Chai Village Divers Unsung Heroes Saving Lives and Bodies Demand Recognition बोले हजारीबाग : दूसरों को बचानेवाले गोताखोरों को है सरकारी मदद की दरकार, Hazaribagh Hindi News - Hindustan
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बोले हजारीबाग : दूसरों को बचानेवाले गोताखोरों को है सरकारी मदद की दरकार

चौपारण के चैय गांव के गोताखोर गहरे पानी से शव निकालने में माहिर हैं। हाल ही में इन्होंने कई बार जीवन बचाने और शवों को निकालने में सफलता पाई है। हालांकि, इन्हें सरकारी सहायता नहीं मिलती। चैय के...

Newswrap हिन्दुस्तान, हजारीबागSat, 24 May 2025 01:37 AM
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बोले हजारीबाग : दूसरों को बचानेवाले गोताखोरों को है सरकारी मदद की दरकार

चौपारण मुख्यालय से महज 10 किमी दूर मुस्लिम बहुल गांव चैय, जो कभी सिर्फ बाबा दुलाशाह दरगाह के लिए जाना जाता था। आज अपने अदम्य गोताखोरों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना रहा है। ये वो बहादुर हैं जो गहरी नदियों और खतरनाक जलप्रपातों से शवों को निकालने और डूबते लोगों की जान बचाने का काम करते हैं। बावजूद इसके इन गोताखोरों को सरकार की ओर से कोई मदद नहीं दी जाती है। चैय गांव के गोताखोरों ने बोले हजारीबाग की टीम से अपनी समस्याएं साझा की। हजारीबाग। वर्ष 2018 में इटखोरी मुहाने नदी में आई अचानक बाढ़ में जब चार श्रद्धालु डूब गए और 48 घंटे से अधिक समय तक एनडीआरएफ की टीम को निराशा हाथ लगी।

तब चैय के गोताखोरों को बुलाया गया। चमत्कारिक रूप से उन्होंने महज चार से पांच घंटे के भीतर चारों शवों को खोज निकाला। इस उपलब्धि के लिए तत्कालीन एसडीओ और चतरा डीसी ने चैय के गोताखोरों को सम्मानित किया। यह कोई इकलौती घटना नहीं है। पलामू जिले के पांकी क्षेत्र में गहरे जलप्रपात से एक शव को महज एक घंटे में निकालना हो, या कोडरमा के तिलैया स्थित बृंदाह जलप्रपात से 2022 में तीन बच्चों के शवों को दो घंटे में ढूंढ निकालना हो - चैय के गोताखोरों ने बार-बार अपनी क्षमता का लोहा मनवाया है। बृंदाह जलप्रपात से तो अब तक ये 12 शव निकाल चुके हैं। हाल ही में, सात दिन पहले ही इन्होंने हजारीबाग झील से एक और जवाहर घाट में डूबे दो युवकों के शवों को भी खोज निकाला। हार, बंगाल और झारखंड के कई हिस्सों में इन्हें मदद के लिए बुलाया जाता है। ये गोताखोर सिर्फ गहरे पानी से शव नहीं निकालते, वे उन परिवारों को थोड़ी शांति भी प्रदान करते हैं जो अपनों को खो चुके होते हैं। उनकी निस्वार्थ सेवा और अद्वितीय कौशल को अब राष्ट्रीय पहचान और सरकारी समर्थन की सख्त जरूरत है।