हथियार बेचने में रूस की जगह लेना चाहता है भारत
भारत सरकार उन देशों को हथियार बेचने पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जो पहले रूस से हथियार खरीदते थे। प्रधानमंत्री मोदी की नीति के तहत, भारत अब मिसाइल, हेलिकॉप्टर और युद्धपोत भी बेचना चाहता है। भारत ने...

भारत सरकार उन देशों को हथियार बेचने पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जो पहले रूस से हथियार खरीदते थे.हाल के दिनों में भारत ने इस दिशा में सक्रियता काफी बढ़ाई है.भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को दुनिया की फैक्ट्री बनाने में लगे हैं.इस नीति के चलते पिछले कुछ सालों में देश में आईफोन से लेकर दवाइयों तक का उत्पादन बढ़ा है.अब मोदी चाहते हैं कि भारत मिसाइल, हेलिकॉप्टर और युद्धपोत भी दुनिया को बेचे.यूक्रेन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हथियार खरीदार है.अब सरकार चाहती है कि सरकारी एक्सपोर्ट-इंपोर्ट बैंक (एक्जिम) उन देशों को ज्यादा और सस्ते लोन दे जिन्हें राजनीति या क्रेडिट की वजह से सामान्य अंतरराष्ट्रीय कर्ज नहीं मिलता.समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक यह बात दो सरकारी अधिकारियों और उद्योग से जुड़े तीन सूत्रों ने बताई है.रॉयटर्स के मुताबिक भारत विदेशों में अपने रक्षा अटैचियों की संख्या काफी बढ़ाने वाला है.ये अटैची हथियारों की बिक्री में मदद करेंगे.चार अधिकारियों ने बताया कि सरकार अब खुद कुछ हथियार सौदों में बातचीत करेगी.दो अधिकारियों ने कहा कि भारत खासतौर पर उन देशों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है जो पहले हथियारों के लिए रूस पर निर्भर थे.पहले भारत खुद रूस से सुखोई फाइटर या अमेरिका से हॉवित्जर खरीदता था.अपने दो परमाणु-पड़ोसी पाकिस्तान और चीन से निपटने के लिए उसे बड़े हथियारों की जरूरत है.भारत में छोटे हथियार पहले से बनते रहे हैं लेकिन अब निजी क्षेत्र की कंपनियां हथियारों का उत्पादन बढ़ा रही हैं.इनमें आधुनिक हाई-टेक हथियार भी शामिल हैं.रूसी ग्राहकों पर ध्यानहालांकि इस योजना के बारे में सार्वजनिक तौर पर कुछ भी नहीं कहा गया है लेकिन रॉयटर्स का के मुताबिक 15 लोगों ने उसे इस योजना के बारे में बताया है.इसका मकसद विदेशों में हथियारों की बिक्री के लिए सरकार की सीधी भूमिका बढ़ाना है.मौजूदा समय में हथियारों की बिक्री दुनियाभर में तेजी से बढ़ रही है.
भारत के रक्षा मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया.एक्जिम बैंक ने भी टिप्पणी से इनकार किया.रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में एक्स (पहले ट्विटर) पर लिखा, "भारत रक्षा निर्यात बढ़ाने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है"एक भारतीय अधिकारी के मुताबिक 20222 में रूस का यूक्रेन पर हमला एक टर्निंग पॉइंट था.रूस और अमेरिका जैसे देशों ने अपने हथियार यूक्रेन युद्ध में झोंक दिए.ऐसे में कई देश जो इन पर निर्भर थे, उन्हें नए विकल्पों की जरूरत पड़ी.भारत ने रूस और पश्चिम दोनों से हथियार खरीदे हैं.इसलिए अब देशों की दिलचस्पी भारत में बढ़ी है.रूस की हथियार कंपनी रोसोबोरोनएक्सपोर्ट ने कहा कि वह भारत के साथ मिलकर तीसरे देशों को हथियार बेचने की बात कर रही है.जबकि पेंटागन यानी अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.भारत ने 2023-24 में 14.8 अरब डॉलर के हथियार बनाए.यह 2020 के मुकाबले 62 फीसदी ज्यादा है.कुछ भारतीय हथियार यूक्रेन में भी इस्तेमाल हुए हैं.अब भारत विदेशी प्रतिनिधिमंडलों की मीटिंग अपने हथियार निर्माताओं से करवा रहा है.साथ ही सैन्य अभ्यासों में हेलिकॉप्टर जैसे हाई-टेक हथियार दिखा रहा है.लंदन के इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर स्ट्रैटिजिक स्टडीज के रिसर्चर विराज सोलंकी ने कहा, "भारत को अपने नए हथियारों को खुद ज्यादा इस्तेमाल करना होगा.तभी बाकी देशों को यकीन होगा"तेज और सस्ते हथियारफिलहाल भारत ज्यादातर छोटे हथियार, गोलियां और पार्ट्स बेचता है लेकिन सरकार का लक्ष्य 2029 तक हथियारों का निर्यात दोगुना कर 6 अरब डॉलर तक ले जाना है.भारत ने 2023-24 में 3.5 अरब डॉलर का लक्ष्य रखा था, लेकिन यह करीब एक-तिहाई कम रहा.
