Reviving Heritage Challenges Faced by St Columba Collegiate School in Hazaribagh बोले हजारीबाग: समय पर किताबें नहीं मिलतीं, कैसे करें पढ़ाई, Kodarma Hindi News - Hindustan
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बोले हजारीबाग: समय पर किताबें नहीं मिलतीं, कैसे करें पढ़ाई

हजारीबाग का संत कोलंबा कॉलेजियट स्कूल, जो 1895 से चल रहा है, शिक्षकों की कमी और संसाधनों की कमी से जूझ रहा है। विद्यालय में केवल 5 शिक्षक हैं, जबकि 24 पद स्वीकृत हैं। सरकार को स्कूल को हेरिटेज घोषित...

Newswrap हिन्दुस्तान, कोडरमाSun, 11 May 2025 02:26 AM
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बोले हजारीबाग: समय पर किताबें नहीं मिलतीं, कैसे करें पढ़ाई

हजारीबाग। कभी हजारीबाग जिले के सर्वश्रेष्ठ स्कूलों में शुमार संत कोलम्बा कॉलेजियट स्कूल फिर से अपने अच्छे दिन की इंतज़ार कर रहा है। वर्ष 1895 में जिस भवन को विद्यालय के लिए सौंपा गया था आज भी उसी भवन में विद्यालय चल रहा है। शुरू में इस विद्यालय के जगह ब्रिटिश सैन्य छावनी थी। सेना हजारीबाग से धीरे धीरे रामगढ़ कैंट में चली गयी और हजारीबाग से छावनी खत्म हो गया। यहां के छात्रों ने हिन्दुस्तान की ओर से आयोजित कार्यक्रम बोले हजारीबाग के माध्यम से प्रशासन के सामने अपनी परेशानी रखी। हजारीबाग। संत कोलंबा कॉलेजियट छप्पर के जिस भवन में चल रहा है और उसकी प्राचीनता को देखते हुए हेरिटेज भवन घोषित कर देना चाहिए।

