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बोले मेरठ : बंदरों के आतंक से घर बने कैदखाना

Meerut News - बागपत रोड पर चंद्रलोक सोसायटी में बंदरों का आतंक बढ़ गया है, जिससे बच्चे और बुजुर्ग डर के साए में जी रहे हैं। हाल ही में एक युवक बंदरों के हमले में घायल हो गया। लोग नगर निगम और वन विभाग की लापरवाही से...

Newswrap हिन्दुस्तान, मेरठFri, 18 April 2025 08:35 PM
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बोले मेरठ : बंदरों के आतंक से घर बने कैदखाना

बागपत रोड पर मौजूद चंद्रलोक सोसायटी में आजकल बच्चे, बड़े और बुजुर्ग डर के साए में नजर आ रहे हैं। बंदरों का आतंक उनके लिए एक डर का पर्याय बन चुका है। जहां गलियों में खेल-कूद करने वाले बच्चे बंदरों के डर से मानों घरों में कैद होकर रह गए हैं। कब बंदरों का झुंड आकर हमला बोल दे, पता नहीं चलता। चंद्रलोक सोसायटी में हाल ही हुए बंदरों के हमले में एक युवक बुरी तरह घायल हो गया। इसके बाद से तो सोसायटी में डर का माहौल और भी ज्यादा हो गया है। सोसायटी के निवासी अब इन बंदरों से छुटकारा चाहते हैं। करीब 10 हजार से ज्यादा की आबादी वाली चंद्रलोक सोसायटी में बंदरों का आतंक इस कदर बढ़ गया है, कि लोग अब बाहर जाने से भी डरते हैं। कई मासूम बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग इन बंदरों के हमले का शिकार हो चुके हैं। लोगों का कहना है कि इस मामले को अगर नगर निगम और वन विभाग के समक्ष रखा जाता है, तो दोनों एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालकर इतिश्री कर लेते हैं। ऐसे में नगर निगम और वन विभाग की लापरवाही ने हालात और भी बदतर कर दिए हैं। दोनों विभागों ने कभी भी कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं किया। पार्षद राजेंद्र उपाध्याय का कहना है कि उन्होंने जब बंदरों के आतंक का मुद्दा नगर आयुक्त के सामने उठाया तो जवाब मिला, कि यह काम वन विभाग का है, इसमें वह कुछ नहीं कर सकते। सोसायटी के लोगों का कहना है कि आसपास सैकड़ों बंदर रहते हैं, चंद्रलोक सोसायटी और साबुन गोदाम बंदरों का गढ़ बन गया है, जहां लोगों का निकलना भी मुश्किल हो जाता है।

सोसायटी में रहने वाले सेंसरपाल, विकास शर्मा, प्रेम भाटिया, धीरज पूनिया और सरीश गर्ग का कहना है कि बंदरों का झुंड गैंग बनाकर आता है, जो बच्चे और बड़ों पर हमला बोल देता है। दो दिन पहले भी बंदरों के झुंड ने सोसायटी के लोगों पर हमला किया था। जिसमें सोसायटी के अजय बिष्ट बुरी तरह घायल हो गए। वहीं बच्चों पर भी बंदर झपटे थे, जो किसी तरह बाल-बाल बचे। अयज बिष्ट का कहना है कि वह बच्चों के साथ ही खड़ा हुआ था, तभी अचानक बहुत सारे बंदर आए और उनपर हमला बोल दिया। एक बंदर ने हाथ को पकड़कर बुरी तरह से काट लिया। लोगों ने बंदरों को किसी तरह वहां से भगाया, तब जाकर जान बची।

छतों पर जाना मुश्किल

सोसायटी में रहने वाले डॉ. हेमंत वर्मा, बिजेंद्र, वरुण गर्ग और प्रभात कौशिक का कहना है कि लोग गर्मी में छतों पर चले जाया करते थे। लेकिन अब हालात ये हो गए हैं, कि छतों पर जाते हुए डर लगता है। सुबह होते ही बंदरों के झुंड आकर बैठ जाते हैं। शाम को भी छतों पर अपना डेरा जमाए रखते हैं। लोगों को छतों पर जाने से पहले यह देखना पड़ता है, कहीं बंदर तो नहीं बैठे। देखा जाए तो सोसायटी अब बंदरों का गढ़ बन गया है, लोगों का निकलना भी मुश्किल हो गया है।

