ISRO to Study Toughest Creature on Earth - Tardigrades in Space Experiment डीपी 1 ::: एक्सिम-4 मिशन में इसरो भेजेगा आठ पैरों वाला 'भालू', Delhi Hindi News - Hindustan
Hindi NewsNcr NewsDelhi NewsISRO to Study Toughest Creature on Earth - Tardigrades in Space Experiment

डीपी 1 ::: एक्सिम-4 मिशन में इसरो भेजेगा आठ पैरों वाला 'भालू'

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) टार्डिग्रेड्स पर प्रयोग करेगा, जो पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे कठोर जीव हैं। यह प्रयोग अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर होगा, जिसमें टार्डिग्रेड्स के...

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 18 April 2025 08:36 PM
share Share
Follow Us on
डीपी 1 ::: एक्सिम-4 मिशन में इसरो भेजेगा आठ पैरों वाला 'भालू'

- पृथ्वी पर हर जगह पाए जाने वाले सबसे कठोर जीव टार्डिग्रेड्स पर होगा प्रयोग - 0.3 मिमी से 0.5 मिमी के बीच होती है लंबाई

- 1773 में खोजा गया था टार्डिग्रेड्स

- आईएसएस पर सूक्ष्म जीव के पुनरुद्धार, प्रजनन और विकसित आबादी की होगी जांच

- गगनयान मानव अंतरिक्ष यान मिशन में मिलेगा सहयोग

बेंगलुरु, एजेंसी।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अपने रोमाचंक अंतरिक्ष मिशन एक्सिओम-4 के लिए तैयार है। इस मिशन में भारतीय वायुसेना के पायलट शुभांशु शुक्ला 14 दिनों के लिए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर अनोखे प्रयोग का हिस्सा बनेंगे।

रिपोर्ट के मुताबिक, इसरो पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे कठोर जीव टार्डिग्रेड्स (वॉटर बीयर) को आईएसएस पर शोध के लिए भेजगा। इसे वॉयेजर टार्डिग्रेड्स प्रयोग नाम दिया गया है। यह आईएसएस पर लॉन्च किए जा रहे सात अन्य अध्ययनों का हिस्सा है। इस दौरान अंतरिक्ष में टार्डिग्रेड्स के पुनरुद्धार, प्रजनन और अंतरिक्ष में विकसित आबादी की जांच की जाएगी। दरअसल, टार्डिग्रेडा नाम का अर्थ लैटिन में 'धीमा कदम रखने वाला' है। जो उनकी सुस्त, भालू जैसी हरकत को दर्शाता है।

क्या है वाटर बियर

टार्डिग्रेड्स को 'वाटर बियर' या 'मॉस पिगलेट' के नाम से भी जाना जाता है। पानी में रहने वाले यह छोटे, आठ पैरों वाले सूक्ष्म जीव हैं, जो किसी भी परिस्थिति में जिंदा रहने के लिए प्रसिद्ध हैं। इनकी लंबाई मुश्किल से 0.3 मिमी से 0.5 मिमी के बीच होती है। इन्हें देखने के लिए माइक्रोस्कोप की जरूरत होती है।

धरती पर हर जगह पाए जाते हैं

दरअसल, टार्डिग्रेड्स पृथ्वी पर लगभग हर जगह पाए जा सकते हैं। इसमें काई, लाइकेन, मिट्टी, पत्ती के अवशेष, मीठे पानी, समुद्री वातावरण, ऊंचे पहाड़, गहरे समुद्र, गर्म झरने और यहां तक ​​कि ध्रुवीय बर्फ भी शामिल हैं। इन्हें सबसे पहले 1773 में जर्मन प्राणी विज्ञानी जोहान ऑगस्ट एप्रैम गोएज ने खोजा था।

अंतरिक्ष में क्यों भेज रहे

वैज्ञानिक टार्डिग्रेड्स को उनके असाधारण जीवित रहने के तंत्र के कारण अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए जैविक सोने की खान मानते हैं। वैज्ञानिक यह पता लगा सकेंगे कि टार्डिग्रेड्स अपने डीएनए की सुरक्षा और मरम्मत कैसे करते हैं। ये सूक्ष्म जीव तीव्र ब्रह्मांडीय विकिरण के चरम स्तरों को झेलने में भी सक्षम हैं। उनका लचीलापन लंबी अवधि की अंतरिक्ष यात्रा के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए आदर्श मॉडल बनाता है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि सूक्ष्म जीव के लचीलापन के कारण लंबे अंतरिक्ष मिशनों के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा के तरीके खोज पाएंगे, जहां विकिरण का स्तर पृथ्वी की तुलना में बहुत अधिक होता है।

भारत के लिए महत्व

वॉयजर टार्डिग्रेड्स प्रयोग से प्राप्त जानकारियों की बदौलत जीवन की सीमाओं के बारे में समझ विकसित होगी। साथ ही यह गगनयान मानव अंतरिक्ष यान मिशन और उससे आगे के अन्य मिशनों के लिए भी महत्वपूर्ण हो सकता है। इसके अलावा, वैज्ञानिक बेहतर अंतरिक्ष यात्री सुरक्षा प्रणाली विकसित करने और जैव प्रौद्योगिकी में नवाचारों को आगे बढ़ाने में भी मददगार होगा।

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।