बोले सीवान : सरयू किनारे सिसवन-दरौली में बने शवदाह गृह तो मिले गंदगी से निजात
व्यक्ति का अंतिम यात्रा का पड़ाव श्मशान घाट है, लेकिन यहां की सुविधाएं अत्यंत खराब हैं। पानी, शौचालय और सफाई की कमी से लोग परेशान हैं। सरकार ने मुक्तिधाम योजना शुरू की है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में...
व्यक्ति को अपने जीवन के अंतिम यात्रा का पड़ाव श्मशान घाट पर होता है।इसलिए सरकार मुक्ति धाम योजना चला रही है, जो आधुनिक श्मशान घाट बनाती है। जिले के मुक्तिधामों में पानी, पेयजल शेड रोशनी शौचालय की समस्या भी है। जिसे समाजसेवियों ने दूर करने के लिए कोई पहल नही की है। मुक्तिधामों के रखरखाव की समस्या खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां सुविधाएं कम होती हैं। कुछ मुक्ति धामों में केवल शेड हैं तो पानी, बिजली या शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। कुछ मुक्तिधाम दूर स्थित हैं, जिससे लोगों को वहां तक पहुंचने में परेशानी होती है। मुक्तिधामों में सफाई की समस्या सबसे ज्यादा है।
इससे वहां का माहौल गंदा रहता है। मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार के लिए आने वाले लोगों के लिए अक्सर उपयुक्त आवास की व्यवस्था नहीं है। शौचालय की सुविधा का अभाव है, जिससे लोगों को परेशानी होती है। वहीं यहां सुरक्षा का अभाव होता है, जिससे वहां पर चोरी या अन्य अपराध होने की संभावना रहती है। मुक्तिधाम में जलाए जाने वाले शवों से पर्यावरण प्रदूषण की समस्या भी होती है, क्योंकि वहां पर निकले धुआं व कूड़ा-कचरा जमा हो जाता है। श्मशान घाटों पर आधुनिक सुविधाओं जैसे सोलर लाइट, शौचालय, पानी की टंकी आदि का अभाव है। इन समस्याओं के समाधान के लिए जनप्रतिनिधि व सरकारी तंत्र उदासीन है। इसके रखरखाव के लिए सरकार और स्थानीय निकायों को जिम्मेदारी लेनी चाहिए। आनेवाले लोगों का कहना है कि यहां पानी, बिजली, शौचालय और अन्य बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था करनी चाहिए। यहां नियमित रूप से सफाई करनी चाहिए, ताकि वहां का माहौल साफ-सुथरा रहे। मुक्तिधामों में पानी की समस्या को दूर करने के लिए पानी की आपूर्ति की व्यवस्था की जानी चाहिए। अंतिम संस्कार के लिए आने वाले लोगों के लिए ठहरने की व्यवस्था होनी चाहिए। दरौली व सिसवन सरयू नदी घाट पर जिला समेत क्षेत्र से प्रत्येक दिन दाह संस्कार के लिए लोग आते हैं। इसको देखते हुए 2010 में राज्य सरकार ने जिले को चयनित किया व दरौली में मुक्तिधाम के निर्माण करने के लिए चिन्हित किया गया, लेकिन कई कारणों से दरौली घाट में मुक्तिधाम शवदाह गृह का निर्माण नहीं हो सका। इसी शवदाह गृह का निर्माण पंचबेनिया गांव के सरयू नदी किनारे किया गया। मुक्तिधाम बगैर उद्घाटन के खंडहर में तब्दील हो गया। नदियों को स्वच्छ करने की बात करती हैं, वही दरौली व सिसवन के सरयू नदी के घाट पर गंदगी का साम्राज्य का नित्य दर्शन होता है। शवों का दाह संस्कार कर अवशेष नदी में प्रवाहित कर दूषित किया जाता है। मुक्ति धाम को शुरू नहीं किए जाने के कारण दिन रात लोग नदी किनारे दाह