भारतीय ज्ञान प्रणाली में झारखंड की संस्कृति भी पढ़ाई जाएगी: कुलपति
रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय में सरहुल पर्व मनाया गया, जहां कुलपति डॉ अजीत सिन्हा ने आदिवासी संस्कृति और प्रकृति के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने नई शिक्षा नीति के तहत जनजातीय...

रांची, विशेष संवाददाता। रांची विश्वविद्यालय (आरयू) के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय के पद्मश्री डॉ रामदयाल मुंडा अखड़ा में सरहुल पर झारखंड की संस्कृति और प्रकृति का अद्भुत प्रेम दिखा। इस दौरान कुलपति डॉ अजीत सिन्हा ने कहा कि आदिवासी प्रकृति के पुजारी हैं। उन्हें जल, जंगल और जमीन से गहरा लगाव है। लेकिन स्थिति तेजी से बदल रही है। कुलपति बोले, नई शिक्षा नीति में ज्ञान प्रणाली को स्नातक व स्नातकोत्तर में जोड़ा गया है। जुलाई से इसकी पढ़ाई शुरू हो जाएगी। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान प्रणाली में जनजातीय संस्कृति का भी एक हिस्सा रहेगा। उन्होंने सभी नौ जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभागों से जनजातीय संस्कृति से संबंधित पाठ्यक्रम बनाने को कहा। कुलपति ने विद्यार्थियों व शोधार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शोध करने पर जोर देते हुए कहा कि शोध में नए चीजों को स्थान दें। प्रकृति व संस्कृति से संबंधित बातों को सामने लाएं।
टीआरएल संकाय के अखड़ा में पाहान ने विधिवत सरहुल पूजा की। इसके बाद पद्मश्री डॉ रामदयाल मुंडा रचित सरहुल पूजा मंत्र का पाठ विभागीय शिक्षक डॉ बीरेंद्र कुमार सोय ने किया। इसके बाद विभिन्न भाषाओं में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति हुई। संकाय के छात्र-छात्राओं ने कुडुख़, संताली, मुंडारी, खड़िया, हो, नागपुरी, खोरठा, कुरमाली व पंचपरगनिया भाषा में सामूहिक नृत्य-गीत प्रस्तुत किया।
सरहुल मंत्री का किया सामूहिक पाठ
ढोल, मांदर व नगाड़े की थाप से मुंडा अखड़ा गूंजता रहा। छात्राओं ने सरई फूल को एक-दूसरे के बालों पर लगाकर परंपरागत आदिवासी झूमर पेश किया। साथ ही सरहुल मंत्र का सामूहिक पाठ किया गया। संचालन डॉ उमेश नंद तिवारी व डॉ किशोर सुरीन ने किया।
ये लोग भी रहे मौजूद
कार्यक्रम में रजिस्ट्रार डॉ गुरुचरण साहु, प्रॉक्टर डॉ मुकुंद चंद्र मेहता, परीक्षा नियंत्रक डॉ विकास कुमार, अरुण कुमार सिंह, डॉ अशोक सिंह, डॉ अजय कुमार सिंह, मेघनाथ के अलावा शिक्षकगण, कर्मचारीगण, शोधार्थी व बड़ी संख्या विद्यार्थी और संस्कृतिकर्मी उपस्थित थे।
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