शादी का वादा करके यौन संबंध बनाने का हर मामला दुष्कर्म का अपराध नहीं- सुप्रीम कोर्ट
प्रभात कुमार नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि ‘शादी का

प्रभात कुमार नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि ‘शादी का वादा करके यौन संबंध बनाने का हर मामला दुष्कर्म का अपराध नहीं माना जाएगा। शीर्ष अदालत ने दुष्कर्म के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की है। उच्च न्यायालय ने सत्र अदालत द्वारा आरोपमुक्त करने के फैसले को रद्द करते हुए आरोपी पर दुष्कर्म का मुकदमा चलाने का आदेश दिया था।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने हाल ही में पारित फैसले में कहा है कि ‘शीर्ष अदालत ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि महज शादी का वादा करके शारीरिक संबंध बनाने के हर मामले को दुष्कर्म नहीं माना जाएगा। इतना ही नहीं, पीठ ने स्पष्ट किया कि आईपीसी की धारा 375 के तहत अपराध तभी बनता है, जब आरोपी द्वारा शादी का वादा सिर्फ यौन संबंध बनाने की सहमति प्राप्त करने के उद्देश्य से किया गया हो और उसका शुरू से ही वादा पूरा करने का कोई इरादा न हो और विवाह के ऐसे झूठे वादे का पीड़िता द्वारा यौन संबंधों के लिए सहमति देने पर सीधा असर पड़ता हो। पीठ ने नईम अहमद बनान दिल्ली सरकार के मामले में शीर्ष अदालत द्वारा पारित पूर्व फैसले का हवाला देते हुए यह टिप्पणी की है। पीठ ने कहा है कि जहां तक मौजूदा मामले का सवाल है तो इस मामले में नईम अहमद मामले में पारित फैसला पूरी तरह से लागू होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ आरोपी व्यक्ति की ओर से दाखिल अपील को स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की है। पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के 3 जनवरी, 2024 के उस फैसले को रद्द कर दिया है। उच्च न्यायालय ने सत्र अदालत द्वारा 8 जून 2023 को आरोपी को मामले में आरोपमुक्त करने के फैसले को रद्द कर दिया था और उसके खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा चलाने का निर्देश दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद ‘हम पाते हैं कि न्यायालय के लिए सीआरपीसी की धारा 227 के तहत शक्तियों का प्रयोग करने और अपीलकर्ता को आरोपमुक्त करने के लिए रिकॉर्ड पर पर्याप्त सामग्री थी।
‘आरोप तय करने के चरण में ‘मिनी ट्रायल की इजाजत नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि ‘यह सामान्य कानून है कि किसी आपराधिक मामले में आरोप तय करने के चरण में मुकदमे का ‘मिनी ट्रायल की इजाजत नहीं है बल्कि ट्रायल कोर्ट को अभियोजन पक्ष द्वारा रिकॉर्ड पर लाए गए साक्ष्यों व दस्तावेजों के साथ आगे बढ़ना है और यह निर्धारित करना है कि सामग्री से उभरने वाले तथ्य उसके अंकित मूल्य पर कथित अपराध के आवश्यक तत्वों के अस्तित्व को प्रकट करते हैं या नहीं। पीठ ने कहा है कि मौजूदा मामले में हम यह भी पाते हैं कि उच्च न्यायालय ने दर्ज एफआईआर और चार्जशीट में आरोपों का विस्तृत विश्लेषण किया है, जबकि यह विचार करने में विफल रहा है कि आरोप तय करने के चरण में, अदालत को केवल रिकॉर्ड पर सामग्री के आधार पर ही फैसला करना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा है कि हस्तक्षेप और पुनरीक्षण अधिकार क्षेत्र के प्रयोग का दायरा अत्यंत सीमित है और इसका प्रयोग बहुत संयम से किया जाना चाहिए।
यह था मामला
महिला की शिकायत पर एक व्यक्ति के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने 2021 में दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज किया था। महिला ने आरोप लगाया था कि व्यक्ति ने उससे शादी करने और उसके दो बच्चों की देखरेख करने का वादा करने व्यक्ति ने उसके साथ कई बार शारीरिक संबंध बनाया। लेकिन बाद में शादी से इनकार कर दिया। मामले के अनुसार शिकायतकर्ता महिला और आरोपी व्यक्ति एक दूसरे को 2011 से जानते थे और दोनों के बीच 2016 में प्रेम हुआ।
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