रसोइयों में सामान कर देते हैं बेकार

यहां रहने वाली गुड्डी देवी बताती हैं, कि बंदर आते हैं और रसोई में घुस जाते हैं। बहुत सा सामान इधर-उधर बिखेर देते हैं, कुछ सामान खराब कर देते हैं। अगर भगाओ तो काटने के लिए आते हैं। सोसायटी में अब लोगों ने अपने घरों में जालियां लगवा ली हैं। बंदरों से बचने के लिए कई अन्य उपाय भी कर रखे हैं। रसोई छोड़ो ये उत्पाती बंदर छतों पर और गैलरियों में रखे गमले उठाकर नीचे फेंक देते हैं। सामान का नुकसान करते हैं, जिससे खर्च का बोझ और बढ़ जाता है।

बच्चों के पीछे भागते हैं बंदर

यहां रहने वाले सचिन गुप्ता और विजित अग्रवाल का कहना है कि सड़कों पर भी बंदरों का झुंड बैठा रहता है। बच्चे निकलते हैं तो बंदर उनके पीछे काटने को भागते हैं। वहीं पार्कों में बच्चों का खेलना दुश्वार हो गया है। स्कूल जाते समय भी डर लगा रहता है कि बंदर हमला ना कर दे। पहले बच्चे पार्कों में खेल लिया करते थे, लेकिन आजकल डर के मारे खेलने भी नहीं जाते। अगर जाते हैं तो उनके साथ कोई बड़ा व्यक्ति जरूर रहता है। लेकिन यह कब तक चलेगा, बंदरों का कुछ तो होना चाहिए।

छतों पर बंदर और गलियों में कुत्ते भारी

लोगों का कहना है कि छतों और पार्कों में एक तरफ जहां बंदरों का उत्पात रहता है, वहीं सड़कों पर कुत्तों का आतंक भी लोगों को सताता है। एक तरफ बंदर काटते हैं, तो वहीं दूसरी ओर कुत्ते भी लोगों को निकलने नहीं देते। रात में तो कुत्तों का आतंक इतना ज्यादा है कि सड़क पर निकलना मुश्किल हो जाता है। बंदर और कुत्ते आए दिन लोगों को काटते रहते हैं। फिर उनके काटने पर लोग अस्पताल जाकर इंजेक्शन लगवाते हैं।

अस्पतालों में हो सीरम की व्यवस्था

लोगों का कहना है, कि इलाके में चंद्रलोक सोसायटी और साबुन गोदाम में सबसे ज्यादा बंदर हैं, संबंधित विभाग को बंदरों की समस्याओं से निपटने के लिए कुछ करना चाहिए। आजकल जिन लोगों को बंदर या कुत्ते काटते हैं, और घाव गहरा होता है, उनके लिए सीरम की व्यवस्था होनी चाहिए। जो मेरठ के सरकारी अस्पतालों में नहीं है, इसके लिए गाजियाबाद जाना पड़ता है। इसकी व्यवस्था भी होनी चाहिए, ताकि लोगों को परेशानी ना हो और रैबीज से बचा जा सके।

लंगूर के कट-आउट से भी नहीं डरते बंदर

चंद्रलोक सोसायटी में स्थिति यह है कि लोगों ने दीवारों पर लंगूरों के कट-आउट तक लगा रखे हैं, लेकिन इसके बाद भी बंदरों का आतंक कम नहीं हो रहा। लोगों को उम्मीद थी कि इन कट-आउट से बंदर डर जाएंगे, लेकिन बंदरों को किसी का डर नहीं रहा। वे बेखौफ छतों पर मंडराते हैं, बालकनी में घुस आते हैं, खाना छीन लेते हैं, बच्चों को नोच लेते हैं। अब यहां के लोग परेशान है कि आखिर बंदरों से छुटकारे के लिए क्या किया जाए।

