जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं के शोध कार्यों में गड़बड़ी का आरोप
रांची विश्वविद्यालय में आदिवासी समन्वय समिति भारत ने जनजातीय भाषाओं में पीएचडी शोध कार्य में गड़बड़ी का आरोप लगाया है। समिति ने राज्यपाल से मिलकर यूजीसी के दिशानिर्देशों का पालन करने और गलत...

रांची, विशेष संवाददाता। आदिवासी समन्वय समिति भारत ने रांची विश्वविद्यालय में जनजातीय भाषाओं (टीआरएल) में पीएचडी शोध कार्य में गड़बड़ी का आरोप लगाया है। समन्वयक देवकुमार धान ने कहा कि समिति के प्रतिनिधियों ने राज्यपाल से मिलकर यूजीसी के दिशानिर्देशों का अनुपालन करने और गलत ढंग से हुए पीएचडी रजिस्ट्रेशन को रद्द करने की मांग करते हुए दोषियों पर उचित कार्रवाई करने का आग्रह किया है। समिति का कहना है कि यूजीसी के वर्ष 2022 के रेगुलेशन का अनुपालन नहीं किया जा रहा है। आरोप लगाया कि रांची विश्वविद्यालय के टीआरएल संकाय में जो शिक्षक पीएचडी उपाधि धारक नहीं हैं, वे भी शोध गाइड बने हुए हैं। नागपुरी भाषा के शोध गाइड मुंडारी भाषा के शिक्षक बन रहे हैं। इसी तरह की गड़बड़ी कुड़ुख, संथाली, खड़िया, हो, मुंडारी व अन्य भाषाओं में भी होने के भी आरोप लगाए गए हैं।
देवकुमार धान ने कहा कि रांची विश्वविद्यालय में पीएचडी को मजाक बना दिया गया है। आरोप लगाया कि साजिश के तहत आदिवासी भाषा और साहित्य लेखन में भारी गड़बड़ी हो रही है। इसके लिए उन्होंने कुलपति और डीन मानविकी को जिम्मेदार ठहराया। कहा कि गैर पीएचडी धारक शोध गाइड बन रहे हैं।
अपनी शिकायत में आदिवासी समन्वय समिति भारत ने कई शिक्षकों के नाम भी दिए हैं, जिनके बारे में समिति का दावा है कि वे पीएचडी नहीं हैं, फिर भी अपने नाम में डॉक्टरेट की उपाधि जोड़ रहे हैं। साथ ही, उन शिक्षकों का भी नाम दिया है जिनके बारे में समिति का दावा है कि ये अपने विषयों के अलावा अन्य विषयों के भी शोध गाइड बने हैं। समिति से इस मामले में जांच की मांग की है।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।