जब SC में भिड़ गए अटॉर्नी जनरल और पूर्व अटॉर्नी जनरल, मीलॉर्ड ने भी ली चुटकी
केरल सरकार ने अपनी याचिका में यह घोषित करने की मांग की है कि संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग किए बिना अनिश्चित काल तक विधेयकों को रोकने की राज्यपाल की कार्रवाई अनैतिक और मनमानी है।

सुप्रीम कोर्ट में आज (मंगलवार, 22 अप्रैल को) अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल के बीच तीखी बहस हो गई। इस कानूनी बहस में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणी का साथ देने लगे और दोनों सरकारी कानूनी अधिकारी पूर्व AG के तर्कों का विरोध करने लगे। दरअसल, पूर्व अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल एक केस में केरल सरकार का प्रतिनिधित्व करने पहुंचे थे, जिसमें मांग की गई थी कि तमिलनाडु के राज्यपाल की ही तरह केरल के राज्यपाल को भी विधेयकों पर फैसला लेने के लिए निर्देश दिया जाए।
इस पर अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने केरल सरकार की इस दलील का विरोध किया कि तमिलनाडु के राज्यपाल के बारे में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले में केरल के राज्यपाल द्वारा राज्य विधेयकों को मंजूरी देने में अनुचित देरी के आरोपों से जुड़े मामले को शामिल किया जाए। केंद्र सरकार ने कहा कि तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा विधेयकों को मंजूरी देने में देरी से संबंधी शीर्ष अदालत के आठ अप्रैल, 2025 के फैसले में केरल का मामला शामिल नहीं है।
सॉलिसिटर जनरल ने मांगा समय
जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ के समक्ष सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तमिलनाडु के फैसले का अध्ययन करने के लिए समय की मांग करते हुए कहा कि यह (तमिलनाडु का मामला) केरल के मामले से अलग है। शीर्ष अदालत ने 8 अप्रैल, 2025 के अपने फैसले में तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा विधेयकों को मंजूरी देने में देरी पर कई सवाल उठाए थे।
इस दौरान अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कहा कि तमिलनाडु का निर्णय तथ्यों के आधार पर वर्तमान मामलों (केरल) के कुछ मुद्दों को कवर नहीं करता है। उन्होंने कहा,“हम उन अंतरों को दिखाना चाहेंगे।” इस पर केरल सरकार की ओर से पेश के वेणुगोपाल ने शुरुआत में कहा कि केरल मामला तमिलनाडु मामले में हाल ही में दिए गए फैसले के अंतर्गत आता है। मुद्दा यह है कि राष्ट्रपति को संदर्भित करने की समय सीमा क्या है, जिसे तीन महीने का माना गया है। उन्होंने बताया कि यह केंद्र सरकार द्वारा जारी परिपत्र के अनुसार है।
मीलॉर्ड ने ली चुटकी
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, इस बीच, जस्टिस नरसिम्हा ने वेणुगोपाल को संबोधित करते हुए चुटकी ली और हल्के-फुल्के अंदाज में मौखिक टिप्पणी की, "जब भी मैं आपसे मिलता हूं तो आपको मिस्टर एजी कहने को मेरी आदत आगे आ जाती है।" इसके बाद पीठ ने वेणुगोपाल से पूछा कि वह क्या प्रस्ताव रखते हैं और क्या वह याचिका वापस लेना चाहते हैं, क्योंकि वह निर्णय यहां लागू नहीं होता है। इस पर सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि उस निर्णय के सवाल पर जांच कर रहे हैं और इसके लिए कुछ समय दिया जाना चाहिए।
इस पर वेणुगोपाल ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल को यह स्पष्ट करना होगा कि यह सीधे तौर पर शामिल है या नहीं। इस पर मेहता ने कहा कि यह केरल के मामले में शामिल नहीं है। इस बीच, शीर्ष अदालत ने कहा कि एकमात्र सवाल यह देखना है कि क्या शीर्ष अदालत का पुराना निर्णय वर्तमान (केरल) मामले को कवर नहीं करता है। इसके बाद अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद इस मामले पर विचार के लिए छह मई की तारिख तय किया। इस संदर्भ में न्यायालय को यह भी बताया गया कि केरल द्वारा तीन रिट याचिकाएं दायर की गई थीं और केवल एक पीठ के समक्ष सूचीबद्ध थी।
आठ अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला दिया था?
बता दें कि जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने आठ अप्रैल को अपने फैसले में घोषणा की थी कि तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा 10 विधेयकों को मंजूरी न देने का निर्णय ‘अवैध’ और ‘मनमाना’ है और राष्ट्रपति को विधेयकों को मंजूरी देने के लिए तीन महीने की समय-सीमा तय की थी। केरल सरकार ने शीर्ष न्यायालय में याचिका दायर कर राज्य विधानमंडल द्वारा पारित और संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की मंजूरी के लिए प्रस्तुत किए गए कई विधेयकों के संबंध में राज्यपाल की ओर से निष्क्रियता का दावा किया है।
केरल सरकार ने अपनी याचिका में यह घोषित करने की मांग की है कि संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग किए बिना अनिश्चित काल के लिए विधेयकों को रोकने में राज्यपाल की कार्रवाई ‘अनैतिक, मनमानी, निरंकुश और लोकतांत्रिक मूल्यों, सरकार के कैबिनेट रूप के आदर्शों एवं लोकतांत्रिक संविधानवाद तथा संघवाद के सिद्धांतों के विपरीत है।” (भाषा इनपुट्स के साथ)