बिहार के लिए महत्वपूर्ण:::::प्रवासी लड़की की यात्रा अब केरल के स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा
-बिहार के दरभंगा से केरल पहुंची थी छात्रा -फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर अपना करियर

कोच्चि, एजेंसी। एर्नाकुलम के एलूर के पास मुप्पाथादम में एक छोटे से टाइल वाले घर में हाल के दिनों में कई आगंतुक आ रहे हैं। यहां लोग मूल रूप से बिहार की रहने वाली युवती धरक्षा परवीन से मिलने और उसे बधाई देने आ रहे हैं, जिसकी जीवन कहानी अब स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा है। मलयालम में लिखी गई संस्मरण पुस्तक, थोझिलिन्ते रुचि, भाषायुदेयम (श्रम और भाषा का स्वाद), याद दिलाती है कि कैसे उसके गरीब परिवार ने दरभंगा में कोई संसाधन या उचित शैक्षिक बुनियादी ढांचा न होने के बावजूद, केरल पहुंचने के बाद अपने जीवन को फिर से बनाया।
धरक्षा ने बताया कि बिहार में मैंने तीसरी कक्षा तक पढ़ाई की। स्कूल में बेंच, डेस्क या पर्याप्त शिक्षक नहीं थे। जब हम केरल आए, तो मैंने यहां चौथी कक्षा में दाखिला लिया। हमारे पास वह सब कुछ था, जिसकी हमें जरूरत थी। अच्छा फर्नीचर, किताबें और शिक्षक। मेरे भाई-बहन भी यहां स्कूल गए। धरक्षा ने जल्द ही मलयालम सीखना शुरू कर दिया। धरक्षा के पिता मुहम्मद समीर एर्नाकुलम में एक फुटवियर निर्माण कंपनी में काम करते हैं। छोटी उम्र से ही धरक्षा अपने दम पर कुछ कमाने के लिए उत्सुक थी। उसने 10वीं कक्षा पूरी करने के तुरंत बाद आईटीआई कोर्स में दाखिला ले लिया। धरक्षा ने कहा कि मैं फैशन डिजाइनिंग का अध्ययन करना चाहती थी, क्योंकि मुझे हमेशा से कपड़े बनाने का शौक रहा है। अब मैं उस क्षेत्र में काम कर रही हूं और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से हिंदी भाषा में डिग्री भी हासिल कर रही हूं।
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