लेढ़िया नदी का हर भंवर, हर तेज बहाव, इन्हें पानी के मिजाज को समझने का पाठ पढ़ाता है, जिसका नतीजा हम अक्सर हादसों के दौरान देखते हैं, जब चैय के गोताखोर असंभव को संभव कर दिखाते हैं। एक ओर जहां चैय गांव के जांबाज गोताखोर अपनी जान जोखिम में डालकर अनगिनत लोगों की जान बचा रहे हैं और शवों को निकालकर परिजनों को राहत दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उनकी अपनी आजीविका का सवाल एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। हैरत की बात यह है कि इस विशिष्ट और महत्वपूर्ण कौशल के बावजूद, चैय के आधे से अधिक गोताखोर जीविकोपार्जन के लिए दूसरे राज्यों में जाकर मजदूरी करने को मजबूर हैं। गांव के ही अब्दुल सलाम ने बताया कि जब भी कोई हादसा होता है, चैय के गोताखोर को मदद के लिए पुकारा जाता है। लेकिन जब लोग वापस आते हैं, तो अपने परिवार का पेट पालने के लिए उन्हें फिर से दिहाड़ी मजदूरी का सहारा लेना पड़ता है। चैय के गोताखोरों को अक्सर मिलती है उपेक्षा: जान जोखिम में डालकर गहरे पानी से शव निकालने और जिंदगियां बचाने वाले चैय के गोताखोरों का दर्द केवल आर्थिक तंगी तक सीमित नहीं है। उनका एक और बड़ा दुख यह है कि उनके साहसिक कार्य के बाद उन्हें अक्सर उपेक्षा का सामना करना पड़ता है। कई बार उन्हें नाममात्र की प्रोत्साहन राशि से संतोष करना पड़ता है। मछली पकड़ने के जुनून ने बनाया गोताखोर : चैय के गोताखोरों का अदम्य साहस और जल में किसी विशेष प्रशिक्षण से नहीं, बल्कि यह सदियों पुरानी एक सहज परंपरा की देन है। इस गांव के एक बुजुर्ग ने बताया कि वर्षो पहले, बरसात के दिनों में जब नदियाँ उफान पर होती थीं, चैय के लोग बस मछली पकड़ने के लिए नदी के तेज बहाव में कूद जाते थे। धीरे-धीरे, मछली पकड़ने की इसी कला ने उन्हें कुशल गोताखोर बना दिया। नहीं मिलता है प्रोत्साहन जान जोखिम में डालकर गहरे पानी से शव निकालने और लोगों की जिंदगियां बचाने वाले चैय के गोताखोरों का दर्द केवल आर्थिक तंगी तक सीमित नहीं है। उनका एक और बड़ा दुख यह है कि उनके साहसिक कार्य के बाद उन्हें अक्सर उपेक्षा का सामना करना पड़ता है। कई बार उन्हें नाममात्र की प्रोत्साहन राशि से संतोष करना पड़ता है, और उसके बाद न तो प्रशासन को उनकी फिक्र रहती है और न ही उन परिजनों को, जिनकी उन्होंने मदद की होती है। बावजदू इसके वे अपना काम पूरी लगन से करते हैं। चैय के हर घर में एक गोताखोर चैय गांव की पहचान अब केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि एक अनूठे सामाजिक ताने-बाने से भी जुड़ी है – यहां हर घर में आपको एक गोताखोर मिलेगा। यह बात गांव के युवा अब्दुल सलाम ने बताई। उनका कहना है कि जब भी कोई मुसीबत आती है, चाहे वह जवान हो या बूढ़ा, गांव का हर व्यक्ति बिना सोचे-समझे नदी या गहरे तालाब में कूदने को तैयार हो जाता है। अब्दुल सलाम ने अपनी आँखों देखी व्यथा साझा करते हुए कहा, घटनास्थल पर पहुंचने के बाद परिजनों की पीड़ा देखकर मन बहुत दुखी होता है। एक मैसेज पर पहुंच जाते हैं जब भी कहीं से नदी, तालाब या जलप्रपात में किसी के डूबने या शव लापता होने की सूचना गोताखोर समिति के अध्यक्ष, सचिव या अन्य किसी व्यक्ति के पास आती है, तो उनके द्वारा एक साधारण व्हाट्सएप ग्रुप में एक मैसेज डाला जाता है, और फिर घर या आसपास रहने वाले गोताखोर तुरंत जुट जाते