संस्कार कर अवशेष नदी में प्रवाहित कर देते हैं। जिससे प्रतिदिन नदी दूषित होती जा रही हैं। दरौली प्रखंड के पंचबेनिया में राज्य योजना के तहत 2012 में मुक्तिधाम का निर्माण भी इससे निजात नहीं दिला पाए। मुक्तिधाम में छह शवों को एक साथ जलाने की व्यवस्था की गई। साथ ही शौचालय, लोगों के ठहरने की व्यवस्था, सोलर लाइट और चापाकल की व्यवस्था की गई। महज 13 बरसों में ही एक भी शव नहीं जला। जनप्रतिनिधि व प्रशासनिक अधिकारियों को उदासीनता के कारण शव जलाने के लिए क्षेत्रवासियों को नहीं मिल पाया। शव को जलाने के लिए लकड़ी की कमी से होने वाली परेशानियों को देखते हुए शव के अंतिम संस्कार के लिए मुक्तिधाम को शुरू करने से लोगों को राहत मिलेगी और नदी भी स्वच्छ रहेगी। सरकार स्वच्छता अभियान चलाकर सूबे के गांव मोहल्ले कस्बे के साफ सफाई के लिए अभियान चला रही है। वहीं, सिसवन के सरयू नदी किनारे शवदाह गृह का निर्माण नहीं करा रही है। दूसरी ओर पंचबेनिया में बनी शवदाह गृह स्वच्छता अभियान की पोल खोल रही है। उद्धारक की बाट जोहता सिसवन का श्मशान घाट जिले के दक्षिणाखंड का पवित्र धर्मस्थल सिसवन घाट के श्मशान घाट चार दशक पूर्व से अपने उद्धारक का बाट जोह रहा है। इस श्मशान घाट पर लाखों लोग अपनी नश्वर शरीर से मुक्ति पा गए। लेकिन, यह मुक्ति धाम का उद्धार करने वाला नहीं मिल पाया। सरकार एक ओर नमामि गंगे जैसी कई योजनाओं पर करोड़ों रुपये खर्च कर नदियों को प्रदूषण मुक्त बचाने की पहल कर रही है, वहीं दूसरी ओर यहां इस मुक्ति धाम के लिए एक रूपए भी खर्च नहीं हो पाया। सिसवन का मुक्तिधाम आज भी वर्षो पूर्व जैसा था, वैसा आज भी है। अपने आगोश मे अपना दर्द छिपाए यह मुक्ति धाम यहां शव के साथ आनेवाले लोगों, पदाधिकारियों व जन प्रतिनिधि से अपने उद्धार की बात कहता है मगर इसी की तरह सभी मौन है। बताते चलें कि महराजगंज, दरौदा , हसनपुरा, पचरूखी, सीवान समेत जिले के विभिन्न प्रखंडों से आने वाले शव का दाह संस्कार सरयू नदी किनारे किया जाता है। सिसवन घाट पर नित्य शवों के दाह संस्कार के पश्चात अवशेषों को गंगा में प्रवाहित कर देने से सरयू नदी प्रदूषित हो रही है। ग्रामीणों ने बताया कि मुक्तिधाम के जीर्णोद्धार के लिए स्थानीय जनप्रतिनिधियों से भी कई बार गुजारिश की गई, परंतु आज तक परिणाम शून्य रहा। लोगों ने बताया कि सिसवन घाट पर खुले में शव के दाह संस्कार किए जाने से श्मशान घाट पर गंदगी फैली रहती है। लोगों को शव के दाह संस्कार के लिए यत्र तत्र भटकने की नौबत बनी रहती है। घाटों पर फैली गंदगी को साफ करवाने को लेकर प्रशासन की ओर से किसी तरह की पहल नहीं की जा रही है। ग्रामीणों ने स्थानीय जनप्रतिनिधि व जिला प्रशासन से सरयू नदी को प्रदूषण मुक्त करने को लेकर मुक्तिधाम में शवदाह गृह का निर्माण कर इसको संचालित करवाने की मांग की है। ग्रामीणों का कहना है कि इसका उद्धार होने से लोगों को काफी राहत मिलेगी। नकारा साबित हुआ पंचबेनिया में बने शवदाह गृह जिले के दक्षिणाखंड में लगभग 75 किलोमीटर की लम्बी दूरी में सरयू नदी का फैलाव है। इसके किनारे गुठनी दरौली आंदर रघुनाथपुर सिसवन प्रखन्ड