Orissa High Court asks cooperative bank to pay higher salary to a woman working as cashier but getting peon wage 23 सालों से कैशियर का काम, मिल रही थी चपरासी की सैलरी; हाईकोर्ट ने बैंक को फटकारा, India Hindi News - Hindustan
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23 सालों से कैशियर का काम, मिल रही थी चपरासी की सैलरी; हाईकोर्ट ने बैंक को फटकारा

  • ओडिशा हाईकोर्ट ने एक सहकारी बैंक में कैशियर के रूप में काम करने वाली महिला को कम सैलरी देने के मामले में फटकार लगाई है। खबरों के मुताबिक महिला 23 सालों से कैशियर का जॉब कर रहे थी लेकिन उसे चपरासी की सैलरी मिल रही थी।

Jagriti Kumari लाइव हिन्दुस्तान, भुवनेश्वरThu, 17 April 2025 08:06 PM
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23 सालों से कैशियर का काम, मिल रही थी चपरासी की सैलरी; हाईकोर्ट ने बैंक को फटकारा

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि कोई महिला पिछले 2 दशकों से बैंक कैशियर का काम कर रही थी लेकिन उसे सैलरी मिल रही थी महज एक चपरासी की? हाल ही में उड़ीसा से एक ऐसा ही मामला सामने आया है जिसे सुनकर आप भी हैरान रह जाएंगे। इस मामले में ओडिशा हाईकोर्ट ने राज्य के एक कॉपरेटिव बैंक को जमकर फटकार लगाई है। बैंक ने सुनवाई के दौरान 54 वर्षीय महिला को तत्काल रूप से वेतन देने का निर्देश दिया है। महिला लगभग 24 सालों से कैशियर के रूप में काम कर रही थी लेकिन उसे सैलरी महज चपरासी जितनी मिल रही थीं।

हाईकोर्ट में यूनाइटेड पुरी-नीमापारा सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक से जुड़े एक मामले में सुनवाई चल रही थी। महिला कर्मचारी द्वारा दायर 14 साल पुराने मामले का निपटारा करते हुए जस्टिस एमएस रमन की एकल पीठ ने अपने फैसले में कहा कि चूंकि वह 24 सालों से अधिक समय से कैशियर के रूप में अपना कर्तव्य ईमानदारी और निष्ठा से निभा रही है, इसलिए उसे कैशियर के पद के लिए मिलने वाले वेतन से वंचित नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने दिया आदेश

कोर्ट ने बैंक को आदेश दिया, "निम्न ग्रेड के वेतन वाले उच्च पद पर कार्यरत कर्मचारी की सेवा का दो दशकों से अधिक समय तक शोषण करने के बाद, उसे "चपरासी" के पद पर नियमित करना कठोर कदम होगा। अगर कोई कर्मचारी उच्च पद के कर्तव्यों का निर्वहन करता है तो उसे उच्च वेतनमान पाने के उसके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है, खासकर तब जब नियमों के अनुसार उसकी पात्रता और पद पर उसकी क्षमता पर कोई सवाल न हो।"

पति की हो गई थी मृत्यु

बता दें कि तिलोत्तमा बलियारसिंह नाम की इस महिला को जुलाई 1999 में पुनर्वास सहायता योजना के तहत अस्थायी चपरासी के रूप में नियुक्त किया गया थ। उनके पति सहकारी बैंक की एक शाखा में प्रबंधक थे जिनकी मृत्यु हो गई थी। 2001 में उन्हें अक्टूबर 2001 में बैंक का प्रभारी कैशियर बनाया गया था, लेकिन बैंक ने उन्हें कैशियर के पद पर पदोन्नत करने के बजाय, अक्टूबर 2011 में उन्हें चपरासी के रूप में नियमित कर दिया।

आहत होकर कोर्ट पहुंची महिला

बैंक के फैसले से आहत होकर बलियारसिंह ने 2011 में उड़ीसा उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। सुनवाई के दौरान उनके वकील ने तर्क दिया कि केंद्रीय सहकारी बैंकों के कर्मचारी सेवा नियम, 1984 के तहत उनके पास कैशियर के पद के लिए योग्यता थी क्योंकि वह छह साल से अधिक के अनुभव और अच्छे सेवा रिकॉर्ड के साथ मैट्रिक पास थीं।

बैंक को फटकार

हालांकि बैंक ने तर्क दिया कि "ओडिशा के केंद्रीय सहकारी बैंकों के लिए मानव संसाधन नीति" के अनुसार पदोन्नति अधिकार का मामला नहीं है और नियमों के तहत बलियारसिंह के पास कैशियर के पद पर सीधी भर्ती के लिए योग्यता नहीं थी। बैंक के तर्क को खारिज करते हुए, उच्च न्यायालय ने कहा कि बैंक के मौजूदा नियमों के अनुसार, किसी मृतक कर्मचारी की विधवा को "योग्यता के अनुरूप किसी भी पद" पर नियुक्त किया जा सकता है। न्यायालय ने कहा कि स्थायी रिक्ति की कमी के कारण शुरू में अस्थायी चपरासी के रूप में नियुक्त किए जाने के बावजूद, बैंक की ओर से दो दशकों से अधिक समय तक उच्च पद पर उनकी सेवाओं का शोषण करना और उन्हें कम वेतन के साथ निचले ग्रेड में नियमित करने का इरादा रखना बैंक की मनमानी है।

रिपोर्ट: देवब्रत मोहंती