना चाहिए। नेहा कुमारी 5. कढ़ाई के कपड़े बनाना चाहती हूं। लेकिन, मुझे बाजार नहीं मिलता। ऑनलाइन मार्केटिंग की व्यवस्था हो, तो बिक्री बढ़ेगी। सस्ता लोन मिले, तो मैं अपना बिजनेस शुरू करूंगी। सरकार को इस मामले में हमारी मदद करनी चाहिए। राजनंदनी कुमारी 6. सिलाई की दुकान खोलना चाहती हूं। बहुत सारी लड़कियों को मैं सिलाई का काम सीखा भी चुकी हूं। उन लड़कियों के भी स्किल निखर सके, सरकार काम और लोन की व्यवस्था करे तो वे सभी लड़कियां आत्मनिर्भर बन सकेंगी। मनीषा कुमारी 7. सिलाई-कटाई से जुड़े समानों की मैं दुकान खोलना चाहती हूं। इसके लिए अच्छी-खासी पूंजी की जरूरत है। ग्रामीण क्षेत्र में इस तरह की दुकानों की संख्या न के बराबर है। सरकार हमें कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराए तो शुरू करूं। सुनीता देवी 8. अचार-पापड़ का उद्योग शुरू करना चाहती हूं, लेकिन, मुझे मार्केटिंग नहीं आती। स्थानीय स्तर पर ट्रेनिंग की व्यवस्था हो तो बिक्री की तरकीब सीखने में मदद मिलेगी। सस्ता लोन मिले तो गांव में भी इस तरह का बिजनेस चमकेगा। रेणु देवी 9. सिलाई का बिजनेस शुरू करना चाहती हूं, लेकिन पूंजी नहीं। लोन और बिजनेस सलाह मिले तो दुकान खोलूंगी। गांव-देहात में सिलाई-कटाई का व्यवसाय अच्छा चलेगा। जरूरत है हमारे व्यवसाय को बढ़ाने में आर्थिक मदद की। फूलमाला देवी 10. सिलाई सीखी हूं। लेकिन, मार्केटिंग और डिजाइन की ट्रेनिंग चाहिए। गांव में वाई-फाई हो तो ऑनलाइन कोर्स कर सकती हूं। सस्ता लोन मिले तो एक दुकान खोलूंगी। गांव की महिलाओं को सरकार आगे बढ़ाने में दिलचस्पी दिखाएं। शहनाज खातून 11. जीविका परियोजना के माध्यम से कई महिलाएं स्वरोजगार शुरू की हैं, लेकिन उनका वास्तविक उत्थान नहीं हुआ है। अगर महिलाओं का उत्थान करना है तो उन्हें स्वालंबी बनाना होगा। मैं खुद स्वरोजगार की शुरू करने की सोच रही हूं। सरिता कुमारी 12. मसाला, पापड़, अगरबत्ती, मोमबत्ती और कपड़ा सिलाई जैसे छोटे उद्योगों को घरों में बहुत ही आसानी से महिलाएं शुरू कर सकती हैं। ऐसे उत्पादों की सही ब्रांडिंग करने से मांग बढ़ती है। पैकेजिंग व मार्केंटिंग की आवश्यकता है। ममता कुमारी 13. गांवों की महिलाओं में भी काफी हुनर है। इच्छुक महिलाओं को उनकी रुचि के अनुसार प्रशिक्षण मुहैया कराने का प्रयास हो तो वे बेहतर कर सकेंगी। गांवों की महिलाओं को हुनरमंद बनाने और उनका सहयोग करने की जरूरत है। गुड़िया खातून 14. गांव-गांव में बहुत सारी महिलाएं सिलाई-कटाई में माहिर हैं। लेकिन, वे अब तक परंपरागत कपड़े ही सिलती हैं। इससे अच्छी कमाई नहीं होती है। आज बाजार में प्रतिस्पर्धाएं काफी बढ़ गयी हैं। सरकार को प्रशिक्षण देना चाहिए। मुमताज खातून 15. महिलाओं के लिए सिलाई का कार्य बेहतर विकल्प है। ऐसे में उन्हें इसमें बेहतर करने का मौका मिलनी चाहिए। मार्केट में तो हमेशा नई डिजाइनों की मांगें होती रहती हैं। चुकी बाजार के मांग के अनुसार उत्पाद तैयार करना होता है। निधि कुमारी 16. घर में बैठी ग्रामीण महिलाएं भी अब अपना कारोबार करना चाहती हैं। दर्जनों ग्रामीण महिलाएं उपलब्ध संसाधनों से खुद का कारोबार कर रही हैं। इससे ग्रामीण स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़े हैं। कई पढ़ी लिखी महिलाओं बेहतर करेंगी। रीता देवी 17. खाद्य प्रसंस्करण इकाई लगाकर शॉस, जूस, अचार व अन्य उत्पादों की मांग बढ़ी है। इस तरह की इकाइयों में 15-20 लोगों को आसानी से काम मिल जाता है। अगर उद्यमी महिलाएं खुद उद्यमी हो तो वे इस कार्य को बेहतर करेंगी। माला देवी 18. गांव-देहात और आर्थिक व सामाजिक रूप से पिछड़े हुए समाज की अधिकतर लड़कियां उच्च शिक्षण संस्थान के अभाव में इंटर तक ही पढ़ पाती हैं। इसके बाद उनका विवाह होने तक वे घर पर ही बेकार ही बैठी रहती हैं। अनुराधा कुमारी 19. ग्रामीण महिलाओं खासकर लड़कियों का स्किल डेवलप करने की जरूरत है। महिलाएं परिवार का मेरुदंड मानी जाती है। महिलाओं के उत्थान पर सरकार को ध्यान देना चाहिए। मैं स्वरोजगार की इच्छुक हूं, सरकार सहायता दे। गुड्डी देवी 20. घर पर ही रहकर कोई काम सीखने की व्यवस्था होती तो समाज के हर वर्ग की लड़कियां शामिल होती। ऑनलाइन भी प्रशिक्षण की व्यवस्था हो तो हमें कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन, फ्री वाईफाई की सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए। मधु कुमारी

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