है। वैसे तो सरयू नदी किनारे की जगहों पर शवों के दाह संस्कार होते हैं मगर सिसवन व दरौली में प्रतिदिन दर्जनों शव जलाए जाते है। इसको देखते हुए दरौली प्रखंड के पंचबनिया गांव में सरयू नदी के किनारे लाखों की लागत से मुक्तिधाम का निर्माण किया गया मगर यह जल्दी ही खंडहर में तब्दील हो गया । इस वजह से शवों का अंतिम संस्कार करने वालों को खुले में शव जलाना पड़ता है। लेकिन इसकी सुद्धी लेने की फुर्सत प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के पास नहीं है। सरयू नदी किनारे बने इस मुक्ति धाम के निर्माण लोगों को स्वच्छ पर्यावरण और सुरक्षित शवों को अंतिम संस्कार की सुविधा देने को उद्देश्य किया गया था। राज्य योजना के तहत इसका निर्माण लगभग 45 लख रुपए के लागत से किया गया था। यहां एक साथ छह शवों को अंतिम संस्कार किए जाने की व्यवस्था थी। यहां लोगों के लिए पेयजल, शेड, रोशनी के लिए सोलर लाइट शौचालय आदि का भी प्रावधान किया गया था। लेकिन देख-देख के अभाव में यह खंडहर बन गया। बिहार सरकार ने 2010 में बिहार के कुछ जिलों को चिन्हित कर वहां मुक्तिधाम शवदाह गृह बनाने की पहल की। उद्देश्य था कि शवों के अंतिम संस्कार करने वालों को परेशानी नही हो, लेकिन यह योजना आज तक चालू नहीं हो पाई। शिकायतें-- 1- शमशान घाट पर नहीं है सुविधा, आने वाले को होती है परेशानी 2- शव को लकड़ी से जलाए जाने पर फैलता है प्रदूषण 3- श्मशान घाट पर नहीं है इलेक्ट्रिक शवदाह गृह की व्यवस्था 4-शव के बचे अवशेष को नदी में फेंके जाने से पानी होता है प्रदुषित 5-घाट पर शव जलाने का नहीं होता निबंधन सुझाव --- 1- शमशान घाट पर मौजूद होने चाहिए मौलिक सुविधाएं। 2- शव को लकड़ी से जलाए जाने से फैलने वाली प्रदूषण को कम करने के उपाय होना चाहिए। 3- श्मशान घाट पर इलेक्ट्रिक शवदाह गृह की व्यवस्था होनी चाहिए। 4-शव के बचे अवशेष को नदी में नहीं फेंककर दुसरे जगह रखा जाए। 5-घाट पर शव जलाने का निबंधन होने से परिजन परेशान नहीं होंगे। हमारी भी सुनिए- 1-श्मशान घाट पर नहीं है मौलिक सुविधाएं जिससे शव जलाने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। मौलिक सुविधाएं उपलब्ध हो। अखिलेश्वर पाण्डेय 2-श्मशान घाट में शव जलाने के लिए इलेक्ट्रिक शवदाह गृह नहीं होने से भी परेशानी होती है। महंगे लकड़ी खरीद कर शव जलाना पड़ता है। मिथिलेश साहनी 3-लकड़ी से शव जलाने पर वायुमंडल प्रदूषित होता है, प्रदूषण रोकने के लिए शवदाह गृह बनाने की जरूरत है। इससे यहां के लोगों को राहत मिलेगी। - चन्दन बैठा 4-शवदाह गृह नहीं होने के कारण लोगों को खुले में शव को जलाना पड़ता है, जो पर्यावरण अनुकूल नहीं है। इससे शव जलाने के लिए गए लोगों को भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। भूपेंद्र भारती 5- श्मशान घाट पर जगह-जगह कचरा का ढेर लगा रहता है। इसकारण लोगों को शव जलाने के लिए जगह तलाश करनी पड़ती है। गंदगी में भी कभी - कभी शव को जलाना पड़ता है। - दिलीप दिनकर 6- श्मशान घाट पर सरकारी व्यवस्था नहीं होने से लोगों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। शोषण का भी शिकार बनना