दिल्ली पुलिस में महिलाओं की एक तिहाई भागीदारी के लक्ष्य को पाने में लग सकते हैं 17 साल
-‘इंडिया जस्टिस 2025 की रिपोर्ट में खुलासा -देश के पुलिस बल में 33 फीसदी

-‘इंडिया जस्टिस 2025 की रिपोर्ट में खुलासा -देश के पुलिस बल में 33 फीसदी के लक्ष्य के सापेक्ष महिलाओं की भागीदारी 13 प्रतिशत से भी कम
-33 फीसदी के मानक को पूरा करने में बिहार को 3.3 साल तो झारखंड को लगेंगे 175 साल
नई दिल्ली, प्रभात कुमार
पिछले कुछ सालों में देश के पुलिस बल में महिलाओं की भागीदारी तो बढ़ी है, लेकिन यह अभी भी 13 फीसदी से भी कम है। जिस रफ्तार से महिलाओं की सहभागिता बढ़ रही है, उस स्थिति में देश की राजधानी में ही महिलाओं की एक तिहाई भागीदारी के लक्ष्य को पूरा करने में 17 साल का समय लग सकता है। वहीं महिला सहभागिता के लक्ष्य को पाने में बिहार और आंध्र प्रदेश को 3.3 साल जबकि झारखंड को 175 साल से भी अधिक का समय लगेगा।
इसका खुलासा, ‘इंडिया जस्टिस 2025 की रिपोर्ट में किया गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कानून प्रवर्तन में लैंगिक विविधता की आवश्यकता के बारे में बढ़ती जागरूकता के बावजूद, एक भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ऐसा नहीं है, जहां पुलिस बल में 33 फीसदी महिलाएं हो।
इस रिपोर्ट में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के आंकड़ों का हवाला देते हुए यह बताया गया है कि पुलिस बल में महिलाओं की 33 फीसदी भागीदारी सुनिश्चित करने में कितने साल लगेंगे। टाटा ट्रस्ट द्वारा कई नागरिक संगठनों के साथ तैयार की गई ‘इंडिया जस्टिस रिपोर्ट-2025 में कहा गया है कि बिहार, झारखंड जैसे 14 राज्यों ने पुलिस बल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने में प्रगति की है। इस रिपोर्ट कहा गया कि यदि पुलिस में महिलाओं की बढ़ोतरी इसी दर से हुई तो 33 फीसदी महिलाओं के भागीदारी सुनिश्चित करने में बिहार और आंध्र प्रदेश को महज 3.3 साल लगेंगे जबकि झारखंड को 175 साल और त्रिपुरा को 222 साल से भी अधिक वक्त लगेगा। इस लक्ष्य को पाने में कर्नाटक 115.7 साल, राजस्थान 92 साल, मध्य प्रदेश व पश्चिम बंगाल को 80 साल, उत्तर प्रदेश को 44.9 साल, उत्तराखंड 31 साल और दिल्ली को 17 साल का वक्त लगेगा।
महानिदेशक और पुलिस अधीक्षक के पद पर महज 960 महिला अधिकारी
देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 20.3 लाख पुलिस बल में से महज 2 लाख 42 हजार 835 महिलाएं हैं। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025 में कहा गया है कि पुलिस विभाग में महानिदेशक और पुलिस अधीक्षक जैसे वरिष्ठ पदों पर महज 960 वरिष्ठ अधिकारी (आईपीएस रैंक) हैं, जबकि 90 फीसदी महिलाएं कांस्टेबल के रूप में कार्यरत हैं।
टाटा ट्रस्ट ने कई नागरिक संगठनों के साथ मिलकर पुलिस विभाग, न्यायपालिका, जेल और कानूनी सहायता जैसे चार क्षेत्रों में राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की स्थिति का आकलन करते हुए यह रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस विभाग में 24,322 महिलाएं उप-अधीक्षक, निरीक्षक या उप-निरीक्षक जैसे गैर-आईपीएस अधिकारी पदों पर कार्यरत हैं। देश में आईपीएस अधिकारियों की अधिकृत संख्या 5,047 है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस बल में कुल 2 लाख 42 हजार 835 महिलाओं में से 2 लाख 17 हजार महिलाएं सिपाही के पद पर कार्यरत हैं। पुलिस उपाधीक्षक के पद पर सबसे ज्यादा महिलाएं मध्य प्रदेश में हैं, जहां इनकी संख्या 133 है।
