हनी सिंह के गाने पर जताई थी आपत्ति, दिल्ली HC ने उल्टे याचिकाकर्ता को लगा दी फटकार
- मशहूर गायक और रैपर हनी सिंह के नए गाने मैनियाक पर विवाद खड़ा हो गया है। लव कुश कुमार नाम के एक व्यक्ति ने गाने के बोलों को आपत्तिजनक बताया था। याचिकाकर्ता की मांग थी कि गाने के बोलों में संशोधन करने के निर्देश दिया जाए।

मशहूर गायक और रैपर हनी सिंह के नए गाने मैनियाक पर विवाद खड़ा हो गया है। लव कुश कुमार नाम के एक व्यक्ति ने गाने के बोलों को आपत्तिजनक बताया था। याचिकाकर्ता की मांग थी कि गाने के बोलों में संशोधन करने के निर्देश दिया जाए। हालांकि दिल्ली हाई कोर्ट ने उनकी याचिका में की गई संशोधन वाली मांग को खारिज कर दिया है। याचिका में आरोप लगाया गया था कि गीत महिलाओं का यौन चित्रण करता है और भोजपुरी अश्लीलता का उपयोग करता है। दिल्ली हाई कोर्ट ने रुख कड़ा करते हुए कहा कि अश्लीलता का कोई धर्म या क्षेत्र नहीं होता। ये बिना किसी शर्त के गलत है। अश्लीलता अश्लीलता होती है। कोर्ट की इस फटकार से याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका वापस ले ली है।
हनी सिंह के नए गाने पर याचिकाकर्ता लवकुश कुमार की याचिका पर मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ सुनवाई कर रही थी। पीठ ने लवकुश कुमार के वकील से कहा कि अश्लीलता का कोई धर्म या क्षेत्र नहीं होता। ये बिना किसी शर्त के गलत है।। कभी भी भोजपुरी अश्लीलता न कहें। यह क्या है? अश्लील,अश्लील होता है। गंदा,गंदा होता है। अपनी याचिका में कुमार ने जोर देकर कहा था कि हनी सिंह का गाना स्पष्ट यौन चित्रण को बढ़ावा देता है,दोहरे अर्थ का उपयोग करता है, जिसमें महिलाओं को "यौन इच्छा की वस्तु" के रूप में दर्शाया गया है। इसमें आगे कहा गया कि गीत ने अपनी अश्लील और स्पष्ट सामग्री के लिए महत्वपूर्ण ध्यान आकर्षित किया है और इसके बोल घटिया भाषा,महिलाओं का वस्तुकरण और अनादर और लिंगवाद की संस्कृति में योगदान देने वाले अनुचित संदर्भों से भरे हुए हैं।
दालत ने टिप्पणी की कि लवकुश कुमार की याचिका सुनवाई योग्य नहीं है क्योंकि वह एक निजी व्यक्ति के खिलाफ राहत मांग रहे थे। पीठ ने कहा कि हम कोई रिट जारी नहीं कर सकते। रिट राज्यों,राज्य उपकरणों के खिलाफ जारी किए जाते हैं। आपका मामला सार्वजनिक कानून के दायरे में नहीं,बल्कि निजी कानून के दायरे में है। रिट याचिका दायर नहीं की जा सकती। हालांकि,अदालत ने कुमार को आपराधिक मामला दर्ज करने सहित कानून के तहत अन्य उपायों का पालन करने का सुझाव दिया। अदालत ने कहा कि अगर यह एक अपराध है और यह संज्ञेय है,तो आप एफआईआर क्यों नहीं दर्ज कर सकते? यदि यह दर्ज नहीं की जाती है,तो आपको प्रक्रिया पता है। स्थिति को समझते हुए,याचिकाकर्ता ने याचिका वापस ले ली।