पड़ता है। इसलिए मुक्तिधाम बनाया जाना जरूरी है। - छोटे लाल यादव 7- श्मशान घाट पर शव जलाने का कोई निर्धारित शुल्क नहीं है। इससे यहां रहने वाले लोग मनमानी राशि वसूली से परेशानी होती है। सामान्य वर्ग के लोगों को अंतिम संस्कार करने में परेशानी होती है। हरेंद्र यादव 8- सरयू नदी के किनारे सिसवन व दरौली में सबसे अधिक शव जलाए जाते हैं, यहां पर मौलिक सुविधाएं होनी चाहिए। यहां पर सुविधा नहीं होने के कारण लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। - महेश राम 9- 2012 में पंचबेनिया में बने शवदाह गृह जल्द ही नकारा साबित हो गया। उसे ठीक करा कर आम जनता के लिए चालू किया जाना चाहिए। शवदाह गृह बनाए जाने से राहत मिलेगी। - भूपेंद्र कुमार 10- सिसवन शमशान घाट के उद्धार के लिए कई जनप्रतिनिधियों ने घोषणा की मगर इसे बनाने की अमलीजमा किसी ने नहीं की। इसको लेकर परेशानी को दूर करने के प्रयास होने चाहिए। - नरेन्द्र राम 11- सिसवन शमशान घाट पर जिले तक के प्रशासनिक पदाधिकारी व लोग शव जलाने आए हैं। इसकी स्थिति से भी अवगत है, लेकिन व्यवस्था नहीं सुधरी। - धर्मेंद्र साह प्रखंड प्रमुख 12- शमशान घाटों के रखरखाव देख-देख में सरकारी तंत्र भी उदासीन है। जिससे शमशान भूमि पर कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है।सुविधा उपलब्ध कराने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए। - विरेन्द्र कुमार 13- श्मशान भूमि को लेकर जनप्रतिनिधि के उदासीन हैं। इससे लोग उपेक्षित महसूस करते हैं। जनप्रतिनिधियों को आगे आना चाहिए ताकि लोगो को दुख की घड़ी में भी परेशानी दूर हो सके। - शिवजी राम 14-श्मशान घाट पर पेयजल शौचालय बिजली व्यवस्था व आवास की सुविधा होनी चाहिए ताकि लोगों को अंधेरे में व ठहरने में सुविधा हो। रात में शव लेकर जाने पर परेशानी नहीं हो। - राकेश कुमार 15- शव जलाने में तीन से चार घंटे लगते हैं, इस दौरान खुले आसमान के नीचे बैठना पड़ता है, बरसात व ठंड में काफी परेशानी होती है। - चिनावन राम 16- इलेक्ट्रिक शवदाह गृह नहीं होने से लोगों को लकड़ी से शव जलाना पड़ता है, इससे प्रदूषण फैलता है। इलेक्ट्रिक शवदाह गृह बनाए जाने चाहिए। - संजय राम 17- प्रदूषण रोकने के लिए शमशान भूमि के आसपास क्षेत्र में पेड़ पौधे लगाए जाने चाहिए, ताकि पर्यावरण संतुलन बना रहे। गरमी और बारिश से बचाव को लेकर प्रयास किए जाने चाहिए। - घुरा यादव 18- शव जलाए जाने के बाद अवशेष को नदी में फेंकने से नदी प्रदूषित होती है, नदियों के पानी को बचाने की जरूरत है। नदियों को बचाए जाने को लेकर प्रयास किए जाने चाहिए। - आजाद अली 19- जलाए गये शव के अवशेष को नदियों के पानी में नहीं फेंक कर उसे दूसरे जगह एकत्रित किया जाना चाहिए, यहां भी सरकार के चलाए जाने वाले स्वच्छता अभियान लागू होनी चाहिए। - गणेश राम 20-सूबे के गांव और शहरों को स्वच्छ रखने के लिए स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन शमशान भूमि में यह बेअसर दिखता है। इसे साफ - सुथरा रखना पंचायत की जिम्मेदारी है। - अजय कुमार सिंह
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