यह धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान है। शिक्षकों को सरकार के तरफ से केवल वेतन मिलता है और किसी तरह का आर्थिक मदद नही। वेतन भी सरकारी शिक्षकों की तरह नियमित नही मिलता है जबकि हमलोग भी इसी समाज के बच्चों को पढाते हैं। विद्यालय में किसी तरह का टूट फूट, मरम्मत हर कार्य अपने निधि से करना पड़ता है। नौंवी के बच्चों से साल भर में बेहद मामूली करीब चौदह सौ रूपया लिया जाता है। इस रकम का भी एक हिस्सा सरकार को देना पड़ता है। कुछ पुराने छात्र कभी आए और उनको संस्थान से लगाव के कारण कुछ दान करना होता है तो देते हैं। उसी से कुछ काम हुआ है। पुराने छात्रों का नियमित मिलन समारोह कभी आयोजित नही हुआ। लेकिन पुराने छात्र मांग करते हैं। आम लोगों में यह धारणा है की यहां विदेशी मिशनरी से बहुत पैसा आता है। जबकि यह हकीकत नही है। किसी तरह का कोई आर्थिक मदद मिशनरी से नही मिलता। अगर पैसा आता तो इसी खप्पर के पुराने भवन में ही विद्यालय चलता। जब हमलोग अपने वेतन के लिए सरकार पर आश्रित हैं तो विदेशी मिशनरी का पैसा विद्यालय मेंकिसी तरह के विकास पर कहीं तो खर्च करते। इस विद्यालय में शिक्षकों की भारी कमी है। कुल स्वीकृत पद 24 हैं पर वर्तमान में कार्यरत केवल पांच हैं। सामाजिक विज्ञान विषय में एक भी शिक्षक नही हैं। वर्ष 2023-24 में एक साल चार शिक्षक सेवानिवृत्त हो गए। उनके स्थान पर अभी तक किसी की बहाली नही हुई है। एक ही शिक्षक को कई विषय पढाना पड़ता है। यह केवल बच्चों के हित और भविष्य को ध्यान में रखकर करना पड़ता है।चयन और प्रबंधन कमेटी अभी तक बहाली नही की है। गौर करने योग्य बात है की गणित विषय के शिक्षक का पद लंबे समय से खाली है। अभी अंग्रेजी, रसायनशास्त्र, संस्कृत जीवविज्ञान व उर्दू के शिक्षक है। इस विद्यालय में कभी हजार बच्चें तक पढते थे। तब चौबीस शिक्षक होते थे। दसवीं में इ तक सेक्शन होता था। बच्चों के लिए हॉस्टल,मेस था। अब सब बंद हो गया। जब शिक्षक ही कम होते चले गए तो उसी हिसाब से बच्चों का नामांकन भी कम होता गया। शिक्षक कम होंगे तो बच्चों को कैसे पढाया और संभाला जाएगा। मीड डे मील आठवीं तक के बच्चों को मिलता है। पर जो बच्चें आठवीं तक खाए हैं उनकों अचानक से मना कर देना की तुम नौंवी में चले गए अब खाना नही मिलेगा यह कहना खराब लगता है। सरकार को चाहिए की जब तक बच्चें दसवीं पास नही कर जाए खाना खिलाना चाहिए। दसवीं के बाद बच्चें अपने आप विद्यालय से निकल जाते हैं। शिक्षकों की कमी के कारण यहां एनसीसी बंद कर दिया गया। पहले एनसीसी होता था। एनसीसी शिक्षक के लिए अधिकतम उम्र की एक सीमा है। ज्यादातर शिक्षक वरिष्ठ हो गए। सरकारी विद्यालय की तरह बच्चों को नियमित रूप से किताब नही मिलता है। बच्चों को शिक्षण कीट भी नही मिलता है। शिक्षकों की भारी कमी के बावजूद हमारे विद्यालय का परीक्षा परिणाम शत प्रतिशत रहा। छात्रों को स्कॉलरशिप तो मिलता हैं पर सभी छात्र को नही मिलता है। विद्यालय के तरफ से सभी का नाम भेजा जाता हैं पर मिलता कुछ को हैं। जिन बच्चों छात्रवृत्ति को नही मिलता हैं उनके अभिभावक नाराज हो कर शिकायत करते हैं। चूंकि सरकार सीधे बच्चों के खाते में पैसा डालती है इसलिए हमलोग को पता भी नही चलता किनकों पैसा मिला किनकों नही। सरकार जिन बच्चों को छात्रवृत्ति दे दी,उसकी एक सूची विद्यालय को भेजना चाहिए ताकि हमलोग जान सके की कौन बच गए है। छात्रवृत्ति वितरण में नहीं बरती जाती है पारदर्शिता विद्यालय से सभी पात्र छात्रों के नाम छात्रवृत्ति के लिए भेजे जाते हैं, लेकिन सरकार किन्हें यह लाभ देती है, इसकी जानकारी विद्यालय को नहीं दी जाती। जिन छात्रों को छात्रवृत्ति नहीं मिलती, उनके अभिभावक विद्यालय से नाराज होकर सवाल करते हैं। विद्यालय प्रशासन के पास कोई सूचना नहीं होने से स्थिति और बिगड़ती है। अगर सरकार द्वारा लाभार्थियों की सूची विद्यालय को भी भेजी जाए, तो छात्रों और अभिभावकों को स्पष्ट जानकारी दी जा सकती है और विवाद से बचा जा सकता है। जैसे जैसे कुछ कमरे धंसते गए उनको बंद कर दूसरे कमरें में पढाई होने लगी। विद्यालय भवन को हेरिटेज घोषित किया जाए संत कोलम्बा कॉलेजियट स्कूल हजारीबाग का ऐतिहासिक विद्यालय है, जिसकी स्थापना 1895 में हुई थी। यह भवन पहले ब्रिटिश सैन्य छावनी था, जिसे विद्यालय के रूप में तब्दील किया गया। अब भी यह विद्यालय उसी पुराने भवन में संचालित हो रहा है। इसकी ऐतिहासिक महत्ता, स्थापत्य शैली और शैक्षणिक योगदान को देखते हुए इसे हेरिटेज भवन घोषित किया जाना चाहिए। इससे इसके संरक्षण और विकास की दिशा में विशेष प्रयास किए जा सकेंगे और आने वाली पीढ़ियों के लिए यह धरोहर बनी रहेगी। अभी विद्यालय में प्रयोगशाला नही है। कभी हजारीबाग के विद्यालयों में इसका प्रयोगशाला सबसे