Charging spouse in disproportionate assets case by vigilance without proof is against law, rules Orissa High Court पत्नियों को फंसाना फैशन बन गया है... आय से अधिक संपत्ति के मामले में HC की तल्ख टिप्पणी, India Hindi News - Hindustan
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पत्नियों को फंसाना फैशन बन गया है... आय से अधिक संपत्ति के मामले में HC की तल्ख टिप्पणी

अदालत ने आरोपी की पत्नी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए कहा कि अधिकांश मामलों में ऐसा रिश्ते, विश्वास या प्रेम और स्नेह के कारण होता है, लेकिन अपराध में भाग लेने की उनकी कोई मंशा नहीं दिखती।

Pramod Praveen हिन्दुस्तान टाइम्स, देबब्रत मोहंती, भुवनेश्वरFri, 18 April 2025 08:03 PM
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पत्नियों को फंसाना फैशन बन गया है... आय से अधिक संपत्ति के मामले में HC की तल्ख टिप्पणी

ओडिशा हाई कोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में फंसे एक सरकारी कर्मचारी की पत्नी के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए बड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि आजकल बिना सबूत के आरोपी की पत्नी को केस में फंसा देना फैशन बन गया है। हाई कोर्ट ने कहा कि आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामलों में पति-पत्नी को जानबूझकर फंसाना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

2004 में आय से अधिक संपत्ति के एक मामले में आरोपी बनाए गए मोटर वाहन निरीक्षक की पत्नी द्वारा दायर मामले पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि अक्सर सतर्कता विभाग संपत्ति हासिल करने के लिए पति-पत्नी या आश्रितों को स्वत: जोड़ देता है, जो केवल नाममात्र के ऋणदाता होते हैं। बड़ी बात यह भी है कि 21 साल पुराने इस मामले में अभी तक सुनवाई शुरू नहीं हुई है।

गहन छानबीन किए बिना बना दिया जाता है आरोपी

जस्टिस आदित्य महापात्रा की एकल पीठ ने मोटर वाहन निरीक्षक की पत्नी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए कहा, "अधिकांश मामलों में ऐसा रिश्ते, विश्वास या प्रेम और स्नेह के कारण होता है, लेकिन अपराध में भाग लेने की उनकी कोई मंशा नहीं दिखती। ऐसे आश्रितों को कथित अपराध में उनके आचरण और भूमिका के संबंध में प्रारंभिक जांच किए बिना ही जोड़ना एक फैशन बन गया है। अभियुक्तों की ऐसी मंशा का पता लगाने के लिए न तो कोई जांच की जाती है और न ही ऐसे आश्रितों की संलिप्तता स्थापित करने के लिए कोई प्रथम दृष्टया सामग्री रिकॉर्ड पर लाई जाती है। इसके साथ ही जांच एजेंसिया उनके नाम पर दर्ज संपत्तियों को इस तथ्य की छानबीन किए बिना ही कि वह संपत्ति गलत तरीके से अर्जित की गई है,उन संपत्तियों को बहुत आसानी से कुर्की और जब्ती कर लेती हैं अपराध में उनकी संलिप्तता के संबंध में किसी विशिष्ट सामग्री के अभाव में पत्नी, जो एक गृहिणी है, को गिरफ्तार करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।"

क्या है मामला?

दरअसल, ओडिशा सतर्कता विभाग ने आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोपों की जांच के बाद भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत जूनियर मोटर वाहन निरीक्षक (एमवीआई) चित्तरंजन सेनापति के खिलाफ 2004 में मामला दर्ज किया था। सेनापति को मुख्य आरोपी के रूप में चार्जशीट में नामजद किया गया था। जांच में पाया गया है कि सेनापति ने कथित तौर पर 29.65 लाख रुपये की संपत्ति अर्जित की है, जो उनकी आय के सभी ज्ञात स्रोतों से अधिक है। उसी वर्ष, सतर्कता विभाग ने उनकी पत्नी सस्मिता प्रधान को भी इस मामले में आरोपी बना दिया।

पीड़िता पहुंचीं हाई कोर्ट

2024 में सस्मिता ने हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें ट्रायल कोर्ट में उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को चुनौती दी गई। सुनवाई के दौरान, उनके वकील ने कहा कि सतर्कता विभाग के अधिकारियों ने उन्हें केवल आय से अधिक संपत्ति मामले में मुख्य आरोपी की पत्नी होने के आधार पर भारतीय दंड संहिता की धारा 109 के तहत अवैध रूप से फंसाया है। उन्होंने तर्क दिया कि अभियुक्त की पत्नी होने मात्र से वह स्वतः ही आरोपी नहीं बन जाती।

उनके वकील ने दावा किया कि सतर्कता विभाग ने उनकी आय के कई वैध स्रोतों जैसे उनके कोल्ड स्टोरेज और अन्य व्यवसायों से होने वाली आय, जिन्हें वह 1995 से चला रही थीं और जिनके लिए वह नियमित कर चुका रही थीं, का हिसाब नहीं दिया या जानबूझकर उन्हें हटा दिया। जांच अवधि (1996-2004) के दौरान इन व्यवसायों से कुल आय 12.32 लाख रुपये थी, जैसा कि प्रारंभिक तलाशी के दौरान बरामद आयकर रिटर्न से पता चलता है।

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उनके वकील ने तर्क दिया कि आरोप पत्र में उनकी संपत्ति के रूप में शामिल 5.58 लाख रुपये मूल्य का फ्लैट वास्तव में किसी बाहरी व्यक्ति का था। उन्होंने कहा कि एक स्कूटर को छोड़कर, कोई अन्य महत्वपूर्ण चल या अचल संपत्ति उनके नाम पर नहीं थी। इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि जो भी संपत्ति थी, वह उनके पति द्वारा अर्जित की गई थी और उनके कथित जमी में उनकी कोई भूमिका नहीं थी। नतीजतन, उनके मामले में आईपीसी की धारा 109 के तत्व संतुष्ट नहीं थे। हाई कोर्ट ने इस बात पर गौर करते हुए कि दो दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद भी इस मामले में अभी तक कोई आरोप तय नहीं किया गया है और कोई सुनवाई शुरू नहीं हुई है, आदेश दिया कि मोटर वाहन निरीक्षक के संबंध में सुनवाई यथासंभव शीघ्र पूरी की जानी चाहिए।