फिर भी, 10 साल पहले के 23 करोड़ डॉलर से ये काफी ज्यादा है.दुनिया में हथियारों की मांग तेज है और कमजोर अर्थव्यवस्थाओं के चलते देशों के पास हथियार खरीदने के लिए धन नहीं है.ऐसे में भारत खुद को एक सस्ते प्रोड्यूसर के तौर पर पेश कर रहा है.भारतीय कंपनियां 155 मिलीमीटर के तोपों के गोले 300 से 400 डॉलर में बना रही हैं.यूरोप में यही गोलियां 3,000 डॉलर से ज्यादा में बिकती हैं.भारत ने हॉवित्जर तोपें 30 लाख डॉलर में बेची हैं, जो यूरोपीय कीमत का आधा है.जहां पश्चिमी देश शीत युद्ध के बाद अपना उत्पादन घटा चुके थे, भारत की सरकारी कंपनी म्यूनिशन इंडिया ने अपनी क्षमता बनाए रखी.सेवानिवृत्त नौसेना अधिकारी और केपीएमजी में रक्षा सलाहकार गौतम नंदा ने कहा, "भारत ने कभी प्रोडक्शन में कटौती नहीं की, क्योंकि हमारे सामने पाकिस्तान और चीन थे"अब निजी कंपनियां जैसे अदाणी डिफेंस और एसएमपीपी भी 155 एमएम के गोले बना रही हैं.एसएमपीपी ने बताया कि कुछ विदेशी सरकारें पहले ही ऑर्डर दे चुकी हैं.एसएमपीपी के सीईओ आशीष कंसल ने कहा, "इस बदलते माहौल में तोप के गोलों की भारी मांग दिख रही है"हाई-टेक हथियारनई नीति के तहत एक्जिम बैंक अब देशों को ज्यादा लोन देगा ताकि भारत हाई-टेक हथियार बेच सके.2023-24 में एक्जिम ने 18.32 अरब डॉलर का कर्ज दिया था.एक्जिम का यह काम उसकी कमर्शियल यूनिट करेगी.इसमें सरकार गारंटी देगी, लेकिन सारा पैसा बजट से नहीं आएगा.एक इंडस्ट्री सूत्र ने बताया कि भारतीय हथियार कंपनियों ने इस फाइनेंसिंग के लिए काफी लॉबिंग की थी.एक भारतीय राजनयिक ने कहा कि देश के ज्यादातर बैंक हाई रिस्क वाले देशों को लोन देने से बचते हैं.इसलिए भारत बड़े सौदों में फ्रांस, तुर्की और चीन से पिछड़ता रहा है.ये देश अपने पैकेज में फाइनेंसिंग भी देते हैं.भारत अब ब्राजील जैसे बाजारों में घुसने की कोशिश भी कर रहा है.
एक्जिम ने जनवरी में वहां दफ्तर खोला है.भारत ब्राजील को आकाश मिसाइल बेचने की बात कर रहा है.साथ ही ब्राजील के लिए युद्धपोत बनाने का भी सौदा चल रहा है.आकाश मिसाइल के पार्ट्स बनाने वाली भारत इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी ने साओ पाउलो में ऑफिस खोला है.ब्राजील की सेना ने रॉयटर्स को बताया कि आकाश के डेवेलपरों से जानकारी मांगी गई थी, लेकिन खरीद का फैसला अब तक नहीं हुआ है.भारत इलेक्ट्रॉनिक्स ने कोई जवाब नहीं दिया.रणनीतिक आजादीभारत का ध्यान अफ्रीका, साउथ अमेरिका और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों पर है.2026 तक भारत कम से कम 20 नए रक्षा अटैची विदेश भेजेगा.इनकी पोस्टिंग अल्जीरिया, मोरक्को, गुयाना, तंजानिया, अर्जेंटीना, इथियोपिया और कंबोडिया जैसे देशों में होगी.इन अटैचियों को भारतीय हथियार प्रमोट करने की जिम्मेदारी दी गई है.उन्हें यह भी पता लगाना है कि उनके देश को किस तरह के हथियारों की जरूरत है.एक अधिकारी ने बताया कि इसके साथ ही पश्चिमी देशों में तैनात कुछ अटैची को वहां से हटाया जाएगा.इन देशों का इतिहास भी सोवियत यूनियन और रूस से हथियार खरीदने का रहा है.एक कामयाब मिसाल अर्मेनिया की है, जहां भारत ने पहली बार पिछले साल एक रक्षा अटैची भेजा.अर्मेनिया पहले रूस से ही हथियार खरीदता था.हालांकि अब भारत ने वहां रूस का एकाधिकार तोड़ दिया है.2022 से 2024 के बीच भारत ने अर्मेनिया को उसके कुल हथियार आयात का 43 फीसदी सप्लाई किया.2016 से 2018 के बीच ये हिस्सा लगभग शून्य था.