बढिया था। शिक्षकों की भारी कमी से परेशानी संत कोलम्बा कॉलेजियट स्कूल में शिक्षकों की भारी कमी है। केवल पांच शिक्षक हैं जबकि विद्यालय में दसवीं तक की कक्षाएं चलती हैं। गणित जैसे महत्वपूर्ण विषय में वर्षों से कोई शिक्षक नहीं है। एक ही शिक्षक को कई विषय पढ़ाने पड़ते हैं, जिससे पढ़ाई की गुणवत्ता प्रभावित होती है। इस स्थिति से बच्चे मानसिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ रहे हैं। प्रबंधन समिति और राज्य सरकार को शीघ्र संज्ञान लेकर शिक्षकों की नियुक्ति सुनिश्चित करनी चाहिए। हजारीबाग वैसे विद्यालयों से भरा है जो अपना शताब्दीं समारोह मना चुका है। शहर की ख्याति सूबे या देश अन्य हिस्सों में होने का एक प्रमुख कारण ऐसे संस्थान है। स्कूल में प्रयोगशाला तक नहीं विद्यालय की प्रयोगशाला कई वर्षों से बंद है। भवनों के जर्जर होने और जगह की कमी के कारण प्रयोगशाला की व्यवस्था खत्म हो गई। न कोई अलग कमरा है, न प्रयोग के उपकरण, न ही आवश्यक रसायन या सामग्री। विज्ञान विषय को केवल थ्योरी और कुछ पुराने उपकरणों की मदद से पढ़ाया जा रहा है। इससे बच्चों की व्यावहारिक समझ कमजोर हो रही है। विज्ञान की प्रभावी शिक्षा के लिए प्रयोगशाला का पुनर्निर्माण और सामग्री की आपूर्ति जरूरी है। इन विद्यालयों से पढे बच्चे देश विदेश में बडे़ पदों पर आसीन रहे हैं। बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले इसके लिए हम सब शिक्षक प्रयासरत हैं। संसाधनों की कमी को ठीक करना सरकार और प्रबंधन कमेटी के हाथ में है। हम उनके संज्ञान में चीजों को लाने का प्रयास करते हैं। कई बार सरकार से मांग की गई है, मगर आजतक ध्यान नहीं है। -ममता नीता भेंगराज, प्राचार्य, संत कोलंबा कॉलेजिएट स्कूल, हजारीबग मिशन स्कूल में सुधार की काफी गुंजाइश है फंड की कमी के कारण इसमें सुधार नहीं हो पा रहा है लेकिन इसके लिए विशेष ध्यान देने की जरूरत है यहां के कई विद्यार्थी अच्छे पदों पर हैं। सबों को एक साथ आगे आना होगा। इससे कुछ हद तक शिक्षा में सुधार आने की उम्मीद है। इसपर सभी को ध्यान देना होगा। -मनीष श्रीवास्तव, पूर्ववर्ती छात्र स्कूल बहुत पुराना और फेमस रहा है। पहले यहां बहुत सारे बच्चे पढ़ते थे। अब कम हो गए हैं। हमें गर्व होता है कि हम ऐसे स्कूल में पढ़ते हैं जहाँ से बड़े अफसर निकले हैं। -बादल कुमार कुछ लोग कहते हैं कि स्कूल को विदेश से पैसा मिलता है। हमें तो कुछ नहीं दिखता। ना नई कुर्सी आती है, ना किताबें मिलती हैं। अगर सच में पैसा आता तो स्कूल में कुछ नया होता। -शांति कुमारी हमसे चौदह सौ रुपए साल भर में लिए जाते हैं। उसमें से भी कुछ पैसा सरकार को देना होता है। इतने में स्कूल में सब कुछ करना मुश्किल है। फिर भी मास्टर जी सब कुछ खुद संभालते हैं। -राजश्री हमारे स्कूल के जो पुराने भैया लोग हैं, वो कभी-कभी स्कूल आकर मदद करते हैं। कुछ दान भी देते हैं जिससे क्लास में पंखा या कुछ जरूरी सामान खरीद लिया जाता है। -अग्नि कुमारी अभी स्कूल में सिर्फ पांच शिक्षक हैं। जबकि क्लास तो बहुत सारी हैं। कभी-कभी क्लास खाली भी रह जाती है। हम चाहते हैं कि स्कूल में नए टीचर आएं ताकि पढ़ाई ठीक से हो सके। -मो अर्सेलनहमद क्लास में भीड़ रहती थी। अब धीरे-धीरे सब कम हो गया। बच्चे भी कम हो गए हैं। शायद इसलिए कि टीचर भी कम होते जा रहे हैं। हम चाहते हैं कि पहले जैसा माहौल फिर से बन जाए। -निरंजन कुमार आठवीं तक मिड डे मील मिलता है। अब जैसे ही हम नौंवी में जाएंगे, खाना बंद हो जाएगा। हमें तो अब भी भूख लगती है। सरकार को सोचना चाहिए कि खाना दसवीं तक मिले। -नवीन कुमार यादव स्कूल में पहले एनसीसी होता था। अब वो बंद हो गया। शिक्षक कहते हैं कि कराने वाला कोई नहीं है। हमें एनसीसी बहुत अच्छा लगता था। फिर से शुरू हो तो हम लोग देशभक्ति भी सीख सकें। -अमित राज स्कूल में किताबें नहीं मिलती हैं। कई बच्चे पुराने किताबों से पढ़ते हैं या खुद खरीदते हैं। सरकारी स्कूलों में सब कुछ मिलता है, पर हमें नहीं। स्कूल बैग, किट, स्टेशनरी—कुछ नहीं मिला। -अमित कुमार स्कूल बच्चों का नाम स्कॉलरशिप के लिए भेजता है। लेकिन पैसे कुछ को ही मिलते हैं। हमको नहीं मिला तो मम्मी नाराज़ हो गईं। हम क्या बताएं? हमें ये भी नहीं पता चलता कि किसे मिला। -पीयूष कुमार स्कूल में पहले साइंस की लैब बहुत अच्छी थी। अब नहीं है। हम लोग फोटो दिखाकर ही पढ़ाई करते हैं। कभी सोचते हैं कि अगर लैब होती तो खुद से करके सीखते। पढ़ाई मजेदार होती। -सुमित कुमार हम पांच शिक्षक पूरे स्कूल को किसी तरह चला रहे हैं। एक शिक्षक को दो-तीन विषय पढ़ाते हैं। चयन समिति ने नई बहाली नहीं की। सरकार ध्यान दे, तो ये स्कूल फिर से चमक सकता है। -सुदीप्ता दास

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