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क्या है भारतीय सेना की 'कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन', जिससे हैरान और परेशान हुआ पाकिस्तान

पाकिस्तान के डर के मुताबिक भारत ने तत्काल ऐसा कुछ नहीं किया, लेकिन चौंकाते हुए 6 मई की रात को 9 ठिकानों पर हमला कर दिया। इस तरह दो सप्ताह से भी कम के अंतराल पर पाकिस्तान को करारा जवाब मिला। यही नहीं पाकिस्तान ने भी जब जवाबी ऐक्शन की कोशिश की तो उसके हर हमले को आसमान में ही नेस्तनाबूद कर दिया।

Surya Prakash लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 9 May 2025 04:32 PM
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क्या है भारतीय सेना की 'कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन', जिससे हैरान और परेशान हुआ पाकिस्तान

पहलगाम में आतंकी हमले के अगले ही दिन भारत ने सिंधु जल समझौता रोक दिया। राजनयिकों की संख्या घटा दी, बॉर्डर भी बंद कर दिया गया। इसके साथ ही पाकिस्तान में चिंता होने लगी कि अब भारत कोई भी सैन्य कदम उठा सकता है। पाकिस्तान के डर के मुताबिक भारत ने तत्काल ऐसा कुछ नहीं किया, लेकिन चौंकाते हुए 6 मई की रात को 9 ठिकानों पर हमला कर दिया। इस तरह दो सप्ताह से भी कम के अंतराल पर पाकिस्तान को करारा जवाब मिला। यही नहीं पाकिस्तान ने भी जब जवाबी ऐक्शन की कोशिश की तो उसके हर हमले को आसमान में ही नेस्तनाबूद कर दिया।

भले ही पाकिस्तान के साथ भारत जंग में है, लेकिन सीमांत इलाकों में लोग पहले ही तरह तनाव में नहीं हैं। उन्हें अपनी सेना पर भरोसा है। ऐसा कैसे हुआ? इसका जवाब है भारतीय सेना की- कोल्ड वॉर डॉक्ट्रिन। दरअसल पाकिस्तान के खिलाफ भारत ने इस डॉक्ट्रिन को बीते दो दशकों में तेजी से विकसित किया है, जिसकी शुरुआत 13 दिसंबर 2001 को भारतीय संसद पर हमले की घटना से हुई थी। ब्रिगेडियर (रिटायर्ड) गुरमीत कंवल अपने एक रिसर्च पेपर 'India’s Cold Start Doctrine and Strategic Stability' में लिखते हैं कि संसद पर आईएसआई समर्थित आतंकियों ने हमला किया था। यह पाकिस्तान की ओर से भारत के खिलाफ छेड़ा गया छद्म युद्ध था।

वह लिखते हैं, 'इस हमले के बाद मांग थी कि भारत को कड़ा ऐक्शन लेना चाहिए। देश भर में ऐसे ही हालात थे। उस दौरान यदि तत्काल एयर स्ट्राइक की जाती या फिर सीमित ग्राउंड ऐक्शन होता तो एक अच्छा संदेश जाता। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी एक मेसेज होता। लेकिन भारत के नेताओं ने इंतजार किया ताकि सीमाओं पर सीमा का मजबूती के साथ जमावड़ा हो और पूरा सिस्टम ऐक्टिवेट हो जाए। भारत की तीनों स्ट्राइक कॉर्प्स को टाइम लगा और करीब तीन सप्ताह में वे पहुंच सकीं। इस बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसा दबाव बना और माहौल ऐसा हो गया कि भारत ने कोई ऐक्शन नहीं लिया। ऐसा इसलिए भी था क्योंकि अमेरिका और पश्चिमी ताकतों को उस दौरान तालिबान से निपटने के लिए पाकिस्तान की जरूरत थी।' लेकिन मुख्य वजह यही रही कि सेनाओं की तैयारी में वक्त लगा।

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कैसे 2010 के बाद तेजी से शुरू हुआ डॉक्ट्रिन पर काम

गुरमीत कंवल लिखते हैं कि इसके बाद से ही चीजें बदलीं और भारत ने कोल्ड वॉर डॉक्ट्रिन पर काम शुरू किया। इसके तहत यह रणनीति रहती है कि सेनाओं को रेडी टू मूव मोड में रखा जाए। यदि पाकिस्तान किसी भी तरह का प्रॉक्सी वॉर छेड़ता है या फिर हमला करता है तो उसका पुख्ता जवाब दिया जाए। खासतौर पर 2010 से इस पर काम तेजी से शुरू हुआ। इसकी वजह मुंबई आतंकी हमला था। इस डॉक्ट्रिन का मुख्य फोकस यही है कि सेनाओं की तैनाती तुरंत हो सके। यह कई सप्ताह का नहीं बल्कि कुछ दिन भर का ही काम रहे। दरअसल पाकिस्तान जिस तरह से छद्म युद्ध करता है, उसका जवाब भी यही सीमित अटैक हैं। इनके जरिए पाकिस्तान के साथ ही दुनिया को भी संदेश जाता है कि भारत अब सहेगा नहीं। इसके अलावा जवाब देने में देरी भी नहीं होती। इसमें अडवांस कॉम्युनिकेशन माध्यमों और तीनों सेनाओं के इंटीग्रेशन की अहम भूमिका होती है।