हैं और बिना किसी देरी के अपनी मंजिल की ओर निकल पड़ते हैं। आज तक चैय के गोताखोरों को कभी असफलता हाथ नहीं लगी है। जहां भी जाते हैं अपनी पहचान छोड़ देते हैं। लेढ़िया नदी में युवाओं को निजी स्तर देते हैं ट्रेंनिग चैय गांव के पास से गुजरने वाली लेढ़िया नदी की तेज धार ही गोताखोरों की पहली पाठशाला है। गांव के वरिष्ठ गोताखोर, मो. सफाल उद्दीन ने बताया कि हर साल बरसात के महीनों में, जब नदी उफान पर होती है, तब गांव के ही बुजुर्ग युवाओं को पानी की गहराइयों से जूझने का हुनर सिखाते हैं। यह कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं है, बल्कि सदियों से चली आ रही एक परंपरा है। लेढ़िया की तेज धाराओं में डूबकर मछली पकड़ने और बिना सहारे तैरकर नदी पार करने की कला, इन युवाओं के भीतर पानी से दोस्ती और खतरों का सामना करने का जज्बा पैदा करती है। यह प्राकृतिक प्रशिक्षण ही चैय के गोताखोरों को वह अनूठी क्षमता देता है, जो उन्हें एनडीआरएफ की टीम से भी आगे खड़ा कर देता है। कई बार हो चुके हैं सम्मानित चैय गांव के गोताखोरों की अद्वितीय कार्यकुशलता और बहादुरी की चर्चा अब सिर्फ हजारीबाग जिले तक सीमित नहीं है, बल्कि बिहार और बंगाल तक पहुंच गई है। इन गोताखोरों ने गहरे पानी मे डुबकी लगाकर शव को निकालने का काम किया, जिसके परिणामस्वरूप चतरा जिला प्रशासन, नवादा,बिहार जिला प्रशासन और बंगाल पुलिस ने उन्हें सम्मानित किया है। समस्याएं 1. चैय गांव के गोताखोरों के पास आजीविका का कोई निश्चित साधन नहीं है। 2. चैय के गोताखोरों के पास एनडीआरएफ जैसी आधुनिक उपकरण की सुविधा नहीं हैं। 3. घटनास्थल पर जल्दी पहुंचने के गोताखोरों के पास अपना मोटर वाहन नहीं है। 4. सुरक्षा जैकेट, ऑक्सीजन सिलेंडर, उचित ड्रेस या बीमा जैसी सुरक्षा सुविधाएं नहीं हैं। 5. अनुभवी गोताखोरों को उचित सम्मान न मिलने से युवा पीढ़ी का मनोबल प्रभावित होता है। सुझाव 1. सरकार की ओर से मासिक मानदेय या स्थायी रोजगार का अवसर मुहैया करायी जाए। 2. राज्य और केंद्र सरकार द्वारा उन्हें आधुनिक गोताखोरी का प्रशिक्षण दिया जाए । 3. एक मोटर वाहन उपलब्ध कराया जाए ताकि वे दुर्घटना स्थलों पर तुरंत पहुंच सकें। 4. एनडीआरएफ टीम की तरह सुरक्षा बीमा प्रदान किया जाए और पहचान पत्र जारी की जाए। 5. गांव के बुजुर्ग और अनुभवी गोताखोरों को सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया जाए। इनकी भी सुनिए चैय गांव के गोताखोरों का काम अविश्वसनीय है। जब हम हर तरह से असफल हो जाते हैं, तब ये किसी देवदूत की तरह आते हैं और अपने अनुभव और साहस से असंभव को संभव कर दिखाते हैं। यहां के गोताखोर झारखंड के अलावा दूसरे राज्य जाकर भी लोगों की मदद करते हैं। -अजित कुमार विमल, डीएसपी बरही चैय के गोताखोरों को राष्ट्रीय पहचान मिलनी चाहिए। यहां के गोताखोर सिर्फ शव निकालने वाले नहीं, ये पीड़ितों के परिजनों के लिए आशा की किरण हैं। मैं राज्य सरकार और केंद्र सरकार से आग्रह करता हूं कि इन्हें हर संभव मदद