परंपरा:12 घंटे के वनवास पर रहे नौरंगिया के लोग
बगहा के नौरंगिया गांव में बैसाख नवमी पर लोग 12 घंटे के लिए वनवास पर चले जाते हैं। यह परंपरा देवी के प्रकोप से बचने के लिए है। पहले गांव में आगलगी और महामारी आती थी, इसलिए लोग जंगल में चले जाते थे। अब...

बगहा, नगर प्रतिनिधि। बगहा के नौरंगिया में वर्षों पुरानी परंपरा आज भी जीवंत है। यहां के लोग बैसाख नवमी को घर छोड़कर 12 घंटे के लिए वनवास पर चले जाते हैं। इस दिन एक भी आदमी गांव में नहीं रहता है। नौरंगिया गांव की ऐसी मान्यता है कि इस दिन ऐसा करने से देवी के प्रकोप से निजात मिलती है एवं गांव प्राकृतिक आपदा एवं बीमारियों से दूर रहता है। गांव के लोगों को कहना है कि पहले गांव में आगलगी, महामारी जैसी दैवीक प्रकोप हर वर्ष आती थी। इससे निजात को लेकर लोग बैसाख नवमी को गांव छोड़ कर जंगल में चले जाते थे।
तब से यह प्रथा चलती आ रही है। साल में एक दिन सीता नवमी (बैसाख नवमी) को लोग घरों से निकल वनवास पर चले जाते हैं। पहले लोग अपने साथ-साथ मवेशियों को भी लेकर जंगल में चले जाते थे। लेकिन अब लोग मवेशियों घर पर छोड़ जंगल के बीच अवस्थित भजनी कुट्टी स्थान पर जाकर पूरा दिन बिताते हैं। नौरंगिया गांव के मुखिया सुनील महतो ने बताया कि यहां बाबा परमहंस के सपने में देवी मां आई थी। मां ने उन्हें गांव को प्रकोप से निजात दिलाने के लिए यह आदेश दिया कि बैसाख नवमी को गांव खाली कर पूरा गांव वनवास के लिए चला जाए। इसके बाद यह परंपरा शुरू हुई। इसके बाद लोग 12 घंटे के लिए वनवास पर चले जाते हैं और जंगल में 12 घंटा गुजरने के बाद वापस अपने-अपने घर चले आते हैं। भजनी कुट्टी के पुजारी नारायण साधु का कहा है कि इस दिन घर पर ताला भी नहीं लगाते है। पूरा घर खुला रहता है और चोरी भी नहीं होती है। लेकिन अब लोग अपने अपने घरों में ताला लगाकर पूरा गांव खाली कर देते हैं। और बाबा परमहंस के भजनी कुट्टी में आकर पूरा दिन गुजारते हैं।
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