आपरेशन सिंदूर के मद्देनजर महिला सैन्य अधिकारियों को फिलहाल सेवामुक्त नहीं करने का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह उन महिला सैन्य अधिकारियों को सेवामुक्त न करे, जिन्होंने स्थाई कमीशन न मिलने को चुनौती दी है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि मौजूदा हालात के मद्देनजर,...

सैन्य अधिकारियों के साथ खड़े होने और उनका मनोबल बढ़ाना चाहिए- जस्टिस सूर्यकांत प्रभात कुमार नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार से फिलहाल उन महिला सैन्य अधिकारियों को सेवामुक्त नहीं करने का निर्देश दिया है, जिन्होंने स्थाई कमीशन (पीसी) नहीं दिए जाने को चुनौती दी है। ‘आपरेशन सिंदूर के तहत पीओके और पाकिस्तान स्थित आतंकी शिविरों पर भारतीय सेना द्वारा की गई कार्रवाई के बाद पाकिस्तान के साथ युद्ध जैसी हालात के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभी उनके (महिला सैन्य अधिकारियों) साथ खड़े होने और उनकी सेवाओं का उपयोग करने का समय है। जस्टिस सूर्यकांत और एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) के तहत सेना में भर्ती होने वाली 69 महिला अधिकारियों की याचिकाओं को 6 अगस्त में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है।
शीर्ष अदालत ने अगली सुनवाई होने तक महिला सैन्य अधिकारियों को सेवामुक्त करने पर रोक लगाते हुए कहा कि ‘मौजूदा हालात के मद्देनजर अभी उनका मनोबल नहीं गिराया जाना चाहिए। मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने भारतीय सेना के योगदान की सराहना की और कहा कि ‘हम सभी उनके सामने खुद को बहुत छोटा महसूस करते हैं। यह वह समय है जब हममें से प्रत्येक को उनके साथ खड़ा होना चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि मौजूदा हालात यानी पाकिस्तान के साथ तनाव के मद्देनजर हमें उनका (महिला सैन्य अधिकारियों) मनोबल नहीं गिराना चाहिए, वे प्रतिभाशाली अधिकारी हैं, आप उनकी सेवाएं कहीं और ले सकते हैं। यह समय नहीं है कि उन्हें उच्चतम न्यायालय में इधर-उधर भटकने के लिए कहा जाए। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि उनके लिए कोई बेहतर जगह है। उन्हें बेहतर जगह पर रहने की जरूरत है। जस्टिस सूर्यकांत का तात्पर्य यह था कि ऐसे महत्वपूर्ण समय में देश को युद्ध के मैदान में सेना के अधिकारियों की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट मुख्य रूप से सेना की एक महिला अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल गीता शर्मा को कथित तौर पर समय से पहले यानी 17 मार्च को सेवामुक्त किए जाने पर यह टिप्पणी की, जबकि उन्हें सेवामुक्त करने की तारीख 9 जून थी। इसलिए, उन्होंने सेवामुक्त किए जाने पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। महिला सैन्य अधिकारियों को सेवामुक्त करने पर रोक लगाते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि हम मामले के गुणदोष पर विचार करेंगे। लेकिन अभी सेना के अधिकारियों को अभी मुकदमेबाजी में परेशान या विचलित नहीं होना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि जब देश संघर्ष से गुजर रहा है तो, ऐसे में इसके बजाय, सैन्य अधिकारियों का मुकदमेबाजी और कोर्ट कचहरी के बजाए कहीं और होना चाहिए ताकि उनकी सेवा का लाभ देश को मिले। हालांकि, केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) भाटी ने याचिका का विरोध किया और कहा कि सेना को युवा अधिकारी चाहिए और हर साल सिर्फ 250 अधिकारियों को स्थाई कमीशन दिया जाना है। उन्होंने अधिकारियों को सेवामुक्त करने पर रोक नहीं लगाने का आग्रह किया। हालांकि शीर्ष अदालत ने केंद्र की ओर से आग्रह को ठुकरा दिया और कहा कि अगली सुनवाई तक महिला सैन्य अधिकारियों को सेवामुक्त नहीं किया जाए। कर्नल सोफिया कुरैशी के मामले का जिक्र कर मांगी राहत मामले की सुनवाई के दौरान लेफ्टिनेंट कर्नल गीता शर्मा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने पीठ के समक्ष कर्नल सोफिया कुरैशी से जुड़े मामले का जिक्र किया। वरिष्ठ अधिवक्ता गुरुस्वामी ने पीठ से कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह की एक याचिका को स्वीकार किया था, जिसमें कर्नल सोफिया कुरैशी, जो पाकिस्तान के साथ चल रहे संघर्ष के बारे में देश को अपडेट देने के लिए भारतीय सेना की ब्रीफिंग का नेतृत्व कर रही हैं, को पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने सेना के अन्य अधिकारियों के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए उनके अपार योगदान के लिए सराहा था। वरिष्ठ अधिवक्ता ने पीठ से कहा कि शीर्ष अदालत ने महिला सैन्य अधिकारियों के खिलाफ प्रणालीगत भेदभाव में हस्तक्षेप किया था। यदि आपके आधिपत्य ने हस्तक्षेप नहीं किया होता, तो वह (कर्नल सोफिया कुरैशी) राष्ट्र को ब्रीफिंग नहीं कर रही होतीं। जस्टिस सूर्यकांत ने वरिष्ठ अधिवक्ता गुरुस्वामी की दलील से सहमति जताते हुए कहा कि ‘आज की तारीख में, हम चाहते हैं कि उनकी नैतिकता किसी भी चीज से अधिक ऊंची हो। उनमें से प्रत्येक योग्य है। पूर्व में क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने 17 फरवरी, 2020 को अपने फैसले में कहा था कि सेना में स्टाफ नियुक्तियों को छोड़कर सभी पदों से महिलाओं को पूरी तरह बाहर रखे जाने के कदम का बचाव नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदातल ने अपने फैसले में कहा था कि कमांड नियुक्तियों के लिए उन पर बिना किसी औचित्य के कतई विचार न करने का कदम कानून के तहत बरकरार नहीं रखा जा सकता। शीर्ष अदालत ने सेना में महिला अधिकारियों के स्थायी कमीशन (पीसी) देते हुए यह टिप्पणी की थी। शीर्ष अदालत ने सरकार की उस दलील को परेशान करने वाली और समानता के सिद्धांत के खिलाफ बताया था, जिसमें शारीरिक सीमाओं और सामाजिक चलन का हवाला देते हुए कमान मुख्यालय में महिलाओं को नियुक्ति नहीं देने की बात कही गई थी। शीर्ष न्यायालय ने तब कहा था कि अतीत में महिला अधिकारियों ने देश का मान बढ़ाया है और सशस्त्र सेनाओं में लैंगिक आधार पर भेदभाव समाप्त करने के लिए सरकार की मानसिकता में बदलाव जरूरी है।
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