और सरकारी सुविधाएं प्रदान करें। जिससे यहां के गोताखोरों को मनोबल बढ़े और वे अपने काम को और निष्ठापूर्वक करें। -मनोज कुमार यादव, विधायक बरही गोताखोरों ने कहा- बीमा योजना का लाभ दिया जाए हमने अपनी आंखों से एनडीआरएफ को खाली हाथ लौटते देखा है। ऊपर वाले का शुक्र है, जो हमें पानी के अंदर भी रास्ता दिखाता है। बस सरकार से इतनी गुजारिश है कि हमें भी सुविधाएं मिले। -मो. असीम रज़ा 40 साल से अधिक हो गए पानी में। कितनी लाशें निकालीं, कितने डूबते लोगों को बचाया, अब गिनती याद नहीं। जब परिवार का रोना देखते हैं, तो अपनी जान की परवाह नहीं रहती। - मो आफाक आलम पहले लोग सिर्फ दरगाह के नाम से चैय को जानते थे, अब हमें गोताखोरों के नाम से पहचान मिल रही है। यह गर्व की बात है, लेकिन इसे बनाए रखने के लिए हमें सरकार से समर्थन चाहिए। - मो. गुलाम अहमद रज़ा हम बिना किसी सुरक्षा उपकरण के घंटों पानी में रहते हैं। सांस लेने की दिक्कत होती है, कभी कंकड़-पत्थर से चोट लगती है, पर जब शव मिल जाता है तो सारी तकलीफ भूल जाते हैं। - मो. दानिश हमारे बड़े-बुजुर्गों से ही हमने गोताखोरी सीखी है। यह हमारे खून में है। अगर सरकार हमें ट्रेनिंग दे तो हम और बेहतर कर सकते हैं। साथ ही हमें सरकार जरूरी सुरक्षा उपकरण भी उपलब्ध कराए। -मो. बबन रज़ा हम अपनी जान हथेली पर लेकर चलते हैं, लेकिन हमारे घर का चूल्हा कैसे जलेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। अगर हमें एक स्थायी आय के लिए रोजगार का साधन मिल जाए तो हम और मन लगाकर काम करेंगे। -मो. समीर हमें जब भी कहीं किसी हादसे की सूचना मिलती है, तो कई बार दूर-दूर तक जाना पड़ता है। अगर हमारे पास अपनी गाड़ी हो तो हम और जल्दी मौके पर पहुँचकर मदद कर पाएंगे। -मो. परवेज आलम हमारे लिए कोई बीमा की सुविधा नहीं है। अगर हमें कुछ हो जाता है तो हमारे परिवार का क्या होगा? सरकार को कम से कम हमारे और परिवार की सुरक्षा के लिए बीमा की व्यवस्था करनी चाहिए। -मो. शाहनवाज़ हमारा काम आसान नहीं है, लेकिन हमें उतनी पहचान नहीं मिलती जितनी मिलनी चाहिए। अगर सरकार हमें सम्मानित करे तो गाँव के दूसरे युवा भी इस काम में आगे आएँगे और बेहतर कर सकेंगे। -मो. काशिफ कुछ लोग सोचते हैं कि हम कोई जादू करते हैं, लेकिन यह सिर्फ हमारा अनुभव और पानी की समझ है। सालों से हम यही करते आ रहे हैं। बावजूद इसके हमें प्रोत्साहित नहीं किया जाता है। -मो. सोनू रज़ा यह किसी एक आदमी का काम नहीं है। हम सब मिलकर काम करते हैं, एक-दूसरे का सहारा बनते हैं। हमारी टीम में बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक सब शामिल हैं। सूचना मिलने पर हम तुरंत पहुंच जाते हैं। -मो. लालबाबू हमारा सपना है कि चैय गांव के गोताखोरों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिले और हमें वह सब सुविधाएँ मिलें, जो एनडीआरएफ जैसी टीमों को मिलती हैं। हम देश की सेवा करना चाहते हैं। -मो. अली

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