आंकड़े
-रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में 78 फीसदी थानों में हैं महिला हेल्प डेस्क।
-83 फीसदी में लगे हैं सीसीटीवी
- 86 फीसदी जेलों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा।
- 8 राज्यों ने 300 महिला कैदियों पर 1 डॉक्टर के अनुपात को पूरा किया।
- पूरे देश में 10 हजार फॉरेंसिक एक्सपर्ट में से 50 फीसदी पद रिक्त
- 176 जेलों में कैदियों की संख्या क्षमता से 200 फीसदी है
- 20 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में 20 फीसदी से अधिक विचाराधीन कैदी 1 से 3 साल तक हिरासत में रहते हैं।
कानूनी सहायता पर खर्च बढ़ा
रिपोर्ट के मुताबिक कानूनी सहायता पर प्रति व्यक्ति खर्च 2019 से 2023 के बीच लगभग दोगुना हो गया है। 2023 में कानूनी सहायता पर खर्च 6.46 रुपये पर पहुंच गया।
10 लाख की अबादी पर महज 15 जज
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में प्रति 10 लाख आबादी पर महज 15 न्यायाधीश हैं। जबकि विधि आयोग ने 1987 में सरकार को भेजी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि देश में प्रति 10 लाख की आबादी पर 50 न्यायाधीश होने चाहिए ताकि समय पर लोगों को न्याय मिल सके। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में 140 करोड़ लोगों के लिए 21,285 न्यायाधीश हैं जोकि प्रति 10 लाख की आबादी पर लगभग 15 न्यायाधीश हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, उच्च न्यायालयों में 33 फीसदी जजों के पद रिक्त है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय स्तर पर जिला न्यायालयों में प्रति न्यायाधीश औसत कार्यभार 2,200 मामले है। इलाहाबाद और मध्यप्रदेश उच्च न्यायालयों में प्रति न्यायाधीश मुकदमों का बोझ 15,000 है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जिला न्यायपालिका में महिला न्यायाधीशों की भागीदारी 2017 में 30 फीसदी से बढ़कर 38.3 फीसदी हो गई है और 2025 में उच्च न्यायालयों में यह 11.4 प्रतिशत से बढ़कर 14 फीसदी हो गई है। वर्तमान में, 25 उच्च न्यायालयों में केवल एक महिला मुख्य न्यायाधीश है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली की जिला अदालतों में सबसे कम रिक्तियां है। दिल्ली में 11 फीसदी रिक्तियां। जबकि यहां 45 फीसदी जज महिलाएं हैं। रिपोर्ट के मुताबिक जिला न्यायपालिका में केवल 5 फीसदी न्यायाधीश एसटी से और 14 फीसदी एससी से हैं। वर्ष 2018 से नियुक्त उच्च न्यायालय के 698 न्यायाधीशों में से केवल 37 न्यायाधीश एससी और एसटी श्रेणियों से हैं। रिपोर्ट के मुताबिक न्यायपालिका में अन्य पिछड़ी जातियों कुल भागीदारी 25.6 फीसदी है।
प्रशिक्षण पर खर्च करने में दिल्ली पुलिस आगे
रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली पुलिस अपने कर्मियों के प्रशिक्षण पर खर्च करने में देश में सबसे आगे है। साथ ही दिल्ली पुलिस में महिलाओं की संख्या सबसे अधिक है, लेकिन अधिकारियों के पदों पर बढ़ती रिक्तियों के कारण निर्णय लेने की प्रक्रिया धीमी हो रही है। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली पुलिस अपने बजट का 2 फीसदी प्रशिक्षण के लिए आवंटित करती है जो राष्ट्रीय औसत 1.25 फीसदी से काफी अधिक है। दिल्ली पुलिस प्रति कर्मी प्रशिक्षण पर 28,614 रुपये खर्च करती है जो देश में सबसे अधिक है।
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