विभागों की टालमटौल से बढ़ रही परेशानी

सोसायटी और आसपास के लोगों का कहना है कि जब भी बंदरों और कुत्तों की समस्या के समाधान को लेकर नगर निगम जाते हैं, तो वहां इसकी जिम्मेदारी वन विभाग की बताकर पल्ला झाड़ लिया जाता है। जब वन विभाग से इस बारे में पूछा जाता है तो वह नगर निगम पर टाल देते हैं। ऐसे में दोनों विभागों के बीच हजारों लोग पिस रहे हैं। आए दिन बंदर हमला करते हैँ, कुत्ते काटते हैं, लेकिन समाधान करने को कोई तैयार नहीं है।

लोगों ने बचाव के लिए लगाए ये जुगाड़

बंदरों के उत्पात का शिकार लोगों के वाहन भी होते हैं, जिनकी छत को बंदर क्षतिग्रस्त कर देते हैं। ऐसे में लोगों ने कारों की छतों पर कांटे और कील वाले बोर्ड लगवा रखे हैं। जिससे बंदर उनके ऊपर उछल-कूद नहीं करते। हालात ये हैं कि अगर कारों की छतों पर कील नहीं लगाएंगे तो बंदर कूद-कूदकर बेकार कर देते हैं। वहीं लोगों ने छतों की दीवारों पर भी कील और कांच लगा रखे हैं, कांटे वाले तार भी लगवा रखे हैं, लेकिन इसके बावजूद भी बंदरों का आतंक कम नहीं हो रहा।

यह भी बड़ी समस्या, हो समाधान

लोगों का कहना है कि सोसायटी की बदहाली यहीं खत्म नहीं होती। यहां गुजराती मोहल्ले की एक गली दो महीने से खुदी पड़ी है। जहां न तो टाइल्स लगी हैं, और न ही ठेकेदार का कोई अता-पता। लोगों का यहां निकलना भी मुश्किल हो गया है। आए दिन लोग गिरकर चोटिल हो रहे हैं। कई लोग गिरकर बुरी तरह घायल हो चुके हैं। शिकायत करने के बावजूद सड़क नहीं बन पा रही है। यहां इंटरलॉकिंग टाइल्स लगाने का काम नहीं होने से लोग परेशान हैं।

40 साल से झूलते तार

चंद्रलोक और साबुन गोदाम एरिया में हालात बंदर व कुत्तों तक सीमित नहीं हैं, यहां लोगों की ज़िंदगी दो तरफा डर के बीच झूल रही है। जहां 40 साल पुराने बिजली के तार आज भी झूलते दिखते हैं। जिनको बदलने के लिए संबंधित विभाग से कई बार कहा जा चुका है। इसके बावजूद इनको बदला नहीं गया है। लोगों की बालकनी से टच होकर जाते ये तार जानलेवा साबित हो सकते हैं। इन तारों को जुगाड़ करके दूर किया गया है, जिन पर खपच्ची और प्लास्टिक के पाइप लगाए गए हैं। यहां एबीसी लाइन बिछनी है, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ।

मच्छरों से मिले छुटकारा

लोगों का कहना है कि आजकल मच्छर भी बहुत बढ़ गए हैं। पूरे एरिया में सीवर लाइन नहीं होने से नालियों में बहने वाले गंदे पानी के कारण मच्छरों की तादाद बढ़ गई है। जिसके चलते नगर निगम की कोई व्यवस्था नजर नहीं आ रही है। मच्छरों से बचाव के लिए अभी तक एक बार भी फॉगिंग नहीं हुई है। जबकि मच्छरों से होने वाली बीमारी का प्रकोप लगातार बढ़ता जा रहा है। नगर निगम को इस बारे में कई बार कहा गया है, लेकिन कोई सुध लेने वाला नहीं है।

