क्या है टू नेशन थ्योरी, जिसे लेकर पाक पीट रहा ढोल, इन मौकों पर खुद उड़ा चुका इसकी खिल्ली
- आज जिस टू नेशन थ्योरी को लेकर गड़ा फाड़ पाकिस्तान आजादी के बाद खुद को इस्लामी राष्ट्र के रूप में ढालने की कोशिश की, मगर उसके भीतर ही जातीय, भाषाई और फिरकापरस्ती के स्वर फूटे और बांग्लादेश अलग हो गया।

हाल ही में पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल असीम मुनीर ने एक बार फिर 'टू नेशन थ्योरी' की बात छेड़ दी। उन्होंने विदेशों में बसे पाकिस्तानियों को इस सोच की याद दिलाई कि किस बुनियाद पर पाकिस्तान बना था। लेकिन टू नेशन थ्योरी जैसी विचारधारा हमेशा से विवादों में रही है और इसके अमल का इतिहास खून-खराबे, विभाजन और बहसों से भरा है। जिस टू नेशन थ्योरी के दम पर पाकिस्तान बना उसी से बांग्लादेश देश अलग गया और अब विद्रोह की लपटे बलूचिस्तान से भी आ रही है। पाकिस्तान ने कैसे उड़ाई टू नेशन थ्योरी के मूल सिद्धांतो की धज्जियां आइए जानते हैं...
क्या है टू नेशन थ्योरी?
1947 में भारत की आजादी के वक्त टू नेशन थ्योरी ये कहता था कि हिंदू और मुस्लिम दो अलग-अलग कौमें हैं जो साथ रह नहीं सकतीं, इसलिए इनके लिए अलग देश होने चाहिए। इस सोच का समर्थन मोहम्मद अली जिन्ना और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने किया, लेकिन इसकी जड़ें बहुत पहले से मुस्लिम बुद्धिजीवियों जैसे सर सैयद अहमद खान, अल्लामा इकबाल और जस्टिस अब्दुर रहीम के ख्यालों में देखी जाती हैं।
हालांकि उस समय भी हिंदू-मुस्लिम दोनों में से बड़ी संख्या में लोग इस नजरिया के खिलाफ थे। महात्मा गांधी, खान अब्दुल गफ्फार खान और देवबंदी उलेमा समेत कई मुस्लिम संगठन इसे नकार चुके थे। उनकी राय थी कि भारत की संस्कृति साझा रही है, यहां गंगा-जमुनी तहजीब सदियों से है जिसे बांटने का तर्क नहीं बनता।
इन मौकों पर पाक खुद उड़ा चुका है खिल्ली
1947 का बंटवारा टू नेशन थियरी की पहली असलियत साबित हुआ, जब दुनिया ने सबसे बड़ी मानवीय पलायन की त्रासदी देखी, जिसमें लाखों मारे गए। उसके बाद पाकिस्तान ने खुद को इस्लामी राष्ट्र के रूप में ढालने की कोशिश की मगर उसके भीतर ही जातीय, भाषाई और फिरकावाराना फूटें उभर आईं। 1971 में बांग्लादेश का बनना इस नजरिया की सबसे बड़ी शिकस्त थी। क्योंकि बांग्लादेशी मुसलमानों ने धर्म के बजाय भाषा और सांस्कृतिक पहचान को अहमियत दी। उधर, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा जैसे सूबों में अलगाववाद और आतंकवाद ने पाकिस्तान को लगातार परेशान किया। शिया-सुन्नी तनाव, अहमदिया समुदाय पर जुल्म और अल्पसंख्यकों की हालत भी इसी नजरिया की सीमाओं को उजागर करती हैं।
मुगालते में हैं पाक के आर्मी चीफ जनरल मुनीर
आज भी पाकिस्तान में ऐसे कई उग्रपंथी संगठन मौजूद हैं जो इस्लाम के नाम पर ही आपस में लड़ते हैं। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, लश्कर-ए-झंगवी, इस्लामिक स्टेट, और तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान जैसे इस्लामिक संगठ पाक सरकार के लिए ही मुसीबत बन गए हैं। पाकिस्तान जैसे इस्लामिक देश में मुस्लिम आपस में महफूज नहीं हैं। इसके बावजूद पाकिस्तान पाक के आर्मी चीफ जनरल मुनीर अपने वजूद पर गर्व कर रहे हैं।
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