समस्याएं

- इलाके में बंदरों का आतंक बहुत ज्यादा हो गया है

- नगर निगम या वन विभाग कोई कार्रवाई नहीं करता

- कुत्तों की भी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है

- पूरे इलाके में सीवर लाइन कहीं भी नहीं हैं

- चालीस साल पुराने तार आज भी झूलते दिखते हैं

सुझाव

- नगर निगम या वन विभाग बंदरों के खिलाफ अभियान चलाए

- बंदरों और कुत्तों से होने वाली परेशानी को दूर किया जाए

- कुत्तों की नसबंदी करके उनको दूर इलाकों में छोड़ा जाए

- पूरे इलाके में सीवर लाइन डाली जाएं, जलभराव से निजात मिले

- चालीस साल पुराने तारों को हटाकर एबीसी लाइन बिछाई जाए

ये बोले लोग

इलाके में बंदरों की समस्या बहुत विकट हो गई है। बंदरों की समस्याओं को लेकर नगरायुक्त से बातचीत की थी, लेकिन उन्होंने वन विभाग की जिम्मेदारी बताकर पल्ला झाड़ लिया। जब तक ऊंचे स्तर से कार्रवाई के निर्देश नहीं होंगे तब तक, ना तो नगर निगम सुनेगा और ना ही वन विभाग। - राजेंद्र उपाध्याय, पार्षद

बंदरों के कारण लोगों का घरों से निकलना भी मुश्किल हो गया है। जहां देखो वहां बंदर लोगों पर हमला बोल देते हैं। - सेंसर पाल

छतों से लेकर घरों तक में बंदरों का उत्पात मचा रहता है, हालात ये हो गए हैं कि अब बाहर निकलते भी डर लगता है। - विकास शर्मा

बंदर घरों में घुसकर बहुत नुकसान करते हैं, रसोई से सामान उठाकर ले जाते हैं, आए दिन बहुत बड़ा नुकसान करते रहते हैं। - प्रेम भाटिया

बंदर आजकल झुंड बनाकर आते हैं, बच्चों पर झपट्टा मारते हैं, कई बार लोगों को शिकार बना चुके हैं, समाधान होना चाहिए। - धीरज पूनिया

बंदरों ने इतना आतंक मचा रखा है, कि लोग ना तो छत पर जा सकते हैँ और ना ही सड़क पर, जहां देखो बंदर हमला कर देते हैं। - शरीस गर्ग

हाल में एक युवक को बुरी तरह काटकर लहूलुहान कर दिया था, वो तो बच्चे किसी तरह बचे, नहीं तो उन पर भी हमला कर देते। - डॉ. हेमंत वर्मा

छतों पर बंदर और गलियों में कुत्तों ने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है, विभाग कोई सुध नहीं लेता, एक दूसरे पर टाल देते हैं। - बिजेंद्र कुमार

इलाके में लोगों ने बंदरों को भगाने के लिए लंगूरों का कट आउट तक लगा रखे हैं, लेकिन बंदर इन कट आउट से भी नहीं डरते। - वरूण गर्ग

मुझ पर अचानक बंदरों ने हमला बोल दिया था, मेरे हाथ को पकड़कर बुरी तरह काट लिया, बंदरों से किसी तरह बचकर भागा। - अजय बिष्ट

लोगों का घरों से निकलना एकदम मुश्किल हो गया है, बच्चों के पीछे बंदर भागने लगते हैं, कई लोगों को तो चोट भी लग चुकी है। - प्रभात कौशिक

बंदरों के साथ कुत्तों ने भी आतंक मचा रखा है, गलियों में रात को निकलना मुश्किल हो गया है, कभी किसी को काट लेते हैं। - अश्वनी कुमार

बंदरों से विभाग किसी तरह छुटकारा दिलाए, बड़े स्तर पर बंदरों के खिलाफ अभियान चलाया जाना चाहिए, ताकि राहत मिल सके। - गुड्डी देवी

इलाके में मच्छरों का आतंक भी बढ़ गया है, उसके लिए भी नगर निगम को फॉगिंग की व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि बीमारी से बचा जा सके। - सचिन गुप्ता

इलाके में धीरे-धीरे मच्छरों की तादाद बढ़ती जा रही है, बंदर, कुत्ते और मच्छर सबने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है। - विजित अग्रवाल

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